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नौबतखाने में इबादत सारांश समीक्षा प्रश्न उत्तर Naubatkhane Mein Ibadat Question Answer

नौबतखाने में इबादत सारांश समीक्षा प्रश्न उत्तर Naubatkhane Mein Ibadat Question Answer


आज के पोस्ट में लेखक यतिंद्र मिश्र की रचना नौबतखाने में इबादत सारांश समीक्षा एवं प्रश्न उत्तर प्रस्तुत किए जाएंगे। यह पाठ बिहार बोर्ड के दसवीं की कक्षा में Naubatkhane Mein Ibadat Class 10 शामिल किया गया है। इसलिए कक्षा – 10 गोधूलि भाग–२ गद्य खंड पाठ 11 नौबतखाने में इबादत व्यक्तिचित्र का अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है।

Naubatkhane Mein Ibadat Question Answer


तो चलिए शुरू करते हैं नौबतखाने में इबादत के प्रश्नों के उत्तर लिखना और विस्तृत अध्ययन।

नौबतखाने में इबादत पाठ का सारांश लिखिए

‘नौबतखाने में इबादत’ एक व्यक्ति चित्र है। इसमें शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ की जीवनचर्या का उत्कृष्ट वर्णन किया गया है। इन्होंने किस प्रकार शहनाई वादन में बादशाहत हासिल की, इसी का लेखा-जोखा इस पाठ में है। 1916 ई० से 1922 ई० के आसपास काशी के पंचगंगा घाट स्थित बालाजी मंदिर के ड्योढ़ी के उपासना-भवन से शहनाई की मंगलध्वनि निकलती है। उस समय बिस्मिल्ला खाँ छः साल के थे। उनके बड़े भाई शमसुद्दीन के दोनों मामा अली बख्श तथा सादिक हुसैन देश के प्रसिद्ध शहनाई वादक थे।

उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ का जन्म डुमराँव (बिहार) में एक संगीत-प्रेमी परिवार में 1916 ई. में हुआ। इनके बचपन का नाम कमरूद्दीन था। वह छोटी उम्र में ही अपने ननिहाल काशी चले गये और वहीं अपना अभ्यास शुरू किया। 14 साल की उम्र में जब वह बालाजी के मंदिर के नौबतखाने में रियाज के लिए जाते थे, तो रास्ते में रसूलनबाई और बतूलनबाई का घर था। इन्होंने अनेक साक्षात्कारों में कहा है कि इन्ही दोनों गायिकी-बहनों के गीत से हमें संगीत के प्रति आसक्ति हुई। शहनाई को शाह ए नेय अर्थात् सुषिर वाद्यों में शाह की उपाधि दी गई है। अवधी पारंपरिक लोकगीतों और चैती में शहनाई का उल्लेख बार-बार मिलता है।

बिस्मिल्ला खाँ 80 वर्षों से ख़ुदा से सच्चे सुर की नेमत माँग रहें हैं तथा इसी की प्राप्ति के लिए पाँचों वक्त नमाज़ और लाखों सजदे में खुदा के नजदिक गिड़गिड़ाते हैं। उनका मानना है कि जिस प्रकार हिरण अपनी नाभि की कस्तूरी की महक को जंगलों में खोजता फिरता है, उसी प्रकार कमरूद्दीन भी यहीं सोचते आया है कि सातों सुरों को बरतने की तमीज उन्हें सलीके से अभी तक क्यों नहीं आई। बिस्मिल्ला खाँ और शहनाई के साथ जिस मुस्लिम पर्व का नाम जुड़ा है, वह मुहर्रम है। इस पर्व के अवसर पर हजरत इमाम हुसैन और उनके कुछ वंशजों के प्रति दस दिनों तक शोक मनाया जाता है। इस शोक के समय बिस्मिल्ला खाँ के खानदान का कोई भी व्यक्ति न तो शहनाई बजाता है और न ही किसी संगीत कार्यक्रम में भाग लेता है।

आठवीं तारीख खाँ साहब के लिए खास महत्त्व की होती थी। इस दिन वे खड़े होकर शहनाई बजाते और दालमंडी से फातमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल रोते हुए, नौहा बजाते थे। बिस्मिल्ला खाँ अपनी पुरानी यादों का स्मरण करके खिल उठते थे। बचपन में वे फिल्म देखने के लिए मामू, मौसी तथा नानी से दो-दो पैसे लेकर सुलोचना की नई फिल्म देखने निकल पड़ते थे।

बिस्मिल्ला खाँ मुस्लमान होते हुए भी सभी धर्मों के साथ समान भाव रखते थे। उन्हें काशी विश्वनाथ तथा बालाजी के प्रति अपार श्रद्धा थी। काशी के संकटमोचन मन्दिर में हनुमान जयन्ती के अवसर पर वे शहनाई अवश्य बजाते थे। काशी से बाहर रहने पर वे कुछ क्षण काशी की दिशा में मुँह करके अवश्य बजाते थे। उनका कहना था – “क्या करें मियाँ, काशी छोड़कर कहाँ जाएँ, गंगा मइया यहाँ, बाबा विश्वनाथ यहाँ, बालाजी का मन्दिर यहाँ ।’ काशी को संगीत और नृत्य का गढ़ माना जाता है। काशी में संगीत, भक्ति, धर्म, कला तथा लोकगीत का अद्भुत समन्वय है। काशी में हजारों सालों का इतिहास है जिसमें पंडित कंठे महाराज, विद्याधरी, बड़े रामदास जी और मौजद्दिन खाँ थे।

बिस्मिल्ला खाँ और शहनाई एक दुसरे के पर्याय हैं। बिस्मिल्ला खाँ का मतलब बिस्मिल्ला खाँ की शहनाई। एक शिष्या ने उनसे डरते-डरते कहा- ‘बाबा आपको भारतरत्न मिल चूका है, अब आप फटी लुंगी न पहना करें।’ तो उन्होंने कहा- ‘भारतरत्न हमको शहनाई पर मिला है न कि लुंगी पर। लुंगीया का क्या है, आज फटी है तो कल सिल जाएगी। मालिक मुझे फटा सूर न बक्शें। बिस्मिल्ला खाँ काशी के गौरव थे। उनके मरते ही काशी में । संगीत, साहित्य और अदब की बहुत सारी परम्पराएँ लुप्त हो चुकी हैं। वे दो कौमों के आपसी भाईचारे के मिसाल थे। खाँ साहब शहनाई के बादशाह थे। यही कारण है कि इन्हें भारत रत्न, पद्मभूषण, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार तथा अनेक विश्वविद्यालय की मानद उपाधियाँ मिलीं। वे नब्बे वर्ष की आयु में 21 अगस्त, 2006 को खुदा के प्यारे हो गए।

प्रश्न १.

लेखक यतिंद्र मिश्र का संक्षिप्त परिचय दीजिए?


उत्तर : लेखक यतिंद्र मिश्र का जन्म सन 1977 ईसवी में अयोध्या के उत्तर प्रदेश में हुआ था। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से हिंदी में एम. ए. किया। वह आजकल स्वतंत्र लेखन के साथ-साथ अर्धवार्षिक “सहित” पत्रिका का संपादन कर रहे हैं। सन 1999 ईस्वी से वे 'विमला देवी फाउंडेशन का संचालन कर रहे हैं। इस फाउंडेशन का उद्देश्य है-हिंदी साहित्य एवं अन्य कलाओं का संरक्षण एवं संवर्धन और विकास करना।

यतींद्र मिश्र के तीन काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं यदा- कदा, अयोध्या तथा अन्य कविताएँ, इयोढ़ी पर अलाप। इसके अलावा लेखक ने मशहूर शास्त्रीय गायिका गिरिजा देवी के जीवन और संगीत साधना पर आधारित पुस्तक गिरिजा भी लिखी है। साथ ही साथ थाती नामक कला पर केंद्रित पत्रिका का संपादन भी किया है।

युवा रचनाकार यतींद्र मिश्र को भारत भूषण अग्रवाल सम्मान, कविता सम्मान, हेमत स्मृति कविता पुरस्कार, ऋतुराज सम्मान आदि कई सम्मानों से सम्मानित भी किया जा चुका है।

प्रश्न २.

यतींद्र मिश्र द्वारा रचित “नौबतखाने में इबादत” पाठ का संक्षिप्त परिचय दीजिए?


उत्तर : युवा रचनाकार यतींद्र मिश्र द्वारा रचित नौबतखाने में इबादत बिस्मिल्लाह खान के जीवन एवं संगीत साधना पर आधारित व्यक्ति चित्र है। इस पाठ में लेखक ने महान शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खान का परिचय तो दिया ही है, साथ ही साथ अपनी कला के प्रति उनके लगन, और उनकी साधना का भी वर्णन किया है। उन्होंने इस पाठ के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया है कि संगीत एक साधना है, इसका अपना एक शास्त्र है, इसको जाने बिना संगीत को नहीं जिया जा सकता है।

संगीत कला व्यक्ति के जीवन का श्रृंगार है। यह श्रृंगार कठिन तपस्या एवं साधना से प्राप्त होती है बिस्मिल्लाह खान ने इस कला के संवर्धन एवं विकास के लिए कठिन साधना की है। यही कारण है कि उन्होंने 80 वर्ष के समय तक शहनाई के माध्यम से संगीत की सेवा की और शहनाई की धुन देश के चारों दिशाओं के साथ-साथ विश्व के कोने- कोने तक फैलाई।

इस पाठ में लेखक ने संक्षिप्त ही सही बिस्मिल्लाह खान के व्यक्तित्व एवं उनकी संगीत के प्रति सम्मान और समर्पण भाव का बखान करने का प्रयास किया है। यूँ कहे तो लेखक ने इस पाठ के माध्यम से महान शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खान के जीवन एवं संगीत साधना को गागर में सागर भरने जैसा प्रयास किया है। रोचक शैली में लिखी गई यह व्यक्ति-चित्र आम एवं सुधी पाठकों को बार-बार पढ़ने के लिए आकर्षित और आमंत्रित करती है।

प्रश्न ३.

बिस्मिल्लाह खान की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए?


उत्तर : बिस्मिल्लाह खान का जन्म एक मुस्लिम परिवार में हुआ था, वे पक्के मुसलमान थे। इसके बावजूद वे सभी धर्मों के प्रति समान रूप से आस्था रखते थे। उन्होंने शहनाई का जो हुनर सीखा, उसका रियाज़ करने के लिए बालाजी के मंदिर में जाया करते थे। बिस्मिल्लाह खान काशी के संकट मोचन मंदिर में हनुमान जयंती के अवसर पर होने वाले कार्यक्रम में अवश्य उपस्थित रहते थे। शहनाई की जादुई कला सीखने के बाद उन्होंने जीवन भर बालाजी के मंदिर में गाया। उनके लिए काशी पवित्र धरती है, जहां विभिन्न धर्मों एवम संस्कृतियों के लोग रहते हैं।

उन्हें सभी धर्मों के साथ मिलकर रहना अच्छा लगता था। यही कारण है कि उन्होंने शहनाई की धुन को सभी धर्मों के बीच बजाया और सुनाया। शहनाई की धुन को विभिन्न जाति एवं धर्मों के परे असीमित कर दिया। उनके लिए सभी धर्मों के सब लोग एक समान थे, उनके लिए सबके प्रति श्रद्धा और सम्मान था। उनके लिए हिंदू धर्म भी मुस्लिम धर्म के समान ही था। एक बार एक बच्ची ने उनसे बड़े प्यार से पूछा कि जब भी कोई आपसे मिलने आता है, आप वही फटी लूंगी पहने रहते हैं, अब तो आपको भारत रत्न भी मिल चुका है, आप सामान्य आदमी नहीं है। तब उन्होंने जवाब दिया- “धत् पगली मुझे शहनाई के लिए भारत रत्न मिला है, ई लूंगी के लिए नहीं ना”। सामान्य व्यक्तित्व वाले बिस्मिल्लाह खान में असामान्य वैचारिक समन्वय था, जो सभी धर्मों को जोड़ने के लिए एक कड़ी का काम करता था। इस प्रकार उनका चरित्र बहुआयामी और बहुधर्मी था।

प्रश्न ४.

बिस्मिल्लाह खान गंगा जमुनी संस्कृति के संवाहक थे। इस कथन को पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए।

उत्तर : बिस्मिल्ला खान की शहनाई की जादुई धुन ने जाति एवं धर्मों की सीमा को तोड़ा है। इसके साथ देश की भौगोलिक सीमा को भी लांघकर विदेशों में भी अपनी सुरमई धुन कोने कोने में पहुंचाई है। उन्होंने संगीत की जिस कला से प्रसिद्धि पाई है, उसका रियाज़ करने के लिए काशी के बालाजी मंदिर के नौबत खाने में रियाज करने के लिए जाते थे। इसी मंदिर पर उनके कई पुश्तों ने अपनी कला की मंगल ध्वनि बजाई और काशी के लोगों को आलोकित किया। इसके साथ- साथ हनुमान मंदिर के प्रत्येक कार्यक्रम में शामिल होते थे। उनके लिए काशी का पवित्र स्थल किसी इबादत से कम नहीं था।

बिस्मिल्ला खान सभी धर्मों के धार्मिक स्थलों में शहनाई की जादुई धुन बिखेरी है। उन्हें शहनाई की धुन के माध्यम से सभी धर्मों को एक करने का प्रयास किया। वे अक्सर कहते हैं क्या करें मियां, ई काशी छोड़कर कहां जाएं, यहां गंगा मैया, यहां बाबा विश्वनाथ, यहां बालाजी का मंदिर, यहां हमारे खानदान की कई पुस्तों ने शहनाई बजाई है, हमारे नाना तो वही बालाजी मंदिर में बड़े प्रतिष्ठित शहनाई वादक रह चुके हैं। अब क्या करें, मरते दम तक न शहनाई छूटेगी न काशी काशी में जिस तरह बाबा विश्वनाथ और बिस्मिल्लाह खान एक दूसरे के पूरक हैं उसी तरह मुहर्रम ताजिया और होली अबीरों प्रसिद्धि पाने के बावजूद बिस्मिल्ला खां को काशी का संस्कार रीति रिवाज और यहां के संगीत प्रेमियों के प्रति अत्यधिक प्रेम था। वे इस बहु सांस्कृतिक जगह को छोड़कर कहीं नहीं जाना चाहते थे, वे यहां के सभी धर्मों के चाहने वालों के बीच ही रहना चाहते थे। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि बिस्मिल्लाह खान गंगा जमुनी संस्कृति के संवाहक थे।

नौबत खाने में इबादत लघु उत्तरीय प्रश्नों के उत्तर

प्रश्न १.

शहनाई की दुनिया में डुमराँव को क्यों याद किया जाता है?

उत्तर : शहनाई को फूंककर बजाया जाता है । इसमें रीड का प्रयोग होता है जो नरकट (एक विशेष प्रकार का घास) से बनती है। यह नरकट डुमराँव में सोन नदी के किनारे पाई जाती है, इसलिए शहनाई की दुनिया में डुमराँव को भी याद किया जाता है। साथ ही प्रसिद्ध शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खान का जन्म स्थान डुमराँव ही है।

प्रश्न २.

बिस्मिल्लाह खान को शहनाई की मंगल ध्वनि का नायक क्यों कहा गया है?

उत्तर : शहनाई बहुत ही सुरीला वाद्य यंत्र है। यह विभिन्न प्रकार के मंगल कार्य के शुभ अवसर पर बजाया जाता है। देश में जितने भी शहनाई वादक हुए उन सब में सबसे ज़्यादा सुरीला शहनाई बजाने वाला बिस्मिल्लाह खान ही थे। उनके जैसा अभी तक कोई शहनाई वादक नहीं हुआ। उन्होंने देश के साथ साथ विदेशों में भी शहनाई की सुरीली तान बिखेरी, इसलिए बिस्मिल्लाह खान को शहनाई की मंगल ध्वनि का नायक कहा गया है।

प्रश्न ३.

सुषिर वाद्यों से क्या अभिप्राय है? शहनाई को “सुषिर” वाद्यों में शाह की उपाधि क्यों दी जाती है?

उत्तर : सुषिर वाद्यों का अभिप्राय है- सुराख वाले वाद्य, जिन्हें फूंक कर बजाया जाता है। जितने भी सुषिर वाद्य हैं उन सब से शहनाई सबसे ज्यादा सुरीली होती है। इसलिए शहनाई को सुषिर वाद्यों में शाह की उपाधि दी गई है।

प्रश्न ४.

“फटा सूर ना बक्शे। लूंगी का क्या, आज फटी है, तो कल सी जाएगी। इस वाक्य का आशय स्पष्ट कीजिए?

उत्तर : प्रस्तुत पंक्ति नौबतखाने में इबादत से ली गई हैं। इस पंक्ति में बिस्मिल्लाह खान ने शहनाई के प्रति अप्रतिम प्रेम को दिखाया है। बिस्मिल्लाह खान को अपनी शहनाई के प्रति बेहद लगाव था, वे हमेशा खुदा से दुआ मांगते हैं कि उनकी शहनाई की सुरीली आवाज हमेशा बनी रहे, वे भले ही गरीबी में जीवन बसर करें लेकिन उनकी शहनाई की आवाज में कभी भी किसी प्रकार की कर्कशापन न आए।

प्रश्न ५.

“मेरे मालिक सुर बख्श दे। सुर में वह तासीर पैदा कर कि आंखों से सच्चे मोती की तरह अनगढ़ आंसू निकल आएं।” इस वाक्य का आशय स्पष्ट करें?

उत्तर : यह पंक्ति नौबतखाने में इबादत से ली गई है जिसके लेखक यतींद्र मिश्र हैं। इस पंक्ति में बिस्मिल्लाह खान की शहनाई के प्रति गहरी रुचि की अभिव्यक्ति हुई है। बिस्मिल्लाह खान खुदा से हमेशा यही दुआ मांगते थे कि उनकी शहनाई से हमेशा ऐसी सुरीली और दिल को छू लेने वाली आवाज निकले, जिससे लोग हमेशा गदगद हो जाए। वे हमेशा चाहते थे कि उन्हें जीवन में भले ही कुछ और ना मिले लेकिन शहनाई की सूर हमेशा ऐसे ही बनी रहे जो लोगों के दिलों पर राज करें, उनके दिल को छू जाए, उन्हें मार्मिक कर दे, उन्हें रोने के लिए मजबूर कर दे।

प्रश्न ६.

काशी में हो रहे किन-किन परिवर्तनों से बिस्मिल्लाह खान दुखी थे?

उत्तर : काशी में हो रहे परिवर्तन से बिस्मिल्लाह खान अत्याधिक दुखी हैं। वहां अब खानपान की पुरानी परंपराएं खत्म हो रही है, अब मलाई बर्फ का वह स्वाद नहीं बचा जिसको खाकर वह कभी अत्यधिक खुश हुआ करते थे। कुलसुम की छन्न करती वह संगीतात्मक कचौड़ी और देसी घी से बनी जलेबी नहीं मिलती है। अब काशी में संगीत और साहित्य के प्रति वैसा प्रेम और सम्मान नहीं दिखता है। गायकों के साथ साथ गाने वाले संगीतकारों का भी पहले जैसा सम्मान नहीं रहा। अब हिंदू-मुस्लिम समुदाय के बीच पहले जैसा मेलजोल नहीं बचा है। काशी के ऐसे परिवर्तन से बिस्मिल्लाह खान अत्यधिक दुखी हैं।

प्रश्न ७.

पाठ में आए किन प्रसंगों के आधार पर आप कह सकते हैं कि बिस्मिल्लाह खान मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे ?

उत्तर : बिस्मिल्लाह खान स्वयं मुस्लिम थे, उनकी मुस्लिम धर्म और संस्कृति के प्रति गहरी आस्था थी। वे पांचों वक्त नमाज़ अदा करते थे मोहर्रम में श्रद्धा पूर्वक भाग लेते थे। इसके बावजूद हिंदुओं के मंदिरों में अक्सर शहनाई बजाया करते मैं थे। जब कभी भी काशी से बाहर होते तो बालाजी मंदिर की तरफ मुड़कर प्रणाम करते थे। उनके लिए हमेशा गंगा मां के समान थी। अतः कहा जा सकता है की बिस्मिल्लाह खान मिली जुली संस्कृति के प्रतीक थे।

प्रश्न ८.

पाठ में आए किन प्रसंगों के आधार पर आप कह सकते हैं कि वे वास्तविक अर्थों में सच्चे इंसान थे?

उत्तर : बिस्मिल्लाह खान को भारत रत्न के अलावा कई महत्वपूर्ण सम्मान मिले लेकिन कभी भी उनके व्यवहार में उनकी उपलब्धि का गुमान नहीं रहा। वे काशी की मिली-जुली संस्कृति का हृदय से सम्मान करते थे। उन्होंने कभी अपने खुदा से धन-संपत्ति नहीं मांगी बल्कि हमेशा शहनाई की सुरीली तान की मांग की ताकि शहनाई की यह तान सभी धर्मों के संगीत प्रेमियों को खुश कर सके उनके जीवन में आनंद की धारा बहा सके। अतः कहा जा सकता है कि वह सच्चे अर्थों में इंसान थे।

प्रश्न ९.

बिस्मिल्लाह खान के जीवन से जुड़ी उन घटनाओं और व्यक्तियों का उल्लेख करें जिन्होंने उनकी संगीत साधना को समृद्ध किया।

उत्तर : बिस्मिल्लाह खान के जीवन और संगीत साधना को कई लोगों ने प्रेरित किया। रसूलन बाई और बतुलन बाई हमेशा ठुमरी टप्पे, दादरा आदि शास्त्रीय संगीत को गाया करते थे जिनको सुनकर वे हमेशा प्रेरित होते थे। कुलसुम की कचौड़ी के बनने की प्रक्रिया के क्रम में भी वे संगीत ढूंढा करते थे। वे हमेशा अपने नाना जी के बजाये हुए शहनाई को ढूंढ कर बजाने का प्रयास करते थे उनके मामू जान अलीबख्श खान ने भी संगीत के प्रति उनमें गहरी रुचि जगाई। इस प्रकार उनके जीवन और संगीत साधना को अनेक लोगों ने प्रेरित किया।

प्रश्न १०.

बिस्मिल्लाह खान को काशी का नायाब हीरा क्यों कहा जाता है?

उत्तर : काशी विभिन्न संस्कृति एवं धर्मावलंबियों का स्थान है। यहाँ पर विभिन्न धर्म एवं समाज के लोग रहते हैं । बिस्मिल्लाह खान ने अपनी शहनाई के मधुर धुन के माध्यम से विभिन्न संस्कृति एवं धर्म के लोगों को जोड़ने का काम किया है। इसलिए उन्हें काशी का नायाब हीरा कहा जाता है।

प्रश्न ११.

बिस्मिल्लाह खान और शहनाई एक दूसरे के प्रतीक हैं। कैसे?

उत्तर : बिस्मिल्लाह खान ने शहनाई की मधुर तान देश के साथ- साथ विदेशों में भी फैलाई। उनकी शहनाई वादन में जादू था। बिस्मिल्लाह खान से पहले शहनाई को उतनी प्रसिद्धि नहीं मिली थी जितनी की बिस्मिल्लाह खान के कारण हुई। अतः यह कहा जा सकता है कि बिस्मिल्लाह खान और शहनाई एक दूसरे के प्रतीक हैं।

प्रश्न १२.

बिस्मिल्लाह खान ने शहनाई के माध्यम से विभिन्न धर्मो को जोड़ने का कैसे प्रयास किया?

उत्तर : बिस्मिल्लाह खान मुसलमान थे। उनकी शहनाई की मंगल ध्वनि की गूंज बालाजी मंदिर में गुंजा करती थी। इसके अलावा हनुमान मंदिर में भी वह बजाया करते थे, ये दोनों हिंदुओं का पूजा स्थल है जो हिंदू मुस्लिम समुदाय को जोड़ने में सहायक सिद्ध हुआ। इस प्रकार उन्होंने विभिन्न धर्मों के लोगों को जोड़ने का प्रयास किया।

प्रश्न १३.

शहनाई से डुमरांव का क्या संबंध है?

उत्तर : शहनाई को बजाने के लिए रीड का प्रयोग किया जाता है। रीड अंदर से पोली होती है, जिसके सहारे शहनाई को फूंका जाता है। यह रीड नरकट से बनती है जो डुमरांव में सोन नदी के किनारे पाई जाती हैं। इस प्रकार शहनाई से डुमरांव का अटूट संबंध है।

प्रश्न १४.

बिस्मिल्लाह खान को बचपन में शहनाई सीखने में किसने प्रेरित किया?

उत्तर : बचपन के दिनों में बिस्मिल्लाह खान बालाजी मंदिर में शहनाई सीखने जाते थे। वे जिस रास्ते से होकर बालाजी मंदिर जाते थे, उसी रास्ते के किनारे (घर में रसूलन बाई और बतूलन बाई दोनों बहनें विभिन्न प्रकार के शास्त्रीय संगीत का रियाज करते थे। उनकी आवाज को सुनकर बिस्मिल्लाह खान को बहुत खुशी मिलती थी और वे संगीत के प्रति और ज्यादा आकर्षित हुए और प्रेरित भी हुए।

प्रश्न १५.

बिस्मिल्ला खाँ सजदे में किस चीज के लिए गिड़गिड़ाते थे? इससे उनके व्यक्तित्व का कौन-सा पक्ष उद्घाटित होता है?

उत्तर : बिस्मिल्ला खाँ जब इबादत में खुदा के समाने झुकते तो सजदे में गिड़गिड़ाकर खुदा से सच्चे सुर का वरदान माँगते। इससे पता चलता है कि खाँ साहब धार्मिक, संवेदनशील एवं निर-भिमानी थे। संगीत-साधना हेतु समर्पित थे। अत्यन्त विनम्र थे।

प्रश्न १६.

सूषिर वाद्य किन्हें कहा जाता है? ‘शहनाई’ शब्द की व्यत्पत्ति किस प्रकार हुई है?

उत्तर : सुषिर वाद्य ऐसे वाद्य हैं, जिनमें नाड़ी (नरकट या रीड) होती है, जिन्हें फूंककर बजाया जाता है। अरब देशों में ऐसे वाद्यों को ‘नय‘ कहा जाता है और उनमें शहनाई को ‘शाहनेय‘ अर्थात् ‘सूषिर वाद्यों में शाह‘ की उपाधि दी गई है, क्योंकि यह वाद्य मुरली, शृंगी जैसे अनेक वाद्यों से अधिक मोहक है।

प्रश्न १७.

‘संगीतमय कचौड़ी’ का आप क्या अर्थ समझते हैं?

उत्तर : कुलसुम हलवाइन की कचौड़ी को संगीतमय कहा गया है। वह जब बहुत गरम घी में कचौड़ी डालती थी, तो उस समय छन्न से आवाज उठती थी जिसमें कमरुद्दीन को संगीत के आरोह-अवरोह की आवाज सुनाई देती थी। इसीलिए कचौड़ी को ’संगीतमय कचौड़ी’ कहा गया है।

प्रश्न १८.

डुमराँव की महत्ता किस कारण से है?

उत्तर : डुमराँव की महत्ता शहनाई के कारण है। प्रसिद्ध शहनाई वादक बिस्मिल्ला खाँ का जन्म डुमराँव में हुआ था। शहनाई बजाने के लिए जिस ‘रीड’ का प्रयोग होता है, जो एक विशेष प्रकार की घास ‘नरकट’ से बनाई जाती है, वह डुमराँव में सोन नदी के किनारे पाई जाती है।

प्रश्न १९.

बिस्मिल्ला खाँ जब काशी से बाहर प्रदर्शन करते थे तो क्या करते थे? इससे हमें क्या सीख मिलती है?

उत्तर : बिस्मिल्ला खाँ जब कभी काशी से बाहर होते तब भी काशी विश्वनाथ को नहीं भूलते। काशी से बाहर रहने पर वे उस दिशा में मुँह करके थोड़ी देर तक शहनाई अवश्य बजाते थे। इससे हमें धार्मिक दृष्टि से उदारता एवं समन्वयता की सीख मिलती है। हमें धर्म को लेकर किसी प्रकार का भेद-भाव नहीं रखना चाहिए।

प्रश्न २०.

बिस्मिल्ला खाँ जब काशी से बाहर प्रदर्शन करते थे तो क्या करते थे? इससे हमें क्या सीख मिलती है?

उत्तर : बिस्मिल्ला खाँ जब कभी काशी से बाहर होते तब भी काशी विश्वनाथ को नहीं भूलते। काशी से बाहर रहने पर वे उस दिशा में मुँह करके थोड़ी देर तक शहनाई अवश्य बजाते थे। इससे हमें धार्मिक दृष्टि से उदारता एवं समन्वयता की सीख मिलती है। हमें धर्म को लेकर किसी प्रकार का भेद-भाव नहीं रखना चाहिए।

प्रश्न २१.

पठित पाठ के आधार पर बिस्मिल्ला खाँ के बचपन का वर्णन करें।

उत्तर : कमरुद्दीन यानी उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ चार साल की उम्र में ही नाना की शहनाई को सुनते और शहनाई को ढूँढते थे। उन्हें अपने मामा का सान्निध्य भी बचपन में शहनाईवादन की कौशल विकास में लाभान्वित किया। 14 साल की उम्र में वे बालाजी के मंदिर में रियाज़ करने के क्रम में संगीत साधना करते और आगे चलकर महान कलाकार हुए।

प्रश्न २२.

पठित पाठ के आधार पर मुहर्रम पर्व से बिस्मिल्ला खाँ के जुड़ाव का परिचय दें।

उत्तर : मुहर्रम से बिस्मिल्ला खाँ का अत्यधिक जुड़ाव था। मुहर्रम के महीने में वे न तो शहनाई बजाते थे और न ही किसी संगीत-कार्यक्रम में सम्मिलित होते थे। मुहर्रम की आठवीं तारीख को बिस्मिल्ला खाँ खड़े होकर ही शहनाई बजाते थे। वे दालमंडी में फातमान के लगभग आठ किलोमीटर की दूरी तक रोते हुए नौहा बजाते पैदल ही जाते थे।

Naubatkhane Me Ibadat class 10 Hindi Objective Question Answer


प्रश्न १.

नौबतखाने में इबादत क्या हैं ?

उत्तर : व्यक्ति चित्र

प्रश्न २.

सुषिर वाधो मे शाह की उपाधि किस को प्राप्त है ?

उत्तर : शहनाई

प्रश्न ३.

बिस्मिल्लाह खाँ का संबंध है ?

उत्तर : शहनाई से

प्रश्न ४.

नौबतखाने में इबादत पाठ के केन्द्र में कौन है ?

उत्तर :बिस्मिल्लाह खाँ

प्रश्न ५.

बिस्मिल्लाह खाँ के पिता का क्या नाम था ?

उत्तर : पैगम्बर बक्स खाँ

प्रश्न ६.

बिस्मिल्ला खाँ के बचपन का नाम क्या था?

उत्तर : अमीरूद्दीन

प्रश्न ७.

रसूलनबाई थी ?

उत्तर : गायिका

प्रश्न ८.

बिस्मिल्लाह खाँ के शहनाई के साथ किस मुस्लिम पर्व का नाम जुडा हुआ है ?

उत्तर : मुहर्रम

प्रश्न ९.

काशी किसकी पाठशाला है ?

उत्तर : संस्कृति की

प्रश्न १०.

बिस्‍मिल्लाह खाँ कौन सी दूआ ईश्वर से माँग रहे है ?

उत्तर : सच्चे सुर की नेमत की

प्रश्न ११.

अमिरूद्दीन नाम किसका था ?

उत्तर : बिस्मिल्लाह खाँ का

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