मैं मजदूर हूं : मजदूर दिवस विशेष कविता Special Poem On Labour Day
मजदूर दिवस
शीर्षक -"मैं मजदूर हूं"
मैं मजदूर हूं
क्योंकि मेरे सर पर छत नहीं
न पैरों के नीचे जमीन है।
न खाने के लिए सुखी रोटी है
न साथ में कुछ नमकीन है।
मैं मजदूर हूं
सुबह सुबह उठकर
जाना पड़ता है काम पर
नहीं तो भूखे रहना पड़ेगा
उपवास के नाम पर।
मैं मजदूर हूं
दिनभर परिश्रम
करने के बाद भी कभी -कभी
खाली हाथ लौटना पड़ता है।
चूल्हा जलाती है बीवी
पानी का छौंक लगाती है।
बच्चे समझते हैं,
कुछ बन रहा है,खाना मिलेगा
और सोचते सोचते सो जाते हैं।
मैं मजदूर हूं
कर्ज लेकर बीवी और बच्चों
के लिए कपड़ा खरीदा,
बूढ़े मां-बाप के लिए दवा,
बड़ी बेटी की शादी की।
सूद में ही मालिक के यहां
सुबह सुबह शाम हाजिरी
लगा रहा हूं।
मैं मजदूर हूं
मारा गया हूं
पीटा गया हूं
हड़पा गया हूं
शोषित हुआ हूं
लांछित हुआ हूं
बेइज्जत हुआ हूं
और नहीं तो सोते हुए
जलाया, उजाड़ा गया हूं
हर किसी से सताया गया हूं।
मैं मजदूर हूं, मैं मजदूर हूं।
मेरे नाम पर मई दिवस मना लीजिए
कल से फिर मेरे हाल पर छोड़ दीजिए।
दिनेश जी दीनेश
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