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निराकार निर्गुण भजन Nirgun Nirakar Kabir Bhajan निर्गुण निराकार एकतारी भजन

निर्गुण निराकार एकतारी भजन Nirgun Nirakar Kabir Bhajan

जै श्री हरि
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निराकार निर्गुण प्रिये, ईश्वर का है रूप।
भक्तों की इच्छा बदे, लिन्हीं सगुण स्वरूप।
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मनु सत्रुपा की इच्छा पर, आये बनके राम।
संतन का उद्धार किये प्रभु, पुनः गये निज धाम।।
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बासुदेव देवकी ने मिल जब, बहु बिधि करि गुहार।
उनके आस पुरावन को प्रभु, लिए कृष्ण अवतार।।
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भीड़ पड़े जब भक्तन पर, बढ़े अधम अभिमानी
पाप बाढ़ सम बढ़े धरा पर, होय धर्म की हानी
तब सत् रूप बनाय के, लेते हैं अवतार
दमन अधम का करके करते, भक्तों का उद्धार।।
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तुम भी ध्यान करो रे मुरख, निराकार हरि रूप।
उसकी भक्ति में शक्ति है, अद्भुत दिव्य अनूप।।
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सुन बिजेन्द्र चल शरण हरि के, सदा लगाओ ध्यान।
आत्म शक्ति बल बढ़े सदा, हो दुनिया में सम्मान।।
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अनूपम छवि अनमोल है, नित्य निहारो भाय।
जा पर कृपा बनी सुनो, भव सागर तर जाय।।
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बिजेन्द्र कुमार तिवारी
बिजेन्दर बाबू
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