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शराबी शायरी | शराब पर शायरी | दारू पर शायरी Sharabi Shayari | Sharab Par Shayari

शराबी ग़ज़ल शायरी : मेरी मदिरा रानी | शराब पर शायरी | दारू पर शायरी

ग़ज़ल : मेरी मदिरा रानी
मेरी मदिरा रानी, क्यों सता रही हो?
सच सच बताओ, क्या छुपा रही हो?
बड़ी पुरानी है यहां पे अपनी कहानी,
इतना घूंघट तुम क्यों गिरा रही हो?
मेरी मदिरा रानी………..
कब से इंतजार कर रही है प्याली,
कभी अच्छी नहीं लगती है खाली।
झुके झुके क्यों हैं तेरे दोनों नयना,
क्यों नहीं तुम आंखें मिला रही हो?
मेरी मदिरा रानी…………
मचल उठता हूं मैं, रंग देखकर तेरा,
पागल हो जाता हूं ढंग देखकर तेरा।
महुए का रस हो या अंगूर का पानी?
कानों में बोलो, तुम जो बता रही हो।
मेरी मदिरा रानी………
तेरे ही सहारे मेरी कट रही जिंदगानी,
लौट आई है जैसे तन मन में रवानी।
जब से तुमसे मुलाकात हुई, बात हुई,
मुझको नए नए सपने दिखा रही हो।
मेरी मदिरा रानी…………
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
नासिक (महाराष्ट्र)/
जयनगर (मधुबनी) बिहार

शराबी शायरी - शराब पर शायरी Sharabi Shayari Sharab Par Shayari

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शराबी शायरी हिंदी | शराबी गजल शायरी Sharabi Shayari

ग़ज़ल
शराबी के लिए बहाना उनकी बेवफाई का।
शराबी को कौन दे हिसाब अपनी सफाई का।।

ठंडी का मौसम बड़े आराम से गुजर जाता।
कौन अहसान मानता फिर उस गरम रजाई का।।

दाग़ लगने से डरते शफ़ाफ दामन पर सभी।
अफसाना बन ना जाये कही जग हंसाई का।।

हरजाना भरना ना पड़े कभी उस गलती का।
वजह न बने किसी जिन्दगी के कभी तबाही का।।

रिश्तों की बुनियाँद सच्चाई पे होनी चाहिए।
वर्ना क्या फायदा रिश्ता करके सगाई का।।

घर को रंगवा दिया बड़ी शान की खातिर उसने।
खर्च आ गया मिला हरजाना रंग पोताई का।।

शहज़ाद बड़ा ही हिसाब रखते हो जमाने का।
साले रख लेते खयाल अपने बहनोई का।।
मजीदबेग मुगल शहज़ाद
हिगणघाट, जि,वर्धा,महाराष्ट्र
8329309229
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