Ramzan aur Eid Ke Mauke Par Jadeed aur Munfarid Ghazal Shayari
रमज़ान और ईद के मौके पर जदीद-व-मुन्फरिद ग़ज़ल
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अपने घर के चाँद को छत पर बुलाओ!
चाँद का दीदार हम को भी कराओ!!
माहताब-ए-ईद, गरदूँ पर उगाओ!
ईद का तेहवार उल्फत से मनाओ!!
प्यार और अनवार का सूरज उगाओ!
ईद का तेहवार, चाहत से मनाओ!!
नफ़रतों और ज़ुल्मतों की बातें छोड़ो!
आशिक़ी और नूर के दीपक जलाओ!!
सब्र-व-इस्तक़लाल की तलक़ीन करयो!
घर शहीदों की बेवाओं को बुलाओ!
तुम उन्हें बिर्यानी और मीठा खिलाओ!
या बताशे और सेवैयाँ ही खिलाओ!!
चाँद को शरमाओ घर के चाँद से फिर!
अपने घर के चाँद को छत पर बुलाओ!
लड़कियाँ और औरतें आ जायें छत पर!!
हाँ!, घरों के माहपारों को बुलाओ!!
सच्चे नेताओ!, वतन के रहनुमावो!!
" जाॅब " तुम, बेरोज़गारों को दिलाओ!!
रहनुमावो!, " जाॅब " और महंगाई भत्ता,
हम अदीबों, शायरों को भी दिलाओ!!
रहनुमावो!, हाँ!, मसाजिद के इमामो!
रोज़े रक्खो, तुम नमाज़ें भी पढाओ!!
ये नमाज़ें काम आयेंगी वहाँ भी!!
हाँ!, इमामो!, तुम नमाज़ें ही पढाओ!!
नूर फैलाओ वफ़ा का, सारे जग में!!
इश्क और एख़्लास का सूरज उगाओ!
चाँद-सूरज, जग में निकलें या न निकलें!!
नूर और चाहत की ख़ातिर दिल जलाओ!!
सर से ऊपर बह रहा है पानी अब तो!
कुछ सुधर जाओ, वतन के रहनुमावो!!
" गाँधी- बाबा " के करीब आओ, कमीनो/ अज़ीज़ो!!
देश के नेताओ!, शरमाओ, लजाओ!!
सारा " बन्टा- धार " कर डाला वतन का!?
अब तो शरमाओ,बेशर्मो, हाँ!, लजाओ!!
फिर ग़ज़ल पढने की ख़ातिर अन्जुमन में!
उस " प्रेमी-नाथ-बिस्मिल " को बुलाओ!!
वो/ वह, चचा ग़ालिब के चाचा, राम जी हैं!
उन को भी अब " बज़्म-ए-ग़ालिब " में बुलाओ!!
---------------- रामदास प्रेमी इन्सान प्रेमनगरी,
डाक्टर जावेद अशरफ़ कैस फैज अकबराबादी मंजिल,ख़दीजा नरसिंग,राँची हिल साईड,इमामबाड़ा रोड,राँची,झारखण्ड,इन्डिया!
रमज़ान और ईद के मौके पर जदीद-व-मुन्फरिद ग़ज़ल शायरी हिंदी
" ख़ुश होते हैं अल्लाह-व-मुहम्मद "
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सब्र कर के पढते हैं जो भी नमाज़ें!
उन से ख़ुश होते हैं अल्लाह-व-मुहम्मद!!
सब्र कर के रखते हैं जो भी रोज़े!
होते हैं ख़ुश, रब-ए-आलम,क़िब्ला अहमद!!
जो नमाज़ी और रोज़ेदार गुज़रे!!
नूर से भर जाते हैं उन्ही के मरक़द!!
ऐ नमाज़ी!, रोज़-व-शब,हम भी पढेंगे!
" क़ुलहु-अल्लाहु-अहद" पढते थे " अहमद "!!
अब तो " अल्लाहुस्समद " हम भी कहेंगे!
यारो!, " अल्लाहुस्समद " कहते थे " अहमद "
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इस मन्ज़ूम-तख़्लीक़ के दीगर शेर-व-सुखन आइंदा फिर कभी पेश किए जायेंगे!
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रामदास प्रेमी इन्सान प्रेमनगरी,
जावेदअशरफ़ कैस फैज अकबराबादी बिल्डिंग्, ख़दीजा नरसिंग, राँची हिल साईड,इमामबाड़ा रोड, राँची, झारखण्ड, इन्डिया!
रमज़ान और ईद के मौके पर मुन्फ़रिद-व-जदीदतरीन ग़ज़ल
जब चाँद-रात ही को तेरी दीद हो गयी!
ऐ जान-ए-ज़िन्दगानी!, मेरी ईद हो गयी!!
अरबाब-ए-दिल से आप की ताईद हो गयी!
और उस के बाद आप की तक़लीद हो गयी!!
साइन्स ने भी इस के फ़वायिद बताये हैं!
ऐ दोस्त!, रोज़े रखने की ताईद हो गयी!!
अल्लाह की सताइश-ए-तौहीद हो गयी!
इस तरह मुस्तफ़ा की भी ताईद हो गयी!!
फिर बात़िलान-ए-वक़्त की तरदीद हो गयी!
फिर सादिक़ान-ए-इश्क की ताईद हो गयी!!
ज़िन्दा रवायतों की भी तजदीद हो गयी!
यूँ!, " ग़ालिब और मीर " की तक़लीद हो गयी!!
ये ज़ीस्त हम को दे गयी ग़म और निशात़ भी!
पर्वरदिगार!, पूरी भी उम्मीद हो गयी!!
इस की तिलावतों में फ़वायिद कषीर हैं!
ऐ राम जी!, " क़ुरान " की " तजवीद " हो गयी!!
" इन्सान रामदास " ने " तख़्लीक़-ए-ह़म्द " की!
यूँ!, " रब-ए-कायनात " की " तह़मीद " हो गयी!!
हर आन जो ये दह्र/ शह्र/ दुनिया लगे है नवीन/ जदीद, राम!
तह़क़ीक़ हो गयी, कि/ के ये " तजदीद " हो गयी!!
" इक़बाल-व-मीर-व-ग़ालिब-व-गुलज़ार " ख़ुश हुए!
" रामा "! " सुख़न-व-शेर " की " तजदीद " हो गयी!!
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इस त़वील ग़ज़ल के दीगर शेर-व-सुख़न फिर कभी पेश किए जायेंगे, इन्शा-अल्लाह!!
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रामदास प्रेमी इन्सान प्रेमनगरी,
डाक्टर जावेद अशरफ़ कैस फैज अकबराबादी बिल्डिंग्, ख़दीजा नरसिंग, राँची हिल साईड, इमामबाड़ा रोड, राँची, झारखण्ड, इन्डिया!
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