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जदीद-व-मुन्फरिद गजल संजीदा तंजिया मजाहिया-व-इन्कलाबी कलाम साहिर लुधियानवी की नज्र

जदीद-व-मुन्फरिद गजल अब्दुल हयी साहिर लुधियानवी की नज्र

जदीद-व-मुन्फरिद गजल
अब्दुल हयी साहिर लुधियानवी की नज्र
इक शख्स अगर दिल में उतर जाये तो अच्छा!
वो पास से मेरे भी गुजर जाये तो अच्छा!!
पैगाम वो लाये, मेरे दिलबर का तो बेहतर!
वो शख्स मेरे दोस्त के घर जाये तो अच्छा!!
बिगड़ी हुई तकदीर लिए बैठा है ये शख्स!
इस शख्स की तकदीर सँवर जाये तो अच्छा!!
क्यों जुल्फ-ए-परेशां लिए आई ये हसीना?!
ये देख के आईना, सँवर जाये तो अच्छा!!
है शोख बड़ा, दोस्त मेरा, इस लिए अब ये/ वो/ वह!,
भगवान जी के रोब से डर जाये तो अच्छा!!
जीवन में नया मोड़ भी आये तो हो बेहतर,
जीवन के तकाजो से ये/वो/ डर जाये तो अच्छा!!
गूंधी हुई इस जुल्फ से दोबाला नहीं हुस्न!
"ये जुल्फ अगर खुल के बिखर जाये तो अच्छा "!!
मर जायेंगे हम, और वो तो कर लेंगी नई शादी!
ये भूत मोहब्बत का, उतर जाये तो अच्छा!!
बीमार हूँ मैं!, उस से गुजारिश है कि मुझको!,
वो देख के अब एक नजर, जाये तो अच्छा!!
करता है तुझे प्यार, मगर बोलेगा किस से!?
घुट-घुट के यहाँ कैस/ दास/ बिस्मिल ये मर जाये तो अच्छा!!
नोट :- इस तवील और मुन्फरिद गजल के दीगर शेर-व-सुखन नीचे दिए गए हैं।
jadeed-munfarid-ghazal-sanjida-tanz-o-mazah-shayari

डाक्टर जावेद अशरफ़ कैस फैज अकबराबादी

जदीद-व-मुन्फरिद गजल
सन्जीदा, तन्जिया, मजाहिया-व-इन्कलाबी कलाम
जज्बात में ये जां से गुजर जाये तो अच्छा!
चाहत में प्रेमी भी ये मर जाये तो अच्छा!!
जिस्म-व-जां से अपनी ये गुजर जाये तो अच्छा!
अब इश्क-व-मुहब्बत में ये मर जाये तो अच्छा!!
" जावेद ", जमाने से गुजर जाये तो अच्छा!
एख्लास-व-मुहब्बत में ये मर जाये तो अच्छा!!
इन्सान चला जाये, सितारों से भी आगे!
साइंस (Science) तरक्की से सँवर जाये तो अच्छा!!
ईमान-व-मजाहिब के जहाँ में रहे आगे!
साइन्स के मैदां में निखर जाये तो अच्छा!!
साइन्स की दुनिया में ये आगे बढे हरदम!
तालीमी तरक्की से निखर जाये तो अच्छा!!
साइन्सी तरक्की से सँवर जाये तो अच्छा!
दुनिया का हर इक शख्स निखर जाये तो अच्छा!!
जी भर के इसे देखेंगे हम लोग, कसम से!
इस घर में हसीना ये, ठहर जाये तो अच्छा!!
जिंस-पैंट करे जेब-ए-तन और सानी भी पहने!/शर्ट-पैंट करे जेब-ए-तन साड़ी भी पहने!
फिर सूट पहन कर ये सँवर/ निखर जाये तो अच्छा!!
हर दिन इसे बिरयानी मिले, है यही ख्वाहिश!
खा-खा के ये दावत ही, निखर जाये तो अच्छा!!
मिल जाये मुझे और तरक्की, मेरे हमदम/ मेरे मौला!
दुश्मन का अभी चेहरा उतर जाये तो अच्छा!!
ये शख्स बड़े काम का है, अहल-ए-हुनर है!
घर पर मेरे ये शख्स ठहर जाये तो अच्छा!!
दीन और मजाहिब के हसीं जाल में फंस कर!
अल्लाह का हर बन्दा सँवर जाये तो अच्छा!!
मुल्ला-नुमा मकड़ा की मकड़-जाल में फंस कर!
दुनिया की हर इक मक्खी निखर जाये तो अच्छा!!
दावत में इसे चाहिये बस मुर्ग-मुसल्लम!
ये "मौलवी-भाई" भी सुधर जाये तो अच्छा!!
ये शैख-ए-हरम, वाकिफ-ए-तहजीब नहीं है!?
कोठे में तवायफ के, ठहर जाये तो अच्छा!!
ये " खाना-ए-हर्राफा " बड़ी खास जगह है!
इस घर में " सुखनवर" भी ठहर जाये तो अच्छा!!
ये "बज्म" के "आदाब" से वाकिफ़ ही नहीं है!?
इस बज्म में ये आज सँवर जाये तो अच्छा!!
हिर्दय से सँवरना है जरूरी, मेरे हमदम! 
तू आज की शब, दिल से निखर जाये तो अच्छा!!
सागर है मसाइल का, मगर डूब जा इस में!
तू डूब के सागर में, उभर जाये तो अच्छा!!
क्यों, मौलवी-कठ-मुल्ला सुधरता ही नहीं है ?!?
ये "मौलवी", सच-मुच में, सुधर जाये तो अच्छा!!
बिगड़ेे हुए इन्सान से, दुनिया है परेशान!
सन्सार का हर शख्स सुधर जाये तो अच्छा!!
बिडड़े हुए शहजादे से जनता है परेशान!
बिगड़ा हुआ शहजादा सुधर जाये तो अच्छा!!
ये मेरा हरीफ और रकीब और अदू है!
ये "फर्द-ए-मुनाफिक" भी सुधर जाये तो अच्छा!!
इबरार/ अबरार, ये मुखतार/ मोखतार, नवाज और ये "खन्जर"!?
भारत का हर इक फर्द सुधर जाये तो अच्छा!!
हर शख्स मोहब्बत का मुसाफिर बने तो खूब!
"दुनिया" का हर फर्द सुधर जाये तो अच्छा!!
मुखतार/ मोखतार-व-नवाज और ये इबरार/ अबरार, वगैरा!
इन का ये कबीला ही सुधर जाये तो अच्छा!!
दिन-रात,हसीनाओ के चक्कर में फिरे है!?
ये "मौलवी-आशिक" / बिस्मिल, भी सुधर जाये तो अच्छा!!
अब देख के, इश्क और मुहब्बत का ये शीशा!
वो "मौलवी-आशिक/ बिस्मिल, भी सुधर जाये तो अच्छा!!
दिन-रात, प्याज और लहम चाहिए इस को!?
ये "मुल्ला-प्याजी" भी सुधर जाये तो अच्छा!!
बाकी हैं, कई सपने, मचानो में, वफा के!
ये रात मचानों में ठहर जाये तो अच्छा!!
पाताल में रुक सी गई है " सुब्ह-ए-मुहब्बत "!
"शाम" ऊँचे मचानो़ में ठहर जाये तो अच्छा!!
" जब्बार गनी राजा हजीं भाई" के जैसे!
ये शैख, "मदीना" में ठहर जाये तो अच्छा!!
"गफ्फार", "मदीने" में ठहर जाते हैं अक्सर!
"अशरफ़" भी "मदीना" में ठहर जाये तो अच्छा!!
"जावेद " सुखनवर है,कलन्दर है, वली है!
ये, आप के हुजरे में ठहर जाये तो अच्छा!!
" जावेद"!, ये महफिल जमी है, शेर-व-अदब की!
यां आज की शब, तू भी ठहर जाये तो अच्छा!!

जदीद-व-मुन्फरिद सन्जीदा, तन्जिया, मजाहिया-व-इन्कलाबी गजल

आईने के आगे वो अगर आए तो अच्छा!
फिर टूट के आईना बिखर जाए तो अच्छा!!
ये हुस्न-व-जमाल आप का, यूँ ही रहे कायम!
हर एक अदू , आप का मर जाए तो अच्छा!!
ये चाँद मेरे घर का निकल आए/ जाए तो अच्छा/ बेहतर!
वो चन्द्रमा आकाश का छुप जाए तो अच्छा!!
आईना/ आईने के आगे है खड़ा मौलवी बिस्मिल/नौशा/ दुल्हा प्रेमी!
दुल्हन का पति और सँवर जाये तो अच्छा!!
मन्कूहा ये " बिस्मिल " की है, तो मेरी दुआ है :
" और " अहलिया-ए-नाथ" निखर जाये तो अच्छा!!
" मोहन " की तरह " मौलवी बिस्मिल " भी है नट-खट!
" अशरफ़ " की नजर से ये सुधर जाये तो अच्छा!!
" दाग"!, उंगलियां उठने लगीं ,दामाद जो आया!
दामाद हमारा ये सुधर जाये तो अच्छा!!
मैकश था, मगर आज शराबी नहीं है ये!
बेटी का पति और सुधर जाये तो अच्छा!!
ये " फौजिया अख्तर, ये रिदा, ताजा अदीबा "!
सन्सार में अब और निखर जाये तो अच्छा!!
सरकारी जर-व-माल से खा-खा के गेजायें/ गिजाय ( غذائیں)!
नेता का पिता और निखर जाये तो अच्छा!!
फल और मिठाई के सेवन से खिले चेहरा/ मुखड़ा!
मन्दिर का पुरोहित ये निखर जाये तो अच्छा!!
भगवान की किर्पा से ले फल और मिठाई!
ओडीशा का पन्डा भी निखर जाये तो अच्छा!!
खा-खा के, मिठाई ये , ज्यादा से ज्यादा!
पन्डित मेरा हमराज निखर जाये तो अच्छा!!
ये मौलवी बिस्मिल जी हैं पंडित बड़े अच्छे,
ये प्रेम के मंदिर में ठहर जाए तो अच्छा!
करते हैं ये दिन रात हसीनों की ही पूजा!
दिल इनका हसीनों पे ठहर जाए तो अच्छा!
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इसी वज्न-व-बह्र में दो अश्आर :-
आकाश का हर एक सितारा है पशेमा ( پشیماں)!
ये चाँद मेरे घर का, निकल आया है छत पर!!
वो चन्द्रमा आकाश का भी, बुझ सा गया है!
जब चाँद मेरे घर का, चला आया है छत पर!!
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नोट :- इस ग़ज़ल में मौलवी से मुराद, प्रेमनाथ बिस्मिल, समझा जाए तो अच्छा। इस तवील और मुन्फरिद गजल के दीगर शेर-व-सुखन आइंदा फिर कभी पेश किए जायेंगे, इन्शा-अल्लाह!
डाक्टर जावेद अशरफ़ कैस फैज अकबराबादी ,द्वारा डॉक्टर रामचन्द्र दास प्रेमी राज चंडी गढी, इन्सान प्रेमनगरी हाऊस,डॉक्टर खदीजा नरसिंग होम, रांची हिल साईड,इमामबाड़ा रोड राँची-834001,झारखण्ड, इन्डिया!
बिस्मिल को बुरा कहते हो! ये ठीक नहीं है!
ऐ राम! ऐ दास तेरे तेवर ये सुधर जाए तो अच्छा!
ये मौलवी बिस्मिल जी हैं पंडित बड़े अच्छे,
ये प्रेम के मंदिर में ठहर जाए तो अच्छा!
करते हैं ये दिन रात हसीनों की ही पूजा!
दिल इनका हसीनों पे ठहर जाए तो अच्छा!
प्रेमनाथ बिस्मिल
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