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शिक्षा समझूँ या परीक्षा, शिक्षा और संस्कार प्रेरणादायक कविता | समाज सुधार शायरी

शिक्षा पर कविताएं, ऑनलाइन शिक्षा पर कविता | Poems On Online Education

शिक्षा समझूँ या परीक्षा
शिक्षा समझूँ या परीक्षा ।
भिक्षा समझूँ या मैं दीक्षा ।।
मुश्किल में पड़ा पसोपेश में ।
नाहक आते लोग आवेश में ।।

शिक्षा पर व्यंग्य कविता

हर्ष समझूँ या समझूँ मैं गम ।
अब कैसे रखूँ निज को नम ।।

समाज सुधार कविता 

मित्रता में हैं या हैं वे द्वेष में ।
या समझते हैं वे अवशेष में। ।
आदर को समझें वे खुशामद ।
मदद को समझें वे तो आमद। ।
देव समझूँ या समझूँ मैं भेव।
बेर समझूँ या समझूँ मैं सेव। ।

र्तमान शिक्षा पर कविता

सम्मान को समझें वे अपमान।
या तुच्छ समझना है पहचान। ।
जीवन तो है बहुत ही मूल्यवान।
नहीं समझे तो अधूरी है ज्ञान ।।
क्यों तन में इतनी अधिक गर्मी ।
है यह अज्ञानता या है बेशर्मी ।।

शिक्षा और समाज सुधार कविता

मानव हो तुम मानवता समझो ।
निज को तो छोटा तुम समझो ।।
बड़ा बनने में नहीं है बड़प्पन ।
छोटे रहो न बनो तुम वीरप्पन ।।
छोटे में ही तो है जीवन का सार।
गले लगा सबसे तू कर ले प्यार ।।
साहित्य में भाई भतीजावाद छोड़ो
स्वार्थ में अंधापन को तुम तोड़ो।।
ईर्ष्या कपट मन से तुम त्यागो ।
कब हुआ भोर अब भी जागो ।।

शिक्षा समझूँ या परीक्षा, शिक्षा और संस्कार प्रेरणादायक कविता | समाज सुधार शायरी

ह रचना मेरी
मौलिक एवं
स्वरचित रचना है।
अरुण दिवांशु
छपरा सारण
बिहार।

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