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जाति धर्म पर शायरी | जाति धर्म पर कविता | मानवता और इंसानियत पर शायरी

जाति धर्म छुआछूत पर कविता | मानव धर्म पर कविता | मानव प्रेम पर कविता

जाति धर्म
जाति धर्म के लफड़ों में पड़कर,
सच्ची जाति धर्म हम भूल रहे हैं।
अपनी बड़ाई अपने मुँह करके,
मिथ्या जाति धर्म ले झूल रहे हैं।।
बौद्ध जैन यहूदी इसाई पारसी,
बँटा पड़ा है धर्म हिंदु मुस्लिम।
हम बड़े हमारा है यह धर्म बड़ा,
मानव मानव बन पड़े हैं मुल्जिम।।
ईश्वर ने तो दो जातियाँ बनाईं,
मानव ने बनाया जातियाँ अनेक।
भगवान इंसान को छोड़ मानव,
स्वजाति धर्म का करे अभिषेक।।
मानव जाति में भी उपजातियाँ,
भगवान महान इंसान नादान।
नादानी के कारण बना है मानव,
अधम नीच गँवार और हैवान।।
मानव है सच्ची जाति हमारी,
मानवता है हमारा सच्चा धर्म।
गिरे हुए को हम ऊपर उठाएँ,
मानव का है यह तो सच्चा कर्म।।
बँटा पड़ा है आज यह इंसान,
जाति उपजाति और स्वधर्मों में।
खो चुका है मानव अपनी जमीरी,
विश्वास नहीं निज सच्चे कर्मों में।।
मानव मानव का बना है दुश्मन,
जाति धर्म की लगी है होड़ यहाँ।
ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र का,
मानव मन में बना है खोढ़ यहाँ।।
मानव मन बँटा पड़ा दो भागों में,
आस्तिक नास्तिक बना है मन।
उपकार दया यदि बसा है मन में,
मालिक से बचा नहीं कोई है तन।।
मालिक से बचा नहीं है कोई भी,
माया का ही है यह संसार यहाँ।
अदृश्य होकर भी वह देखे सबको,
उसे देखने की शक्ति हमें अपार कहाँ।।
देख सकते हैं आज भी मालिक को,
मन सच्चा और पवित्र बनाकर।
मिल सकती है वह अदम्य शक्ति,
धन्य होंगे हम उस मालिक को पाकर।।
बेशक हम अपना यह धर्म निभाएँ,
किन्तु मूल धर्म को हम अपनाकर।
कोई धर्म यह उपदेश नहीं है देता,
जीवन जियो दूसरे का जीवन दफनाकर।।
मौलिक एवं अप्रकाशित रचना।
अरुण दिव्यांश 9504503560

जाति धर्म के भेदभाव पर कविता | जाति धर्म पर शायरी

कोई नहीं उपेक्षित इस दुनिया में,
सिर्फ मानवता का ही संसार है।
क्षत्रिय ब्राह्मण वैश्य और ये शूद्र,
मानव का ही किया अपकार है।।
वर्णों में होता कोई भी दोष नहीं,
सबसे बड़ा दुनिया में संस्कार है।
बड़ा छोटा का भाव नहीं इसमें,
मानव हेतु तो दया और प्यार है।।
निकाल दो भ्रम यह मैं छोटा हूँ,
ईश्वर ने बनाया सबको समान है।
मानव ही है तू भी इस धरती का,
सबका एक मंजिल व अरमान है।।
सूर्य देता सबको एक ही प्रकाश,
चाँद सबको शीतलता एक देता है।
पवन देता सबको एक ही वायु,
बदले में किससे क्या वह लेता है।। 
मानव एक यह जाति है हमारी,
मानवता ही हमारा सुंदर धर्म है।
आदर स्नेह दया औ प्यार बहाना,
यही तो हमारा सुंदर सा कर्म है।।
मानव नहीं कोई ऊँचा है जग में,
ऊँचा होता है उसका ही संस्कार।
एक संस्कार को अपनाया जिसने,
दुनिया मानती है उसी का आभार।।
अरुण दिव्यांश 9504503560

मानवता धर्म पर कविता | मानव प्रेम पर कविता

स्वयं को सुधार ले तू भी वंदे,
अन्यथा रसातल चला जाएगा।
तू सुधरेगा तो यह जग सुधरेगा,
धरातल से बला चला जाएगा।।
जीवन तो भरा है दुःख से यों ही,
अगले को दुःख क्यों तू देता है।
कुछ यश भी कर ले तू जीवन में,
बदले में अपयश क्यों लेता है।।
धरा भी है पावन व्योम भी पावन,
सूरज चन्द्र और पवन भी पावन।
धरा व्योम सूर्य चन्द्र पवन बीच,
तू क्यों बन रहे रावण अहिरावण।।
मानव जीवन कभी नहीं कहता,
दुःखियों को तुम खूब सताओ।
मानव का बना है पवित्र जीवन,
गिरे को उठाकर तुम गले लगाओ।।
यही है मानव की जीवन कहानी,
शेष मानव होकर मानव से दूर हैं।
मानव हो मानव समझा नहीं जो,
चक्षु रहते हुए भी वे ही तो सूर हैं।।
अरुण दिव्यांश 9504503560
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना।

Jati Dharm Par Kavita | Humanity Quotes In Hindi

हिंददेश विश्वबंधुत्व
राम कहो रहमान कहो,
गाॅड खुदा भगवान कहो।
सबका अर्थ एक ही जानो,
गीता बाईबिल कुरान कहो।।
मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारा,
एक ही ज्ञान एक ही भण्डारा।
मदीना अयोध्या काशी हरिद्वारा,
हर स्थल हो सबको प्यारा।।
हिन्दु इसाई इस्लाम कहो,
सबको एक इन्सान कहो।
सब हैं एक मालिक के वंदे,
सबके एक अरमान कहो।।
राम कहो रहमान कहो,
गाॅड खुदा भगवान कहो।
सबका अर्थ एक ही जानो,
गीता बाईबिल कुरान कहो।।
हिंसा छोड़ अहिंसा अपनाओ,
हर प्राणी को समान बनाओ।
सबका अपना जीवन है प्यारा,
मन में प्रेम की ज्योति जगाओ।।
सुबह कहो और शाम कहो,
उस मालिक का नाम कहो।
जिसने तुमको दिया जीवन,
उनको तन मन से प्रणाम कहो।।

हिन्दू मुस्लिम एकता शायरी | गांव की एकता पर शायरी

राम कहो रहमान कहो,
गाॅड खुदा भगवान कहो।
सबका अर्थ एक ही जानो,
गीता बाईबिल कुरान कहो।।
सभ्यता संस्कृति आचार जहाँ,
वहीं होता प्रभु का धाम है।
विश्वबंधुत्व का संदेश देना,
हिंददेश विश्वबंधुत्व का पैगाम है।।
हिन्दुस्तान कहो पाकिस्तान कहो,
नेपाल कहो या बलूचिस्तान कहो।
सब हैं एक सांसारिक मानव,
मालिक का ही एहसान कहो।
मानव से यह तन जो मिला है,
मालिक का एक फरमान कहो।।
राम कहो रहमान कहो,
गाॅड खुदा भगवान कहो।
सबका अर्थ एक ही जानो,
गीता बाईबिल कुरान कहो।।
अरुण दिव्यांश 9504503560

समाज की एकता पर कविता | आपसी प्रेम प्यार एकता पर सुविचार

प्रेम प्यार उपहार चाहता हूँ।
प्रेम प्यार उपहार
न जीत चाहता हूँ,
न हार चाहता हूँ।
प्यारा सा संसार में,
प्रेम प्यार उपहार चाहता हूँ।।
नफरत भरी दुनियाँ में,
प्यार का दीप जलाएँ।
निकाल मन से नफरत,
प्यार का स्रोत बहाएँ।।
न सम्मान चाहता हूँ,
न अपमान चाहता हूँ।
बँधे एक सूत्र में दुनिया,
यही अरमान चाहता हूँ।।
जाति धर्म विवाद हटा,
मानव जाति अपनाएँ।
हर धर्मों से ऊपर उठ,
मानवता को ही बढ़ाएँ।।
न आन चाहता हूँ,
न शान चाहता हूँ।
मानव मन ज्योति जगे,
एक अंतर्ज्ञान चाहता हूँ।।
मात पिता भाई बहन,
सबसे रिश्ता प्यारा हो।
खिल उठेगी दुनिया सारी,
बुरे कर्मों से किनारा हो।।
न जीना चाहता हूँ,
न मरना चाहता हूँ।
दुनिया की बुराईयों से,
बस लड़ना चाहता हूँ।।
जीवन की राह में,
नहीं वाह वाह में।
नहीं ईर्ष्या डाह में,
सुंदर आचार की चाह में।।
भाई बहनों की हथेली,
मैं रहना चाहता हूँ।
पाप दुष्कर्म कर्म छोड़ो,
संदेश यही कहना चाहता हूँ।।
अरुण दिव्यांश 9504503560
जाति धर्म पर शायरी | जाति धर्म पर कविता | मानवता और इंसानियत पर शायरी

सुरा और सुन्दरी : सुरा में ऐसा सुर है होता

सुरा
सुरा में ऐसा सुर है होता,
अक्ल से बनाता वह सूर है।
मानव अपनी पहचान खोता,
मानव ही बनता असुर है।।
निकला समुद्रमंथन में सुरा,
असुरों ने जिसे अपनाया था।
निकला था मंथन में विष भी,
बाबा भोले ने गले लगाया था।।
सुरा पीकर असुर बन जाते,
मार पीट दंगे फसाद फैलाते।
चारों ओर दहशत फैलाकर,
बलात्कार और उत्पात मचाते।।
सुरा बुरा बहुत ही यह सुर है,
पीकर बन जाता असुर है।
माँ बहनें पहचान में न आतीं,
रिश्ते का भाई या भँसुर ससुर।।
लानत है उसकी जीवन पर,
माँ बहन का जिसे पहचान नहीं।
बना लेता वह जीवन कचरा, 
रहता जिसे सुध बुध ज्ञान नहीं।।
मानव होकर असुर वह बनता,
लोक लाज हया का नाम नहीं।
उससे बेहतर कूड़ा चुननेवाले,
समझता सुबह और शाम कहीं।।
सुरा हाथ लगा सकते नहीं सुर,
रहते सुरा से सदा कोसों दूर।
मानवत्व देवत्व अपनानेवाले,
निरामिषभोजी होते हैं भरपूर।।
आज नहीं तो कल ही सही,
वृद्धावस्था भी तो आना है।
जीवन में हम कर्म किए जो,
फल प्राप्त करते हुए जाना है।।
अरुण दिव्यांश 9504503560

चिता देख क्यों घबड़ाते हो! प्रेरणादायक कविता | Motivational Shayari

कुदरत के सिपाही
जीवन तो चिंता में बीता,
चिता देख क्यों घबड़ाते हो।
चिंतन किया नहीं जीवन में,
चित्त को आँख दिखाते हो।।
देख लिए जब तुम चीता,
चीता देख तुम चीत हो गए।
झपट ले भागा तुमको चीता,
दुनियाँ से सदा ही सो गए।।
चित्त से चिंता चित्त से चिंतन,
चित्त से चीता देख हुए चीत।
ईर्ष्या द्वेष बैर प्रीत भी गया,
तेरे जाते सब कुछ गया बीत।।
सब प्रीत गया सब रीत गई,
निज शक्ति शान दिखाने में।
दीन दुखियों से भी मिली आहें,
केस दर्ज हुआ के ही थाने में।।
आया चीता ले गया पकड़कर,
विलंब नहीं आने ले जाने में।
जुटी भीड़ बचा कोई नहीं पाया,
हुए बंद कुदरती कैदखाने में।।
चिंतन भजन किया नहीं जीवन में,
चित्त का सुझाव किया इन्कार।
परोपकार को स्थान दे न पाया,
करते हो तुम तो सबसे तकरार।।
मिथ्या शान शौकत दिखाकर,
आजीवन करते रहे तुम छलावा।
जन को जन से भ्रमित करके,
आजीवन करते रहे तुम दिखावा।।
अंत समय अब तो रोना क्या है,
व्यस्त थे सच्चा जीवन छिपाने में।
कुदरत के सिपाही से बच नहीं पाते,
छिपे रहते अहंकार रूपी तहखाने में।।
मिथ्या जीवन त्यागकर अब भी,
सच्चे जीवन को तुम अपनाओ।
भरे पड़े हैं पग पग पर ही काँटें,
काँटे देख स्वयं तुम संभल जाओ।।
अरुण दिव्यांश 9504503560


यहाँ चलता हर जाति-धर्म में झगड़ा : हिंदी कविता
कविता
वाह भाई वाह
वाह भाई वाह, वाह भाई वाह,
गजब का मेरा यह देश है,
यहाँ चलता हर जाति-धर्म में झगड़ा,
हृदय में पलता नफरत,क्लेश है।
वाह भाई वाह...।

जो जाते सांसद,विधान मंडल में,
गजब का उनका परिवेश है,
कुछ तो हैं अपराधी,माफिया
कुछ के लुटेरा,बहुरूपिया के भेष हैं।
वाह भाई वाह...।

नक्सलियों की यहाँ बल्ले-बल्ले,
गद्दारों की यहाँ खूब ऐश है,
आतंकवादी यहाँ फलते- फूलते,
मिलती उन्हें फंडिंग बिशेष हैं।
वाह भाई वाह...।

कट्टरपंथियों की यहाँ बड़ी मौज है,
उन्होनें बना ली अलग फौज है,
पल रहे ये गद्दारों के संरक्षण में,
इनके कार्य होनें अभी शेष हैं।
वाह भाई वाह...।

विषम परिस्थिति से देश गुजर रहा,
फिर भी यहाँ का जन-गण सो रहा,
अब तो जागो देश की सजग जनता,
करना तुम्हें बस श्री गणेश है।
वाह भाई वाह...।
अरविन्द अकेला
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