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रक्षाबंधन या राखी के त्योहार पर कविता शायरी Poem On Raksha Bandhan Shayari

रक्षाबंधन या राखी के त्योहार पर कविता शायरी Poem On Raksha Bandhan Shayari

‘मौलवी साहब’’ प्रेमनाथ बिस्मिल जी को समर्पित
आ गया है " राखी का त्यौहार ", सखी!
मिल रहा है सब को भाई का प्यार, सखी!!
तू,इसे समझ न " रेशम का तार ", सखी!
ये तो है, हमारे भाई का " प्यार ", सखी!!
"राखियाँ " तु बेचती है, हज़ार, सखी!
तू, मेरे प्रेमी/ भतार को देगी प्यार, सखी!?
ख़ूबरू है मेरा भोला / मेरे " भोले" भतार, सखी!!
चढ रहा है, " आशिक़ी का बुख़ार ", सखी!!
है " अमीर-खुसरो " का ये मज़ार, सखी!
जिस की शख़्सियत भी थी " पुर्-बहार", सखी!!
जिस की देन है, " कव्वाली ", " सितार", सखी!
जिस की " शायरी/ शख़्सियत भी थी, " पुर्-वक़्त ", सखी!!
कल तलक बजाता था, हर सितार, सखी!
आज ये बजा रहा है, " गिटार/ गितार ", सखी!!
देख!, मेरे पास पैसे नहीं हैं अभी!
दे-दे " राखी "आज तू ये उधार, सखी!!
आज मेरे/ अपने पास पैसे नहीं हैं, मगर!
कल कमा के देगा मेरा/ अपना भतार, सखी!!
क्यों सभा से भागा, शल्वार पह्न/ पहन के वो/ वह ?!
" राम-देव" बन न पाया, " भतार ", सखी!
प्यार कर रहा है ये तो मुझे " धका-धक"!
ख़ुश दिखाई दे है मेरा मेरा भतार, सखी!!

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नोट :- इस कविता में ‘‘भतार’’ लफ़्ज़ से मुराद ‘‘मौलवी साहब’’ समझा जाए इस हास्य कविता यानी मज़ाहिया ग़ज़ल के दीगर शेर-व-सुखन आइंदा फिर कभी पेश किए जायेंगे, अल्लाह-व-ईश्वर सबको सलामत रखे और रंगीले मौलवी साहब रंग रसिया भतार का गुस्सा Control करें!
आमीन
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डाक्टर इन्सान प्रेमनगरी, द्वारा डॉक्टर रामदास प्रेमी राजकुमार जानी दिलीपकुमार कपूर, डॉक्टर जावेद अशरफ़ कैस फैज अकबराबादी मंजिल, डॉक्टर खदीजा नरसिंग होम, रांची हिल साईड, इमामबाड़ा रोड, राँची-834001, झारखंड, इन्डिया!
जदीद-व-मुन्फरिद नज़्म-ए-मुअर्रा/ नवीन आज़ाद नज़्म
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रक्षाबंधन या राखी के त्योहार पर कविता शायरी Poem On Raksha Bandhan Shayari

रक्षाबंधन या राखी के त्योहार पर कविता शायरी Poem On Raksha Bandhan Shayari

" राखी "
‘‘देवर जी’’ महुआ वाले की नज्र
आधिकारिक नाम, "राखी " का " रक्षा-बन्धन" है!
भाइयों के माथे पर फिर ख़ास " चन्दन " है!!
राखी, सलूनो, श्रावणी, वग़ैरा भी इस के नाम हैं!
अच्छे/ बेहतर, हिन्दू-व-जैन धर्म के अनुयाइयों के काम हैं!!
राखी परब/ पर्व/ त्यौहार का उद्देश्य भ्रातृ-भावना है!
" सहयोग ही सहयोग " सब की " कामना" है!!
इस उत्सव में है राखी, उपहार, निमन्त्रण, भोज, आदि!
पूजा, प्रसाद, पवित्र प्यार-व-प्रेम की खोज, इत्यादि!!
पौराणिक-काल से ये चला आ रहा है!
मित्रों!, इस की तिथि " श्रावण/ श्रावणी पूर्णिमा " है!!
अब तो,
प्रकृति-संरक्षण हेतु वृक्षों/ दरख़्तों/ पेङों को भी,
" राखियाँ " बाँधी जा रही हैं!!
बहुत से " भारती/ हिन्दी/ हिन्दोस्तानी " एक-दूसरे को " भगवा-रंग" की " राखियाँ " बाँधते हैं!!
हिन्दू धर्म के सभी धार्मिक अनुष्ठानो में, " रक्षा-सूत्र " बाँधते समय, 
कर्म-काण्डी पंडित/ पुरोहित/ पन्डे, आचार्य, आदि,
" सन्स्कृत " में,
एक श्लोक का उच्चारण करते हैं!
उस में " रक्षा-बन्धन " का सम्बन्ध, 
" राजा-बलि " से स्पष्ट-रूप से " दृष्टिगोचर " होता है!
" भविष्य-पुराण " के अनुसार,
" " इन्द्राणी " द्वारा निर्मित,
" रक्षा-सूत्र "को " देव-गुरु बृहस्पति " ने " इन्द्र " के हाथों बाँधते हुए,
ये स्वस्तिवाचन किया :-
" येन बद्धो " बलि " राजा दानवेन्द्रो महाबलः!
तेन त्वामणि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल: "!!
यानी, जिस " रक्षा-सूत्र " से महान-शक्तिशाली, दानवेन्द्र राजा " बलि " को बाँधा गया था,
उसी " रक्षा-सूत्र " से, मैं, तुझे बाँधता हूँ "!
हे/ ऐ/ " रक्षे "( राखी)!, तू अडिग रहना! यानी, तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न होना!"
हम-सब को मालूम होना चाहिए, कि,
भारत-वर्ष/ देश के " राजस्थान "राज्य में " चूड़ा-राखी "प्रयुक्त की जाती है, राखी/ रक्षा-बन्धन के दिन!
" उत्तर-भारत के कयी अंचलों में, खासकर उत्तरान्चल में " राखी/ रक्षा-बन्धन " को " श्रावणी " कहा जाता है!
उस दिन" यजुर्वेदी द्विजों का उपकराम होता है!
उत्सर्जन, स्नान- विधि, ॠषि-तर्पणादि कर के नवीन यज्ञोपवीत धारण किया जाता है!
रक्षाबंधन/ राखी को ब्राह्मणों का सर्वोपरि त्यौहार माना जाता है!
वृत्तिवान ब्राह्मण अपने यजमानों को यज्ञोपवीत और " राखी " दे कर " दक्षिणा " लेते हैं!
" अमर-नाथ " की अतिविख्यात धार्मिक-यात्रा ", " गुरु-पूर्णिमा " से शुरू होती है, और वो/वह, " रक्षा-बन्धन/ राखी " के दिन " मुकम्मल/ सम्पूर्ण होती है!
उसी दिन, " अमर-नाथ " का " हिमानी-शिव-लिंग" भी,
अपने पूर्ण/ पूरे/ समूचे आकार को प्राप्त होता है!
उसी खास मौके पर/ उस उपलक्ष्य में,
" राखी/ रक्षा-बन्धन " के ही दिन " अमर-नाथ-गुफा" में,
हर वर्ष/बरस/साल मे एक खास मेला का आयोजन होता है!
" राखी" के दिन, " भारत " में और भी बहुत-कुछ होता है!
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इन्सान प्रेमनगरी, द्वारा डॉक्टर रामदास प्रेमी राजकुमार जानी दिलीपकुमार कपूर, डॉक्टर जावेद अशरफ़ कैस फैज अकबराबादी मंजिल, डॉक्टर खदीजा नरसिंग होम, रांची हिल साईड, इमामबाड़ा रोड, राँची-834001, झारखण्ड, इन्डिया

रक्षाबंधन पर नयी और विचित्र कविता : मेरे बड़े भैया | राखी के दिन

" मेरे बड़े भैया "
" राखी के दिन"
ये भैया मेरा,कन्हैया की तरह है!
कन्हैया, मेरे भैया की तरह है!!
पिता की तरह हैं मेरे बड़े भैया!
हैं ये, जिन्दगी की कश्ती के खिवैया!
बड़े भैया को राखी बाँधती हूँ मैं!
उन्हें, ईश्वर अपना मानती हूँ मैं!!
कई बहनों ने राखी बाँधी है उन को!
सभी देखती हैं, भैया जी के गुन को!!
ये भैया मेरा/ मेरे, कन्हैया की तरह है/ हैं!
कभी ये," यशोदा-मैया " की तरह है/ हैं!!
--------------------------------------------बहनों ने भाइयों की कलाइयों पे फिर " राखी " बाँधी है!
कुछ ज़ख़्मी फ़ौजियों ने बदन पे आज " बैसाखी " बाँधी है!!
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इन कविताओं के और दोहे फिर कभी पेश किए जायेंगे!
-------------------------------------------- डॉक्टर इन्सान प्रेमनगरी, द्वारा डॉक्टर रामदास प्रेमी राजकुमार जानी दिलीपकुमार कपूर, डॉक्टर जावेद अशरफ़ कैस फैज अकबराबादी मंजिल, डॉक्टर खदीजा नरसिंग होम, रांची हिल साईड,इमामबाड़ा रोड राँची 834001,झारखंड, इन्डिया
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