Mazdoor Diwas Kavita Garv Hai Mazdoor Hoon Main
गर्व है, मैं मजदूर हूं : मजदूर दिवस पर कविता Mazdoor Diwas Kavita
विधा-- कविता!
गर्व है..मैं मजदूर हूं
लोग मुझे हिकारत भरी, निगाह से क्यों देखते हैं,
इसलिए, क्योंकि...मैं एक मजदूर हूं.?
राजसी ठाठ बाट से अलग..एक गरीब हूं.?!
लेकिन..मैं गर्व से कहता हूं..हां "मैं मजदूर हूं".!
निर्माण की हर नीव पे, मेरे पसीने की बूंद पड़ी है..
मेरी बाजू के दम पर ही, औद्योगिक नगरी खड़ी है!
सुई से..जहाज तक, मेरे हथौड़े की ठोक जड़ी है,
अपनी मेहनत से ही मैंने..प्रगति की राह गड़ी है!
हौंसला बुलंद है मेरा, पर्वत को भी तोड़ सकता हूं,
बहते हुए पानी की, धाराओं को मोड़ सकता हूं!
फ़ौलाद का जिगर है..लोहे को भी चीर सकता हूं,
बंजर भूमि उपजाऊ बना दूं, इतना दम रखता हूं!
घर से बेघर हूं, पर आलीशान महल बनाता हूं,
भूखा रहता हूं मैं, पर सबके लिए फसल उगाता हूं,
पैदल चलता हूं, पर सबका परिवहन चलाता हूं,
दरिद्र हूं मैं..पर सब को खुशहाल बनाता हूं.!
पर, लोग मेरी मेहनत की, क़ीमत ना दे पाते हैं..
मेरी तरफ हीनता भरी, नज़रों से निहारते हैं..
निर्धन हूं..पर किसी के आगे हाथ ना फैलाता हूं,
पसीना बहा कर, अपने हक़ की रोटी कमाता हूं!
पर फिर भी...
किसी पर्वत की तरह अडिग हूं,
अपने पेशे में मैं मगरूर हूं..
और..डंके की चोट पे कहता हूं,
मुझे गर्व है.."मैं मज़दूर हूं.!"
("मजदूर दिवस"के उपलक्ष में श्रमजीवी मनीषियों को समर्पित)
हरजीत सिंह मेहरा.
लुधियाना, पंजाब।
85289-96698.
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