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महाशिवरात्रि का महत्व | महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है Mahashivratri

महाशिवरात्रि का अध्यात्मिक महत्व क्या है | महाशिवरात्रि का वैज्ञानिक महत्व

महाशिवरात्रि का महत्व
महा शिवरात्रि अर्थात ‘शिव की महान रात्रि’ महाशिवरात्रि का विशेष त्यौहार भारतवर्ष के आध्यात्मिक उत्सवों की सूची में शामिल सभी त्योहारों से महत्वपूर्ण है। ‌ऐसी धार्मिक मान्यता है कि इसी दिन शिव पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। आइए जानते हैं कि महाशिवरात्रि की रात इतनी महत्वपूर्ण क्यों है और हम सभी इसका अध्यात्मिक लाभ किस प्रकार से उठा सकते हैं।

महाशिवरात्रि का महत्व

प्राचीन काल में भारतीय संस्कृति में एक वर्ष में कुल मिलाकर 365 त्यौहार मनाए जाते थे। अर्थात प्रत्येक वर्ष में प्रति दिन किसी न किसी तरह का उत्सव मनाने के अवसर ढूंढ लिए जाते थे। यह 365 त्यौहार विविध कारणों और समाजिक जीवन के विविध उद्देश्यों को पूरा करने के लिए मनाए जाते थे। इनमें विविध प्रकार के ऐतिहासिक घटनाओं, विजय श्री एवं जीवन की कुछ अन्य आवश्यक अवस्थाओं जैसे कि नये फसल की बुआई, रोपाई तथा कटाई इत्यादि से संबंधित त्यौहार शामिल था। हर अवस्था तथा प्रत्येक परिस्थितियों के लिए हमारे पास कोई न कोई त्योहार अवश्य था। लेकिन महाशिवरात्रि 2019 का महत्व सबसे अलग और महत्वपूर्ण है।



महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है?

प्रत्येक चंद्र मास का चौदहवाँ दिन या अमावस्या से पूर्व का एक दिन शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। किसी भी एक कैलेंडर वर्ष में आने वाली सभी शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि को सबसे महत्वपूर्ण त्योहार माना गया है। यह शिवरात्रि फरवरी तथा मार्च महीने में होती है। इस रात्रि ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध इस तरह से अवस्थित होता है कि मनुष्य भीतरी ऊर्जा का प्राकृतिक रूप से ऊपर की और जाता हुआ महसूस करता है। यह एक ऐसा महत्वपूर्ण दिन है जब प्रकृति मनुष्य को उसके आध्यात्मिक शिखर पर पहुंचाने में सहायता करती है। इस समय का लाभ उठाने के लिए इस परंपरा में हम एक विशेष उत्सव मनाते हैं जो पूरी रात्रि चलता है। पूरी रात्रि मनाए जाने वाले इस विशेष उत्सव में इस बात का भी विशेष ध्यान रखा जाता है कि ऊर्जाओं के इस प्राकृतिक गति और प्रवाह को भरपूर मात्रा में उमड़ने का पूरा अवसर मिल सके। इसके लिए आप अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए पूरी रात्रि निरंतर जागते रहेंगे तो एक नई ऊर्जा का संचार अपने अंदर प्राप्त करेंगे।


महाशिवरात्रि का विशेष महत्व

महाशिवरात्रि की यह विशेष रात वैसे तो सभी के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है लेकिन आध्यात्मिक पथ पर चलने वाले साधकों तथा ध्यान के अभ्यास करने वालों के लिए बहुत महत्व रखती है। यह उन लोगों के लिए भी अधिक महत्वपूर्ण है जो पारिवारिक परिस्थितियों में हैं तथा संसार की महत्वाकांक्षाओं में लीन रहते हैं। पारिवारिक परिस्थितियों में लीन व्यक्ति महाशिवरात्रि को शिव के विवाह के उत्सव के रूप में मनाते हैं। सांसारिक महत्वाकांक्षाओं में व्याप्त लोग महाशिवरात्रि की रात्रि को शिव के द्वारा अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए साधना करते हुए बिताते हैं। लेकिन साधकों के लिए यह ऐसा महत्वपूर्ण दिन है जिस दिन को शिव शंकर भगवान कैलाश पर्वत के साथ एकात्म हो गए थे। वे एक पर्वत की तरह से पूरी तरह स्थिर व निश्चल हो गए थे। यौगिक परंपराओं में शिव को किसी देवता के रूप में नहीं पूजा जाता अपितु उन्हें एक आदि गुरु माना गया है। शिव प्रथम गुरु‌ हैं इन्हीं से ज्ञान उपजा। ध्यान की अनगिनत सहस्राब्दियों के बाद एक दिन शिव पूर्ण रूप से स्थिर हो गए थे। वही दिन प्रथम महाशिवरात्रि का था। शिव के भीतर की सारी गतिविधियाँ उस समय शांत हो गई थी तथा वे पूरी तरह से स्थिर हो गए थे यही कारण है कि सभी साधक महाशिवरात्रि को स्थिरता की रात्रि के रूप में मनाते हैं और महाशिवरात्रि की रात को भक्तगण स्वयं को भी शिव की तरह स्थिर करने का प्रयास करते हैं।


महाशिवरात्रि की रात का आध्यात्मिक महत्व

महाशिवरात्रि पीछे की दंत कथाओं को छोड़ दिया जाए तो यौगिक परंपराओं के अनुसार यह दिन अतिविशिष्ट महत्व रखता है। महाशिवरात्रि की रात को आध्यात्मिक साधक के लिए बहुत सी बड़ी बड़ी संभावनाएँ होती हैं। आधुनिक विज्ञान विभिन्न चरणों से होते हुए आज उस बिंदु पर पहुंच गया है कि जहाँ उन्होंने आपको यह प्रमाण दे दिया है कि आप जिसे भी जीवन के रूप में जानते हैं। पदार्थ और अस्तित्व के रूप में जानते हैं। जिसे आप ब्रह्माण्ड और तारामंडल के रूप में पहचानते हैं वह सभी वास्तव में केवल एक ऊर्जा ही तो है। यह ऊर्जा स्वयं को अनगिनत रूपों में प्रकट करती है। यह वैज्ञानिक तथ्य प्रत्येक योगी के लिए एक विशेष अनुभव से उपजा सत्य है। ‘योगी’ शब्द का अर्थ उस व्यक्ति से है जिसने अस्तित्व की एकात्मकता को प्राप्त कर लिया है। जब हम कहते हैं ‘योग’ तो हम किसी विशेष अभ्यास अथवा तंत्र की बात नहीं कर रहे होते हैं। अपितु इस असीम विस्तार को एवं अस्तित्व में एकात्म भाव को प्राप्त करने की सारी इच्छाएं योग है। महाशिवारात्रि की रात्रि व्यक्ति को इसी का विशेष अनुभव प्राप्त करने का अवसर प्रदान करती है।


महाशिवरात्रि अर्थात महीने की सबसे अँधेरी रात

महाशिवरात्रि की रात महीने की सबसे अंधकारपूर्ण रात्रि होती है। प्रत्येक महीने शिवरात्रि का उत्सव एवं महाशिवरात्रि का त्योहार मनाना ऐसा लगता है जैसे हम अंधकार का उत्सव मना रहे हों। कोई भी तर्कशील मन अंधकार को नकारते हुए प्रकाश को सहज भाव से चुनना पसंद करेगा। लेकिन शिव का शाब्दिक अर्थ ही यही होता है ‘जो नहीं है’ और ‘जो है’ वह अस्तित्व, ऊर्जा तथा सृजन है। ‘जो नहीं है’ वह केवल शिव है। ‘जो नहीं है’ उसका अर्थ है। यदि आप अपनी आँखें खोल कर अपने आसपास देखेंगे तथा आपके पास यदि सूक्ष्म दृष्टि है तो आप बहुत सारी रचनाएं देख सकेंगे। यदि आपकी दृष्टि केवल विशाल वस्तुओं पर जाती है तब तो आप देखेंगे कि विशालतम शून्य ही अस्तित्व की सबसे बड़ी उपस्थिति है। लेकिन कुछ ऐसे बिंदु भी हैं जिन्हें हम आकाशगंगा कहते हैं वह तो दिखाई देते हैं लेकिन उन्हें थाम कर रखने वाली विशाल शून्यता प्रत्येक व्यक्तियों को नहीं दिखाई देती है। इस विस्तार तथा इस असीम रिक्तता को ही शिव कहा गया है। वर्तमान समय में आधुनिक विज्ञान ने भी यह सिद्ध कर दिया है कि सब कुछ शून्य से ही उपजा और प्राप्त हुआ है तथा शून्य में ही सभी कुछ विलीन हो जाता है। इसी संदर्भ में शिव अर्थात विशाल रिक्तता अथवा शून्यता को ही महादेव के रूप में जाना जाता है। इस ग्रह के प्रत्येक धर्म तथा संस्कृतियों में सदा दिव्यता की सर्वव्यापी प्रकृति की बात की जाती रही है। अगर हम इसे देखेंगे तो ऐसी एकमात्र वस्तु जो सही अर्थों में सर्वव्यापी हो सकती है। वह ऐसी वस्तु होगी जो हर स्थान पर उपस्थित हो सकती है। और वह केवल अंधकार, शून्यता तथा रिक्तता ही है। सामान्य रूप से जब लोग अपने कल्याण की इच्छा करते हैं तो हम उस दिव्य को प्रकाश के रूप में दर्शा रहे होते हैं। जिस समय लोग अपने कल्याण को त्याग कर अपने जीवन से परे जाने पर तथा विलीन होने पर ध्यान देते हैं और शिव की उपासना तथा साधना का उद्देश्य विलयन ही है तो हम सदा उनके लिए दिव्यता को अंधकार के रूप में परिभाषित करते हैं।


शिवरात्रि का महत्व

यह प्रकाश मनुष्य मन की एक छोटी सी घटना मात्र है। प्रकाश कभी शाश्वत नहीं है। यह सदा से एक सीमित संभावना मात्र है इसलिए कि यह घट कर समाप्त हो जाती है। हम सभी जानते हैं कि इस ग्रह पर सूर्य प्रकाश का सबसे बड़ा तथा प्रथम स्त्रोत है। यह इतना शक्तिशाली है कि आप हाथों से इसके प्रकाश को रोक कर भी अंधेरे की परछाईं बना सकते हैं। लेकिन अंधकार सर्वव्यापी होता है। यह हर स्थान पर और हर समय उपस्थित रहता है। संसार के अपरिपक्व मस्तिष्कों ने सदा ही अंधकार को एक शैतान या बुरी शक्तियों के रूप में चित्रित किया है। लेकिन जब आप दिव्य शक्ति को सर्वव्यापी कहते हैं तब आप स्पष्ट रूप से इसे अंधकार कह रहे होते हैं। इसलिए कि केवल अंधकार ही सर्वव्यापी है। यह हर ओर उपस्थित है। इसे किसी के भी सहारे की आवश्यकता नहीं होती है। प्रकाश सदा ही किसी ऐसे स्त्रोत से आता है जो स्वयं को प्रकाशित कर रहा होता है। इसका एक आरंभ तथा अंत भी होता है। यह सदा सीमित स्त्रोत से आता है। परंतु अंधकार का कोई स्त्रोत नहीं है। यह अपने-आप में एक अंतहीन स्त्रोत है। यह सर्वत्र उपस्थित होता है। तो जब हम शिव कहते हैं उस समय हमारा संकेत अस्तित्व की उस असीम रिक्तता की ओर होता है। इसी रिक्तता की गोद में सारा सृजन घटता जाता है। रिक्तता की इसी परम गोद को हम शिव कहते हैं। भारतीय संस्कृति में सारी प्राचीन प्रार्थनाएं केवल आपकी रक्षा करने अथवा आपकी भलाई के संदर्भ में नहीं थीं। सारी प्राचीन प्रार्थनाएं कहती हैं कि “हे ईश्वर, मुझे नष्ट कर दो ताकि मैं भी आपही के समान हो जाऊँ।" अर्थात जिस समय हम सभी शिवरात्रि कह रहे होते हैं जो कि महीने की सर्वाधिक अंधकारपूर्ण रात्रि होती है तो यह ऐसा अवसर होता है जब मनुष्य अपनी सीमितता को विसर्जित करके सृजन के उस असीम स्त्रोत का अनुभव कर सके जो प्रत्येक मनुष्य में बीज रूप में उपस्थित है।


महाशिवरात्रि अर्थात जागृति की रात

महाशिवरात्रि एक विशेष अवसर तथा संभावनाओं से भरी हुई रात है। जब मनुष्य स्वयं को अपने भीतर व्यापक असीम रिक्तता के अनुभव से जोड़ सकते हैं। रिक्तता सारे सृजन का स्त्रोत है। एक ओर शिव संहारक कहलाते हैं तथा दूसरी ओर वे सर्वाधिक करुणामयी भी हैं। वे बहुत ही उदार और दाता हैं। यौगिक गाथाओं में शिव अनेक स्थानों पर महाकरुणामयी के रूप में सामने आते रहे हैं। शिव की करुणा के रूप विलक्षण तथा अद्भुत रहे हैं। इस प्रकार से महाशिवरात्रि 2022 कुछ ग्रहण करने के लिए भी एक विशेष अवसर है। यह हमारी संपूर्ण इच्छा और आशीर्वाद है कि आप इस रात में कम से कम एक क्षण के लिए ही सही उस असीम विस्तार का अनुभव अवश्य करेंगे जिसे हम शिव कहते हैं। यह केवल एक निद्रा से जागृत रहने की रात भर नहीं रह जाए अपितु यह आपके लिए अध्यात्मिक जागरण की रात्रि होनी चाहिए। चेतना तथा जागरूकता से भरी एक रात महाशिवरात्रि! धन्यवाद! यह लेख आपके लिए हिंदी उर्दू साहित्य संसार ‌की ओर से प्रकाशित किया गया। अपनी प्रतिक्रिया के लिए नीचे कमेंट बॉक्स में टाइप कर सकते हैं धन्यवाद!
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