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कवित्त का भावार्थ सारांश व्याख्या एवं प्रश्न उत्तर – भूषण

कवित्त का भावार्थ सारांश व्याख्या एवं प्रश्न उत्तर – भूषण


कवित्त का प्रथम खण्ड

इंद्र जिमि जंभ पर बाड़व ज्यौं अंभ पर,
रावन सदंभ पर रघुकुल राज है।

पौन बारिबाह पर संभु रतिनाह पर,
ज्यौं सहस्रबाहु पर राम द्विजराज है।

दावा द्रुम-दंड पर चीता मृग-झुंड पर,
भूषन बितुंड पर जैसे मृगराज है।

तेज तम अंस पर कान्ह जिमि कंस पर,
यौं मलेच्छ बंस पर सेर सिवराज है।

कवित्त की व्याख्या

उपरोक्त पंक्तियां हिंदी के पाठ्य-पुस्तक दिंगत भाग 2 बिहार बोर्ड कक्षा 12 के कवित्त कविता से ली गई है। इसके कवि का नाम भूषण है। कवि भूषण जी ने इन पंक्तियों के माध्यम से वीर शिवाजी के शौर्य का बखान करते हुए कहा है कि जिस प्रकार से इंद्र का राज यमराज पर है तथा समुंद्र की अग्नि का राज पानी पर है और रावण और उसके अहंकार पर श्रीराम का राज है।

जैसे से हवाओं का राज बादलों पर है तथा भगवान शिव का राज रति के पति अर्थात कामदेव पर है। और जिस प्रकार राजा सहस्रबाहु पर भगवान परशुराम का राज है।

जिस प्रकार से जंगलों की अग्नि का राज, जंगल के पेड़ पौधे और वृक्ष की डालियों पर है। जिस प्रकार मृग झुंड पर चिता का राज है, जैसे हाथियों पर शेर का राज होता है।

जिस प्रकार अंधेरे पर उजाले का राज होता है, कंस पर श्री कृष्ण का राज्य है। उसी प्रकार वीर शिवाजी का राज भी इन तुच्छ मलेच्छ पर है।

कवित्त का दूसरा खण्ड


निकसत म्यान ते मयूखै, प्रलै-भानु कैसी,
फारै तम-तोम से गयंदन के जाल को।

प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि भूषण जी वीर छत्रसाल के शौर्य और वीरता का बखान करते हुए कहते है कि जिस प्रकार सूर्य से प्रलयकारी किरणे निकलती है, ठीक उसी प्रकार वीर छत्रसाल जी की तलवार म्यान से निकलती है। जिस प्रकार प्रकाश अंधकार के समूह को खत्म कर देता है, अथवा उस पर विजय प्राप्त कर लेता है। उसी प्रकार छत्रसाल जी की तलवार हाथियों के जाल अर्थात शत्रुओं को समाप्त कर देती है। और उन पर विजय प्राप्त करती है।

भूषण के पदों की व्याख्या


लागति लपकि कंठ बैरिन के नागिनि सी,
रुद्रहि रिझावै दै दै मुंडन की माल को।

कवि भूषण जी इन पंक्तियों के माध्यम से वीर छत्रसाल के शौर्य और वीरता का बखान करते हुऐ कहते है कि उनकी तलवार ऐसे चलती है, जैसे नागिन अपने शत्रुओं के गले से लिपट जाती है, और अपने शत्रु को समाप्त कर देती है। ऐसा लगता है, जैसे शिव जी को खुश करने के लिए उनकी तलवार मुंडो की माला चढ़ाती हो।

लाल छितिपाल छत्रसाल महाबाहु बली,
कहाँ लौं बखान करौं तेरी करवाल को।

कवि भूषण जी इन पंक्तियों के माध्यम से वीर छत्रसाल के शौर्य और वीरता का बखान करते हुऐ कहते है कि हे महा बाहुबली प्यारे राजन छत्रसाल मैं कहां तक आपकी वीरता और प्रलयकारी तलवार का बखान करूं।

प्रतिभट कटक कटीले केते काटि काटि,
कालिका सी किलकि कलेऊ देति काल को।

भूषण इन पंक्तियों के माध्यम से वीर छत्रसाल के शौर्य और वीरता का बखान करते हुऐ कहते है कि हे राजन आपकी जो प्रलयकारी तलवार है, वह शत्रु समूह के सिर को इस प्रकार काटती है, जिस प्रकार देवी का कलिका अर्थात काली रूप ने रक्तबीज का संहार किया था, और ऐसा लगता है जैसे मां काली को प्रसन्न करने के लिए कलेऊ दे रही हो।

भूषण के कवित्त सारांश


कवि भूषण ने अपने इस कवित्त में अपने प्रिय नायकों के संबंध में लिखा है। भूषण जी, शिवाजी महाराज के शौर्य एवं शक्ति की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि, जैसे इंद्र का राज यमराज पर है। राम का राज रावण पर है। शिव का राज रति के पति कामदेव पर है। परशुराम का राज सहस्रबाहु पर है। कृष्ण का राज कंस पर है। उजाले का राज अंधेरे पर है। उसी प्रकार वीर शिवाजी का राज इन तुच्छ म्लेच्छों पर है।

कवि भूषण जी ने छत्रसाल महाराज के शौर्य एवं वीरता की प्रशंसा करते हुए कहा है कि, छत्रसाल जी की तलवार जब म्यान से निकलती है, तो ऐसा लगता है कि, सूर्य से प्रलयकारी किरणे निकल रही हो। उनकी तलवार उनकी दुश्मनों के गर्दन पर नागिन की तरह लिपट जाती है। जब छत्रसाल जी की तलवार चलती है, तो ऐसा लगता है, जैसे उनकी तलवार शिव जी और काली मां को प्रसन्न करने के लिए मुंडो की माला तथा कलेऊ दे रही हो।

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