रामधारी सिंह दिनकर जयंती पर आधारित विशेष कविताएं हिंदी Ramdhari Singh Dinkar Jayanti
राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर जयंती(कविता)
हे राष्ट्र कवि दिनकर जी, हे व्यक्तित्व की अद्भुत मशाल, जन्म जयंती पर, नमन कर रहा है आपको भारत विशाल।
बिहार के सिमरिया गांव में, जब धरती पर पधारे थे दिनकर जी,
हो गए उस यादगार दिन के पूरे आज, एक सौ आठ साल।
हे देश के महान् क्रान्तिकारी साहित्यकार, कवि भारत के लाल,
रश्मिरथी पढ़कर हमेशा, वीरों के खून में आता रहेगा उबाल।
हे राष्ट्र कवि दिनकर जी……
कांटों पर चलकर, अभावों की ज्वाला में जलकर महाकवि जी,
आपने पराधीन भारत में नई ऊर्जा भरकर, कर दिया कमाल।
पिताश्री बाबू रवि सिंह का साया, शीघ्र उठ गया था सिर से,
माताश्री मनरूप देवी के, आंचल की छांव ने कर दिया निहाल।
आपने हार नहीं मानी, और जिंदगी को ही जीना सीखा दिया था,
बड़ी मुश्किल से मिलता है इतिहास में, आपके जैसा मिसाल।
हे राष्ट्र कवि दिनकर जी……
साहित्य अकादमी, पद्मा भूषण, भारतीय ज्ञानपीठ से सम्मानित,
आपकी अनमोल रचनाएं, बदलती रहेंगी भावी पीढ़ियों के ख्याल।
उर्वशी और हुंकार को कौन भूला पाएगा, कभी चाहकर भी?
जिन पदों को आपने सुशोभित किया, सदा डरते रहे आपसे सवाल।
आपकी रचनाओं को पढ़कर बड़ा हुआ हूं, मैं भी राष्ट्रकवि जी,
बड़ी महान् है धरती सिमरिया की, स्वर्ग से लें कभी हालचाल।
हे राष्ट्र कवि दिनकर जी……
नकारात्मकता को भगाकर, सकारात्मकता लाने में आप निपुण थे,
आप हमेशा पात पात रहे, जब कभी कोई मजबूरी रही डाल डाल।
राज्य सभा में, सारे सांसद, आपकी बातों को गौर से सुनते थे,
आपके परिष्कृत विचारों को कभी, कोई सदस्य नहीं पाते थे टाल।
आसमान का दिनकर तो नित्य, उदय और अस्त होता रहता है,
चमक आपकी सदा बढ़ती है, लगता नभ सरीखा
आपका यश भाल।
हे राष्ट्र कवि दिनकर जी……
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह
रामधारी सिंह दिनकर की रचनाएँ अमर रहेंगी
रामधारी सिंह दिनकर
आधुनिक युग के वीर रस के कवियों में,
उदित हुआ श्रेष्ठ कवि दिनकर के समान।
क्रांति का बिगुल बजाने वाला कभी,
हिंदी साहित्य में रखते थे अग्रणी स्थान।
राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत रचनाएं लिखी,
करे भारतीय उस लेखनी का सम्मान।
देश के प्रति लोगों को जागरूक करती,
कविताएं देश में छेड़ती महासंग्राम।
रामधारी सिंह दिनकर जी एक,
कवि देश भक्त थे विद्वान इंसान।
देशभक्ति पूर्ण रचना लिखने के कारण,
पाया राष्ट्रीय कवि का सम्मान।
बिहार के सिमरिया गांव में,
एक साधारण कृषक था परिवार
23 सितंबर 1960 में जन्म हुआ,
मां मनरूप देवी पिता रवि सिंह थे किसान।
पटना विश्वविद्यालय से B.A. किया,
बंगाली हिंदी मैथिली उर्दू संस्कृत अंग्रेजी का था ज्ञान।
इकबाल, रविंद्र नाथ, मिल्टन से प्रभावित हुए,
बंगाली से हिन्दी में किया टैगोरके लेखो का अनुवाद।
उन दिनों माध्यामिक विद्यालय का पद ग्रहण किया,
1934 में सरकारी विभाग के सब रजिस्ट्रार सुशोभित हुए।
मुजफ्फरपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष हुए,
1952 में आप सभा के सदस्य मनोनीत हुए।
दिनकर जी कई उच्च सम्मानों से सुशोभित हुए,
भागलपुर विश्वविद्यालय से डी.लिट् साहित्य अकादमी भारतीय ज्ञानपीठ साहित्य चूड़ामणि,
राष्ट्रपति के हाथों पद्मविभूषण से सम्मानित हुए।
हिंदी जगत के नील गगन के
सूर्य का प्रकाश मृत्यू तिमिर में खो गया।
24 अप्रैल 1974 को चेन्नई में
दिनकर सदा के लिए अस्त हो गया।
ललिता कश्यप
गांव सायर जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह "दिनकर" जन्म जयन्ती 23 सितंबर विशेष
भाग भाग भाग जनता आई
धुन:फिल्मी गीत:दुनियां बनानें वाले,क्या तेरे मन में समाई)
सिंहासन खाली कर दे,
इस में ही है तेरी भलाई।
आग,आग, आग, जनता लाई।
ले के आग आग आग,
जनता आई।।
रामधारी सिंह 'दिनकर' नें,
सिंघा दहाड़ है लगाई,
अब तू,भाग भाग भाग, जनता आई।
रे गोरे, भाग भाग भाग,
जनता आई।।
●
अंग्रेजी दासता का, तमस घोर छाया।
चाटुकारिता का वैभव, दिग दिगन्त छाया।
आत्मा का मान जैसे,
गिरवी रखा था,
फल स्वराज का, न जानें, कब से चखा था।
रश्मिरथी 'दिनकर' ने तब, याद किया अपना करतब।
कर्णभेद दुन्दुभी बजाई,
भाग भाग भाग, जनता आई।
रे गोरे, भाग भाग भाग, जनता आई।
सिंहासन खाली कर दे........
'रसवंती', 'रेणुका' के संग 'हुंकार' भी।
'कुरुक्षेत्र' संहारक है, मगर पैरोकार भी।
सुना "हाहाकार" फिर भी "परसु की प्रतीक्षा।"
राज्य सभा में हिन्दी के प्रेम की समीक्षा।
कलम का सिपाही बनके,"समर शेष हैं" जीवन के।
कलम-खड्ग से जीती लड़ाई।
दुश्मन, भाग भाग भाग
जनता आई।
●
ज्ञानपीठ, साहित्य अकादमी अलंकरण,
नमन है तुम्हें, हे शारद-सुत पद्मविभूषण।
विद्रोही तेवर तेरे रंग ऐसे लाये,
राष्ट्रप्रेमियों के अंत:करण को जगाये।
आंखों में नीर भरे हम, सागर सा धीर धरे हम।
तेरी जयंती की बधाई।
गोरे, भाग गये ज्योंही,
जनता आई।।
पूर्णत:मौलिक/स्वरचित प्रमाणित/ सर्वाधिकार सुरक्षित
संतोष श्रीवास्तव "विद्यार्थी" मकरोनियां, सागर, मध्यप्रदेश
9435474534
रामधारी सिंह दिनकर : Poem On Ramdhari Singh Dinkar Jayanti
जाये वार ना खाली,वहीं तो वीर होते हैं,
समर्पण, चेतना के वो,गजब तस्वीर होते हैं।
फड़कती हैं भुजाएँ जब,अलग इतिहास रचते हैं,
सच्चे देशवासी के,दिलों पर राज करते हैं।
उठाओ देख लो गाथा, वैसी नौजवानी के,
जिससे काल भी कांपे,भयंकर वो तूफानी के।
लहू के बूंद भी जिनकी, वंदेमातरम् कहती,
धाराएँ देशभक्ति की सदा नस-नस में है बहती।
ले-ले जान दुश्मन की,वो तूणीर होते हैं,
खेले मौत से हरदम,बड़े गंभीर होते हैं।
जाये वार ना खाली,वहीं तो वीर होते हैं,
समर्पण, चेतना के वो,गजब तस्वीर होते हैं।
सजाये स्वप्न आंखों में, दिलों में मुस्कुराते हैं,
सपने मर चुके जिनके,उसे फिर से जगाते हैं।
शोषित, वंचितों को हक ,हमेशा वो दिलाते हैं,
सहे वो स्वयं हीं दुख को,मगर खुशियाँ लुटाते हैं।
मिटी जो भाग्य की रेखा, उसे खुद से बनाते हैं,
मरी संवेदना को भी,नया जीवन दिलाते हैं।
ऐसे महामानवों का सदा गुणगान होता है,
हमेशा खुद से भी प्यारा राष्ट्रसम्मान होता है।
सदा दुश्मन को जो खटके,वो ऐसी पीड़ होते हैं,
मिटाकर खुद की हस्ती को,अमन के बीज बोते हैं।
जाये वार ना खाली, वहीं तो वीर होते हैं,
समर्पण, चेतना के वो,गजब तस्वीर होते हैं।
प्रीतम कुमार झा।
युवा कवि, गीतकार सह शिक्षक
महुआ, वैशाली, बिहार
9525564374
समर्पण, चेतना के वो,गजब तस्वीर होते हैं।
फड़कती हैं भुजाएँ जब,अलग इतिहास रचते हैं,
सच्चे देशवासी के,दिलों पर राज करते हैं।
उठाओ देख लो गाथा, वैसी नौजवानी के,
जिससे काल भी कांपे,भयंकर वो तूफानी के।
लहू के बूंद भी जिनकी, वंदेमातरम् कहती,
धाराएँ देशभक्ति की सदा नस-नस में है बहती।
ले-ले जान दुश्मन की,वो तूणीर होते हैं,
खेले मौत से हरदम,बड़े गंभीर होते हैं।
जाये वार ना खाली,वहीं तो वीर होते हैं,
समर्पण, चेतना के वो,गजब तस्वीर होते हैं।
सजाये स्वप्न आंखों में, दिलों में मुस्कुराते हैं,
सपने मर चुके जिनके,उसे फिर से जगाते हैं।
शोषित, वंचितों को हक ,हमेशा वो दिलाते हैं,
सहे वो स्वयं हीं दुख को,मगर खुशियाँ लुटाते हैं।
मिटी जो भाग्य की रेखा, उसे खुद से बनाते हैं,
मरी संवेदना को भी,नया जीवन दिलाते हैं।
ऐसे महामानवों का सदा गुणगान होता है,
हमेशा खुद से भी प्यारा राष्ट्रसम्मान होता है।
सदा दुश्मन को जो खटके,वो ऐसी पीड़ होते हैं,
मिटाकर खुद की हस्ती को,अमन के बीज बोते हैं।
जाये वार ना खाली, वहीं तो वीर होते हैं,
समर्पण, चेतना के वो,गजब तस्वीर होते हैं।
प्रीतम कुमार झा।
युवा कवि, गीतकार सह शिक्षक
महुआ, वैशाली, बिहार
9525564374
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जयंती पर उनके प्रबंध काव्य रश्मिरथी से श्रद्धांजलि स्वरूप
दो न्याय अगर तो आधा दो,
पर इसमें भी यदि बाधा हो,
तो दे दो केवल पाँच ग्राम,
रखो अपनी धरती तमाम,
हम वही खुशी से खायेंगे,
परिजन पर असि न उठाएगें,
पर दुर्योधन वह भी दे न सका,
आशीष समाज की ले न सका,
जो था असाध्य उसे ही साधने चला,
उल्टा हरि को बाँधने चला...!
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह की साहित्य साधना अपनी उपाधि "दिनकर" को सत्य चरितार्थ करती है ! इनकी कृतियों को एक "साहित्यिक उर्जापुँज" के रूप में देखा जा सकता है ! भाषा की प्राँजलता, इनकी साहित्यिक प्रखरता ही "दिनकर" की तेजस्विनी रविकिरणों की द्योतक है !
अनन्य राष्ट्र भक्ति,अप्रतीम ओज, वीरोचित हुँकार, प्रखर मुद्रा, गरिमामयी अतीत का उद्घाटन, प्रगतिवाद, छायावाद, आर्थिक-सामाजिक विसँगतियो पर तापित किरणों के प्रखर प्रहार ही "दिनकर" की रविकिरणों की विशेषताएं हैं।
राघव
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी की पुण्यतिथि पर
दिनांक : 24 अप्रैल, 2023
दिवा : सोमवार
थी धरा पे जब ज्योति जगाने की,
प्रभु ने रामरूप दूत तब पठाए थे।
राम का रूप धारण करने वाले,
दिनकर रूपी प्रकाश दिखाए थे।।
किए संघर्ष वे तो आजीवन थे,
समाज को दर्पण वे दिखाए थे।
निसंकोच निर्भय प्रहार किए वे,
नवशक्ति का संचार कराए थे।।
कलम की धार थी पैनी उनकी,
तलवारों की धारें भी फींकी थी।
तुझे थे वे कुरीतियों से जमकर,
उनकी कलम धरा पर टिकी थी।।
कोटि नमन है उस राष्ट्रकवि को
सादर श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।
तन मन शक्ति दे मार्ग दिखा दे,
मैं निज को समर्पित करता हूं।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार।
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