अभी रमजान की बरकत है, ऐ हमदम : रमजान मुबारक शायरी Ramzan Mubarak Shayari Hindi
" विचित्र / मुतफ़र्रिक़ अश्आर "
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अभी रमजान की बरकत है, ऐ हमदम!
कि भूख और प्यास का हरगिज़ नहीं है ग़म !!
इबादत करने वाले लोग सच्चे हैं !!
नमाज़ें पढते हैं और रोज़े रखते हैं !
नबी के चेहरे का दीदार हो जाये !
अब ऐसे, ईद का तेहवार हो जाये !
ख़ुदा-ए-पाक !, जो ईमान वाले हैं !
शहादत की तमन्ना दिल में रखते हैं
मुहम्मद के लिए, इस्लाम की ख़ातिर
हुसैनी लोग अब भी सर कटाते हैं !
मुसल्माँ लोग बा-एख़्लाक़ होते हैं !
हुसैनी होते हैं, उश्शाक़ होते हैं !!
जो कामिल हैं, वो बा-एख़्लाक़ होते हैं
कि माहिर होते हैं, मश्शाक़ होते हैं !!
वही सच बोलते हैं, सारे आलम में !!
निडर होते हैं जो बे-बाक होते हैं !!
नदी में बहते हैं कुछ ग़ैरमुस्लिम लोग
मुसल्माँ भाई जेर-ए‐ख़ाक सोते हैं !!
चिता में जलते हैं कुछ ग़ैरमुस्लिम लोग !!
किरिस्चन और मुसल्माँ दफ़्न होते हैं !
जनाब-ए-राम !, जो सच्चे मुसल्माँ हैं !
वही इस्लाम-व-दीन-ए-हक़ पे क़ुर्बाँ हैं
रामदास इन्सान प्रेमनगरी,
डाक्टर जावेद अशरफ़ कैस फैज अकबराबादी मंजिल,
ख़दीजा नरसिंग, राँची-हिल-साईड,
इमामबाड़ा रोड, राँची-834001,
झारखण्ड, इन्डिया !
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