Pandit Mere Piche Hai To Mulla Mere Aage Jadeed Tansia Mazahiya Inqalabi Ghazal
जदीद तन्ज़िया,मज़ाहिया,इन्क़लाबी गज़ल
पन्डित मेरे पीछे है तो मुल्ला मेरे आगे!?!
यूँ रोज़ ही रहता है ये लफड़ा मेरे आगे!?!
मालूम थी/ है "शायर/ ग़ालिब/ अल्वी को भी " मुल्ले" की " हक़ीक़त "!!
" शायर/ ग़ालिब/ अल्वी " को " बुरा" कहता है " मुल्ला ", मेरे आगे!?!
कुछ बोलने का हौस्ला उस में नहीं होता!?
ख़ामोश खड़ा रहता है मौगा/ मुल्ला/ नेता, मेरे आगे!?
मारूँगा तमाचा, मैं, बड़े ज़ोर से, बेटे!!
बन्दर की तरह अब न उछलना, मेरे आगे!!
मैं, इस को, ख़ुदा या ख़ुदा-सा, कैसे समझ लूँ!?!
रक्खा है किसी ने ये " सनम-सा", मेरे आगे!?
हाँ!, आज ही तो मुझको मिली है ये ग़िज़ा भी!!
ऐ दोस्त!, " मुहर्रम का है खिचड़ा ", मेरे आगे!!
" पत्तल" में मिला," दोने " में भर-भर के मिला है!!
यारो!, ये " मुहर्रम का है खिचड़ा ", मेरे आगे!!
ओ/ वह रोट-मलीदा, कि वो/ वह बिर्यानी-व-खिचड़ा!!!
आता है अभी, देखिये!, क्या-क्या??, मेरे आगे!
नफ़रत ही नहीँ मुझको, सिवैयों से, सुनो हो!!
रक्खा है " सिवैयों का ये लच्छा ", मेरे आगे!!
दो पत्नियाँ/ बीवियाँ रखने पे मेरा हाल ये, देखो!!
ज़ैनब/ गीता, मेरे पीछे है, ख़दीजा/ कविता, मेरे आगे!!
दो शादियाँ करने पे यही हाल है, यारो!!
पहली/ पहला मेरे पीछे है तो दूजी/ दूजा, मेरे आगे!!
क्यों ला के रखी है कोई पाकीज़ा हसीना ?!
नमकीन पुलाव, और ये ज़र्दा, मेरे आगे!!
ऐ राम जी!, यूसुफ़ हूँ मैं भी अह्द-ए-रवाँ का!!
पीछे है कभी, गाहे ज़ुलेख़ा, मेरे आगे!!
कल तक तो कभी भी न हुआ शोर-व-शग़ब था!!
ये हो रहा है क्यों अभी " हल्ला " मेरे आगे!?!
" शायर/ ग़ालिब/ अल्वी जी!, सुनें!,आप भी, इसकी " लन्तरानी!!
कहता है कि क्या हैं!?, तेरे " अब्बा ", मेरे आगे!!
" एन-ए-सी नगर, शहर निगम वाले कहाँ हैं!?!
फैला हुआ है कचड़ा ही कचड़ा, मेरे आगे!?!
कैसे रखूँ मैं दूर ससुराल से खुद को?!
साली मेरे पीछे है तो साला मेरे आगे!!
साली मुझे दे दीजिए! सालों को आप रख लिजिए!– ‘‘मौलवी साहब’’
नक़्क़ाद, सुख़नवर, वो/ वह मुसव्विर,क्षवो/ वह मुजावर!,
आता है अभी, देखिये!,क्षक्या-क्या??, मेरे आगे!!
" सीता" / शीला मेरे पीछे है तो गीता/ रीता/रीटा मेरे आगे!!
" होता है शब-व-रोज़, तमाशा, मेरे आगे!?
पन्डित मेरे पीछे है तो मुल्ला मेरे आगे!?!
यूँ रोज़ ही रहता है ये लफड़ा मेरे आगे!?!
मालूम थी/ है "शायर/ ग़ालिब/ अल्वी को भी " मुल्ले" की " हक़ीक़त "!!
" शायर/ ग़ालिब/ अल्वी " को " बुरा" कहता है " मुल्ला ", मेरे आगे!?!
कुछ बोलने का हौस्ला उस में नहीं होता!?
ख़ामोश खड़ा रहता है मौगा/ मुल्ला/ नेता, मेरे आगे!?
मारूँगा तमाचा, मैं, बड़े ज़ोर से, बेटे!!
बन्दर की तरह अब न उछलना, मेरे आगे!!
मैं, इस को, ख़ुदा या ख़ुदा-सा, कैसे समझ लूँ!?!
रक्खा है किसी ने ये " सनम-सा", मेरे आगे!?
हाँ!, आज ही तो मुझको मिली है ये ग़िज़ा भी!!
ऐ दोस्त!, " मुहर्रम का है खिचड़ा ", मेरे आगे!!
" पत्तल" में मिला," दोने " में भर-भर के मिला है!!
यारो!, ये " मुहर्रम का है खिचड़ा ", मेरे आगे!!
ओ/ वह रोट-मलीदा, कि वो/ वह बिर्यानी-व-खिचड़ा!!!
आता है अभी, देखिये!, क्या-क्या??, मेरे आगे!
नफ़रत ही नहीँ मुझको, सिवैयों से, सुनो हो!!
रक्खा है " सिवैयों का ये लच्छा ", मेरे आगे!!
दो पत्नियाँ/ बीवियाँ रखने पे मेरा हाल ये, देखो!!
ज़ैनब/ गीता, मेरे पीछे है, ख़दीजा/ कविता, मेरे आगे!!
दो शादियाँ करने पे यही हाल है, यारो!!
पहली/ पहला मेरे पीछे है तो दूजी/ दूजा, मेरे आगे!!
क्यों ला के रखी है कोई पाकीज़ा हसीना ?!
नमकीन पुलाव, और ये ज़र्दा, मेरे आगे!!
ऐ राम जी!, यूसुफ़ हूँ मैं भी अह्द-ए-रवाँ का!!
पीछे है कभी, गाहे ज़ुलेख़ा, मेरे आगे!!
कल तक तो कभी भी न हुआ शोर-व-शग़ब था!!
ये हो रहा है क्यों अभी " हल्ला " मेरे आगे!?!
" शायर/ ग़ालिब/ अल्वी जी!, सुनें!,आप भी, इसकी " लन्तरानी!!
कहता है कि क्या हैं!?, तेरे " अब्बा ", मेरे आगे!!
" एन-ए-सी नगर, शहर निगम वाले कहाँ हैं!?!
फैला हुआ है कचड़ा ही कचड़ा, मेरे आगे!?!
कैसे रखूँ मैं दूर ससुराल से खुद को?!
साली मेरे पीछे है तो साला मेरे आगे!!
साली मुझे दे दीजिए! सालों को आप रख लिजिए!– ‘‘मौलवी साहब’’
नक़्क़ाद, सुख़नवर, वो/ वह मुसव्विर,क्षवो/ वह मुजावर!,
आता है अभी, देखिये!,क्षक्या-क्या??, मेरे आगे!!
" सीता" / शीला मेरे पीछे है तो गीता/ रीता/रीटा मेरे आगे!!
" होता है शब-व-रोज़, तमाशा, मेरे आगे!?
इस तवील और मुन्फरिद गजल के दीगर शेर-व-सुखन आइंदा फिर कभी पेश किए जायेंगे, इन्शा-अल्लाह!
डाक्टर जावेद अशरफ़ कैस फैज अकबराबादी ,द्वारा डॉक्टर रामचन्द्र दास प्रेमी राजकुमार जानी दिलीपकुमार कपूर, डॉक्टर इनसान प्रेमनगरी हाऊस,डॉक्टर खदीजा नरसिंग होम, रांची हिल साईड,इमामबाड़ा रोड, राँची-834001,झारखंड, इन्डिया!
डाक्टर जावेद अशरफ़ कैस फैज अकबराबादी |
जदीद तंज़िया मज़ाहिया इन्क़लाबी गज़ल
जदीद-व-मुन्फरिद ग़ज़ल-------------------------------
ऐ दोस्त!, है सावन का महीना, मेरे आगे!
इठला रही है, ख़ूब!, हसीना, मेरे आगे!!
लचका रही है अपनी कमर, शोख़ियों से ये!
है आज ये सर-मस्त हसीना, मेरे आगे!!
मदहोश या बेहोश है, मालूम नहीं है!?
लेटी/ सोई है ये बद-मस्त हसीना, मेरे आगे!!
इक ‘‘मौलवी साहब’’ ने कहा, मुझ से," मुहर्रम!
हरगिज़ नहीं है, ग़म का महीना, मेरे आगे "!!
"करबल " से था, पहले भी, " मुहर्रम का महीना!
दुनिया में/ जग में ये, ख़ुशी का था महीना, मेरे आगे!!
बतलाया गया, दर्द-व-अलम ही का महीना!?
है जब कि/ के तरब/ ख़ुशी ही का महीना, मेरे आगे!!
खाने के लिए मुझको मिला गरमा-गरम ये!
वल्लाह!, " मुहर्रम का है खिचड़ा ", मेरे आगे!!
ऐ राम / ऐ दोस्त!," तिरंगा " में है, लिपटा हुआ " लाशा "!
है एक सिपाही का " जनाज़ा ",मेरे आगे!!
खाने के लिए मुझको मिला है यही खिचड़ा!
" जावेद "!, " मुहर्रम का है खिचड़ा ", मेरे आगे!!
डाक्टर जावेद अशरफ़ कैस फैज अकबराबादी ,द्वारा डॉक्टर रामचन्द्र दास प्रेमी राजकुमार जानी दिलीपकुमार कपूर, डॉक्टर इनसान प्रेमनगरी हाऊस,डॉक्टर खदीजा नरसिंग होम, रांची हिल साईड,इमामबाड़ा रोड, राँची-834001,झारखंड, इन्डिया!
गजल+ हजल
जदीद, मुन्फरिद, अजीब-व-गरीब, लेकिन ताजा-तरीन, बेहतरीन कलाम
तन्जिया, मजाहिया,इन्कलाबी गजल
सूरज निगाह में है, न तारा नजर में है!
ऐ यार!, एक चाँद सा मुखड़ा नजर में है!!
अन्जुम निगाह में है, न चन्दा नजर में है!
" अशरफ़-जहाँ "!, अब आप का मुखड़ा नजर में है!!
है अहलिया का चेहरा, " मधू-बाला" की तरह!
ए दोस्त!, एक चाँद सा मुखड़ा नजर में है!!
" इकबाल भाई की जोरू " शहजादी" की तरह!
" तारा" निगाह में है, " सितारा" नजर में है!!
मेरी नजर में मलका-ए-हुस्न-व-जमाल थी!
अब भी वही अजीम हसीना नजर में है!!
इस चीज की शुआये(شعاعیں) हैं जर्रीन आज भी!
जर्रीन किरनों वाली जीना नजर में है!!
" यूसुफ-नबी-जी" ,साहब-ए-हुस्न-व-जमाल हैं!
हर वक्त ये हसीन हयूला नजर में है!!
" शन्कर" ने जह्र ,कन्ठ में रोके रखा सदा!
जहरीला पौधा,यानि,धतूरा नजर में है!!
ऐ अरबी शेख / शैख!, " लाशा" अजीब-व-गरीब, देख!
गंगा में तैरता ये जनाजा नजर में है!!
सागर में डूब जाऊंगा मैं किस तरह?,जनाब!
साहिल निगाह में है!,किनारा नजर में है!!
कल भी जमाल-व-हुस्न की रानी नजर में थी!
और आज भी हसीन हयूला नजर में है!!
दिन-रात " मौलवी "/आदमी ये, फिरे है, गली-गली!?
ए राम!,आदमी ये बेहूदा नजर में है!!
ए राम-दास!, तर्क-ए-त्अल्लुक के बाद भी!
उस दिलरुबा का चाँद सा चेहरा नजर में है!?
ए राम! मुझको राहत-व-आराम अब नहीं!?
बस दर्द देने वाला मसीहा नजर में है!?
" यूसुफ-जमाल" पैकर-ए-हुस्न-व-जमाल हैं!
" जावेद "!,ये हसीन हयूला नजर में है!!
ए राम!, "कामरान-गनी " बन गए " सबा "!
जिन का हर एक शेर अनोखा/ अछूता, नजर में है!!
अब भी दुलार-प्यार, ये चाहे है," राम से"!
" बिस्मिल-प्रेम-नाथ-दुलारा " नजर में है!!
नोट :- इस लम्बी और नयी कविता/ हजल/ गजल के दीगर शेर-व-सुखन आइंदा फिर कभी पेश किए जायेंगे, इन्शा-अल्लाह!
डाक्टर रामचन्द्र-दास प्रेमी राजकुमार जानी दिलीपकुमार कपूर,
द्वारा डॉक्टर जावेद अशरफ़ कैस फैज अकबराबादी मंजिल,डॉक्टर खदीजा नरसिंग होम, रांची हिल साईड,इमामबाड़ा रोड, रांची-834001,झारखण्ड, इन्डिया
सावन में थोड़ी तबीयत हरि कर लें आइए कुछ और पढ़ें
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