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निर्गुण भजन, कबीर निर्गुण भजन | सत्संग भजन कीर्तन Nirgun Bhajan Lyrics

निर्गुणी भजन Nirgun Bhajan | Kabir Nirgun Bhajan | Satsang Bhajan Kirtan Lyrics

निर्गुणी सत्संग भजन कीर्तन : तू माटी का है पुतला, माटी में है मिल जाना

हमको भी यारों जाना, तुमको भी यारों जाना
तू माटी का है पुतला, माटी में है मिल जाना

कब किसको यारों जाना, ये कोई ना ठिकाना
हमको भी यारों जाना, तुमको भी यारों जाना

कब किस के कंधे, किसका जनाजा है जाना
ये कोई नहीं जाना, ये कोई नहीं जाना

जब मौत ने पुकारा कुछ भी ना काम आया
मरते हुए कॊ यारों, कोई ना बचा पाया

ये दौलत और अटारी, सब यहीं रह जाना
है खाली हाथ जाना, है खाली हाथ जाना

ये बेटा, बेटी, बीवी, कोई ना साथ जाना
अकेला "निर्दोष" आया, अकेला ही जाना

तू माटी का पुतला, माटी में है मिल जाना
मुठी बांधे आया, हाथ पसारे जाना
निर्दोष लक्ष्य जैन
धनबाद 6201698096


सत्संग भजन भक्ति गीत : जागो रे मन

जागो रे मन, जाग रहा संसार,
भागो रे मन, भाग रहा संसार।
जो सोता है वह खोता है यहां,
जागे हुए का लगता बेड़ा पार।
जागो रे मन ……….
अगर करोगे ईश्वर की भक्ति,
तुमको मिलेगी अद्भुत शक्ति।
तुम हो एक याचक दुनिया में,
प्रभु की कृपा लगती अपरंपार।
जागो रे मन ………….
सुबह उठते ही लो प्रभु नाम,
जीवन में बनते जाएंगे काम।
ठीक रखना आचरण अपना,
होना नहीं, झूठ का शिकार।
जागो रे मन ………..
तुम क्या लेकर आए हो यहां,
खाली हाथ तुम जाओगे वहां।
ब्रह्मा विष्णु महेश सर्वोपरि हैं,
जग पर प्रभु का है अधिकार।
जागो रे मन……….
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार/
नासिक (महाराष्ट्र)

निर्गुण भजन Nirgun Bhajan सम्यक, दर्शन, ज्ञान, चारित्र, सत्य, अहिंसा, धर्म अपना लो

जीना यदि मजबूरी है
जीवन यदि मजबूरी है,
बाते सुनों जरूरी है।
सम्यक, दर्शन, ज्ञान, चारित्र,
ये ही तो भव तारी है।
लोभ, मान, माया, कषाय,
ये ही तो दुखकारी है।
सत्य, अहिंसा, धर्म अपना लो,
मानो बात हमारी है।
जीवन यदि मजबूरी है,
बाते सुनों जरूरी है।
रागद्वेष, अहम को छोड़ों,
पापों से तुम मुँह को मोड़ो।
सद कर्मों में ध्यान लगा लो,
धर्म कॊ जीवन में अपना लो।
धर्म ही बहुत जरूरी है,
इससे केसी दूरी है।
तेरी क्या मजबूरी,
सबसे प्यार जरूरी।
बनो करूणा धारी,
यही तो सुख कारी।
सुनों बात हमारी,
यही बात जरूरी।
निर्दोष लक्ष्य जैन स्वरचित
6291698096


निर्गुण भजन कीर्तन फोटो Nirgun Bhajan Lyrics Image .webp

चुनरिया मैली हो गई निर्गुण भजन Chunariya Maili Ho Gayi Nirgun Bhajan

निर्गुण
चुनरिया हो गई मैली रे
चुनरिया हो गई मैली रे

बाबुल ने, ससुराल जब भेजा
ढेरो दिए उपदेश
नजरियाँ हो गई मैली रे
मै तो, रसो में लिप्त हुई रे
भूल गई संदेश
चुनरिया हो गई मैली रे

उसने संयम बतलाया था
चुन लिया मैंने काम
इस लिये बाबुल की दृष्टि में
हो गई रे बदनाम
डगरिया हो गई मैली रे
चुनरिया हो गई मैली रे

लाज लगे, अब बाबुल घर मैं
लौट के कैसे जाऊँ
पतरिया मैली हो गई रे
चुनरिया मैलीं हो गई रे
दुष्कर्मों से बही भर गई
शबनम क्या दिखलाऊँ
पतरिया मैली हो गई रे
चुनरिया मैली हो गई रे
शबनम मेहरोत्रा


निर्गुण भजन कीर्तन Nirgun Bhajan Kirtan इस दुनियाँ में फैला है रे भ्रमों का एक जाल

निर्गुण
इस दुनियाँ में फैला है रे भ्रमों का एक जाल
पथिक रे बचके रहना रे....
जिसको अपना कहते हो रे कोई नहीं है अपना
आँख खुलेगी तब देखोगे यह था बस एक सपना
दर्द मिलेगा इसमें तुमको अपना रख ख्याल रे,
पथिक रे बच के रहना रे....
आसमान में उड़ने चला है यह है तेरी हिम्मत
लेकिन साथ तुम्हें है जरूरी करे जी संग में मेहनत
कुछ करने से पहले रखना अपना ज़रा ख्याल
पथिक रे बच के रहना रे....
दुनियाँ देखी लोग भी देखे लोग नहीं मगर पहचानी
“शबनम"इतनी भोली है जो झूठ फ़रेब न जानी
सच्चा अगर कोई समने आया रखा नहीं ख्याल
पथिक रे बच के रहना रे....
शबनम मेहरोत्रा
निर्गुण

निर्गुण भजन : निर्गुणी भजन लिरिक्स इन हिंदी Nirgun Bhajan

दुख से मत घबरा रे मनवा सुख दुख की परछाई,
रे मनवा सुख दुख की परछाई ।
सुख तो है क्षणभंगुर पगले,
दुख तो है स्थाई,
रे मनवा दुख तो है स्थाई ।
सुख उपजाए काम, क्रोध
और उपजाए प्रमाद,
लेकिन जब दुख आये
तब ही हरि की आये याद
सुख का कारना पड़ता है रे
फिर दुख से भरपाई,,,
रे मनवा सुख दुख की परछाई
चंचल मन तो सुख को
खोजे सुख खोजे नए
नए व्यसन।
दुख से मत घबरा रे मनवा सुख दुख की परछाई
दुख से कष्ट बहुत है लेकिन
देता है हरि का दर्शन
गुणी जन केवल जान सके है
सुख दुख की गहराई,,रे मनवा
सुख दुख की परछाई।
शबरी, तुलसी में"शबनम"
न थी कोई पहचान।
लेकिन दोनों जब भी
बुलाती आते थे भगवान।
साफ जरा तुम करके रखो तुम
मनवा की अंगनाई,,,रे मनवा
सुख दुख की परछाई।
शबनम मरहोत्रा

निराकार निर्गुण भजन प्रभुजी कैसे आऊँ तेरे द्वार

।। निर्गुण भजन Nirgun Bhajan।।
प्रभुजी कैसे आऊँ तेरे द्वार, प्रभुजी कैसे आऊँ तेरे द्वार
भय और लाज से झुकी है अंखियाँ ले अंसूवन की धार
प्रभुजी कैसे आऊँ तेरे द्वार....

जीवन दर्शन समझ सका न खोया धर्म विवेक।
भोग को मैंने सत्य समझ कर पाप किया अतिरेक।
महाकाल है खड़ा हमें लेजाने को तैयार
प्रभुजी कैसे आऊँ तेरे द्वार....

बुरे कर्म से जुड़े है तीनों लोभ, भोग और रोग
सद कर्मो से जुड़े है लेकिन दया, भजन और योग
तथ्य ये हमने अब जाना जब उम्र हो गई पार
प्रभुजी कैसे आऊँ तेरे द्वार....

तुमने जीवन दान दिया है, क्यों दोगे अभिशाप
अपनी करनी से हमने खुद लिया है दुख संताप
है त्राता है जीवन दाता कर मेरा उद्धार
प्रभुजी कैसे आऊँ तेरे द्वार....
कैसे आऊं तेरे द्वार??
मेरे प्रभु कैसे पाऊं ज्ञान
प्रभुजी कैसे आऊँ तेरे द्वार....
शबनम महरोत्रा

निर्गुण भजन लिखित में : रे मनवा खुद को तू पहचान रे
निर्गुण

रे मनवा खुद को तू पहचान रे,
मनवा खुद को तू पहचान रे
जीवन डोर कोई थामे है,
उड़ जाएगा प्राण रे मनवा
रे मनवा खुद को तू पहचान रे....
एक एक तिनका जमा तू करके
दो महले बनवाये
कितने दिन तू रह पायेगा कौन
तुम्हें बतलाये
आज या कल में जाना होगा तुमको तो श्मशान रे
रे मनवा खुद को तू पहचान रे....
खुद को तू पहचान।
पाप कर्म को करते करते धर्म
कार्य भी छुटा
उस दिन बोलो कहा छुपेगा
पाप घड़ा जब फूटा
खुद तुम देख रहा है प्रमाण रे,
रे मनवा खुद को तू पहचान रे....
खुद की तू पहचान

अगर करेगा हरि का कीर्तन
और सदजन का साथ
हो सजता है अंत घड़ी में
हरि बढ़ा दी हाथ
तो "शबनम"हो जाये रे कल्याण रे
मनवा खुद को तू पहचान
जीवन डोर कोई थामे है उड़ जाएगा प्राण ले
रे मनवा खुद को तू पहचान रे....
शबनम महरोत्रा

दोहा : मीठी वाणी बोल के, करे जोग जप ध्यान

दोहा
मीठी वाणी बोल के, करे जोग जप ध्यान।
छल छद्मों में लीन मन, देख रहे भगवान।।
रे नादां देख रहे भगवान।

करे दिखावा धरम की, बेच रहे ईमान।
मन से अधम दरिद्र हैं, वो कैसा धनवान।।
रे नादां वो कैसा धनवान।

करनी धरनी देख के, बाप करे बिषपान।
पापी तेरे पाप से, मिटे वंश खानदान।।
रे नादां मिटे वंश खानदान।

साधो सकल जहान में, दौलत भारी रोग।
जो धन जैसे आत हैं, करे दान या भोग।।
रे नादां करे दान या भोग।।

जैसी जिसकी सर्जना, वैसे वो गतिमान।
धूर्त चतूर बेइमान की, होय नाश ये मान।।
रे नादां होय नाश ये मान ।

धोखा देहू न साधु को, रे कपटी मतिमंद।
ईश्वर बैठा देख रहा, होगा उससे द्वंद।।
रे नादां होगा उससे द्वंद।

मन ये निर्मल राखिये,कहे उदय कविराय।
नादां ऐसा कर चलो, पड़े न फिर पछताय।।
रे नादां पड़े न फिर पछताय।
उदय शंकर चौधरी नादान
कोलहंटा पटोरी दरभंगा
9934775009

निर्गुण भजन लिखित में : माटी का तन बनाया तूने माटी में मिल जायेगा

कुम्हार और मिट्टी
ये बंगला अजब बनाया।
जिसमें नारायण बैठाया।
माटी की है कंचन काया।
माटी का जग सारा
माटी का तूने रचा खिलोना।
जिसका रूप सलोना।
एक हाथ में दे दिया रे तूने
पावन तेरा सहारा होकर
तेरा दास आज भवसागर
पार उतरना।
माटी का तन बनाया तूने
माटी में मिल जायेगा।
मलमल करतू खूब नहाया
कंचन करली काया।
माटी ओढ़न
माटी बिछावन
माटी बना सिरहाना।
एक दिन ऐसा आयेगा
जब माटी ही बन
आज नहीं तो कल
सबको को है जाना।
माटी का बनाया दीपक
सांसों की दे बाती
घट गया तेल
निकश गई बाती
जाय शमशान में सोना।
कहे पुष्पा पुकार,
कुम्हार मिट्टी का यह संसार सलोना।।
पुष्पा निर्मल Pushpa Nirmal


परम परमात्मा सर्वव्यापक परम रूप

मिश्री के कनकन में मिठास है जैसे
नमक के हर कन में खारापन है जैसे
बस ऐसा ही समझिए परमात्मा को
कण-कण में ही समाया परम रूप है ऐसे
कण-कण ही परमात्मा है जैसे

तुम ही तुम हो तुम ही तुम
तुमसे अलग नहीं कुछ हम
धरती तुम हो अम्बर तुम
दिग्दिगंत में तुम ही तुम
पाहन पत्थर तुम ही तुम
गुफा कंदरा तुम ही तुम
स्वर्णिम आभा सूरज हो तुम
धवल चांदनी चंदा तुम
अनन्त अनन्त अनन्त हो तुम
आंनद आंनद आंनद हो तुम
अनिवर्णीय, अनिवर्चनीय हो तुम
अतुलनीय, अनमोल हो तुम
सखी क्या लिक्खे,
सखी का क्या सोचे
सखी भी तुम हो सखी में तुम
तुम ही तुम हो तुम ही तुम
तुमसे अलग नहीं कुछ हम
सुमित्रा गुप्ता सखी


जोगी तेरे द्वार खड़ा है, मांग रहा है भीख

द्वार
जोगी तेरे द्वार खड़ा है, मांग रहा है भीख
खाली हाथ न लौटे देखो, सतगुरु की ये सीख

शरण माँगता कोई तुमसे, उसको मत ठुकराओ
कष्ट थोड़ा उसको पूछो, पास अपने बैठाओ

राही कोई भटक गया है, आया है तेरे द्वार
आदर दो उसको पूरा, करो उसका सत्कार

भूखा न लौटे कोई द्वार से, बात पते की सुन लो
रोटी देना बाद पुण्य है, मन में अपने बुन लो

आया कोई संकट तुम पर, पहुचों ठाकुर द्वार
कष्ट अपना उनको कह दो, बेडा होगा पार

द्वार न अपना छोटा रखना, कोई घुस न पाए
बड़ा द्वार भी मत रखना तुम, छोटा जो शरमाए

द्वार पर अपने फूल रखना, सबका हो अभिनन्दन
कभी न कोई भेद करना, सबको मिले अब चन्दन

चोरो की बस्ती में जो हो, द्वार खुले मत रखना
धन-दौलत सोना चाँदी, सदा छुपा कर रखना

ईश्वर की कृपा तुम पर, द्वार खुले तुम रखना
दान-पुण्य करते रहना, अहम कभी मत करना
श्याम मठपाल, उदयपुर


जन्म मरण का हिसाब

ना कॉपी ना पेंसिल बड़ूवे, नाहीं कलम किताब।
तबो एक एक पल के बाबू, रखलें तोहर हिसाब।।
*
उहाँ घुस ना रिश्वत चले, ना चुगली, दालाली।
सुनलऽ नैतिक काम के उहावाँ,जोर चलेला खाली।।
*
खाली सत् के बात करेलें, चित्रगुप्त के दूत।
उहावाँ बोलऽ का भरमइबऽ, लागी कवन लूत।।
*
चापलूसी, चालबाजी में तू, सारा उमर गँवइलऽ।
झूठ फरेब के जाल बिछा के, सबका के भरमइलऽ।।
*
उहाँ चली ना सोर्स पैरवी, ना हो पाई बेल।
बड़ा कठिन आ कर्कस बड़ूवे, चित्रगुप्त के जेल।।
*
कइसे होई बचाव उहाँ पर, इ अबहीँ से गुनऽ।
जिये खातिर नेक अउर, नैतिक रहिया के चूनऽ।।
*
चार दिन के कष्ट के बदले, मिली सुघर समाज।
माथे तोहरा खुद बँध जाई, चमचम चमकत ताज।।
*
सुन बिजेन्दर अभियो से तू, आपन रहन सुधारऽ।
नेक काम में नेह लगा के, बस हरि नाम उचारऽ।।
*
कहस बिजेन्दर मिहनत करके, आपन रोटी जोड़ऽ।
घूस, दलाली अउर ठगी के, अटपट रहिया छोड़ऽ।।
*
बिजेन्द्र कुमार तिवारी
बिजेन्दर बाबू
गैरतपुर, माँझी
सारण, बिहार
7250299200


निर्गुण निराकार भजन Nirgun Bhajan Lyrics

जै श्री हरि
*
एक अभागन है चली, निज पीहर की ओर।
मन माया में है रमी, उलझन की है शोर।।
*
निर्बल और निस्तेज है, मन भी लगे मलीन।
कोउ सहारा है नहीं, हालत है अति दीन।
*
दया धर्म समझे नहीं, ना बूझे सम्मान।
जीवन में कभी ना किया, प्रेम भक्ति का दान।।
*
प्रेम बड़ा अनमोल है, ईश्वर का उपहार।
करे समर्पण जो उन्हें, उसका बेड़ा पार।।
*
सब जीवों में है बसा, ईश्वर का सत् रूप।
देखो प्यारे प्रेम से, उसकी छवि अनूप।।
*
सबका मालिक है वहीं, वो ही सच्चा यार।
जो उससे यारी करे, उसका बेड़ा पार।।
*
दया धरम जो ना करे, ना सेवा सम्मान।
वो मानव संसार में, बनता नहीं महान।।
*
सुनो बिजेंदर जो करे, सबसे सत् व्यवहार।
उसका बेड़ा आप हीं, करते हैं हरि पार।।
*
बिजेन्द्र कुमार तिवारी
बिजेन्दर बाबू
7250299200
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