रमज़ान मुबारक का इस्तकबाल और उसकी अजमत और फजीलत
रमजान का क्या महत्व है?
रमजान मुबारक इस्लामी साल का नौवां महीना है। इस मुबारक महीने में मुसलमान कुरान मजीद के साया ए आतिफ़त में जिंदगी गुजारते हैं और परवरदिगार से रहमत और मगफिरत के तलबगार होते हैं। इसीलिए तमाम इस्लामी किताबें भी इसी माह में नाजिल हुईं। सेहफ़ इब्राहिम अलैहि इसलाम रमजान की तीसरी तारीख में, तौरेत छठी तारीख में, इंजील 13 वी तारीख में, ज़बूर अठारहवीं तारीख में, और कुरान करीम 24 वीं तारीख में नाजिल हुआ।
लफ्ज़ रमज़न का मतलब | What Is The Meaning Of Ramzan
रमज़ान अरबी भाषा का लफ्ज़ है जो हमेशा मुज़क्कर (पुलिंग) इस्तेमाल होता है। जब क़दीम अरबों की ज़बान से इन इस्लामी महिनों के नाम नक़ल किये गयें, तो उस वक्त जो महीना जिस मौसम में आया, उसका नाम उसी के अनुसार रख दिया गया और इत्तेफाक से उस वक्त रमज़ान का महीना सख़्त गर्मी में आया, इसलिए उसका नाम रमज़न रख दिया गया। अल्लामा इब्ने कसीर रजि अल्लाह ने तहरीर फरमाया है, रमजान की जमा (बहुवचन) रमज़ानात, और रामाज़ीन, और रमाज़ा आती हैं।
रमज़ान की वजह तस्मिया | रमज़ान मुबारक का नाम कैसे पड़ा?
शेख अब्दुल कादिर जिलानी रहमतुल्ला अलैह रमजान की वजह तस्मिया पर गुफ़्तगू करते हुए फ़रमाते हैं: इसकी वजह तस्मिया में इख़्तिलाफ़ है। हजरत अब्दुल्ला और हजरत जाफर अपने बुजुर्गों से रवायत करते हैं कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाह वसल्लम ने इरशाद फरमाया: रमज़न अल्लाह ताला का खास महीना है। कुछ लोग कहते हैं कि इस माह को रमजान इसलिए कहा गया कि इसमें गुनाह जल जाते हैं। नबी ए करीम सल्लल्लाहो वसल्लम का इरशाद भी यही है और कहा गया है कि इस माह में आखिरत की फिक्र और नसीहत की गर्मी से दिल मुतासिर होते हैं, बिल्कुल उसी तरह जिस तरह सूरज की गर्मी से रेगिस्तान और पत्थर गर्म हो जाते हैं और जल उठते हैं। हजरत खलील का इरशाद है कि रमज़ान लफ़्ज़ रम्ज़ से निकला है, रम्ज़ उस बारिश को कहते हैं जो हरीफ़ के मौसम में होती है। क्योंकि माहे रमज़न लोगों के दिलों और जिस्म को गुनाह से पाक कर देता है, इसलिए इसे भी रमज़न का नाम दिया गया है।
अल्फ़ाज़ रमज़न से मुराद | रमज़ान में क्या होता है?
रमज़न शब्द में पांच हुरूफ़ (अक्षर) हैं। और इन तमाम में एक खास इशारा है "रे" से मुराद अल्लाह की रजा, "मीम" से मुराद अल्लाह की मोहब्बत, "ज्वाद" से मुराद अल्लाह की ज़मानत "अलिफ़" से मुराद अल्लाह की उल्फ़त और मोहब्बत "नून" से मुराद अल्लाह का नूर है। यह बहुत बड़ी बख़्शीश और बुजुर्गी की अलामत है, उन लोगों के लिए जो अल्लाह ताला के औलिया और नेक क़िरदार हैं।
रमज़न की फज़ीलत और अज़मत | Importance of Ramajan
रसूलल्लाह सल्लल्लाहो वसल्लम ने फरमाया: मोमिनीन पर माहे रमज़ान से बेहतर और मुनाफिकीन पर रमज़ान से सख्त कोई महीना साया फगन नहीं होता। अल्लाह तआला इसके शुरू होने से पहले ही इसका अजर और सवाब लिख देते हैं और मुनाफिकीन का गुनाहों पर इसरार और बदबख़्ती भी पहले से लिख देते हैं। इसकी वजह यह है कि मोमिनीन इस महीने में इबादत के लिए ताकत और हिम्मत जुटाते हैं और मुनाफिकीन लोगों की गफ़लतों और ऐबों की टोह लेने में लगे रहते हैं। बस यह महीना मोमिनीन के लिए गनीमत है। जिस पर फ़ासिक और फ़ाज़िर रश्क करते हैं। नबी ए करीम सल्लल्लाहो वसल्लम रजब का चांद देख कर यह दुआ फरमाते थे: ऐ अल्लाह हमारे रजब और शाबान में बरकत नसीब फरमा और हमें रमज़ान तक पहुंचा दें। आमीन
रमजान का इस्तकबाल | रमज़ान की तैयारी
जब रमजान का महीना शुरू होता तो नबी ए करीम सल्लल्लाहो वसल्लम का रंग मुबारक में तब्दीली आ जाती और उनकी नमाजो में इजाफा हो जाता था और आप सल्ले अला वसल्लम आह ओ ज़ारी के साथ दुआ करते और आप सल्ले अला वसल्लम पर इसका खौफ तारी हो जाता।
सहाबा इकराम रमजान की तैयारी किस तरह करते थे?
सहाबा इकराम रमजान की तैयारी किस तरह करते थे, यह बयान करते हुए हजरत ओंस फरमाते हैं: शाबान के शुरू होते ही मुसलमान कुर्आन की तरफ झुक जाते और अपने माल में से ज़क़ात निकालते थे। ताकि गरीब और मिस्कीन लोग भी रोजे रखे और माहे रमजान को बेहतर तरीके से गुजार सकें। एक मर्तबा रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने माहे रमजान के करीब इरशाद फरमाया: रमजान का महीना आ गया है! जो बरकत वाला है! अल्लाह ताला इस माह में ख़ासतौर पर हमारी तरफ़ नज़रे इनायत करते हैं और अपनी रहमत नाजिल फरमाते हैं। ख़ताओं को बख्शीश देते हैं और दुआएं कबूल फरमाते हैं।
रसूल अल्लाह का खुत्बा
सहाबा इकराम कहते हैं: रसूल अल्लाह ने शाबान के आखिरी दिन में हमें ख़ुत्बा दिया (मुमकिन है कि वह दिन जुमा का रहा होगा। और यह भी मुमकिन है कि रमजान उल मुबारक की आमद पर बतौर अहतमामे मुस्तक़िल ख़ुत्बा दिया हो) ऐ लोगों तुम्हारे ऊपर एक महीना साया फगन है! जो बहुत बरकतों वाला और अजमतों वाला महीना है! इसमें एक खास रात है जिसे शबे कद्र के नाम से याद किया जाता है। जो तन्हा हजार महीनों से बेहतर है। अल्लाह ताला ने इस महीने के रोजे को फर्ज करार दिया है और इस महीने में कयाम (यानी तरावीह) को सुन्नत करार दिया है। यह महीना सब्र का है और सब्र का बदला जन्नत है और यह महीना ग़मख़्वारी का है। इस महीना में मोमिन का रिज़्क़ बढ़ा दिया जाता है। जो शख्स इस महीने में रोजेदार को इफ़्तार कराएं, यह उसके लिए गुनाहों से माफी और आग से बचाव का सबब होगा और उस रोजेदार के सवाब में से कुछ कमी नहीं की जाएगी। यह वह महीना है जिसका अव्वल (ओशरा) रहमत है, दरमियान वाला मगफ़िरत है और आखिर आग से आजादी का है। चार चीजों की इस महीने में कसरत किया करो। जिनमें से 2 चीजें हैं जिसके जरिए तुम अपने रब को राजी करो। ( १) कलमा ए तैयबा (२) इस्तेग़फ़ार हैं, और दो चीजें जिनसे तुम्हें चारा कार नहीं, (१) जन्नत का सवाल (२) आग से पनाह मांगना है। जो शख्स किसी रोजेदार को इफ्तार में पानी पिलाए, अल्लाह ताला उसे कयामत के रोज मेरी हौज ए कौसर से पानी पिलाएंगे। जिसकी खुसूसियत की बिना पर उसके बाद उसे बिल्कुल प्यास नहीं लगेगी यहां तक कि वह जन्नत में दाखिल हो।
रमजान उल मुबारक की ख़ुसूसियतें (विशेषताएं)
रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाया: मेरी उम्मत को रमजान उल मुबारक से मुतल्लिक़ पांच खुसूसीयातें आता की गई हैं जो इससे पिछले वाली उम्मतों को नहीं मिलीं: पहली यह कि उनकी मुंह की बू अल्लाह के नजदीक मुश्क की खुशबू से ज्यादा पसंद है। दूसरी यह कि उनके लिए दरिया की मछलियां भी दुआ करती हैं और इफ़्तार तक करती रहती हैं। तीसरी यह कि अल्लाह ताला उन के लिए हर रोज जन्नत को सजाते हैं और फरमाते हैं कि अन्करीब मेरे नेक बंदे दुनिया की मशक्कत उतार फेंककर तेरी तरफ आएंगे। चौथी यह कि इस मुबारक महीने में सर्कश शैतानों को कैद कर दिया जाता हैं। इसलिए कि इस मुबारक महीने में यह शैतान बुराई तक ना पहुंच सके जैसा कि वो रमजान के अलावा पहुंच सकते हैं। पांचवी यह की रमजान उल मुबारक की आखिरी रात में रोजेदारों की मगफिरत कर दी जाती है। रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से दरियाफ़्त किया गया कि ऐ अल्लाह के रसूल: क्या यह शबे कद्र की रात है? आप सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने फरमाया: नहीं, यह शबे कद्र नहीं बल्कि यह इसलिए है कि काम करने वाले को काम पूरा करने पर मजदूरी दी जाती है। सुब्हान अल्लाह क्या शान है रमजान की!
नेकियों में इजाफा
एक हदीस में रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया: रमजान की पहली तारीख में आसमान और जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं, जो महीना के आखिरी रात तक खुले रहते हैं जो बंदा पाबंदी के साथ इन रातों में नमाज़ पढ़े उसे हर सजदे के बदले एक हज़ार सात सौ नेकियां मिलती हैं जन्नत में इसके लिए सुर्ख याकूत का महल बनाया जाता है। जिसके सत्तर हज़ार (70000) रोजे होंगे। यह सब दरवाजे सोने के होंगे जब कोई बंदा पहले दिन रोजा रखता है तो अल्लाह ताला रमजान के आख़िर तक उसके तमाम गुनाह माफ कर देता है। और या दूसरे रमजान तक का कुफ़ारा हो जाता है। वह जितने रोजे रखता है, हर रोजे के बदले में उसके लिए जन्नत में सोने का एक महल बनाया जाता है, जिसके (1000) दरवाजे होंगे, सत्तर हज़ार (70000) फरिश्ते सुबह से शाम तक उसके लिए बख्शीष की दुआ मांगते रहते हैं दिन रात में वह जितने सजदे करता है हर एक सजदा के बदले में जन्नत में एक दरख्त आता होगा और उस दरख़्त का साया इतना फैला हुआ होगा कि एक सवार एक सौ (100) साल तक उस में चलता रहे तब भी वह खत्म ना हो। अल्लाह पाक हम सबको ईमान और सेहत के साथ रमजान नसीब करें और इन बातों पर अमल करने की तौफीक अता फरमाए! आमीन
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