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कड़बक मलिक मुहम्मद जायसी सारांश भावार्थ एवं प्रश्न उत्तर

कड़बक मलिक मुहम्मद जायसी सारांश भावार्थ एवं प्रश्न उत्तर

 
Bihar Board 12th Hindi 100 Marks Chapter 1 Kadbak Path Ka Saransh बिहार बोर्ड कक्षा 12 काव्य खंड मलिक मुहम्मद जायसी की कविता कड़बक का सारांश

इस पाठ में प्रस्तुत दोनों कड़बक मलिक मुहम्मद जायसी के महाकाव्य पद्मावत से क्रमशः प्रारंभिक तथा अंतिम छंदों से उद्धृत किए गए हैं।

इस पाठ के प्रारंभिक स्तुति खंड से उद्धृत प्रथम कड़बक में कवि मलिक मुहम्मद जायसी तथा काव्य की विशेषताएं निरूपित करते हुए दोनों के मध्य एक अद्वैत संबंध की व्यंजना की गई है। इसमें कवि विनम्रतापूर्वक एवं स्वाभिमान से अपने रूपहीनता तथा एक आंखपन को प्राकृतिक दृष्टांतों के माध्यम से महिमामंडित करते हुए रूप को गौण तथा गुणों को महत्वपूर्ण बताते हुए हमारा ध्यान आकर्षित करने की चेष्टा करते हैं। यहां कवि ने इस तथ्य को प्रस्तुत किया है कि उसके इन्हीं गुणों के कारण ही पद्मावत जैसे मोहक काव्य की रचना संभव हो सकी है।

द्वितीय कड़बक उपसंहार खंड से उद्धृत किया गया है। इसमें कवि द्वारा अपने काव्य तथा उसकी कथा सृष्टि का उत्कृष्ट वर्णन है। कवि का कहना है कि उन्होंने इसी सच्ची और गाढ़ी प्रीति के नयन जल में रक्त की लेई लगाकर जोड़ा है इसी क्रम में वे आगे कहते हैं कि अब न वह राजा रत्नसेन है और न ही वह रूपवती रानी पद्मावती है। न वह बुद्धिमान सुआ है और न राधवचेतन या अलाउद्दीन है। इनमें से किसी के न होने पर भी उनके यश के रूप में कहानी शेष रह गई है। जिस प्रकार फूल झड़कर नष्ट हो जाता है परन्तु उसकी खुशबू रह जाती है। कवि के कहने का अभिप्राय यह है कि एक दिन उसके न रहने पर भी उसकी कीर्ति सुगंध की तरह पीछे रह जाएगी। इस कहानी का पाठक उसे दो शब्दों में याद करेगा। कवि का अपने कलेजे के रक्त से रचे इस काव्य के प्रति यह आत्मविश्वास अत्यंत सार्थक और बहुमूल्य है।

कड़बक के प्रश्नों के उत्तर - Kadbak Subjective Question Answer


Bihar Board 12th Class Hindi 100 Marks
प्रश्न १.

कवि ने अपनी एक आंख की तुलना दर्पण से क्यों की है?

उत्तर- कवि ने अपनी एक आंख की तुलना दर्पण से इसलिए की है क्योंकि दर्पण स्वच्छ तथा निर्मल होता है। उसमें मनुष्य की वैसी ही प्रति छाया दिखती है, जैसा वह वास्तविक जीवन में होता है। कवि स्वयं को दर्पण के सामान स्वच्छ तथा निर्मल भावों से ओत-प्रोत मानता है। उसके हृदय में लेशमात्र भी बनावट या कृत्रिमता नहीं है। उसके इन्हीं निर्मल भावों के कारण ही बड़े-बड़े रूपवान लोग भी उसके चरण पकड़ कर लालसा के साथ उसके मुख की ओर निहारते रहते हैं।

प्रश्न २.

कवि ने किस रूप में स्वयं को याद रखे जाने की इच्छा व्यक्त की है उनकी इस इच्छा का मर्म बताएं

उत्तर : कवि ने अपने काव्य के माध्यम से अपनी स्मृति की रक्षा के लिए जो इच्छा प्रकट की है उसका वर्णन अपने कविताओं में बलपूर्वक किया है। कवि का कहना है कि मैंने जान-बूझकर संगीतमय काव्य की रचना की है ताकि इस प्रबंध के रूप में संसार में मेरी स्मृति सदा के लिए सुरक्षित रहे। इस काव्य कृति में वर्णित प्रगाढ़ और सच्चे प्रेम सर्वथा नयनों की अश्रुधारा से सिंचित है अर्थात कठिन विरह प्रधान काव्य है।

प्रश्न ३.

भाव स्पष्ट करें

जौं लहि अंबहि डांभ न होई तौ लहि सुगंध बसाई न सोई

उत्तर : प्रस्तुत पंक्तियां प्रथम कड़बक से उद्धत की गई है। इस कविता के रचयिता मलिक मुहम्मद जायसी है। इन पंक्तियों के द्वारा कवि ने अपने विचारों को प्रकट किया है। जिस प्रकार आम में नुकीली डार्भे नहीं निकलती तब तक उसमें सुगंध नहीं आता अर्थात आम में सुगंध आने के लिए डाभ युक्त मंजरियों का निकलना आवश्यक है। डाभ के कारण आम की सुगंध बढ़ जाती है ठीक उसी प्रकार गुण के बल पर व्यक्ति समाज में आदर्श पाने का अधिकारी बन जाता है उसकी गुणवत्ता उसके व्यक्तित्व में निखार ला देती है।

काव्य शास्त्रीय प्रयोग की दृष्टि से यहां पर अत्यंत तिरस्कृत वाक्यगत वाच्य ध्वनि है। यह ध्वनि प्रयोजनवती लक्षण का आधार लेकर खड़ी होती है। इसमें वाच्यार्थ का सर्वथा त्याग रहता है और एक दूसरा ही अर्थ निकलता है। इन पंक्तियों का दूसरा विशेष अर्थ है कि जब तक पुरुष में दोष नहीं होता तब तक उसमें गरिमा नहीं आती है। डाभ-मंजरी आने से पहले आम के वृक्ष में नुकीले टोंसे निकल आते हैं।

प्रश्न ४.

रकत कै लेई का क्या अर्थ है ?

उत्तर- कवि मलिक मुहम्मद जायसी कहते हैं कि कवि मुहम्मद में अर्थात मैंने यह काव्य रचकर सुनाया है। इस काव्य को जिसने भी सुना है उसी को प्रेम की पीड़ा का अनुभव हुआ है मैंने इस कथा को रक्त रूपी लेई के के माध्यम से जोड़ा है और इसकी गाढ़ी प्रीति को आंसुओं से भिगोया है। यही सोचकर मैंने इस ग्रंथ का निर्माण किया है कि जगत में कदाचित मेरी यही निशानी है जो शेष बची रह जाएगी।

प्रश्न ५.

मुहम्मद यहि कबि जोरि सुनावा यहां कवि ने जोरि शब्द का प्रयोग किस अर्थ में किया है ?

उत्तर : मुहम्मद यहि कबि जोरि सुनावा में जोरि शब्द का प्रयोग कवि ने रचकर अर्थ में किया है अर्थात मैंने यह काव्य रचकर सुनाया है कवि यह कहकर इस तथ्य को उजागर करना चाहता है कि मैंने रत्नसेन पद्मावती आदि जिन पात्रों को लेकर अपने ग्रंथ की रचना की है उनका वास्तव में कोई अस्तित्व नहीं था अपितु उनकी कहानी मात्र प्रचलित रही है।

प्रश्न ६.

दूसरे कड़बक का भाव सौंदर्य स्पष्ट करें ?

उत्तर : दूसरे कड़बक मैं कवि ने इस तथ्य को उजागर किया है कि उसने रत्नसेन पद्मावती आदि जिन पात्रों को लेकर अपने ग्रंथ की रचना की है उनका वास्तव में कोई अस्तित्व नहीं था अपितु उनकी कहानी मात्र प्रचलित रही परंतु इस काव्य को जिसने भी सुना है उसी को प्रेम की पीड़ा का अनुभव हुआ है कवि ने इस कथा को रक्त रूपी लेई के द्वारा जोड़ा है और इसकी गाढ़ी प्रीति को आंसुओं से भिगोया है कवि ने इस काव्य की रचना इसलिए की क्योंकि जगत में उसकी यही निशानी शेष बची रह जाएगी कवि यह चाहता है कि इस कथा को पढ़कर उसे भी याद कर लिया जाए।

प्रश्न ७.

व्याख्या करें —

धनि सो पुरुख जस कीरति जासू ।
फूल मेरे पे मरै न बासू ।।

उत्तर : प्रस्तुत पंक्तियां जायसी के कड़बक के द्वितीय भाग से उद्धत की गई है। पंक्तियों में कवि का कहना है कि जिस प्रकार पुष्प अपने नश्वर शरीर का त्याग कर देता है परंतु उसकी सुगंधित पत्तियां धरती पर परिव्याप्त रहती है ठीक उसी प्रकार महान व्यक्ति भी इस धाम पर अवतरित होकर अपनी कीर्ति पताका सदा के लिए इस भुवन में फहरा जाते हैं। पुष्प सुगंध सदृश्य यशस्वी लोगों की भी कीर्तियां विनष्ट नहीं होती बल्कि युग युगांतर उनकी लोक हितकारी भावनाएं जन जन के कंठ में विराजमान रहती है।

दूसरे अर्थ में पद्मावती के लोग की कथा को अध्यात्मिक धरातल पर स्थापित करते हुए कवि ने सूफी साधना के मूल मंत्रों को जन जन तक पहुंचाने का कार्य किया है इस संसार की नश्वरता की चर्चा अलौकिक कथा काव्य द्वारा प्रस्तुत कर कवि ने अलौकिक जगत से सब को साक्षात्कार कराने का काम किया है। यह जगह तो नश्वर है केवल कीर्तियां ही अमर रह जाती है। लौकिक जीवन में अमरता प्राप्ति के लिए अलौकिक कर्म द्वारा ही मानव उस सत्ता को प्राप्त कर सकता है।

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