Ticker

6/recent/ticker-posts

त्याग और बलिदान का त्योहार बकरीद | बकरीद में कुर्बानी क्यों दी जाती है?

त्याग और बलिदान का त्योहार बकरीद | बकरीद क्यों मनाते हैं? Bakrid Kyu Manate Hai

त्याग और बलिदान का त्योहार " बक़रीद "
त्योहार इन्सान की जिंदगी में खुशियों का सन्देश ले कर आता है। जब लोग आपस में मिल कर खुशियां मनाते हैं तो एक स्वस्थ समाज का निर्माण होता है। जहाँ भारत में अनेक त्योहार मनाए जाते हैं वहीं इस्लाम मे केवल दो त्योहारों का प्रावधान है, ईद तथा बक़रीद तथा दोनों का सम्बन्ध मुख्य रूप से आत्मशुद्धि से ही है। आमतौर पर किसी व्यक्ति की याद में उत्सव मनाया जाता है जबकि तर्कसंगत बात यह है कि किसी ऐसी घटना की याद में त्यौहार मनाया जाए जिस से संपूर्ण मानव जाति को कोई सीख मिले तथा उसके आचरण का निर्माण हो सके। बकरीद मनाने का मुख्य उद्देश्य केवल माँस खाना नहीं है ब्लकि मनुष्य के भीतर दूसरों के लिए त्याग की भावना उत्पन्न करना है। इस महीने में सफेद कपड़ा (अहराम ) के समान वस्त्र धारण कर के हज करना मनुष्य को यह याद दिलाता है कि तुम्हें भी एक दिन मरना है और कफन लपेट कर इस संसार को त्याग देना है।

कुर्बानी का अर्थ क्या है? | कुर्बानी कितने तारीख के हैं? Bakrid Kyu Manate Hai

अरबी भाषा में " बक़रीद " को ईद-उल-अज़हा या ईद कुरबां कहते हैं अर्थात ईश्वर की इच्छानुसार जानवर क़ुर्बानी करना। अस्ल में इस पर्व का सम्बन्ध मक्का में किए जाने वाले वार्षिक हज से है। इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना मुहर्रम तथा अन्तिम महीना जि़लहिजजा अर्थात हज का महीना है। हज के दौरान इस महीने की 10 तारीख को हाजी जानवरों की क़ुर्बानी करते हैं जिनका अनुसरण करते हुए दुनिया भर के मुसलमान भी अपने सामर्थ्य के अनुसार कुर्बानी करते हैं।

बकरीद या कुर्बानी का इतिहास | History Of Bakrid Or Sacrifice

हर घटना की कोई न कोई ऐतिहासिक पृष्ठभूमि होती है। ईदुल फितर रमज़ान के तीस रोज़े रखने के बाद खुशी मे मनाई जाती है। ईद की नमाज़ वास्तव में ईश्वर का शुक्रिया अदा करने के लिए पढ़ा जाता है कि उसने लोगों को यह सन्मति दी कि रोज़े रख कर हम ईश्वर का आदेश मानें तथा अपनी आत्मा एवं शरीर की शुद्धि भी कर लें। अपने जीवन से बुराइयाँ समाप्त कर दें तथा अपनी आत्मा से छलकपट निकाल फेंके। रोज़ा केवल भूखे रहने का नाम नहीं है।
Bakrid Mubarak Image - Bakrid Kyu Manate Hai


बक़रीद की पृष्ठभूमि पैगंबर इब्राहिम द्वारा ईश्वर की आज्ञा से अपने पुत्र को कुर्बान करने की भावना

उसी प्रकार बक़रीद की भी एक पृष्ठभूमि है। हम जानते हैं कि पैग़म्बर मुहम्मद (शांति उन पर हो) इस्लाम धर्म के अंतिम ईशदूत हैं। मान्यता है कि उन से पहले ईश्वर ने संसार के हर क्षेत्र में लगभग 1,24,000 (एक लाख चौबीस हज़ार ) ईशदूत भेजे जिसमें से लगभग 26 ईशदूतों के नाम का उल्लेख उनके जीवन की घटनाओं के साथ पवित्र क़ुरआन में है।1,24,000 ईशदूतों में से अनेक महान पुरुष लोगों की नज़रों से ओझल रहे हैं। इसी कारण सभी धर्मों के महान पुरुषों का सम्मान करना चाहिए।
आज से लगभग 4000 वर्ष पूर्व पैगंबर इब्राहिम (शांति उन पर हो) का मक्का में जन्म हुआ। उनके पिता मूर्ति बनाते थे। जवान होने पर उनके मन में कौतुहल उठा कि वह मूर्ति ईश्वर कैसे हो सकती है जो अपने ऊपर बैठी एक मक्खी को भी न भगा सके। तब से वह सच्चे तथा निराकार ईश्वर की तलाश में रहने लगे। वह सूर्य तथा चन्द्रमा को ईश्वर समझने लगे। फिर सोचा कि डूब जाने वाला सूर्य ईश्वर नहीं हो सकता है। विचार करने के बाद उन्हें सहसा ज्ञात हुआ कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड का रचियता ईश्वर निराकार है।
बीबी हाजिरा से विवाह के बाद ईश्वर का आदेश हुआ कि मरूस्थल में मेरी पूजा के लिए एक पवित्र घर बनाओ। इसका अर्थ यह नहीं है कि उस घर की कोई पूजा करता है बल्कि यह घर विश्व भर के मुसलमानों के लिए एक क़िबला (नमाज़ पढ़ते समय एक ही दिशा की ओर मुंह करने का विश्व केंद्र ) है। यह वही घर है जो आज मक्का शहर में काबा के नाम से जाना जाता है जहां लोग हर वर्ष हज करने जाते हैं। जब उनके पुत्र इस्माईल (शांति उन पर हो) जवान हुए तो ईश्वर ने उनकी ईश्वर भक्ति को जांचने के लिए स्वप्न (मान्यता है कि पैगंबर का स्वप्न सच्चा होता है ) में आदेश दिया कि तुम अपने प्रिय पुत्र को मेरे लिए ज़िब्ह (बलि ) करो। पिता इब्राहिम द्वारा ईश्वर की आज्ञा से अपने पुत्र को कुर्बान करने की भावना तथा पुत्र इस्माइल द्वारा ईश्वर और पिता की आज्ञा का पालन करना एक ऐतिहासिक घटना सिद्ध हुई। इब्राहिम ने पुत्र इस्माइल की सहमति से उसे जि़बह करने के लिए जमीन पर लिटा दिया। ईश्वर की कृपा हुई और पलक झपकते फरिश्तों ( देवदूत ) के द्वारा पुत्र इस्माइल के स्थान पर एक भेड़ ज़िब्ह करवाया गया। इस्माइल वहीं पर खड़े मुस्कुरा रहे थे। वास्तव में ईश्वर किसी मनुष्य की बलि नहीं लेना चाहता था ब्लकि संसार को अपने प्रिय ईशदूत इब्राहिम के द्वारा अपनी सबसे प्रिय वस्तु पुत्र का त्याग करना दिखाना चाहता था।
बक़रीद की सुबह जब मुसलमान नमाज़ पढ़ने ईदगाह जाते हैं तो रास्ते में अरबी भाषा में एक उद्घोष करते जाते हैं जिसका अर्थ होता है, " ईश्वर सबसे महान है, उसके सिवाय कोई पूज्य नहीं तथा तमाम प्रशंसा उसी के लिए है"। जानवर की कुर्बानी करते समय जो श्लोक पढ़ते हैं उसका सार है, " हे ईश्वर! मेरी पूजा, मेरी कुर्बानी, मेरा जीवन तथा मेरी मृत्यु सब कुछ तेरे लिए है "।

कुर्बानी की दुआ हिंदी | Qurbani Ki Dua English

इन्नी वज्जह्तु वज्हि-य लिल्लज़ी फ़-त-रस्समावाति वल अर-ज़ अला मिल्लति इब्राही- म हनीफ़ंव व मा अना मिनल मुश्रिकीन इन-न सलाती व नुसुकी व महया-य व ममाती लिल्लाहि रब्बिल आ ल मी न ला शरी-क लहू व बि ज़ालि-क उमिर्तु व अना मिनल मुस्लिमीन अल्लाहुम-म मिन-क व ल-क अन ० बिस्मिल्लाह वल्लाहू अकबर।
मैंने उस ज़ात की तरफ़ अपना रुख मोड़ा जिसने आसमानों को और जमीनों को पैदा किया, इस हाल में में इब्राहीम में हनीफ़ के दीन पर हूं और मुश्रिको में से नहीं हूँ।
बेशक मेरी नमाज़ और मेरी इबादत और मेरा मरना और जीना सब अल्लाह के लिए है जो रब्बुल आलमीन है, जिसका कोई शरीक नहीं और मुझे इसी का हुक्म दिया गया है और मैं फरमाबरदारों में से हूं। ऐ अल्लाह, यह कुर्बानी तेरी तौफ़ीक़ से है और तेरे लिए है।
Inni Wazjjahtu Wajahi Ya Lillazi Fa Ta Rassamawati Wal Arz Hanifauv Wa Ma Ana Minal Mushriqi Na In Na Salaati Wa Nusuki Wa Mahya Ya Wa Mamaati Lillahi Rabbil Aalmin। La Shariq Lahu Wa Bizali Ka Uriratu Wa Ana Minal Muslimin। Allahumma Ma La Ka Wa Min Ka Bismillahi Allahu Akbar।
***
इस वास्तविक घटना से मनुष्यों को यह सबक मिलता है कि जब कभी भी मानव कल्याण के लिए अपनी प्रिय वस्तु का त्याग करना पड़े तो तनिक भी सोचना न पड़े।
क़ुरान के एक श्लोक का अनुवाद है कि..
"तुम भलाई को हरगिज़ नहीं पहुंच सकते जब तक कि तुम अपनी सबसे प्रिय वस्तु कुर्बान न कर दो "। (सूरह आले इमरान- श्लोक 92)
स्वामी विवेकानंद सरस्वती का कथन है, "Great Things Can Be Done By Great Sacrifices Only".
दूसरा लाभ यह हुआ कि ईश्वर ने यह प्रावधान कर दिया कि लोग हलाल (वैध) तरीके से पशु को जिबह करके खा सकें तथा ग़रीबों, पड़ोसियों और रिश्तेदारों को भी उसमें से खिलाएँ। यहां तक कि पशु की खाल बेच कर उसकी कीमत भी ग़रीबों को दान कर देने का निर्देश दिया गया है। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि ईश्वर ने मनुष्य को सर्वहारी बनाया है। मनुष्य के मुख में नुकीले दाँत होना इस बात को प्रमाणित करता है कि वह शाक सब्जी के साथ-साथ मांस भी खा सके।
According To Zoologist Matan Shelomi " Humans Are Definitely Omnivores.The Best Evidence Is Our Teeth.We Have Biting/Tearing/Ripping Incisors And Canines (Like Carnivores) And Chewing Molars (Like Herbivores). Animals With Such Diverse Teeth Tend To Be Omnivores".
अर्थात " मनुष्य प्रमुखतः एक सर्वहारी है। इसका सबसे उत्तम उदाहरण हमारे दांत है। हमारे पास काटने के लिए, कुतरने के लिए तथा फाड़ने के लिए तीन तरह के दांत हैं। जिस प्राणी में इतने भिन्न प्रकार के दांत होते हैं वह सर्वहारी प्रतीत होते हैं "। 
ईश्वर ने मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ बनाया है। समस्त संसार ही नहीं संपूर्ण ब्रह्मांड को मानव कल्याण के लिए रचा है। इस से यह भी विदित होता है कि मरने के बाद प्रत्येक व्यक्ति से इस संबंध में प्रश्न किया जाएगा कि तुमने मेरी नेमतों (कृपा एवं उपहार) का किस तरह उपयोग किया। इतिहास भी ऐसे तथ्यों से भरा पड़ा है जिस से यह प्रमाणित होता है कि कि मनुष्य सृष्टि के आरम्भ से ही मांस खाता रहा है। जब मानव जंगल मे वास करता था तो जानवरों का शिकार करके उसे आग में पका कर खाता था। यह भी एक स्वसिद्ध प्राकृतिक व्यवस्था है कि जिन पशुओं का मांस खाया जाता है उनकी संख्या अधिक होती जबकि अन्य कि कम। 
दूसरी ओर यह भी सिद्ध हो चुका है कि पशु के गर्दन पर धीरे-धीरे छुरा चलाने से उसके शरीर का संपूर्ण रक्त बाहर आ जाता है, जबकि अन्य तरीकों से वध करने से शरीर के अंदर रक्त जमा रह जाता है जो मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। अतः हम कह सकते हैं कि बक़रीद में जानवर की कुर्बानी करना जीव हत्या नहीं है ब्लकि वैध तरीके से मांस खाने का जन्मसिद्ध प्राकृतिक अधिकार है। कुल मिलाकर यह घटना मनुष्य के लिए सर्वथा लाभकारी सिद्ध होता है। इस त्योहार के माध्यम से प्रति वर्ष उसे त्याग करना याद दिलाया जाता है जो बक़रीद का मुख्य संदेश है। इसी घटना की याद में हर वर्ष विश्व भर में मुसलमान बक़रीद का त्योहार मनाते हैं।
सरफराज आलम, आलमगंज पटना, संपर्क 8825189373

Read More और पढ़ें:

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ