Ticker

6/recent/ticker-posts

मैं किताब हूँ। कलम के बाद, ईश्वर ने सबसे पहले मेरी रचना की

मैं किताब हूँ। कलम के बाद, ईश्वर ने सबसे पहले मेरी रचना की


main-kitab-hun-kalam-ke-bad-ishwar-ne sabse-pahle-meri-rachna-ki Sarfaraz Alam


मैं किताब हूँ...!
मैं किताब हूँ। कलम के बाद, ईश्वर ने सबसे पहले मेरी रचना की। कलम को लिखने का आदेश दिया और तब मैंने अपना अस्तित्व पाया। समस्त ब्रह्माण्ड में सबसे पहले मेरा नामकरण हुआ। मेरे पृष्ठ प्रलय के दिन तक की संपूर्ण घटनाओं से भर दिए गए। मैं उस समय से हूं जब आदम थे न हौवा। समस्त ब्रह्माण्ड के नष्ट होने के बाद भी मैं समस्त मानव के कर्मों के लेखा जोखा के रूप में रहूंगी। मैं कहीं कुरान के रूप में हूं तो कहीं बाइबिल और गीता के रूप में। ईश्वर ने मेरे द्वारा ही समस्त ब्रह्माण्ड का रहस्योद्घाटन किया है। मुझे पढ़ना दुनिया में सबसे बड़ा काम माना जाता है। जो कोई मुझसे दूर रहता है, ईश्वर उसे ज्ञान नहीं देता है। दुनिया की सभी महान हस्तियों ने भी मेरे महत्व को स्वीकार किया है।

संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपतियों में से एक, बराक ओबामा कहते हैं।
“Reading is important, if you know how to read, then the whole world opens up to you”
(Barrack Obama)

अनुवाद: “अध्ययन बहुत महत्वपूर्ण है। यदि आपमें पढ़ने का जुनून और जागरूकता आएगी, तो आपके सामने पूरी दुनिया (यहां तक ​​कि ब्रह्मांड) का रहस्य खुल जाएगा।” मुझे पढ़कर लोग दुनिया में सफल हो जाते हैं। मैं हमेशा लोगों के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही हूं। दुनिया में सभी विचार पुस्तक के माध्यम से ही सामने आते हैं। मैं हमेशा लोगों की सबसे महत्वपूर्ण और पहली जरूरत रही हूं। हर कोई मुझे जन्म से मृत्यु तक गले लगाना चाहता है। लोगों ने मुझे अपना सबसे अच्छा दोस्त माना है। मैं टूटे हुए दिलों का सबसे बड़ा सहारा भी हूँ। लोगों की सारी यादें मुझमें संजोई हुई हैं। मैंने दुनिया के बड़े लोगों को रास्ता दिखाया है। जो मुझसे दोस्ती करता है वह कभी अकेला महसूस नहीं करता है। लोगों ने मुझे पढ़कर अपनी दुनिया और परलोक सँवारा है। एक सफल व्यक्ति के पीछे मेरा सबसे बड़ा हाथ है। चाहे कुछ भी कहें सभी मनुष्यों का सच मेरे सीने में ही छिपा हुआ है। मेरे पास सच्चाई का सबसे बड़ा खजाना है। जर्मनी के महान शासक नेपोलियन ने यहां तक ​​कहा कि किताब से करीब रहने वाला परिवार दुनिया के लिए एक आदर्श होता है।

“ Show me a family of readers, and I will show you the people who moved the world ”
( Napoleon Bonaparte)

अनुवाद: “ मुझे एक पढ़ने वाला परिवार दिखाओ, मैं तुम्हें ऐसे लोगों को दिखाऊंगा जिन्होंने दुनिया बदल दी है ”।

लेकिन अब मैं बहुत दुखी हूं क्योंकि विज्ञान की प्रगति ने मुझे लोगों से दूर कर दिया है। यह कैसी प्रगति है जिसने कलम और पुस्तक के अस्तित्व को ही खतरे में डाल दिया है। ऐसा विकास किसी का मित्र नहीं हो सकता, किसी का कल्याण नहीं कर सकता है। दुर्भाग्य से, विज्ञान के विकास के नशे में, लोग अब मेरे साथ हजारों साल की दोस्ती को भूल रहे हैं। वैज्ञानिक आविष्कारों से सबसे अधिक अन्याय मुझ पर हुआ है। सभी प्रकार के वैज्ञानिक उपकरणों ने मनुष्य को अपने चंगुल में फंसाया है। लोग इसमें अपना सारा समय इसी पर बर्बाद कर रहे हैं। अब ज्यादातर लोगों ने मुझे अलमारियों में बंद करना शुरू कर दिया है। अब मैं उन लोगों से दूर होती जा रही हूं। पुस्तकालय में मुझ पर से धूल हटाने वाले भी अब समाप्त होते जा रहे हैं। एक समय था जब मुझे पाने के लिए पुस्तकालय पर कब्जा किया जाता था। मुझसे सीखने के लिए पुस्तकालय की मेजें पढ़ने वालों से भरी होती थीं। मेरे सीने में दबे लाल - गुहर (क़ीमती मोती) खोजकर राष्ट्रों ने अपनी किस्मत बनाई, लेकिन आज मुझे पुराना कह कर एक तरफ धकेल दिया गया है।

जो भी हो, यह भी सच है कि पढ़ी जाने वाली अन्य सभी चीजें कभी भी मेरे बराबर नहीं हो सकती हैं। मैंने लोगों को यह भी सिखाया है कि एक बुद्धिमान व्यक्ति वह है जो बोलने से पहले सोचता है और सोचने के लिए मुझसे मित्रता करनी होती है।

“ Think before you speak, Read before you think ”.
(Fran Lebovitz)

अनुवाद: “ बोलने से पहले ध्यान से सोचें और सोचने से पहले किताबें पढ़ें ”।

किताबें भी कई तरह की होती हैं, हालाँकि मैं हमेशा अच्छी बातें बताती हूँ, लेकिन कुछ दुष्ट लोगों ने मुझे भी दूषित किया है। इसलिए मुझे खरीदने से पहले आप किसी अनुभवी व्यक्ति से सलाह जरूर लें, नहीं तो मैं आपकी नजरों में संदेहास्पद हो जाऊंगी ।

बच्चे भी अब मुझसे रूठने लगे हैं। अब स्कूलों में भी विज्ञान के हाथ मैं बर्बाद हो रही हूँ। पहले सीडी ड्राइव ने आकर मेरा गला घोंट दिया, फिर पीडीएफ और यू ट्यूब ने मेरा अंतिम संस्कार कर दिया। डर है कि अब बच्चे भी मुझे भुला देंगे। नई पीढ़ी को सिखाया जा रहा है कि अब सभी पुस्तकें इंटरनेट पर उपलब्ध हैं, इसलिए पुस्तक की कोई आवश्यकता नहीं है। रही सही कसर कई ऑनलाइन कक्षाओं ने पूरा कर दिया है। खैर, जब इंटरनेट प्रणाली अचानक गिर जाएगी तो मैं ही रास्ता दिखाऊंगी। उस समय जिनके घरों में मेरी अलमारी होगी वह सबसे ज्यादा रोशनी में होंगे। हैरानी की बात तो यह है कि मेरी अहमियत समझने वाले भी हारते नजर आ रहे हैं। कभी-कभी साल में जब मुझे पुस्तक मेले में सम्मानित किया जाता है, तो मुझे खुशी होती है, लेकिन वहां भी लोग मुझे देखकर सिर्फ मज़ा लेते हैं। अब बच्चे मुझसे ज्यादा खिलौने खरीदकर खुश होते हैं।

एक बात समझ में नहीं आ रही है कि जब मुझ से दोस्ती खत्म हो रही है तो मुझे प्रकाशित कर मेरा मज़ाक क्यों उड़ाया जा रहा है ? लोग मुझे प्रकाशित करके अपना प्रभाव तो जमा रहे हैं, लेकिन नहीं पढ़कर लोग मुझे और अधिक परेशान कर रहे हैं। दुष्ट लोगों ने अनैतिक चित्र प्रकाशित कर मुझे वेश्या ही बना दिया है। लोग अब मेरी उच्चतम गुणवत्ता वाली पुस्तकों को भी वैज्ञानिक उपकरण के हवाले कर रहे हैं। मेरी ही जाति समाचार पत्र भी अब दम तोड़ रही है। ऑनलाइन समाचार पत्र के आकर्षण ने मेरे नाम पर किए गए खर्च को भी समाप्त कर दिया है। एक समय था जब मेरी अलमारी शिक्षित घरों की पहचान होती थी, अब मेहमानखाने में महंगे फर्नीचर ने मुझे किनारे कर दिया है।

“ A room without books is like a body without soul ”.
(Marcus Tullius Cicero)

अनुवाद: “बिना किताबों वाला घर बिना आत्मा के शरीर के समान है।”

खैर, अब मेरे सामने दो ही रास्ते हैं, या तो मैं उस समय का इंतज़ार करूँ जब मेरे चाहने वालों की एक टोली उठकर मुझ पर पड़े धूल को हटाकर मेरी इज्जत करे, या फिर एक अज्ञात समय तक मैं इंसानों की मूर्खता का मातम करूँ। मनुष्य तो अब भ्रष्ट रास्ते पर भटक गया है और भूल गया है कि उसके पूर्वजों की सारी संपत्ति और दास्तान मेरे पास सुरक्षित है। मैं तब तक इंतजार करूंगी जब तक कि एक दिन वैज्ञानिक उपकरण बेकार हो जाएं और लोग मेरी गोद में शरण लें। अब भी वक्त है लोग मुझसे दोस्ती करें, मुझे गले लगाएं, वरना एक दिन मैं गूगल बाबा से भी गा़यब कर दी जाऊँगी। तुम्हें जब कहीं ठिकाना न मिलेगा तब भी मैं वफादार रहूँगी। यही ईश्वर की मर्जी, यही मेरे लिए ईश्वर का आदेश और यही मेरी नियति है।

एक अजीब कशमकश है, मैं लोगों की खुशामद भी नहीं कर सकती इसलिए कि मैं अनमोल होते हुए भी बेजान हूं..! समय की प्रतीक्षा में अलमारियों से झांकते हुए, मैं अपने अच्छे दिन की प्रतीक्षा कर रही एक किताब हूं, हाँ मैं एक किताब हूँ। शायद फिर लोग मेरी ओर मुड़ेंगे और मुझे अपने जीवन का हिस्सा बना लेंगे। मुझ पर अपना धन खर्च करने में गर्व महसूस करेंंगे। ईश्वर मनुष्य जाति को मुझसे प्यार करने का अवसर तथा आशीर्वाद दे, आमीन!

सरफराज आलम,
अलहिरा पब्लिक स्कूल
शरीफ कॉलोनी , पटना
संपर्क..8825189373

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ