निर्मला उपन्यास के आधार पर बाबू तोताराम का चरित्र चित्रण
'निर्मला' उपन्यास प्रेमचंद का एक महत्वपूर्ण एवं बहुचर्चित सामाजिक उपन्यास है, इसमें उन्होंने समाज के विभिन्न वर्गों के पारिवारिक एवं वैवाहिक जीवन में उत्पन्न होने वाली समस्याओं का सजीव एवं मार्मिक चित्रण किया है। निर्मला उपन्यास की मूल समस्या बेमेल विवाह तथा दहेज प्रथा की वजह से लड़कियों की बर्बाद होती यातना भरी जिंदगी है। इस उपन्यास में मुख्य पात्रों के साथ-साथ कुछ सहायक पात्र भी हैं, जो कथानक में गंभीरता, सजीवता उत्पन्न करते हुए कहानी को और भी प्रभावशाली बना देते हैं। निर्मला का पति बाबू तोताराम भी ऐसा ही एक पात्र है, जो इस उपन्यास के अन्य पात्रों के व्यक्तित्व और घटनाओं को प्रभावित करता है।
बाबू तोताराम का चरित्र चित्रण
निर्मला का पति बाबू तोताराम का चरित्र एक पारंपरिक समाज के दृष्टिकोण और वर्तमान भारतीय समाज में पुरुष प्रधान मानसिकता का जोरदार समर्थन करता हुआ दिखाई देता है। प्रेमचंद ने बाबू तोताराम के माध्यम से उन सामाजिक और नैतिक मूल्यों को उजागर किया है, जो समाज के कई लोगों में आज भी व्याप्त हैं। बाबू तोताराम शारीरिक रूप से बूढ़े हो गए हैं लेकिन मानसिक रूप से वह अभी भी जवान हैं। उनके रहन-सहन और क्रियाकलापों को देखकर ऐसा मालूम होता है कि उम्र के इस मोड़ पर पहुंचकर भी अपनी यौन इच्छाओं पर काबू नहीं प्राप्त कर सके हैं और उनकी यौन इच्छाओं की भूख आभी तक शांत नहीं हुई है। यह बाबू तोताराम की प्रबल यौन इच्छा ही थी जो उन्हें अपनी बेटी की उम्र की खूबसूरत और जवान लड़की निर्मला से शादी करने के लिए उकसा रही थी। बाबू तोताराम की उम्र इतनी हो गई थी कि उन्हें अपने बेटों की शादी के बारे में सोचना चाहिए था लेकिन वह ऐसा ना सोचकर खुद अपनी शादी के लिए बेचैन थे। अगर वह चाहते तो निर्मला को अपने बड़े बेटे मंसाराम की पत्नी बनाकर भी घर में ला सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया बल्कि खुद निर्मला से शादी करके बार बार खुद को जवान साबित करने का असफल प्रयास किया।
1. स्वार्थी और अवसरवादी प्रवृत्ति
बाबू तोताराम का चरित्र शुरुआत से ही एक स्वार्थी और अवसरवादी व्यक्ति के रूप में उभरता है। वह समाज में अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए हर संभव उपाय करता है, भले ही इसके लिए उसे अपने नैतिक मूल्यों से समझौता करना पड़े। उसे दूसरों के कष्ट या संघर्ष से कोई मतलब नहीं होता; उसका मुख्य उद्देश्य केवल अपनी स्वार्थपूर्ति होता है। निर्मला की शादी के समय बाबू तोताराम का व्यवहार इसी प्रवृत्ति को उजागर करता है, जहां वह अपने लाभ के लिए समाज में गलत कदम उठाने से नहीं हिचकिचाता।
2. पारंपरिक पुरुषवादी मानसिकता
बाबू तोताराम का चरित्र भारतीय समाज की पुरुषवादी मानसिकता को भी दर्शाता है। वह समाज की महिलाओं को केवल उनके पारंपरिक कर्तव्यों तक सीमित रखता है और उनकी भावनाओं या अधिकारों की परवाह नहीं करता। निर्मला जैसी स्त्री के प्रति उसका दृष्टिकोण यह दर्शाता है कि वह महिलाओं को केवल घर के कामों और परिवार की सेवा के लिए देखता है। उसकी यह मानसिकता उसे एक कठोर और संवेदनहीन व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करती है।
3. समाज में प्रतिष्ठा का अत्यधिक महत्व
बाबू तोताराम के लिए समाज में उसकी प्रतिष्ठा अत्यंत महत्वपूर्ण है। वह हमेशा इस बात की चिंता करता है कि लोग उसके बारे में क्या सोचेंगे और उसकी सामाजिक छवि पर क्या प्रभाव पड़ेगा। इस कारण वह कई बार नैतिकता को ताक पर रखकर निर्णय लेता है। उसकी यह सोच उसे एक कमजोर और द्वंद्वात्मक व्यक्ति के रूप में चित्रित करती है, जो अपनी प्रतिष्ठा के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता है, चाहे वह सही हो या गलत।
4. परिवार के प्रति दायित्वहीनता
बाबू तोताराम का अपने परिवार के प्रति दायित्वहीनता भी उसके चरित्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है। वह अपने परिवार के सदस्यों के प्रति संवेदनशील नहीं है और उनकी जरूरतों या भावनाओं की परवाह नहीं करता। वह केवल अपने हितों और आवश्यकताओं के बारे में सोचता है, जिससे उसके परिवार के अन्य सदस्य उसकी उपेक्षा और निराशा का सामना करते हैं।
5. सामाजिक और आर्थिक वर्ग का प्रतिनिधित्व
बाबू तोताराम का चरित्र उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है, जो सामाजिक और आर्थिक रूप से उच्च स्थान पर होता है, लेकिन नैतिकता के मामले में गिरा हुआ होता है। वह आर्थिक रूप से संपन्न है और समाज में उसका स्थान भी ऊँचा है, लेकिन उसके आचरण और व्यवहार में कोई आदर्श या नैतिकता नहीं दिखती। प्रेमचंद ने उसके माध्यम से यह संदेश देने का प्रयास किया है कि केवल धन और प्रतिष्ठा से व्यक्ति महान नहीं बनता, बल्कि उसके आचरण और नैतिकता ही उसे सच्चे अर्थों में महान बनाते हैं।
6. अंतर्द्वंद्व और दोषपूर्ण व्यक्तित्व
बाबू तोताराम का चरित्र अंतर्द्वंद्व से भरा हुआ है। वह एक ओर अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास करता है, वहीं दूसरी ओर वह अपनी गलतियों का भी आभास करता है। यह अंतर्द्वंद्व उसके व्यक्तित्व को और अधिक जटिल बनाता है, जहां वह अपनी कमजोरियों और गलतियों को छिपाने के लिए निरंतर प्रयासरत रहता है। इस प्रकार उसका चरित्र दोषपूर्ण और आत्मकेंद्रित दिखता है, जो अपनी कमजोरियों से लड़ने में असमर्थ है।
7. चरित्र की त्रासदी
बाबू तोताराम का चरित्र प्रेमचंद द्वारा सृजित त्रासदीपूर्ण पात्रों में से एक है। उसका जीवन और सोच दोनों ही समाज के परंपरागत मूल्यों और सामाजिक संरचना से प्रभावित हैं, जो उसे अपने असली स्वरूप को पहचानने से रोकते हैं। वह अपने व्यक्तिगत हितों को समाज और परिवार के हितों से ऊपर रखता है, जो अंततः उसकी त्रासदी का कारण बनता है। उसकी त्रासदी यह है कि वह अपनी गलतियों को कभी स्वीकार नहीं कर पाता और समाज में अपनी छवि बनाए रखने के प्रयास में खुद को खो देता है।
8. अदूरदर्शी व्यक्तित्व
निर्मला का पति तोताराम जिसकी उम्र लगभग निर्मला के पिता जितनी हो चुकी है, प्रेमचंद ने इस पात्र को एक अत्यंत ही अदूरदर्शी व्यक्ति के रूप में दिखाया है। तोताराम के तीन विवाह योग्य जवान बेटे हैं। पत्नी के स्वर्गवास हो गया है। विधवा बहन रुक्मिणी तोताराम के घर पर रहकर घर को कुशलतापूर्वक संभालती है। इसलिए तोताराम का घर सुव्यवस्थित रूप से चल रहा है। परिवार में सबकुछ ठीकठाक चल रहा है फिर भी तोताराम निर्मला से विवाह करने को बेचैन और लालायित रहता है। तोताराम अपने बड़े पुत्र मंसाराम की लगभग उम्र में बराबर सुन्दर और जवान लड़की निर्मला से विवाह कर लेता है। वह निर्मला और अपने बीच के उम्र के अन्तर पर तनिक भी विचार नहीं करता। इसके अलावा वह अपने विवाह से जवान हो रहे बच्चों पर पड़ने वाले बुरे प्रभाव के बारे में भी कुछ नहीं सोचता। इससे तोताराम के घर में गंभीर पारिवारिक कलह उत्पन्न हो जाता है। लेकिन परिवार में इतना बड़ा कलह उत्पन्न हो जाने पर भी वह परिवार के सदस्यों के साथ सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश नहीं करता है। इस तरह से निर्मला और रुक्मिणी, निर्मला और तोताराम की पूर्व पत्नी के बच्चों तथा स्वयं तोताराम तथा परिवार के सभी सदस्यों के बीच गहरा विवाद पैदा हो जाता जो दिन प्रतिदिन बढ़ता ही चला जाता है। इस प्रकार तोताराम की नासमझी और और अदूरदर्शिता के कारण एक हंसता खेलता और खुशहाल परिवार टूटकर बिखर कर बर्बाद हो जाता है।
9. हीनभावना का शिकार
तोताराम अपनी बढ़ती हुई उम्र के बावजूद भी शादी कर लेता है। निर्मला तोताराम की तुलना में बहुत कमसिन, खुबसूरत, नवयुवती है। निर्मला से अपना योन संबंध न बना पाने और दाम्पत्य जीवन में जोड़ न बिठा पाने के कारण तोताराम हीनभावना का शिकार हो जाता है। अपने मनोभावों और हीनभावना को छुपाने के लिए ही वह दोहरे चरित्र का जीवन जीने लगता है तरह तरह के स्वांग रचाने लगता। तोताराम हर तरह से अपनी बढ़ती हुई उम्र को छुपाने का प्रयत्न किया करता है लेकिन हर बार असफलता ही हाथ लगती है। इतना ही नहीं करता बल्कि अपनी मर्दानगी और बहादुरी का ऐसा ढोंग भी करता है जिससे उसके मन की हीन भावना उजागर होती है। परिवार के छोटे-मोटे झगड़ों में भी वह निर्मला को खुश करने का ध्यान रखते हुए और अपने ज्ञान प्रदर्शन करने के कारण ही वह तटस्थ नहीं रह पाता और बार बार निर्मला का ही पक्षधर बनता है। इतना ही नहीं अपनी हीन भावना के कारण ही वह अपने पुत्रों से भी पिता जैसा व्यवहार करने में पूरी तरह से असमर्थ हो जाता है।
10. परिहास का पात्र
नई नवेली युवा पत्नी निर्मला का दिल जीतने और उसे प्रभावित करने के लिए तोताराम अपनी झूठी वीरता के अविश्वसनीय किस्से सुनाता है। निर्मला उसकी इन कहानियों को सिर्फ इसलिए सुना करती है क्योंकि वह उसको मानसिक रूप से असंतुलित और विक्षिप्त व्यक्ति समझने लगती है। वह अपने ही झूठ के कारण बार बार निर्मला की दृष्टि में परिहास का पात्र बनता रहता है। एक दिन जब तोताराम निर्मला को अपनी वीरता की काल्पनिक घटनाओं को सुनाकर प्रभावित करने की कोशिश कर रहा होता है तो संयोग से उसी समय घर में एक साँप निकल आता है, जिसको देखते ही तोताराम बौखला जाता है और सहायता माँगने के लिए दौड़कर पड़ोस में चला जाता है। इससे तोताराम के झूठ उजागर हो जाती है और वह निर्मला की दृष्टि में परिहास का पात्र बन जाता है।
11. शंकालु प्रवृत्ति
तोताराम निर्मला के हृदय में अपने लिए प्रेम उत्पन्न नहीं कर पाने के कारण शंकालु प्रवृत्ति का हो जाता है। निर्मला वैसे तो तोताराम का बहुत सम्मान करती है लेकिन अपने से अधिक आयु का होने के कारण एक वयस्क औरत की तरह उससे प्रेम नहीं कर पाती। इस पर तोताराम अपनी झूठी वीरता की बनावटी कहानियां सुनाकर खुद को जवान साबित करने की कोशिश करता है। लेकिन अपने ही बेटे मंसाराम के साहस और ज्ञान से वह ईर्ष्या भी करने लगता है। निर्मला के मंसाराम के प्रति स्वाभाविक स्नेह को तोताराम संदेह की दृष्टि से देखने लगता है जिसके कारण ही घर में तनाव उत्पन्न होने लगता है और आखिरकार मंसाराम को घर छोड़ना पड़ता है। अपने बीमार बेटे मंसाराम को भी तोताराम अपनी शंकालु प्रवृत्ति के कारण घर नहीं ले जाना चाहता है और मंसाराम के अस्पताल ले चलने के आग्रह पर मन ही मन खुश होकर उसे अस्पताल में भर्ती करवाता है और कोशिश करता है कि निर्मला की मुलाकात मंसाराम से न हो सके। तोताराम इतना सब कुछ सिर्फ इसलिए करता है कि उसके मन में निर्मला और मंसाराम को लेकर तरह-तरह की शंका पैदा हो जाती है।
12. असफल पिता मुंशी तोताराम
मुंशी तोताराम एक असफल पिता के रूप में भी दिखाई देते हैं। इस उपन्यास में तोताराम की एक पिता के रूप में जगह-जगह असफलता दिखाई पड़ती है। वह अपने चारों में से किसी भी पुत्रों के प्रति अपने दायित्व का निर्वाह नहीं कर पाते हैं। तोताराम अपने पुत्रों की इच्छा जाने बिना ही निर्मला से विवाह कर लेता है और फिर अपने ही बड़े बेटे मंसाराम पर शक करने लगता है और उसकी जिंदगी को बर्बाद कर देता है। इसी तरह से वह अपने दूसरे बेटे सियाराम के मन की बातों को भी नहीं समझ पाता है और वह भी बुरे लोगों की संगति में पड़ कर अकालमृत्यु को प्राप्त होता है। सियाराम के प्रति निर्मला के कठोर आचरण को देखकर भी तोताराम सियाराम के भविष्य के प्रति सचेत नहीं हो पाता है। इस तरह से तोताराम अपने अतीत से भी कोई शिक्षा नहीं ले पाता है और अपने तीसरे बेटे सियाराम को भी गँवा बैठता है। तोताराम अपने पुत्रों के प्रति अपने कर्त्तव्य से न केवल उदासीन रहता बल्कि खुद उनके अंत का कारण भी बनता है। इस तरह उपन्यास में तोताराम चरित्र एक अत्यन्त असफल पिता के रूप में दिखाई देता है।
13. पलायनवादी प्रवृत्ति
तोताराम जिंदगी उसकी अपनी ही गलतियों के कारण समस्याओं से घिरती चली जाती है। अपनी पत्नी, अपने पुत्रों तथा अपने परिवार के प्रति वह अपने दायित्वों का निर्वाह कर पाने में असफल हो जाता है और परिस्थितियों से हारता चला जाता है। अंततः निर्मला, रुक्मिणी और अबोध पुत्री के भरण-पोषण का भी कोई प्रबंध किए बिना ही घर छोड़ कर चला जाता है। वह किसी भी स्थिति का सामना अपनी बुद्धि विवेक से नहीं करता जिसके फलस्वरूप परिस्थितियाँ और बिगड़ती चली जाती हैं। वह दूरदर्शी निर्णय लेने की जगह पर क्षणिक फल की प्राप्ति में अपनी सारी जिंदगी बर्बाद कर देता है और खुद अपने परिवार की दृष्टि में गिर जाता है।
निष्कर्ष
बाबू तोताराम का चरित्र 'निर्मला' उपन्यास का एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली पात्र है, जो भारतीय समाज के उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है जो स्वार्थ, प्रतिष्ठा और पुरुषवादी मानसिकता में जकड़ा हुआ है। उसका चरित्र यह दिखाता है कि समाज में केवल बाहरी प्रतिष्ठा और आर्थिक संपन्नता से व्यक्ति महान नहीं बनता, बल्कि उसके आचरण और नैतिक मूल्यों से उसकी सच्ची पहचान होती है। बाबू तोताराम के अंतर्द्वंद्व और त्रासदीपूर्ण जीवन ने उपन्यास के कथानक को और गहराई दी है, जिससे पाठक समाज की उन जटिलताओं और विरोधाभासों को समझ सकते हैं, जो आज भी प्रासंगिक हैं।
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