बाढ़ पर कविता | बाढ़ पर शायरी | आपदा पर शायरी Flood Disaster Shayari
पागल हुई नदी
(कविता)
पागल हुई नदी, डूब गए किनारे,
बेघर हुए लोग, फिरते मारे मारे।
खेत खलिहान की पहचान मिटी,
कल के सुखी लोग लगते बेचारे।
पागल हुई नदी……
जल प्रलय ने कोहराम मचाया है
जिंदगी आज खोज रही है सहारे।
पागलपन नदी का उतरा नहीं है,
सपने बिखर गए हैं प्यारे प्यारे।
पागल हुई नदी……
मद्धिम हो गई, रोशनी जीवन की,
लगता है, डूब गए चमकते सितारे।
क्या करे लोग और जहां जाए अब?
गांव गांव दिख रहे आज थके हारे।
पागल हुई नदी……
बाग बगीचे का भी हाल बुरा हुआ,
हर कोई दिन में ही गिन रहा तारे।
पत्थर भी पिघल जाए शायद कहीं,
देखकर बर्बादी के, ये सारे नजारे।
पागल हुई नदी……
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
नासिक (महाराष्ट्र)/
जयनगर (मधुबनी) बिहार
(कविता)
पागल हुई नदी, डूब गए किनारे,
बेघर हुए लोग, फिरते मारे मारे।
खेत खलिहान की पहचान मिटी,
कल के सुखी लोग लगते बेचारे।
पागल हुई नदी……
जल प्रलय ने कोहराम मचाया है
जिंदगी आज खोज रही है सहारे।
पागलपन नदी का उतरा नहीं है,
सपने बिखर गए हैं प्यारे प्यारे।
पागल हुई नदी……
मद्धिम हो गई, रोशनी जीवन की,
लगता है, डूब गए चमकते सितारे।
क्या करे लोग और जहां जाए अब?
गांव गांव दिख रहे आज थके हारे।
पागल हुई नदी……
बाग बगीचे का भी हाल बुरा हुआ,
हर कोई दिन में ही गिन रहा तारे।
पत्थर भी पिघल जाए शायद कहीं,
देखकर बर्बादी के, ये सारे नजारे।
पागल हुई नदी……
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
नासिक (महाराष्ट्र)/
जयनगर (मधुबनी) बिहार
बाढ़ पर कविता | बाढ़ पर शायरी Flood Disaster Shayari | Poem On Flood Hindi
बाढ़
नदियों का हैं पीठ भरा,धारा फैली हैं चारों ओर।
भारी बारिश करें तबाही,
फसी पड़ी जीवन की ड़ोर।।
गुंजन करती गंगा जमुना,
पानी का दिखता न छोर।
मानव बस्ती डूबी पड़ी हैं,
हाहाकार मचा चहुओर।।
तन मजबूर खुला सोने को,पानी का दिखता न छोर।
मानव बस्ती डूबी पड़ी हैं,
हाहाकार मचा चहुओर।।
रुकती नहीं नयन की लोर।
भ्रष्ट तंत्र नाकाम पड़ी हैं,
कथनी कुछ करनी कुछ और।।
किया कमाई डूब गया सब,
पीर दिलों की हुई घनघोर।
मानव बस्ती डूबी पड़ी हैं,
हाहाकार मचा चहुओर।।
दुखियों को नहीं दिखे आसरा,पीर दिलों की हुई घनघोर।
मानव बस्ती डूबी पड़ी हैं,
हाहाकार मचा चहुओर।।
राजनीति का फैली डोर।
फ़ोटो में सब ब्यस्त पड़े हैं,
लूटखसोट करे हैं चोर।।
पीड़ा में परिवार पड़ा हैं,
भूखे बच्चे करते शोर।।
मानव बस्ती डूबी पड़ी हैं,
हाहाकार मचा चहुओर।।
स्वरचित मौलिक, अप्रकाशित,
सर्वाधिकार सुरक्षित..
चंद्रगुप्त नाथ तिवारी
आरा (भोजपुर) बिहार
भूखे बच्चे करते शोर।।
मानव बस्ती डूबी पड़ी हैं,
हाहाकार मचा चहुओर।।
स्वरचित मौलिक, अप्रकाशित,
सर्वाधिकार सुरक्षित..
चंद्रगुप्त नाथ तिवारी
आरा (भोजपुर) बिहार
बाढ़ फोटो | बाढ़ पर शायरी | आपदा पर शायरी Flood Disaster Shayari Image
कोशी नदी पर और बाढ़ पर शायरी | बाढ़ पर कविता | Poem On Flood Hindi
कोशी
कोशी के बहती धार अब
लोग देख भयभीत है।
प्रकोप अतिदुष्कर बाढ़ के
सब कहो कहाँ मीत है।
फसल बाढ़ है लेकर गई
दी डूबो जन-ख्वाब को।
रसिक रसना कुछ नहीं बचा
छोड़े नहीं जनाब को।
ऊँच जगह की सब खोज में
पानी सबके घर घुसा।
सहायता की है खोज में
पर आस्वासन ही दिखा।
धन्यवाद।
प्रभाकर सिंह
नवगछिया, भागलपुर
बिहार
अभी बाढ़ पानी घुसा गाँव में: बाढ़ पर कविता | बाढ़ पर शायरी Flood Disaster Shayari
गाँव में
अभी बाढ़ पानी घुसा गाँव में
बचूँ कैसे?मुश्किल दिखा गाँव में।
सभी बोलते आशियाना बचे
नदी धारा घातक हुआ गाँव में।
चलो ऊँचे की खोज में रे सभी
कतारें नजर पे चढ़ा गाँव में।
किसे रोक सकते न जाना तुम्हें
निडर कोई अब रे दिखा गाँव में?
सुनो हर जगह से सभी अब चले
परिंदा को भी है सजा गाँव में।
धन्यवाद।
प्रभाकर सिंह
नवगछिया, भागलपुर
बिहार
कविता - बाढ़ में डूबने वालों के ग़म में शायरी
हाले दिल बयां करतीहूँ
लहरों को मुट्ठियों में भरती हूँ
बाढ़ में डूबने वालों के ग़म में
वे इस तरह आंसू बहाते हैं
कि उनकी आंसुओं की बाढ में
भी लोग डूब जाते हैं।
स्वरचित-कविता मोटवानी बिलासपुर छत्तीसगढ़
बाढ़ की विभीषिका पर कविता Poem On Flood In Hindi
बाढ़ पर कविता | बाढ़ पर शायरी | आपदा पर शायरी Flood Disaster Shayari
आई यह कैसी आफत,
करती विनाश चारों ओर।
पानी में डुबते हैं घर,
मंजर फैला है घनघोर।।
माता चली टोकरी में डाले,
है उसका अपना वह लाल।
हो रही महामारी चहुँ देखो,
सभी आज होते कंगाल।।
खाने को दाना पीनी,
नहीं किसी के पास।
पानी से बेहाल हुए सब,
अब बस प्रभु की आस।।
पुष्पा निर्मल
कोशी नदी पर और बाढ़ पर शायरी | बाढ़ पर कविता | Poem On Flood Hindi
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