संत कबीर महान: कबीरदास जी के व्यक्तित्व पर कविता Kabir Das Ji Ki Jayanti Par Kavita
(जयंती पर कोटि कोटि प्रणाम)दुनिया अजीब संत कबीर की,
जहां हर इंसान है एक समान।
दिखे न जाति पांत की दीवार,
एक इंसान है बस एक इंसान।
रखवाला होता सबका ऊपरवाला,
रखता इस जग का वही ध्यान।
दुनिया अजीब…
होता है नहीं कोई भेद यहां पे,
जैसा है निर्धन, वैसा धनवान।
होता यहां व्यवहार से पहचान,
पता नहीं क्यों इतराता इंसान?
राजा हो या रंक कोई, जग में,
विराजत सब में, जान समान।
दुनिया अजीब…
मानव जाति एक, मान न मान,
सारे सर पर नीला एक मकान।
दुःख में सबके मुख में आह है,
खुशी में होठों पर है मुस्कान।
सबके भीतर सदा, बसे गोसाई,
पर किसको इसका कब भान?
दुनिया अजीब…
सबसे अलग हैं इस संसार में,
आदरणीय संत कबीर के ज्ञान।
रहता मतलब साधु का साफ है,
इस जग में हैं सारे ही मेहमान।
घर वहीं मान लो मेरे साथियों,
मिल जाए जहां सोने को स्थान।
दुनिया अजीब…
राम श्याम से कबीर की न वैर,
जो जिसको भाए, मान ले इंसान।
जो सोवत है सो खोवत है प्यारे,
जो जागत सो पवत हर इंसान।
है यह दुनिया एक बाज़ार दिखे,
जहां मिल जाते हैं सारे सामान।
दुनिया अजीब…
लगती नहीं है इस बाज़ार में कहीं,
प्रेम और भाईचारे की कोई दुकान।
घर आदर करे जो साधु संत का,
ऊपरवाला रहता उसी पे मेहरबान।
दुत्कार दे जो घर पधारे संत को,।
इस जहान में, वो कैसा धनवान?
अजीब दुनिया…
हंसत कहत कबीर सुनो भाई साधो,
किसी के आंसू किसी की मुस्कान।
कबीर की तुलना नहीं है किसी से,
इस संत की, है विशेषण पहचान।
संसार किसी का स्थाई घर नहीं है,
नीली छतरी नीचे, सारे हैं मेहमान।
अजीब दुनिया…
संत कबीर महान हिंदी कविता
“संत कबीर महान् संत कबीर महान्”
प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
नासिक (महाराष्ट्र)/
जयनगर (मधुबनी) बिहार
प्रमाणित किया जाता है कि यह रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित है। इसका सर्वाधिकार कवि/कलमकार के पास सुरक्षित है।
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