मगर ये सुब्ह-ए-आज़ादी है मिस्ल-ए-शब: राष्ट्रीय एकता और अखंडता पर शायरी
नयी और विचित्र कविता | क़ौमी एकता पर शायरी
-----------------------------जदीद और तुर्फा-व-उम्दा नज्म
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" आजादी "
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ये आजादी ही तो है!, लोग कहते हैं!
मगर ये " सुब्ह-ए-आजादी " है " मिस्ल-ए-शब"!?
रफीको! ," यौम-ए-आजादी " मनाओगे!
खुशी से हर बरस नाचोगे, गाओगे!!
वतन आजाद है!, आजाद हैं हम लोग!!
तभी तो कहते है : " *****ह को काटो "!?
" *****नों को काटो, हिन्दू जिन्दाबाद " ?!
ये आजादी ही तो है!, लोग कहते हैं!
रफीको!, क्यों सभी नारे लगाते हैं?!
मुसलमानो ने भी आजादी की खातिर
लहू अपना बहाया, बाग को सीचा!
वतन अपना है गुलशन की तरह, यारो!
चमन के फूल हैं अपने मुसलमां भाई!
कि भारत-माता की सन्तान हैं मुसलिम भी!
मुसलमानों में हैं शायर भी, आलिम भी!!
जो " हिन्दुस्तान " पर लिखते हैं तख्लीकात,
मजामीन, और नज्मे भी वो लिखते हैं!!
वतन से इश्क करते हैं ब-हर लम्हा!!
इसी " भारत " की खातिर जीते-मरते हैं!!
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" आजादी राष्ट्रीय एकता दिवस पर शायरी - अनेकता में एकता पर शायरी " शीर्षक पर दीगर शेर-व-सुखन आइंदा फिर कभी पेश किए जायेंगे, इन्शा-अल्लाह!
राष्ट्रीय एकता दिवस पर शायरी - अनेकता में एकता पर शायरी |
डाक्टर रामदास प्रेमी राजकुमार जानी दिलीपकुमार कपूर, द्वारा डॉक्टर इन्सान प्रेमनगरी, डॉक्टर जावेद अशरफ़ कैस फैज अकबराबादी मंजिल, रांची हिल साईड,इमामबाड़ा रोड राँची-834001,झारखण्ड, इन्डिया
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