Ticker

6/recent/ticker-posts

गुरु नानक देव जी Guru Nanak Dev Ji गुरु नानक देव जीवनी निबंध

गुरु नानक देव जी कौन हैं पढ़िए गुरु नानक जी का संपूर्ण जीवन परिचय

गुरुनानक देव जीवन परिचय Guru Nanak Dev Ji Biography

आज 30 नवंबर 2021 सिख धर्म के संस्थापक एवं प्रथम गुरु नानक देव जी की 5512वीं जयंती तथा गुरु परब है। नानक देव जी ने सिख धर्म में हिन्दू तथा इस्लाम दोनों की अच्छाइयों का समावेश कर के सिख धर्म का निर्माण किया। सिखों के प्रथम गुरु गुरू नानक देव जी को इनके अनुयायी एवं सिख धर्म के मानने वाले कई नामों से पुकारा करते हैं जैसे— गुरु नानक, बाबा नानक, गुरु नानक देव जी और नानकशाह। लद्दाख तथा तिब्बती क्षेत्रों में श्री नानक देव जी को, नानक लामा के नाम से भी जाना जाता है। गुरु नानक अपने व्यक्तित्व में योगी, गृहस्थ, दार्शनिक, समाजसुधारक, धर्मसुधारक, एक प्रसिद्ध कवि, देशभक्त और विश्वामित्र सभी प्रकार के गुणों को समेटे हुए थे। हालांकि सिख धर्म हिन्दू तथा इस्लाम का संकलन मात्र नहीं है बल्कि इसकी अलग ही विशेषताएं हैं। गुरु नानक एक मौलिक आध्यात्मिक विचारक, धर्मगुरु एवं दार्शनिक थे। इन्होंने अपने विचारों को विशेष कविताई शैली में वास्तविकता, और मौलिकता के साथ प्रस्तुत किया है। यही विशेष शैली सिखों के प्रथम धर्मग्रंथ गुरुग्रंथ साहिब की भी है। गुरु नानकदेव जी के जीवन के बारे में अभी भी कुछ लोगों को बहुत कुछ पता नहीं है अतः इनके बारे में और अधिक प्रचार प्रसार की आवश्यकता है। हालांकि सिख परंपराओं तथा जन्म सखियों में उनके बारे बहुत सी जानकारियों का खजाना हैं। गुरु नानक देव जी के महत्वपूर्ण उपदेश भी हम तक जन्म सखियों के द्वारा ही पहुंचे हैं। चलिए गुरु नानक देव जी की जयंती के पावन अवसर पर हम जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी संपूर्ण जानकारियों के बारे में।

गुरु नानक देव जी पर निबंध हिंदी में Essay on Guru Nanak Dev Ji In Hindi

गुरु नानक देव जी का जन्म Guru Nanak Dev Ji Birthday

गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1469 को लाहौर से 64 किलोमीटर दूर कार्तिक पूर्णिमा (वैशाख सुदी 3, संवत्‌ 1526 विक्रमी) के रावी नदी के किनारे तलवंडी नाम के रायभोय नाम के स्थान पर हुआ था। उसी तलवंडी का नाम ननकाना साहब पड़ा यह जगह अब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में है। कुछ विद्वान लोग गुरु नानक की जन्मतिथि 15 अप्रैल, 1469 को ही मानते हैं। लेकिन पहले से प्रचलित तिथि कार्तिक पूर्णिमा ही है, जो कि अक्टूबर और नवंबर के बीच में दीपावली के 15 दिन पश्चात पड़ती है। सिख परंपराओं में यह बताया गया है कि नानक के जन्म और शुरुआती वर्ष कई अर्थों में विशेष रहे हैं। यह भी कहा जाता है कि ईश्वर ने बालक नानक को कुछ विशेष कार्य करने के लिए प्रेरित किया था। वैसे तो बालक नानक का जन्म एक हिन्दू परिवार में, एक खत्रीकुल में हुआ था। हुआ था परन्तु उन्होंने शीघ्र ही इस्लाम तथा विस्तृत रूप से हिन्दू धर्म का अध्ययन करना प्रारंभ कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि नानक देव जी में बचपन में ही एक अच्छे कवि तथा दार्शनिक की अद्भुत क्षमता आ गई।

गुरु नानक देव जी के माता-पिता और बहन का नाम क्या था

गुरु नानक देव जी के पिता का नाम श्री कल्यानचंद उर्फ मेहता कालू जी और गुरु नानक जी की माँता का शुभ नाम तृप्ता देवी था। श्री नानक देव जी की बहन का नाम नानकी था। गुरु नानक देव जी की धर्मपत्नी का नाम सुलक्षणा देवी था।

गुरु नानक देव जी का बचपन

बचपन से ही नानक सांसारिक विषयों से प्रायः उदासीन रहने लगे थे। पढ़ाई लिखाई में इनका मन नहीं लगता था। सात आठ वर्ष की आयु में विद्यालय जाना छूट गया इसलिए कि भगवत्प्रापति के संबंध में नानक के अधिकांशतः प्रश्नों के उत्तर देने में विद्यालय के शिक्षकों ने गुरु नानक से अपनी पराजय स्वीकार कर ली और वे सब नानक देव जी को सम्मानित करते हुए घर तक छोड़ने आ गए। इस ऐतिहासिक घटना के बाद नानक अपना सारा समय आध्यात्मिक चिंतन और सत्संग में बिताने लगे। गुरु नानक के बचपन के समय में कई चमत्कारिक घटनाएं भी घटित हुई थीं जिन्हें देखकर गाँव के लोग नानक देव जी को दिव्य व्यक्तित्व मानने लगे।
गुरु नानक के संबंध में एक बहुत प्रसिद्ध कहानी भी है कि वह मात्र 11 वर्ष की आयु में ही विद्रोही हो गए थे। इस आयु में हिन्दू लड़के पवित्र जनेऊ पहना करते हैं परन्तु गुरु नानक ने इसे पहनने से साफ तौर पर इनकार कर दिया था। और इन्होंने कहा था कि लोगों को जनेऊ पहनने की जगह अपने व्यक्तिगत गुणों में वृद्धि करनी चाहिए। गुरु नानक देव जी का यह विद्रोही आध्यात्मिक स्वभाव दिनों दिन बढ़ता ही गया। उन्होंने स्थानीय साधुओं तथा मौलवियों पर तीखे प्रश्न करना शुरू किया। वह समान रूप से हिन्दू तथा मुसलमानों के पाखंड और अंधविश्वासों पर प्रश्न करने लगे। नानक का बल आंतरिक परिवर्तन पर था। उन्हें बाहरी दिखावा तनिक भी पसंद नहीं था। गुरु नानक देव जी ने कुछ दिनों के लिए मुंशी के तौर पर भी कार्य किया था परन्तु कम आयु में ही स्वयं को आध्यात्मिक विषयों के अध्ययन में व्यस्त कर लिया। गुरु नानक जी के बचपन से ही इनके प्रति श्रद्धा रखने वालों में बहन नानकी और गाँव के जमींदार, राय बुलार प्रमुख रूप से शामिल थे। अपने बचपन के दिनों में श्री गुरु नानक जी नें कई प्रादेशिक भाषाएँ सिख लिए थे। जैसे— उर्दू, फारसी, पंजाबी और अरबी। नानक जी आध्यात्मिक अनुभव से बहुत प्रभावित थे तथा वह प्रकृति में ही ईश्वर की खोज करते थे। नानक देव जी बचपन ही से धीर-गंभीर स्वभाव के होने लगे थे। उन्होंने बाल्यकाल ही से रूढ़िवादी सोच का विरोध करना शुरू कर दिया था। एक बार उनके पिता श्री कल्यानचंद उर्फ मेहता कालू जी ने जब नानक देव जी को 20 रुपये देकर बाजार भेजा तथा कहा कि एकदम खरा सौदा लेकर ही आना तब गुरु देव उन रुपयों से भूखे और लाचार साधुओं को भोजन करवा कर घर लौट आएं। लौटकर उन्होंने अपने पिता जी से बोला कि वे खरा सौदा ले कर आए हैं। गुरु नानक देव जी के पिता ने उन्हें व्यापार तथ कृषि, जैसे कार्यों में लगाना चाहा था परन्तु ऐसा हो न सका घोड़े के व्यापार के लिए दिये हुए रुपयों को गुरु नानक ने साधुओं की सेवा में लगा दिया तथा अपने पिताजी से कहा कि यही तो सच्चा व्यापार है। नवम्बर 1504 में उनकी बड़ी बहिन नानकी के पति श्री जयराम ने गुरु नानक को अपने साथ सुल्तानपुर बुलाया। सन् ई 1504 में नवम्बर से अक्टूबर 1507 ई. तक गुरु नानक देव जी सुल्तानपुर में ही रुके। बहनोई श्री जयराम की सहायता से वे सुल्तानपुर के गवर्नर ( Governor ) दौलत ख़ाँ के पास मादी रख लिये गये। दौलत खान लोधी सुल्तानपुर में मुसलमानों का शासक था। इसी दौरान गुरु नानक की भेंट मिरासी नाम के एक मुस्लिम शायर से हुई। उन्होंने अपना काम बहुत ईमानदारी से किया तथा वहाँ की जनता और वहाँ के शासक दौलत ख़ाँ भी गुरु नानक देव के काम से अत्यधिक प्रसन्न एवं सन्तुष्ट हुए। गुरु जी अपनी आमदनी का ज्यादातर हिस्सा ग़रीबों तथा साधुओं को दे दिया करते थे। कभी-कभी तो वह पूरी रात परमात्मा के भजन ही में गुज़ार देते थे। मरदाना तलवण्डी से वापस आकर यहीं गुरु नानक देव का सेवक बन गया तथा अंतिम समय तक साथ रहा। गुरु नानक अपने पद गाते थे तथा मरदाना रवाब बजाते थे। गुरु नानक हर सुबह बेई नदी में स्नान करने जाते थे।

गुरु नानक देव जी का विवाह

गुरु नानक देव जी के विवाह के वर्ष एवं तिथि को लेकर अलग अलग जगहों पर अलग अलग राय मिलती है कहीं इनके विवाह की तिथि सन 1485 ई. तो कहीं सन् 1487, 1496 में बताई गई है। गुरु नानक देव जी का विवाह बटाला निवासी श्री मूला जी की बेटी से हुआ था। जिसका नाम सुलक्षिनी ( सुलक्खनी ) था। गुरु नानक देव जी के वैवाहिक जीवन के बारे में जानकारी बहुत कम है। उनके दो पुत्र भी हुए एक वर्ष 1491 में और दूसरा 1496 में हुआ। 28 साल की आयु में उनके ज्येष्ठ पुत्र श्रीचन्द का जन्म हुआ और 31 साल की आयु में उनके छोटे पुत्र लक्ष्मीदास या लक्ष्मीचन्द जी का जन्म हुआ था।

गुरु नानक देव जी ने की निस्वार्थ सेवा

राय बुल्लर ने सर्वप्रथम गुरु नानक देव जी ( Guru Nanak ) की दिव्यत्व को समझा तथा उनसे प्रसन्न होकर गुरु नानक को अपने पाठशाला में रखा। गुरु नानक के गुरु उनकी विशेष आध्यात्मिक काव्य रचनाओं को सुनकर अत्यधिक प्रसन्न तथा आश्चर्यचकित हुए।

गुरु नानक देव का स्वभाव और एक विशेष घटनाक्रम

जब गुरु नानक देव को हिन्दू धर्म के पवित्र जनेऊ समारोह में शामिल होने की बारी आयी तब उन्होंने उसमें भाग लेने से ही मना कर दिया औ कहा कि उनका जनेऊ दया, संयम ,संतोष, से बंधा तथा सत्य का बुना हुआ होगा जो ना कभी जल सकेगा ना ही मिटटी में मिल कर नष्ट हो सकेगा ना कभी खो पायेगा तथा ना घिसेगा। नानक ने इसके पश्चात जाति प्रथा का कठोरता से विरोध करना शुरू कर दिया और मूर्ति पूजा में भी भाग लेने से मना करने लगे।

गुरु नानक देव जी का धर्म दर्शन

गुरु नानक जी ने अपने धार्मिक उद्देश्य का आरंभ सर्वप्रथम मरदाना नाम के अपने अनुयाई के साथ मिलकर के किया। अपने इस सन्देश के साथ साथ उन्होंने कमज़ोर और दुःख दर्द से पीड़ित व्यक्तियों की सहायता करने के लिए बहुत प्रचार-प्रसार किया। साथ ही उन्होंने मूर्ति पूजा, जाती भेद भाव, छुआ छूत और झूठे धार्मिक अंध विश्वासों के विरुद्ध प्रचार करना आरंभ कर दिया। उन्होंने अपने सिद्धांतो तथ नियमों के प्रचार के लिए अपने घर तक का त्याग कर दिया और एक सन्यासी के रूप में जीवन बिताने लगे। उन्होंने हिन्दू तथा मुस्लमान दोनों ही धर्मों के विचारों को एक साथ मिलाकर एक नए शुद्ध धर्म की स्थापना की जो बाद में सिख धर्म के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

गुरु पर्व 2021 पर निबंध हिंदी में | Friday, 19 November 2021 Guru Nanak Gurpurab in Hindi

गुरु नानक देव जी का कहना था कि चिंतन के द्वारा ही आध्यात्म के पथ पर आगे बढ़ा जा सकता है। उनका मानना था कि अपनी जीवनशैली के द्वारा ही हर आदमी अपने भीतर ईश्वर को देख तथा प्राप्त कर सकता है। नानक देव जी ने सिख धर्म की स्थापना की थी। वह सिखों के प्रथम गुरू भी हैं। वह अंधविश्वास तथा आडंबरों के बहुत बड़े विरोधी थे। नानक देव जी एक महान दार्शनिक, कवि, समाज सुधारक, योगी, गृहस्थ, और देशभक्त भी थे। नानक जी जात-पात के भेद भाव के खिलाफ थे। उन्होंने समाज से इस बुराई को समाप्त करने हेतु लंगर की व्यवस्था की। ताकि इसमें छोटे-बड़े, अमीर-गरीब, और सभी जाति के लोग एक साथ बैठकर भाईचारे के साथ भोजन कर सके। श्री नानक देव जी ने 'निर्गुण उपासना' का प्रचार प्रसार किया। वह मूर्ति पूजा के विरोधी थे। गुरु नानक देव जी का मानना था कि ईश्वर एक है तथा वही सर्वशक्तिमान भी है और वही सत्य भी है। गुरु नानक देव जी का देहावसान करतारपुर में 1539 में हुआ था। स्वर्गगमन से पहले उन्होंने बाबा लहना को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। वे गुरू अंगददेव के नाम से प्रसिद्ध हैं।

गुरु नानक देव जी की धार्मिक यात्राएं

नानक देव जी ने भारत, अरब और तिब्बत से अपनी आध्यात्मिक यात्रा को आरंभ किया तथा यह यात्रा 30 वर्षों तक निरंतर चलती रही। नानक देव जी ने समाज को जागरूक करने हेतु बहुत सी यात्राएं की। उन्होंने अयोध्या, हरिद्वार, प्रयाग, गया, काशी, पटना, असम, बीकानेर, पुष्कर तीर्थ, पानीपत, दिल्ली, कुरुक्षेत्र, जगन्नाथपुरी, रामेश्वर, सोमनाथ, नर्मदातट, मुल्तान, द्वारका, लाहौर आदि स्थानों का भ्रमण किया। इस दौरान गुरु नानकदेव ने अत्यधिक अध्ययन किया और पढ़े लिखे बुद्धिजीवी लोगों से धार्मिक मुद्दों पर चर्चाएं भी की। इसी क्रम में गुरु नानक देव जी ने सिख धर्म के विचारों को आकार दिया और उत्कृष्ट जीवन के लिए आध्यात्म को स्थापित भी किया। गुरु नानक जी ने जीवन के अंतिम दिन पंजाब के करतारपुर में बिताए। यहीं पर उन्होंने अपने आदर्शों, मूल्यों तथा उपदेशों से असंख्य अनुयायियों को आकर्षित किया। गुरु नानक देव जी का सबसे महत्वपूर्ण संदेश था कि ईश्वर एक है तथा हर आदमी ईश्वर तक सीधे पहुंच सकता है। ईश्वर को प्राप्त करने हेतु कोई रिवाज़ तथा पुजारी या मौलवी की आवश्यकता नहीं है‌। गुरु नानक जी ने सबसे क्रांतिकारी सुधार जाति व्यवस्था को समाप्त कर किया‌ उन्होंने इस बात को प्रमुखता से स्थापित किया कि हर इंसान एक है भले ही वह किसी भी जाति अथवा लिंग का हो‌।
धार्मिक सद्भावना को स्थापित करने के लिए उन्होंने देशभर के महत्वपूर्ण तीर्थों की यात्रायें की तथा सभी धर्मों के लोगों को अपना शिष्य भी बनाया। उन्होंने हिन्दू धर्म तथा इस्लाम दोनों की मूल और सर्वोत्तम ज्ञान तथा शिक्षाओं को सम्मिश्रित करके एक नए और परिष्कृत धर्म की स्थापना की जिसके मुल आधार थे प्रेम तथा समानता। बाद में चलकर यही सिख धर्म कहलाया और हर जगह छा गया। भारत में अपने ज्ञान का प्रकाश दिखाने के पश्चात उन्होंने मक्का मदीना की यात्रा भी की तथा वहाँ के बाशिंदे भी उनसे बहुत ज्यादा प्रभावित हुए। लगातार 25 वर्षों तक भ्रमण के बाद नानकदेव जी कर्तारपुर में बस गये तथा वहीं रहकर धर्म उपदेश देने में लग गएं। गुरु नानक देव जी की वाणी आज भी ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में लिखी हुई है।
जिन-जिन स्थानों पर गुरु नानक देव जी ने भ्रमण किया था वहां आज तीर्थ स्थल बन चुका है। अंततः 1539 में ‘जपूजी’ का पाठ करते हुए गुरु नानक देव जी का स्वर्ग प्रयाण हुआ।

गुरु नानक देव जी की मक्का यात्रा | गुरु नानक पहुंचे हज़ करने

एक बार की बात है कि गुरु नानक देव जी ने सऊदी अरब में अवस्थित, मुस्लिम धर्म के पवित्र धर्म स्थल मक्का मदीना की यात्रा की और मक्का में इस्लाम धर्म के मानने वालों मुसलमानों को बड़ी धार्मिक शिक्षा भी दी।
गुरु नानक देव ने अपने प्रिय शिष्य भक्त मरदाना के साथ लगभग 28 सालों तक पैदल यात्रा करते हुए दो उपमहाद्वीपों में पांच प्रमुख यात्राएं की। इस समय को उदासी कहा जाता है। इस 28 हजार किलोमीटर की यात्राओं में गुरु नानक देव जी ने लगभग 60 प्रमुख शहरों का भ्रमण किया। इसी दौरान चौथी उदासी में गुरु नानकदेव जी ने सऊदी अरब के मक्का शहर की यात्रा की। वहां पहुंच कर गुरु नानक हाज़ी का रुप धारण कर लिया और मरदाना के साथ मक्का शहर में प्रवेश कर गए। गुरु नानक की यह मक्का यात्रा बहुत सारे हिंदू, जैनी, बौद्ध, क्रिश्चियन धर्मों के तीर्थस्थलों की यात्रा करने के पश्चात थी।
गुरु नानक की इस मक्का यात्रा के संबंध में सभी ग्रन्थों और ऐतिहासिक किताबों में लिखा मिलता है। 'बाबा नानक शाह फकीर' में हाजी ताजुद्दीन नक्शबन्दी ने इस घटनाक्रम के बारे में लिखा है कि गुरु नानक से हज यात्रा के दौरान उसकी मुलाकात ईरान में हुई थी। जैन-उल-आबदीन की लिखी किताब 'तारीख अरब ख्वाजा' में भी गुरु नानक की मक्का यात्रा के संबंध में विस्तारपूर्वक जानकारी दी गई है।
जैन-उल-आबदीन ने नानक तथा रुकनुद्दीन के बीच वार्तालाप का भी उल्लेख इस पुस्तक में किया है। हिस्ट्री ऑफ पंजाब, हिस्ट्री ऑफ सिख, वारभाई गुरदास और सौ साखी तथा जन्मसाखी में भी नानक की मक्का यात्रा का विवरण प्रस्तुत किया गया है।

गुरु नानक मक्का मदीना की तरफ पैर करके लेट गए

गुरु नानकदेव के शिष्य मरदाना, मुस्लिम था। इसलिए उसने इच्छा प्रकट की कि उसे मक्का जाना है इसलिए कि ऐसी धार्मिक मान्यता है कि जब तक एक मुसलमान मक्का नहीं जाता है तब तक वह सच्चा मुसलमान नहीं हो सकता।
जैसे ही गुरु नानक ने यह बात सुनी वह फौरन मरदाना को साथ लेकर मक्का के लिए रवाना हो गए। गुरु नानक देव मक्का पहुंचे तो वह बहुत थक गए थे। वहां हाजियों के लिए एक विश्रामालय बनाया गया था। गुरु नानक देव जी पवित्र मक्का की ओर पैर करके लेट गए। हाजियों की सेवा करने में लगा हुआ एक व्यक्ति जिसका नाम जियोन था। उसने यह सब देखा तो वह गुस्सा से पागल हो गया और गुरू नानक देव को गुस्से में बोला- क्या तुमको दिखता नहीं है, बिल्कुल अंधे हो कि मक्का मदीना की तरफ पैर करके लेट गए हो।
तब गुरु नानक देव ने जवाब दिया कि वह अधिक थके हुए हैं और आराम करना चाहते हैं‌। नानक ने जियोन से कहा कि जिस तरफ खुदा न हो उसी तरफ मेरे पैर कर दो! तब जियोन को गुरू नानकदेव की बात समझ में आ गई कि खुदा सिर्फ एक दिशा में नहीं बल्कि हर दिशा में है। इसके बाद जियोन को गुरु नानक ने समझाया कि अच्छे कर्म करो और खुदा को याद करो, यही सच्चा सदका है।

गुरु नानक देव जी का प्रकाश पर्व

Guru Nanak Jayanti 2021 कार्तिक पूर्णिमा को प्रत्येक साल प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष गुरु नानक देव जी की जयंती 19 नवंबर दिन शुक्रवार ( Friday, 19 November) को है। सिख धर्म के संस्थापक और प्रथम गुरु नानक देव जी का जन्म कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था। कार्तिक पूर्णिमा के दिन गुरु नानक देव जी की जयंती संपूर्ण देश में तथा विदेशों में भी सिख धर्म के मानने वालों द्वारा हर्षोल्लास के साथ महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा को प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष गुरु नानक देव जी की जयंती 19 नवंबर दिन शुक्रवार को है।
गुरु नानक देव जी फोटो Guru Nanak Dev Ji Image

गुरु नानक देव जी के दस सिद्धांत

नानक देव जी के द्वारा जीवन के दस सिद्धांत दिए गए हैं जो आज भी अत्यधिक महत्वपूर्ण और प्रासंगिक हैं। ये सिद्धांत इस प्रकार से है: —
1. ईश्वर एक है। 2. सदैव एक ही ईश्वर की उपासना करो। 3. जगत का कर्ता सब जगह और सब प्राणी मात्र में मौजूद है। 4. सर्वशक्तिमान ईश्वर की भक्ति करने वालों को किसी का भय नहीं रहता। 5. ईमानदारी से मेहनत करके उदरपूर्ति करना चाहिए। 6. बुरा कार्य करने के बारे में न सोचें और न किसी को सताएँ। 7. सदा प्रसन्न रहना चाहिए। ईश्वर से सदा अपने को क्षमाशीलता माँगना चाहिए। 8. मेहनत और ईमानदारी से कमाई करके उसमें से जरूरतमंद को भी कुछ देना चाहिए। 9. सभी स्त्री और पुरुष बराबर हैं। 10. भोजन शरीर को जिंदा रखने के लिए जरूरी है पर लोभ-लालच व संग्रहवृत्ति बुरी है।

भारत के प्रमुख गुरुद्वारा साहिब

1. गुरुद्वारा कंध साहिब : बटाला (गुरुदासपुर) गुरु नानक का यहाँ पत्नी सुलक्षणा से 18 वर्ष की आयु में संवत्‌ 1544 की 24वीं जेठ को विवाह हुआ था। यहाँ गुरु नानक की विवाह वर्षगाँठ पर प्रतिवर्ष उत्सव का आयोजन होता है।
2. गुरुद्वारा हाट साहिब : सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) गुरुनानक ने बहनोई जैराम की सहायता से सुल्तानपुर के नवाब के यहाँ शाही भंडार की देखरेख की नौकरी शुरू की। वह यहाँ पर मोदी बना दिए गए। नवाब युवा नानक से बहुत प्रभावित थे। यहीं से नानक को ‘तेरा’ शब्द के माध्यम से अपनी मंजिल का आभास हुआ था।
3. गुरुद्वारा गुरु का बाग : सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) यह गुरु नानक देव जी का घर था जहाँ उनके दो बेटों बाबा श्रीचंद और बाबा लक्ष्मीदास का जन्म हुआ था।
4. गुरुद्वारा कोठी साहिब : सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) नवाब दौलतखान लोधी ने हिसाब-किताब में ग़ड़बड़ी के शक में नानक देव जी को जेल भिजवा दिया। परंतु जब नवाब को अपनी गलती का पता चला तो उन्होंने नानक देव जी को मुक्त कर क्षमा ही नहीं माँगी बल्कि प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव भी रखा परंतु गुरु नानक ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
5.गुरुद्वारा बेर साहिब : सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) जब एक बार गुरु नानक अपने सखा मर्दाना के साथ वैन नदी के किनारे बैठे थे तभी अचानक उन्होंने नदी में डुबकी लगा दी तथा तीन दिनों तक लापता हो गएं थे जहाँ पर कि उन्होंने ईश्वर से साक्षात्कार किया। सभी लोग उन्हें डूबा हुआ समझ रहे थे परन्तु वह वापस लौटे तो उन्होंने कहा : "एक ओंकार सतिनाम" गुरु नानक ने वहाँ एक बेर का बीज बोया जो आज बहुत बड़ा वृक्ष बन चुका है।
Read More और पढ़ें:

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ