जन-जन का चेहरा एक शीर्षक कविता का सारांश, भावार्थ, व्याख्या एवं प्रश्न उत्तर
जन-जन का चेहरा एक शीर्षक कविता के लेखक का परिचय
जन-जन का चेहरा एक शीर्षक कविता के कवि का नाम गजानन माधव मुक्तिबोध है। गजानन माधव मुक्तिबोध का जन्म 13 नवम्बर 1917 और गजानन माधव मुक्तिबोध का निधन 11 सितम्बर 1964 हुआ। गजानन माधव मुक्तिबोध का निवास स्थान श्योपुर, ग्वालियर, मध्य प्रदेश में हैं। इनके पिता का नाम माधवराज मुक्तिबोध और मां का नाम पार्वती बाई है। गजानन माधव मुक्तिबोध बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध के हिंदी के प्रमुख कवि, चिंतक, आलोचक और कथाकार हैं।
जन-जन का चेहरा एक शीर्षक कविता का सारांश
यह कविता अपने आप में सार्वभौम चिन्तन को समाहित किए हुए है। इसमें पीड़ित संघर्षशील मानव समाज का चित्र उतारा गया है, जो अपने मानवोचित अधिकारों के लिए तत्पर हैं। यह संघर्ष संसार के सभी क्षेत्रों में फूट रहा है जो न्याय, शांति, बन्धुत्व पाना चाहता है। इस प्रकार यह संघर्षशील जनता एक ही है, क्योंकि इसे एक ही सूत्र से पिरोयी गयी है।
समस्त विश्व का जन एक ही धरातल पर खड़ा है, उसकी सोच भी एक ही है, उसकी पीड़ाएँ और दुःख दर्द भी समान हैं। इसी कारण जन-जन का चेहरा एक है, वह जन चाहे कहीं का हो, जन प्रकृति एक है, धूप, कष्ट, दुःख संताप एक है, चेहरे पर पड़ी झुर्रियों का रूप भी एक है और संघर्षशील मुट्ठियों का लक्ष्य भी एक ही है।
यही नहीं यह एकता, एकरूपता बड़ी विलक्षण है। हर स्थान पर एक ही है। जनता का दल, उसका पक्ष भी एक ही है। यह लाल सितारा जो तुम देखते हो सर्वत्र एक ही है। समस्त नदियों की धारा भी समान ही है। शत्रु पक्ष एक, दुर्ग एक, सेनाएँ एक जन शोषक शत्रु भी एक ही है, सूर्य एक जो लाल-लाल किरणों से अन्धकार चीर देता है।
इस कविता में बड़ी कुशलता से विभिन्न प्रतीकों के माध्यम से जन-जन के चेहरे की एकता स्थापित की गयी है। सत्य का उजाला एक, सबकी वेदनाएँ समान, हिम्मत एक समान। इसके साथ भारत का अपना अस्तित्व अलग है मात्र कुछ मामलों में। यहाँ सभी ओर भाई हैं सभी ओर बहनें हैं, सर्वत्र कन्हैया ने गायें चरायी हैं। उसकी बंसी की धुन सर्वत्र एक ही है, दानव दुरात्मा भी सर्वत्र एक ही है, फिर भी मानवात्मा एक ही है। यहाँ शोषक खूनी चोर एक से ही हैं। कवि ने साफ किया है, भौगोलिक सीमाएँ भी मानव की एकता को नहीं तोड़ पाती हैं। गम भी एक, खुशियाँ भी एक चाहे विश्व का कोई देश हो। इस प्रकार देश की सीमाएँ बदलाव नहीं ला सकतीं। सर्वत्र जन-जन का चेहरा एक ही है।
जन जन का चेहरा एक कविता के प्रश्न उत्तर
प्रश्न १.
जन जन का चेहरा एक से कवि का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर : जन जन का चेहरा एक से कवि का तात्पर्य उन लोगों से है, जो अलग-अलग देशों में रहने के बावजूद भी एक साथ मिलकर शोषण कर्ताओं के विरुद्ध आवाज़ उठाते हैं। जिसका एक ही लक्ष्य है शांति और बंधुत्व के साथ न्याय। कवि ने इसमें जनता की एकता और उनकी ताक़त को दिखाया है।
प्रश्न २.
बँधी हुई मुठ्ठियों का क्या लक्ष्य है ?
उत्तर : ‘बँधी हुई मुठ्ठियां’ जनता की ताक़त और एकता का प्रतीक है। जिसका लक्ष्य है, शोषण कर्त्ताओं के विरुद्ध आवाज़ उठाना और न्याय को क़ायम रखना। बँधी हुई मुट्ठी की ताक़त इतनी है कि जनता के शोषण कर्ताओं को कभी भी सत्ता से हटा सकती है और उनके लिए भयानक और विकराल रूप भी धारण कर सकती है।
प्रश्न ३.
कवि ने सितारे को भयानक क्यों कहा है? सितारे का इशारा किस ओर है?
उत्तर : कवि ने सितारे को भयानक इसलिए कहा है क्योंकि सितारे मे जितनी चमक होती है, वह उतना ही विकराल और भयानक होता है। समय आने पर वह लाल जलते हुए ज्वाला के समान होता है। सितारे का इशारा संघर्षशील जनता की ओर है जो शोषण कर्ताओं के लिए काल बन सकती है एक भयानक और विकराल रूप ले सकती है।
प्रश्न ४.
नदियों की वेदना का क्या कारण है ?
उत्तर : नदियों की वेदना का कारण मनुष्य के द्वारा किए जा रहे पाप, अत्याचार और अधर्म है। जिसके कारण माँ की तरह सबको जीवन देने वाली नदी भी विनाश का कारण बनती है।
जन-जन का चेहरा एक कविता का भावार्थ एवं व्याख्या
प्रश्न ५.
अर्थ स्पष्ट करें –
"आशामयी लाल लाल किरणों से अंधकार
चीरता सा मित्र का स्वर्ग एक ;
जन जन का मित्र एक"
उत्तर : प्रस्तुत पंक्तियां “जन-जन का चेहरा एक” कविता से ली गई है। इसके कवि “गजानन माधव मुक्तिबोध जी” हैं। कवि ने इस कविता मे आंतरिक एकता को दिखाते हुए जनता के संघर्ष कारी संकल्प मे प्रेरणा और उत्साह का संचार करते है। इन पंक्तियों में कवि कहते है कि, इन अंधकारों को चीरने वाले आशा की लाल-लाल किरणे हैं। जब ये अंधकार ख़त्म होगा तो सभी मित्रों का सभी लोगों का स्वर्ग एक होगा। सभी लोगो के मित्र एक होंगे।
"एशिया के, यूरोप के, अमरीका के
भिन्न भिन्न वास स्थान ;
भौगोलिक, ऐतिहासिक बंधनों के बावजूद ,
सभी ओर हिंदुस्तान, सभी ओर हिंदुस्तान"
प्रस्तुत “जन-जन का चेहरा एक” कविता से ली गई है। इसके कवि “गजानन माधव मुक्तिबोध जी” है। कवि ने इस कविता मे आंतरिक एकता को दिखाते हुए जनता के संघर्षकारी संकल्प मे प्रेरणा और उत्साह का संचार करते हैं। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि, एशिया, यूरोप, अमरीका भिन्न-भिन्न निवास स्थान है जहाँ लोग रहते हैं। भौगोलिक, ऐतिहासिक बहुत से बंधन हैं इन बंधनों के बावजूद भी सभी ओर हिंदुस्तान के लोग रहते है सभी ओर हिन्दुस्तानी हैं।
प्रश्न ६.
ज्वाला कहाँ से उठती है ? कवि ने इसे अतिक्रुद्ध क्यों कहा है ?
उत्तर : ज्वाला जनता के हृदय से उठती है। कवि ने इसे अतिक्रुद्द इसलिए कहा है क्योंकि शोषित और पीड़ित जनता के मन में जो ज्वाला है। वो बहुत ही प्रलयकारी है। वह अपना धैर्य खो चुकी है। अपना हक़ पाने के लिए जनता एक होकर शोषण करने वालों के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ उठा रही है और क्रांति कर रही है।
प्रश्न ७.
समूची दुनिया में जन जन का युद्ध क्यों चल रहा है ?
जन जन का युद्ध समूची दुनिया में इसलिए चल रहा है क्योंकि सारी दुनिया इन शोषण करने वालों से परेशान है। शोषण कर्ता सभी जगह है, सभी देशों में है इसलिए सभी देशों के लोगों की वेदना और संघर्ष एक सी है।
प्रश्न ८.
कविता का केंद्रीय विषय क्या है ?
उत्तर : कविता मे शोषण कर्ताओं के विरुद्ध संघर्ष कर रही जनता के बारे में बताया गया है। सभी देश में शोषण करने वाले हैं, जो पीड़ित और कमजोर जनता को दबाए जा रहे हैं। अब जनता एकता के बल को समझ गई है, जग गई है। एक होकर जनता इन शोषण कर्ताओं के ख़िलाफ़ अपनी ताकत और क्रोध को दिखा रही है। जिसका एक ही लक्ष्य है, अपने अधिकारों को प्राप्त करना।
प्रश्न ९.
प्यार का इशारा और क्रोध का दुधारा से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर : प्यार का इशारा और क्रोध का दूध धारा से तात्पर्य है कि जो जनता प्यार करती है, जो सब कुछ शांति और संयम से करती है। वह जब क्रोध में आती है तो उसकी धारा बदल जाती है। वह शोषण करने वालों पर तलवार की धार की तरह होती है। वह किसी से नहीं डरती है।
प्रश्न १०.
पृथ्वी के प्रसार को किन लोगों ने अपनी सेनाओं से गिरफ्तार कर रखा है ?
उत्तर : जनता का शोषण करने वाले लोगों ने पृथ्वी के प्रसार को अपनी सेनाओं से गिरफ़्तार कर रखा है। इसमें समाज के उच्च वर्ग के लोग जैसे नेता और पूंजीपति आदि आते हैं।
प्रश्न ११.
“जन-जन का चेहरा एक” से कवि का क्या तात्पर्य है ? अथवा, “जन-जन का चेहरा एक’ शीर्षक कविता का भावार्थ लिखें।
उत्तर: “जन-जन का चेहरा एक” अपने में एक विशिष्ट एवं व्यापक अर्थ समेटे हुए हैं। कवि पीड़ित संघर्षशील जनता की एकरूपता तथा समान चिन्तन शीलता का वर्णन कर रहा है। कवि की संवेदना, विश्व के तमाम देशों में संघर्षरत जनता के प्रति मुखरित हो गई है, जो अपने मानवोचित अधिकारों के लिए कार्यरत हैं। एशिया, यूरोप, अमेरिका अथवा कोई भी अन्य महादेश या प्रदेश में निवास करने वाले समस्त प्राणियों का शोषण तथा उत्पीड़न के प्रतिकार का स्वरूप एक जैसा है। उनमें एक अदृश्य एवं अप्रत्यक्ष एकता है।
उनकी भाषा, संस्कृति एवं जीवन शैली भिन्न हो सकती है, किन्तु उन सभी के चेहरों में कोई अन्तर नहीं दिखता, अर्थात् उनके चेहरे पर हर्ष एवं विषाद, आशा तथा निराशा की प्रतिक्रिया, एक जैसी होती है। समस्याओं से जूझने (संघर्ष करने) का स्वरूप एवं पद्धति भी समान है।
कहने का तात्पर्य यह है कि यह जनता दुनिया के समस्त देशों में संघर्ष कर रही है अथवा इस प्रकार कहा जाए कि विश्व के समस्त देश, प्रान्त तथा नगर सभी स्थान के “जन-जन” (प्रत्येक व्यक्ति) के चेहरे एक समान हैं। उनकी मुखाकृति में किसी प्रकार की भिन्नता नहीं है। आशय स्पष्ट है विश्वबन्धुत्व एवं उत्पीड़ित जनता जो सतत् संघर्षरत् है उसी की पीड़ा का वर्णन कवि कर रहा है।
प्रश्न १२.
नदियों की वेदना का क्या कारण है ?
उत्तर : नदियों की वेगवती धारा में ज़िन्दगी की धारा के बहाव. कवि के अन्त:मन की वेदना को प्रतिबिम्बित करता है। कवि को उनके कल-कल करते प्रवाह में वेदना की अनुभूति होती है। गंगा, इरावतीय अधिकारों के वेदना के गीत कवि होती है। गंगा, इंद्रावती, नील, अमेजन नदियों की धारा मानव-मन की वेदना को प्रकट करती है, जो अपने मानवीय अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं। जनता की पीड़ा तथा संघर्ष को जनता से जोड़ते हुए बहती हुई नदियों में वेदना के गीत कवि को सुनाई पड़ते हैं।
प्रश्न १३.
“दानव दुरात्मा” से क्या अर्थ है ?
उत्तर : पूरे विश्व की स्थिति अत्यन्त भयावह, दारुण तथा अराजक हो गई है। दानव और दुरात्मा का अर्थ है- जो अमानवीय कृत्यों में संलग्न रहते हैं, जिनका आचरण पाशविक होता है उन्हें दानव कहा जाता है। जो दुष्ट प्रकृति के होते हैं तथा दुराचारी प्रवृत्ति के होते हैं उन्हें ‘दुरात्मा’ कहते हैं। वस्तुतः दोनों में कोई भेद नहीं है, एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं। ये सर्वत्र पाए जाते हैं।
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