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गुरु गोबिंद सिंह Guru Gobind Singh गुरु गोबिंद सिंह जी की जीवन यात्रा

गुरु गोबिंद सिंह का जीवन परिचय | गुरु गोबिंद सिंह जयंती | गुरु गोविन्द सिंह

गुरु गोविंद सिंह की जीवनी Guru Gobind Singh Ji Biography

गुरु गोबिंद सिंह जी (1666-1708 ) सिख धर्म के गुरुओं में से दसवें तथा अंतिम देहधारी गुरु थे। गुरु गोविंद सिंह जी ने सिख धर्म को विश्वव्यापी आकार देने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ के गठन और प्रचार प्रसार के माध्यम से सिख धर्म की बुनियाद को और मजबूत किया। वो सिख धर्म के न सिर्फ अंतिम सिख गुरु थे बल्कि उन्हें शाश्वत, सत्य और जीवित गुरु को गुरु ग्रंथ साहिब के नाम से नामकरण किया गया था।

गुरु गोबिंद सिंह की ऐतिहासिक चरित्र ने सिखों की पहचान को परिभाषित करने में सहायता की जिन्होंने हर समय 5 गज- पगड़ी पहनना आरंभ कर दिया था। जिसमें पगड़ी के नीचे अनचाहे बाल भी सम्मिलित थे। वह हर वक्त इंसाफ के लिए खड़े रहते थे। वह एक अनुकरणीय उदाहरण हैं जिन्होंने अपना सर्वस्व त्याग दिया ताकि आम पुरुषों और महिलाओं को अपनी पसंद का धर्म चुनने और उसका पालन करने की आजादी मिल सके। उन्होंने क्रूरतम आक्रमणकारियों तथा विदेशियों द्वारा भारत को सैकड़ों सालों की गुलामी से आजाद कराने के लिए आरंभ किए गए सराहनीय संघर्ष की बुनियाद रखी।

गुरु गोविंद सिंह का संपूर्ण जीवन परिचय

नाम Name — गुरु गोविंद सिंह Guru Govind Singh
जन्म नाम Birth Name — गोबिंद राय सोढ़ी Govind Rai Sodhi
अन्य नाम Other Names — दसवें सिख गुरु, मरद अगम्र, सरबनीस दानी, बाजन बाले, दशमेश पितह, Tenth Sikh Guru, Marad Amagra, Sarbanis Dani, Bajan Wale, Dashmesh Pita
जन्म तिथि Date Of Birth 22 दिसंबर 1666
जन्म स्थान Birth Place — पटना, बिहार Patna, Bihar
पिता का नाम Father's Name — गुरु तेग बहादुर Guru Teg Bahadur Singh
माता का नाम Mother Name — माता गुजरी Maata Gujari
विवाह का वर्ष Year Of Marriage — 1677, 1684, तथा 1700
पत्नी का नाम Wife Name — माता जीतो, माता सुंदरी, माता साहिब देवन Maata Jito, Maata Sundari, Maata Sahib Deven
बच्चों के नाम Name Of Children — अजीत सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह, फतेह सिंह Ajeet Singh, Jujhar Singh, Joravar Singh, Fateh Singh
मृत्यु Death7 अक्टूबर, 1708
मृत्यु स्थान Place Of Death — हजूर साहिब नांदेड़, भारत Hazur Sahib, Nanded, India
आध्यात्मिक उत्तराधिकारी Spiritual Successor

गुरु ग्रंथ साहिब के लिए प्रसिद्ध — सिखों के दसवें तथा अंतिम गुरु, खालसा पंथ के संस्थापक, सभी सिख गुरुओं की शिक्षाओं को एक साथ इकट्ठा करके गुरु ग्रंथ साहिब को पूरा करने वाले। उन्हें भक्ति तथा शक्ति का एक अनोखा करिश्मा माना जाता है।

गुरु गोविंद सिंह जी सिखो के दसवें गुरु थे। इसके साथ ही वह एक दार्शनिक, कवि और महान योद्धा भी थे। गोबिंद राय के रूप में इनका जन्म हुआ और उन्होंने नौवें सिख गुरु तेग बहादुर के पश्चात सिख धर्म के दसवें गुरु के रूप में ख्याति प्राप्त की। गुरु गोविंद सिंह जी के पिता नवें गुरु, गुरु तेग बहादुर जी को बेरहम मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेशानुसार सार्वजनिक रूप से दिल्ली के चांदनी चौक पर सिर कलम कर दिया गया था जहां पर गुरुद्वारा शीशगंज साहिब है। इस ऐतिहासिक घटना की वजह सिर्फ इतनी सी थी कि गुरु तेग बहादुर जी ने इस्लाम धर्म अपनाने से साफ़ तौर पर इनकार कर दिया था।

औरंगजेब के इस अत्याचार से क्षुब्द हो कर इसके परिणामस्वरूप गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा नाम से सिख योद्धा समुदाय की स्थापना की। जिसको सिख धर्म के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना के रूप में उल्लेख किया गया है। उन्होंने पाँच लेखों को पाँच ककार के रूप में प्रसिद्ध किया और हर समय धारण करने के लिए खालसा सिखों को आज्ञा भी दी। गुरु के अन्य महत्वपूर्ण योगदानों में सिख धर्म पर महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखना और सिखों के शाश्वत जीवित गुरु के रूप में गुरु ग्रंथ साहिब (सिख धर्म के धार्मिक ग्रंथ) को धारण करना शामिल है।

Guru Gobind Singh Biography in Hindi

गुरु गोविंद सिंह का बचपन और प्रारंभिक जीवन

गुरु गोबिंद सिंह का जन्म 22 दिसंबर 1666 को पटना में गुरु तेग बहादुर और उनकी पत्नी गुजरी के घर में हुआ था। जन्म के समय इनका नाम गोबिंद राय रखा गया था। गुरु गोबिंद सिंह जी, गुरु तेग बहादुर जी और माता गुजरी की एकमात्र संतान थे। उनके पिता सिखों के 9वें गुरु थे और गोबिंद राय के जन्म के समय असम में एक प्रचार यात्रा पर गए हुए थे।

उनके पिता सदैव ही सिख धर्म के प्रचार प्रसार करने हेतु धार्मिक यात्रा पर रहते थे इसलिए उन्होंने स्थानीय राजा के संरक्षण में अपने परिवार को छोड़ दिया। 1670 में तेग बहादुर चक नानकी (आनंदपुर) गए और अपने परिवार से उन्हें मिलाने का आह्वान किया।

1671 ई. में गोबिंद राय ने अपने परिवार के साथ दानापुर से यात्रा की और यात्रा पर ही अपनी बुनियादी शिक्षा प्राप्त करना शुरू कर दिया। उन्होंने फारसी, संस्कृत और मार्शल कौशल सीखा। वह और उसकी माँ आखिरकार 1672 में आनंदपुर में अपने पिता के साथ जुड़ गए जहाँ उनकी शिक्षा चलती रही।

1675 ई के आरंभ में कश्मीरी हिंदुओं का एक समूह जिन्हें मुगलों द्वारा तलवार की नोंक पर जबरन इस्लाम धर्म अपनाने के लिए मजबूर किया जा रहा था हताशा में आनंदपुर आया और गुरु तेग बहादुर का हस्तक्षेप मांगा। हिंदुओं की दुर्दशा का पता चलने पर गुरु तेग बहादुर राजधानी दिल्ली चले गए। जाने से पहले उन्होंने अपने नौ साल के बेटे गोबिंद राय को सिखों का उत्तराधिकारी और दसवां गुरु नियुक्त किया।

नवें गुरु तेग बहादुर जी को मुगल अधिकारियों ने गिरफ्तार कर लिया और उन्हें इस्लाम को मानने और अपनाने के लिए कहा। और उनके मना करने पर उन पर तरह-तरह से अत्याचार किये गए। गुरु तेग बहादुर जी ने इस्लाम को मानने के बजाय सभी यातनाओं का सामना करना स्वीकार किया। तब उन्हें औरंगजेब के आदेश पर मुगलों द्वारा पारंपरिक रूप से मार दिया गया।

खालसा पंथ की स्थापना और जीवन संघर्ष

गोबिंद राय जी को बैसाखी के दिन औपचारिक रूप से 1676 में वार्षिक फसल कटाई का त्योहार के दिन पर गुरु बनाया गया था। वह एक बहुत ही बुद्धिमान और बहादुर बालक थे। जिसने बड़ी त्रासदी के बावजूद केवल विवेक और परिपक्वता के साथ गुरु पदवी की जिम्मेदारी संभाली।

मुगलों के साथ तनावपूर्ण संबंधों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने समर्पित योद्धाओं की एक मजबूत सेना बनाने पर ध्यान केंद्रित किया जो सभी मानवता की गरिमा की रक्षा के महान उद्देश्य के लिए लड़ते हुए अपने जीवन को खुशी से योगदान करेंगे।
उन्होंने सिख धर्म के सभी अनुयायियों से बैसाखी के दिन 13 अप्रैल 1699 को आनंदपुर में एकत्रित होने का अनुरोध किया। मंडली में उन्होंने पानी और पातशा (पंजाबी मिठास) का मिश्रण बनाया और इस मीठे पानी को “अमृत” नाम दिया।

हिंदी उर्दू साहित्य संसार

गुरु गोविंद सिंह का युद्ध

सिखों के दसवें गुरू गुरू गोबिंद सिंह जी महाराज ने मुगल सम्राट औरंगजेब के पूरे भारतवर्ष में पूर्ण रूप से मुस्लिम धर्म का राज स्थापित करने के सपने को पूरी तरह से चकनाचूर कर दिया। गुरु गोविंद सिंह जी ने जब औरंगजेब की अधीनता स्वीकार करने से इंकार कर दिया और सिक्खों के साथ-साथ हिन्दु धर्म की रक्षा करने के लिए एक मजबूत दीवार बन कर खडे़ हो गए तो इससे बौखलाते हुए पागल औरंगजेब ने वज़ीर खान जो कि सरहिंद का नवाब था, उसके नेतृत्व में बहुत सारे मुगलों की लम्बी चौड़ी फौज खड़ी कर दी इसमें कुल फौजियों की संख्या लगभग 10 लाख थी।

औरंगजेब और गुरु गोविंद सिंह

गुरू गोविद सिंह जी महाराज को जिंदा या मुर्दा पकड़ने का आदेश सैनिकों को दे दिया गया। औरंगजेब ने इसके लिए सभी सैनिकों को गुरुद्वारा आनंदपुर साहिब (पंजाब) रवाना किया। वज़ीर खान के नेतृत्व में आनंदपुर साहिब (पंजाब) पहुंच कर फौज ने 6 महीनें तक आनंदपुर साहिब को घेरे रखा। लेकिन मुगल सैनिक अंदर प्रवेश करने की हिम्मत नही जुटा सके। उन सैनिकों का मकसद था कि जब नगर के अंदर राशन-पानी खत्म हो जाएगा तब मजबूर हो कर स्वयं गुरू गोविन्द सिंह जी बाहर आकर घुटने टेक देंगे और हम सब उनका काम तमाम कर देंगे। लेकिन मुगलों का यह विचार पूरी तरह से बेवकूफी और नासमझी थी।

गुरु गोविंद सिंह जी ने आनंदपुर साहिब कब छोड़ा था

गुरु गोविंद सिंह जी को पकड़ने के लिए वज़ीर खान के नेतृत्व में जो मुग़ल और हिन्दू राजे आएं थे उन्होंने गुरु जी को अपने कुरान और गाय माता की कसम खा कर कहा कि आप अगर यह किला छोड़ दें तो हम आपको कुछ नहीं कहेंगे। इस पर गुरु जी ने ऐसा करने से साफ़ मना कर दिया था परंतु कुछ सिक्खों के कहने से कि वो सब अपने धर्म की कसम खा रहें है, धोखा नहीं देंगे तो हमे उन पर विश्वास रखना चाहिए। लेकिन गुरु गोविंद जी ने कहा कि मुग़ल कुरान की कसम खा कर भी आपको धोखा दे सकते हैं। फिर भी गुरु जी अपने सिक्खों की बात भी टाल नहीं सकें और परमात्मा के आदेश को मान कर आनंदगढ़ का किला पूरे परिवार समेत छोड़ कर बाहर निकल आए। अभी गुरु जी कुछ ही दूर पहुंचे थे कि मुगलो के साथ बाइसधार के राजाओं ने गुरु जी पर पीछे से हमला बोल दिया। इस हमले में बुहत सारे सिक्ख शहीद हो गए थे।

चमकौर के युद्ध में कौन शहीद हुए थे

गुरु गोबिंद सिंह जी का पूरा परिवार सरसा नदी को जल्दी से पार करना शुरू कर दिया। पीछे औरंगजेब की फौज पड़ी थी नदी को पार करने के दौरान घबराहट में परिवार के सदस्य 3 समूहों में बट कर बिछड़ गए। उस वक़्त सरसा नदी में भारी बरसात की वजह से बाढ़ आ गई थी। एक समूह में गुरु जी की पत्नी और भाई मनी सिंह थे। दूसरी ओर माता गुज़र कौर जी के साथ 2 छोटे साहिबज़ादे थे। और तीसरी ओर गुरु गोबिंद सिंह जी के साथ 2 बड़े साहिबज़ादे एवं कुछ सिक्ख जो जीवित रह गए वो एक साथ बट गए थे। सरसा नदी को पार करते समय उसमें बहुत सारे सिक्ख अनुयाई और कीमती खजाना भी बह गया।

गुरु गोविंद सिंह का इतिहास

गुरूजी अपने अनुयाइयों के साथ आगे बढ़ते बढ़ते पंजाब के रूपनगर स्थान पर स्थित सरहिंद नहर पर बसे चमकौर नामक स्थान पर पहुंचे। वहां पर स्थानीय लोगों ने उनका भव्य स्वागत किया। स्वामी बुद्धचंद जी एक स्थानीय निवासी ने अपनी कच्ची गढ़ी (किलानुमा हवेली) को गुरूजी के ठहरने के लिए भेंट कर दिया। गुरूजी को यह हवेली सामरिक दृषिट से बहुत महत्वपूर्ण और उपयोगी मालूम हुई। गुरु गोविंद सिंह ने उसी हवेली में अपने साथियों और सैनिकों के साथ ठहरने का निर्णय किया। गुरु गोविंद सिंह जी के इस निर्णय से सभी लोग सहमत हुए। 22 दिसंबर 1704 को काले घने बादलों से घिरे आसमान के नीचे चमकौर में हल्की-हल्की बारिश की बूंदों और सर्द हवाओं के दरम्यान संसार का एक मात्र अनोखा युद्ध आरंभ हो गया था। बहादुर सिक्ख सैनिकों ने पूरी तन्मयता से मुगलों का जोरदार मुकाबला किया और पसीने छुड़ा दिए।

आनंदपुर का युद्ध

एक ओर 10 लाख मुगल सैनिक थे वही दूसरी तरफ केवल 40 सिक्ख और गुरूजी और उनके दो साहिबजादे। गुरूजी ने रणनीति बनाते हुए पांच-पांच सिख सैनिको के जत्थे मुगलों से लड़ने के लिए भेजना शुरू कर दिया। पहला जत्था में भाई हिम्मत सिंह अपने चार साथियों के साथ गए। गुरू गोबिंद सिंह जी भी किले की डियोढ़ी से मुगलों पर तीरों की बौछार करने में व्यस्त हो गए। काफी देर तक लड़ाई चलती रही आखिरकार पहला जत्था शहीद हो गया। फिर दूसरा जत्था युद्ध के लिए बाहर भेजा गया इस बार देखते ही देखते मुगलों के पैर उखड़ने लगे। वो घबरा कर सोचने लगे कि कैसे सिर्फ 40 सिख 10 लाख की फौज से मुकाबला कर सकते हैं।

चमकौर युद्ध की कहानी

शाम हो गई थी बौखलाते हुए वज़ीर खान ने अपने कई साथियों, फूलान खान, हिदायत खान, असलम खान, इस्माइल खान, जहान खान, भूरे खान, खलील खान, को किले के भीतर चलने को कहा सारे मुगल कच्ची डियोढ़ी में घुसने लगे।

चमकौर साहिब गुरुद्वारा

इतना बढ़ा हमला रोक पाना मुश्किल हो रहा था। गुरु जी ने पुत्रों सहित डियोढ़ी से निकल जाने का आग्रह किया। इस पर बडे़ साहिबजादे अजीत सिंह ने गुरू जी से युद्ध स्थल में जाने की अनुमति मांगी


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