मानव मन चंचल सा
मानव मन चंचल नटखट सा,
सागर लहरों सा लहराता है,
फूल देखकर सुंदर गुलाब सा,
जुबान सा फिसल जाता है।
पुरुष प्रेम है होता उथला सा,
अंबुधि मौजों सा मस्ताना है,
मानव मन इतना चंचल क्यों होता है? | मन की चंचलता पर कविता
मानव मन चंचल सा
मानव मन चंचल नटखट सा,
सागर लहरों सा लहराता है,
फूल देखकर सुंदर गुलाब सा,
जुबान सा फिसल जाता है।
मानव मन चंचल नटखट सा,
सागर लहरों सा लहराता है,
फूल देखकर सुंदर गुलाब सा,
जुबान सा फिसल जाता है।
मानव प्रेम पर कविता | मानव धर्म पर कविता
पुरुष प्रेम है होता उथला सा,अंबुधि मौजों सा मस्ताना है,
मयखानों की मय नशीला सा,
नशीली नजरों का दीवाना है।
प्रेम प्यार पर कविता | मानव जीवन कविता
प्यार है उसका दल बदलू सा,चंद मिनटों में बिक जाता है।
अस्थिर हवाओं का आलम सा,
रंगीन इत्रों पर बहक जाता है।
इंसानियत पर कविता | स्वार्थ पर कविता
आदी है खुश्बुओं पर भँवरों सा,स्पर्श की भाषा पहचानता है,
कच्ची कलियों का शिकारी सा,
क्षण भंगुर आनंद को जनता है।
चंचल नटखट मन शायरी
संगमरमरी मूरतों का शिल्पी सा,सुंदर सूरतों पर पल में मरता है।
कामुक भावों का है व्यापारी सा,
जीती जीवन की बाजी हरता है।
स्त्री के अंतर्मन पर कविता
वो स्त्री के अंतर्मन को क्या जाने,शक्लों को अकलों से जीतता है,
कोमल कमल से हृदयों पल में,
जहरीला सांप बनकर डसता है।
मनसीरत नारी का प्रेम स्थाई है,
मानव की बन रहती परछाई है,
मात्र महसूस करने जी सकती है,
औरत के स्नेह में घनी गहराई है।
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)
मेरा यह चंचल मन कविता | चंचल मन शायरी
चंचल मन
मेरा यह चंचल मन,
ऊपर से नयनों की चितवन।
वे मतलब की बातों पर डोले
जैसे हिरनी डोले वन।
मेरा यह चंचल मन।
निंदा और बुराई का,
जिव्हा को देता अस्वादन।
अवगुण और नयन सुख का,
तन में करता झट अभिवादन।
मेरा यह चंचल मन।
तन को पल पल नाच नचाये,
इसका नयनों से गठबंधन
चित की स्थिरता को रौंदे,
जैसे गोली को रौंदे गन।
मेरा यह चंचल मन।
भोग आदि की इसकी इच्छा,
कर्मो का फल भोगे तन।
मेरे चित को चैन नही है,
जब से बैठा ये स्वामी बन।
मेरा यह चंचल मन।
मन के बहकाबे में,
जब से आया मेरा तन।
जल्दी में कब गयी जवानी,
पता नही कब बीता बचपन।
मेरा यह चंचल मन।
उपेंद्र फतेहपुरी
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