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तुमुल कोलाहल कलह में कविता का सारांश भावार्थ व्याख्या एवं प्रश्नों के उत्तर

तुमुल कोलाहल कलह में कविता का सारांश भावार्थ व्याख्या एवं प्रश्नों के उत्तर


तुमुल कोलाहल कलह में कविता का कवि परिचय

तुमुल कोलाहल कलह में कविता के कवि का नाम जयशंकर प्रसाद है। इनका जन्म 1889 माघ शुक्ल दशमी, संवत् 1946 तथा मृत्यु 15 नवम्बर 1937 है। यह वाराणसी के रहने वाले थे। इनके पिता का नाम देवी प्रसाद साहू और माता का नाम मुन्नी देवी था।

जयशंकर प्रसाद को आधुनिक हिंदी की स्वच्छंद काव्य धारा के अंतर्गत छायावादी काव्य प्रवाह के प्रवर्तकों में वरिष्ठ कवि माना जाता है।

तुमुल कोलाहल कलह में कविता का सारांश

यह कविता ‘कामायनी’ के ‘निर्वेद सर्ग’ से लिया गया है। इड़ा के प्रजा तथा मनु के बीच युद्ध की समाप्ति के बाद चारों ओर शोक की लहर व्याप्त हो चुकी थी, उसी समय वहाँ श्रद्धा पहुंच जाती है। इड़ा उस विरहिणी श्रद्धा को आश्रय देती है। उसी क्षण में श्रद्धा ने मूर्च्छित मनु को देखा तो वह अत्यधिक व्यथित हो उठी। श्रद्धा और मनु दोनों का मिलन बहुत दिनों के बाद हुआ था। श्रद्धा कहती है कि वह भावनाओं के कोलाहल में शक्ति की इतिका है। इस पर श्रद्धा कहती है:

तुमुल कोलाहल कलह में, मैं हृदय की बात रे मन !

कामायनी के सभी पात्र प्रतीकात्मक हैं। श्रद्धा हृदय का प्रतीक है, इड़ा बुद्धि का और मनु मन का प्रतीक है। मन इन दोनों से ही संचालित होता है।

श्रद्धा कहती है: हे प्रिये ! भीषण कोलाहल और शोर-शराबे तथा कलह की स्थिति में भी शक्ति का एकमात्र साधन हूँ । कवि भी अपने मन के हृदय की बात को समझाता है: कारण हृदय में ही कोमल भावनाओं का वास हो सकता है।

विकल होकर नित्य चंचल, खोजती जब नींद के पल; चेतना थक सी रही तब मैं मलय की बात रे मन !

मनुष्य दिन भर की भाग-दौड़ में लगा रहता है जिसका कारण मन की चंचलता ही होती है। वह थक जाता है, वह व्याकुल होकर विश्राम की खोज में लग जाता है, निद्रा की गोद में जाने की कामना करता है। जब उसकी चेतना थक जाती है, तब श्रद्धा (नारी) मलय पर्वत से चलने वाली सुगन्धित वायु की तरह शान्ति और विश्राम प्रदान करती है। वास्तविकता यह है कि मन विलक्षण व चंचल है, वह अथक है पर वह है तो शरीर के साथ और शरीर थक जाता है, उसका विश्राम खोजना स्वाभाविक है। यहां व्यक्ति को हृदय का आसरा लेना आवश्यक हो जाता है।

चिर- विषाद विलीन मन की, इस व्यथा के तिमिर वन की; मैं उषा-सी ज्योति रेखा, कुसुम विकसित प्रातः रे मन !

मन निरन्तर व्यथा में डूबा हुआ है वह घोर अँधकार में भी डूबा है। श्रद्धा उसमें प्रात:कालीन उषा की तरह प्रकाश की किरण है, वह खिले हुए फूलों से युक्त प्रात:काल है, जिन्हें देखकर घोर निराशा में डूबा मन भी आशा का संचार अनुभव करता है। तात्पर्य यह है कि निरन्तर विषाद में डूबे रहने के कारण उसका दुःख घनघोर अन्धकारपूर्ण जंगल के समान दिखाई पड़ता है जिसमें प्रकाश की एक किरण भी नहीं झलकती, वहाँ श्रद्धा मन से कहती है मैं डर व दुःख के उस जंगल में प्रातः काल की एक प्रखर किरण बनकर आशा का संचार करुँगी – कवि इस भाव को व्यक्त करने हेतु (आशा का संचार) ‘कुसुम विकसित प्रात’ का रूपक रचता है।

जहाँ मरु ज्वाला धधकती, चातकी कन को तरसती; उन्हीं जीवन घाटियों की, मैं सरस बरसात रे मन !

हे मेरे मन मैं जीवन घाटियों की जलयुक्त वह बरसात हूँ जिसकी एक बूँद के लिए रेगिस्तान का ताप और चातक तरसता है। अर्थात् जिस मन में मरुभूमि के समान वेदना है जो वियोगी चातक की भाँति विषादयुक्त रहता है, मैं उस विरहाकुल मन में शीतलता उत्पन्न करती हूँ वह आगे भी कहती है:

पवन की प्राचीर में रुक, जला जीवन जा रहा झुक; इस झुलसते विश्व-व – वन की, मैं कुसुम ऋतु रात रे मन !

अर्थात् हे मेरे मन जिस तरह वायु का झोंका बवण्डर बन जाता है जो बन्द किले के समान होता है। जहां न तो हवा जा सकती है न ही प्रकाश यहां जीवन जड़-सा हो जाता है। जिन्दगी घुटन भरी हो जाती है। मन की चंचलता से और संसार के कोलाहल से मानो विश्व जेठ की प्रचण्ड दुपहरी की तरह जल रहा हो, ऐसी स्थिति में मैं श्रद्धा- हृदय को शीतलता प्रदान करती हूँ, सुगन्ध बांटती हुई रात के समान हूँ और मेरी बात माननी चाहिये। वह आगे भी कहती है:

चिर निराशा नीरधर से प्रतिच्छायित अश्रु- सर में; मधुप मुखर मरंद-मुकुलित, मैं सजल जलजात रे मन !

हे प्रिय जिस व्यक्ति पर निराशा के घन बहुत समय से छाये हुए हैं उस आँसू के बने तालाब में मैं खिले हुए कमल के समान हूँ जिसके पास मकरंद लेने भ्रमर आता है। अतः हे प्रिय ! हृदय की बात मान ।

कवि का मूलोद्देश्य व्यक्ति के मन को उज्ज्वल बनाने का ही प्रयास है।

तुमुल कोलाहल कलह में कविता के प्रश्न एवं उत्तर


प्रश्न १.

‘हृदय की बात’ का क्या कार्य है?

उत्तर : इस कोलाहलपूर्ण वातावरण में श्रद्धा, जो कामायनी है, अपने हृदय का सच्चा मार्गदर्शक बनती है। कवि का हृदय कोलाहलपूर्ण वातावरण में जब थककर चंचल चेतनाशून्य अवस्था में पहुंचकर नींद की गोद में समाना चाहती है, ऐसे विषादपूर्ण समय में श्रद्धा चंदन के सुगंध से सुवासित हवा बनकर चंचल मन को सांत्वना प्रदान करती है। इस प्रकार कवि को अवसाद एवं अशांतिपूर्ण वातावरण में भी उज्ज्वल भविष्य सहज ही दृष्टिगोचर होता है।

प्रश्न २.

कविता में उषा की किस भूमिका का उल्लेख है?

उत्तर : जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता में उषाकाल की एक महत्वपूर्ण भूमिका का चित्रण किया गया है। उषाकाल अंधकार का नाश करता है। उषाकाल के पूर्व सम्पूर्ण विश्व अंधकार में डूबा रहता है। उषाकाल होते ही सूर्य की रोशनी अंधकार रूपी जगत में आने लगती है। सारा विश्व प्रकाशमय हो जाता है। सभी जीव–जन्तु अपनी गतिविधियां प्रारम्भ कर देते हैं। संसार में एक आशा एवं विश्वास का वातावरण प्रस्तुत हो जाता है। उषा की भूमिका का वर्णन कवि ने अपनी कविता में की है।

प्रश्न ३.

चातकी किसके लिए तरसती है?

उत्तर : चातकी एक पक्षी का नाम है जो स्वाति की बूंद के लिए तरसती रहती है। चातकी केवल स्वाति का जल ग्रहण करती है। वह सालोंभर स्वाति के जल की प्रतीक्षा करती रहती है और जब स्वाति का बूंद आकाश से गिरता है तभी वह जल ग्रहण करती है। इस कविता में यह उदाहरण सांकेतिक है। दु:खी व्यक्ति सुख प्राप्ति की आशा में चातकी के समान उम्मीद बांधे रहते हैं। कवि के अनुसार एक न एक दिन उनके दुःखों का अंत अवश्य होता है।

प्रश्न ४.

बरसात की ‘सरस’ कहने का क्या अभिप्राय है?

उत्तर : बरसात जलों का राजा होता है। बरसात में चारों तरफ जल ही जल दिखाई देते हैं। पेड़–पौधे हरे–भरे हो जाते हैं। लोग बरसात में आनन्द एवं सुख का अनुभव करते हैं। उनका जीवन सरस हो जाता है अर्थात् जीवन खुशियां और आनंद से भर जाता है। खेतों में फसल लहराने लगते हैं। किसानों के लिए यह समय तो और भी खुशियां लानेवाला होता है। इसलिए कवि ने बरसात को सरस कहा है।

प्रश्न ५.

काव्य–सौन्दर्य स्पष्ट करें

पवन की प्राचीर में रुक,
जला जीवन जा रहा झुक,
इस झुलसते विश्व–वन की,
मैं कुसुम ऋतु राज रे मन !

उत्तर : जयशंकर प्रसाद का यह पद्यांश छायावादी शैली का सबसे सुन्दर रचना है। इसकी भाषा अत्यधिक उच्च स्तर की है। इसमें संस्कृतनिष्ठ शब्दों का अधिक प्रयोग किया गया है। यह गद्यांश सरल भाषा में न होकर सांकेतिक भाषा में प्रयुक्त किया गया है। इस पद्यांश में प्रकृति का रोचक वर्णन किया गया है। इसमें रूपक अलंकार का प्रयोग भी हुआ है। जैसे– विश्व–वन (वनरूपी विश्व)। इसमें अनुप्रास अलंकार का भी सुंदर प्रयोग हुआ है। अनुप्रास अलंकार के कारण ही पद्यांश में अद्भुत सौन्दर्य आ गया है। देखिए:

पवन की प्राचीर में रुक
जला जीवन जा रहा झुक।

प्रश्न ६.

“सजल जलजात” का क्या अर्थ है?

उत्तर : ‘सजल जलजात’ का अर्थ जल से भरे (रस से भरे) कमल से है। मानव का जीवन आंसुओं से सराबोर है। उसमें पुरातन निराशा रूपी बादलों की छाया पड़ रही है। उस चातकी सरोवर में आशा एक ऐसा जल से पूर्ण कमल है जिस पर भौंरे मँडराते रहते हैं और जो मकरंद (मधु) से परिपूर्ण है।

प्रश्न ७.

कविता का केन्द्रीय भाव क्या है? संक्षेप में लिखिए।

उत्तर : प्रस्तुत कविता ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता आधुनिक काल के सर्वश्रेष्ठ कवि जयशंकर प्रसाद की उत्कृष्ट रचना है। इस कविता में कवि ने जीवन के रहस्यों को सरल और सांकेतिक भाषा में सहजता से अभिव्यक्त किया है।

कवि का कहना है कि रे मन, इस तूफानी रणक्षेत्र जैसे कोलाहल पूर्ण जीवन में मैं हृदय की आवाज के समान हूँ। कवि के अनुसार भीषण कोलाहल कलह विज्ञान है और शान्त हृदय के भीतर छिपी हुई निजी बात आशा है।

कवि का कहना है कि जब नित्य चंचल रहनेवाली चेतना (जीवन के कार्य–व्यापार से) विकल होकर नींद के पल खोजती है और थककर अचेतन सी होने लगती है, उस समय मैं नींद के लिए विकल शरीर को मादक और स्पर्शी सुख मलयानिल के मंद झोंके के रूप में आनन्द के रस की बरसात करता हूँ।

कवि का कहना है कि जब मन चिर–विषाद में विलीन है, व्यथा का अन्धकार घना बना हुआ है, तब मैं उसके लिए उषा–सी ज्योति रेखा हूँ, पुष्पों के समान खिला हुआ प्रात:काल हूँ अर्थात् कवि का दुःख में भी सुख की अरुण किरणें फूटती दिख पड़ती हैं।

कवि के अनुसार जीवन मरुभूमि की धधकती ज्वाला के समान है जहां चातकी जल के कण प्राप्ति हेतु तरसती है। इस दुर्गम, विषम और ज्वालामय जीवन में भी (श्रद्धा) मरुस्थल की वर्षा के समान परम सुख का स्वाद चखाने वाली हूँ। अर्थात् आशा की प्राप्ति से जीव में मधु–रस की वर्षा होने लगती है।

कवि को अभागा मानव–जीवन पवन की परिधि में सिर झुकाये हुए रूका हुआ–सा प्रतीत होता है। इस प्रकार जिनका सम्पूर्ण जीवन–झुलस रहा हो ऐसे दुःख दग्ध लोगों को आशा वसन्त
की रात के समान जीवन को सरस बनाकर फूल–सा खिला देती है।

कवि अनुभव करता है कि जीवन आँसुओं का सरोवर है, उसमें निराशा रूपी बादलों की छाया पड़ रही है। उस हाहाकारी सरोवर में आशा ऐसा सजल कमल है जिस पर भौरे मँडराते हैं जो मकरंद से परिपूर्ण है। आशा एक ऐसा चमत्कार है जिससे स्वप्न भी सत्य हो जाता है।

प्रश्न ८.

कविता में विषाद’ और ‘व्यथा’ का उल्लेख है, वह किस कारण से है? अपनी कल्पना से उत्तर दीजिए।

उत्तर : ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता के द्वितीय पद में ‘विषाद’ और ‘व्यथा’ का उल्लेख है। कवि के अनुसार संसार की वर्तमान स्थिति कोलाहलपूर्ण है। कवि संसार की वर्तमान कोलाहलपूर्ण स्थिति से बहुत क्षुब्ध है। इससे मनुष्य का मन चिर–विषाद में विलीन हो जाता है। मन में घुटन महसूस होने लगती है। कवि अंधकार रूपी वन में व्यथा (दु:ख) का अनुभव करता है। सचमुच, वर्तमान संसार में सर्वत्र विषाद एवं ‘व्यथा’ ही परिलक्षित होता है।

प्रश्न ९.

यह श्रद्धा का गीत है जो नारीमात्र का गीत कहा जा सकता है। सामान्य जीवन में पारियों की जो भमिका है, उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि कविता में कही गई बातें उस पर घटित होती हैं? विचार कीजिए और गृहस्थ जीवन में नारी के अवदान पर एक छोटा निबंध लिखिए।

उत्तर : ‘तुमुल कोलाहल कलह में छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित “कामायनी” काव्य का एक अंश है। इस अंश में महाकाव्य की नायिका श्रद्धा है, जो वास्तव में स्वयं कामायनी है। इसमें श्रद्धा आत्मगान प्रस्तुत करती है। यह आत्मगीत नारीमात्र का गीत है। इस गान में श्रद्धा विनम्र स्वाभिमान भरे स्वर में अपना परिचय देती है। अपने सत्ता–सार का व्याख्यान करती है।

इस गीत में कवि ने सामान्य जीवन में नारियों की जो भूमिका है उसे देखते हुए यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि कविता में कही गई बातें उन पर घटित होती हैं। कवि का यह सोच सही है। नारी विश्वासपूर्ण आस्तिक बुद्धि का प्रतीक है। नारी के जीवन से विकासगामी ज्ञान एवं आत्मबोध प्राप्त होता है।

गृहस्थ जीवन में नारी के अवदान अतुलनीय है। गृहस्थ जीवन में नारी की भूमिका महत्वपूर्ण है। जब पुरुष का मन कोलाहलपूर्ण वातावरण में चेतनाशून्य हो जाता है और जब वह शान्ति की नींद चाहता है तब नारी मलय पर्वत से चलनेवाली सुगन्धित हवा बनकर पुरुष के चंचल मन को आनन्द प्रदान करती है। जब पुरुष जीवन के चिर–विषाद में विलीन होकर घुटन महसूस करने लगता है एवं व्यथा के अंधकार में भटकने लगता है तब नारी सूर्य की ज्योतिपुंज के समान पथ–प्रदर्शक बनकर पुष्प के समान जीवन को आनन्दायक कर देती है।

जब पुरुष के मन में मरुभूमि की ज्वाला धधकती है तब नारी सरस बरसात बनकर पुरुष जीवन में रस की वर्षा करने लगती है। जब पुरुष सांसारिक जीवन में झुलसने लगती है तब नारी आशा रूपी वसंत की रात के समान सुख की आँचल बन जाती है। इतना ही नहीं, जब मानव, जीवन पुरातन निराशा रूपी बादलों से घिर जाता है तब नारी चातकी सरोवर में श्रद्वारूपी एक ऐसा सजल कमल है जिसपर भौरे मँडराते हैं। इस प्रकार गृहस्थ जीवन में नारी की भूमिका बहुआयामी है।

प्रश्न १०.

इस कविता में स्त्री को प्रेम और सौन्दर्य का स्रोत बताया गया है। आप अपने पारिवारिक जीवन के अनुभवों के आधार पर इस कथन की परीक्षा कीजिए।

उत्तर : जयशंकर प्रसाद के काव्यों में प्रेम और सौन्दर्य का चित्रण किया गया है। ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता में कवि ने स्त्री को प्रेम और सौन्दर्य का स्रोत बताया है। कवि का कथन सही है जब पुरुष सांसारिक उलझनों से उबकर घर आता है तो स्त्री शीतल पवन का रूप धारण कर जीवन को शीतलता प्रदान करती है। व्यथा एवं विषाद में स्त्री–पुरुष की सहायता करती है।

प्रश्न ११.

पठित कविता के संदर्भ में प्रसाद की काव्यभाषा पर टिप्पणी लिखें।

उत्तर : जयशंकर प्रसाद छायावाद के कवि हैं और उनके काव्य में प्रेम और सौन्दर्य का सुंदर चित्रण मिलता है। पठित कविता ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ की काव्यभाषा छायावादी है। प्रस्तुत कविता में मानव–जीवन में प्रेम और सौन्दर्य का उत्कृष्ट चित्रण है। प्रकृति के सौन्दर्य का गुण भी इसमें मिलता है। नारी की गरिमा का वर्णन बड़ा ही सुन्दर ढंग से किया गया है। कविता में रस, छन्द, अलंकार आदि का प्रयोग भी हुआ है। इसमें रूपक अलंकार की प्रधानता है।

प्रश्न १२.

कविता से रूपक अलंकार के उदाहरण चुनें।

उत्तर : जहाँ गुण का अत्यन्त समानता के कारण उपमेय पर उपमान का आरोप किया जाय, वहाँ रूपक अलंकार होता है। यह आरोप कल्पित होता है। इसमें उपमेय और उपमान में अभिन्नता होने पर भी दोनों साथ–साथ विद्यमान रहते हैं, यथा चिर–विषाद विलीन मन की। यहाँ चिर (उपमेय) पर विषाद (उपमान) का आरोप है। उसी प्रकार निम्न पंक्तियों में रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है जहाँ मरु–ज्वाला, धधकती, इस झुलसते विश्व–वन की, चिर–निराशा नीरधर से, मैं सजल जलजात रे मन।

प्रश्न १३.

निम्नलिखित शब्दों से विशेषण बनाएँ कुसुम, हृदय, व्यथा, बरसात, विश्व, दिन, रेखा।

उत्तर:

शब्द – विशेषण
कुसुम – कुसुमित
हृदय – हृदयी
व्यथा – व्यथित
बरसात – बरसाती
विश्व – वैश्विक
दिन – दैनिक
रेखा – रैखिक

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