भारत पर कविता | Desh Bhakti Kavita
भारत के विकास पर कविता | देशप्रेम पर कविता
भारत में बह रही ज्ञान की गंगा
बड़ा निर्मल लगता है, इसका पानी।
प्राचीन काल से, ये होता आ रहा है,
साथ जुड़ी है साधु संतों की कहानी।
भारत में बह रही है……
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सच निकला है, जो कुछ भी कहा है।
रामायण काल हो या महाभारत युग,
धाराएं इसकी हो सकती नहीं पुरानी।
भारत में बह रही है……
हर ज्ञान का एक इतिहास है अपना,
दुनिया का सदा साकार हुआ सपना।
अनंत काल तक गौरव करता रहेगा,
इस बात पर हर मानव हिन्दुस्तानी।
भारत में बह रही है……
गुरु वशिष्ठ हो या गुरु द्रोणाचार्य जी,
सदा अमिट रहेगी उनकी हर निशानी।
स्वामी विवेकानंद जी का क्या कहना?
सारे जग में पसरी, उनकी मेहरबानी।
भारत में बह रही है……
प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार
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