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जीवन के मूल मंत्र : आस एहसास और विश्वास को समझाती हिंदी कविता

प्रेरणादायक हिंदी कविता : जीवन के मूल मंत्र : आस एहसास और विश्वास

प्रतियोगिता
अनोखा एहसास
जीवन है तीन बातों पे आधारित,
आस एहसास और संग विश्वास।
जीवन के मूल मंत्र को समझना,
कहलाता यह अनोखा एहसास।।
मन में पहले निज एहसास कर,
दूजे दूसरे पर भी तू विश्वास कर।
जिसको कर सकें जीवन धार्य,
वही दूसरों से भी तू आस कर।।
सब कहते घोर कलियुग आ गया,
हर मानव पर कलियुग छा गया।
मैं कहता कलियुग आया कैसे,
मैं और आप कलियुग बुला गया।।
कर लें मन में एहसास अनोखा,
फिर मन में विश्वास भी जगा लें।
पहुँच सकते हैं उच्च शिखर तक,
मन में दृढ़ जो आश भी भगा लें।।
जीवन का सुंदर एहसास अनोखा,
जीवन का सुंदर हो विश्वास अनोखा।
सबको मिले सुंदर आस अनोखा,
अपना भी जीवन बन जाए काश अनोखा।।
अरुण दिव्यांश 9504503560


प्रेरणादायक कविताएं हिंदी में Motivational Poems In Hindi

अस्तित्व
अस्तित्व का शोध करते करते,
पूरा जीवन व्यतीत हो जाता है।
अस्तित्व का बोध करते करते,
जीवन भी अतीत हो जाता है।।
दूसरे के अस्तित्व को देखने में,
अपना ही अस्तित्व खो रहे हैं।
दूसरे कै पैर में टाँग अड़ाने हेतु,
दूसरे का असूतित्व ढो रहे हैं।।
भूल रहे हम ईश्वर का अस्तित्व,
अपनी पहचान हम बनाने में।
पर सुख हो पाता नहीं सहन,
असमर्थ अपनापन अपनाने में।।
मानव समझता अपना अस्तित्व,
ईश्वरीय अस्तित्व भूल रहा है।
समझा नही अस्तित्व का महत्
फिर अस्तित्व ले झूल रहा है।।
मानव है तू मानव को समझो,
जब मानवता समझ में आएगा।
तब समझोगे अस्तित्व का महत्,
ईश्वरीय अस्तित्व भी तू पाएगा।।
अरुण दिव्यांश 9504503560
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना।


प्रेरणादायक हिंदी कविता : मानव जन्म लिया श्रेष्ठ प्राणीं में

अधूरी ख्वाहिशें
मानव जन्म लिया श्रेष्ठ प्राणीं में,
लेकर ख्वाहिशें जीवन में अनंत।
अंत हो जाता मानव का जीवन,
किंतु ख्वाहिशों का न होता अंत।।
कुछ ही पूरी हो पाती हैं ख्वाहिशें,
अत्यधिक ख्वाहिशें रहतीं अधूरी।
हो जाता है मन खिन्न मानव का,
जब अधूरी ख्वाहिशें न होतीं पूरी।।
मन तो होता बड़ा कर्म होता छोटा,
देखे मानव बड़ी ख्वाहिशों का सपना।
वैसी ही ख्वाहिशें अधूरी रह जातीं,
वैसा ही सपना मानव का नहीं अपना।।
अरुण दिव्यांश 9504503560
मौलिक एवं अप्रकाशित
रचना।


Prernadayak Hindi Kavita Motivational Poem in Hindi

प्रेरणादायक कविता हिंदी में : ऐसे मानव से दूर रहो जो

प्रशंसा
ऐसे मानव से दूर रहो जो,
समक्ष ही प्रशंसा करते हैं।
खुश देख मन आहें भरते,
दुःख में आने से वे डरते हैं।।
मा का अर्थ होता है मुझे,
नव का है झुकना झुकाना।
समझा जो मानव का अर्थ,
धरा कर्ज समझो चुकाना।।
होता जो संस्कारों से भरा,
मृदुल जिसकी भी वाणी है।
सभ्य शिष्ट होता वह मानव,
वही तो होता सच्चा ज्ञानी है।।
सुंदर चादर होता है शिक्षा,
सुंदर बिस्तर होता संस्कार।
शिष्टाचार होता सुंदर तकिया,
ला देता जो जीवन में निखार।।
पहला मंदिर अपना हृदय है,
दूसरा मंदिर होता अपना घर।
तीसरा मंदिर यह पूजा स्थल,
याद रख लें यह हर नारी नर।।
हृदय में भगवान का सिंहासन,
घर में मात पिता का आसन।
मंदिर में भगवान का वासन,
त्रैलोक्य में है जिनका शासन।।
बड़े बुजूर्गों को भी तो मिले ही,
सुंदर आदर मान और सम्मान।
उनकी अरमाँ में ही हो निहित,
अपनी भी इच्छा और अरमान।।
इस दुनिया में आए हैं हम तो,
निज जीवन में कुछ आश लेकर।
ईश्वर का ही एक विश्वास लेकर,
दुखियों हेतु कुछ अरदास लेकर।।
सभ्यता शिष्टता और अनुशासन,
परिश्रम निष्ठा और संग आचार।
छः मिलकर जब एक हो जाते,
वही कहलाते हैं सुंदर संस्कार।।
जिनसे रूठकर रहतीं हैं लक्ष्मी,
उनको देखते तो ये भगवान हैं।
धन में सिमटकर रहते हैं धनी,
गरीब ही बन जाता महान है।।
भाव से ही होता है यह भजन,
भाव से ही तो होता है भोजन।
भाव से ही तो भव पार होता है,
भाव से ही तो होता है सृजन।।
अपनी प्रशंसा तूम मत ढूँढ़ो,
सच्चे प्रशंसक मिलेंगे हजार।
मानवता रूपी जीवन न भूलना,
विश्व में ऊँचा होगा तेरा बाजार।।
अरुण दिव्यांश 9504503560
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना।
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