कलम का जादूगर मुंशी प्रेमचंद पर कविता Poem On Munshi Premchand In Hindi
कलम का जादूगर मुंशी प्रेमचंद
“जयंती पर कोटि कोटि नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि साहित्य के सूरज और प्रतीक मुंशी प्रेमचंद जी को”
नाम सुनते ही मुंशी प्रेमचंद का, मन में आते नए ख्याल,
कोई कहता कलम का जादूगर, कोई साहित्य की मशाल।
31 जुलाई 1880 का दिन था, वाराणसी का ग्राम लमही,
जब घर मुंशी अजायब लाल जी के, पैदा हुआ एक लाल।
छोटी उम्र में माता प्रभु को प्यारी, निर्दई निकला काल।
नाम सुनते ही मुंशी ……
बचपन का सामना अभावों से, रहा बड़ा कष्टमय बालपन,
प्रतिभा ने हार नहीं मानी उनकी, महकी बनकर चंदन।
पढ़ाई अपनी पूरी करके, उन्होंने अपना क्षेत्र चुना अध्यापन,
पदोन्नति से उप निरीक्षक बने, लगा बुरा गुलामी का बंधन।
नवाब राय के नाम से, क़लम उनकी लगाने लगी आग,
दिलो दिमाग को खल रहा था खूब, पराधीनता का बिछा जाल।
नाम सुनते ही मुंशी……
मार दी लात और छोड़ दी नौकरी, और बन गए एक पत्रकार,
रोक नहीं पाए खुद को, देश की आजादी पर ऐसा उमड़ा प्यार!
उनकी हर रचना आज भी जवान है, लगती है सदाबहार,
कविता, कहानी, उपन्यास सब सरस, रस का गजब भंडार।
गोदान, गबन, सेवा सदन, निर्मला आदि उपन्यास
कमाल के,
08 अक्टूबर 1936 को स्वर्गवास, आजादी का रह गया मलाल।
नाम सुनते ही मुंशी……
देखना हो अगर किसी को गांव की भाषा का इस्तेमाल,
इसके लिए मुंशी प्रेमचंद जी की हर रचना है बेमिसाल।
जन्म दिवस पर कोटि कोटि नमन, हे कलम के जादूगर,
आप जैसा साहित्यकार धरती पर पधारने में, लग जाते सालों साल।
नाम सुनते ही मुंशी……
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
नासिक (महाराष्ट्र)/
जयनगर (मधुबनी) बिहार
“जयंती पर कोटि कोटि नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि साहित्य के सूरज और प्रतीक मुंशी प्रेमचंद जी को”
नाम सुनते ही मुंशी प्रेमचंद का, मन में आते नए ख्याल,
कोई कहता कलम का जादूगर, कोई साहित्य की मशाल।
31 जुलाई 1880 का दिन था, वाराणसी का ग्राम लमही,
जब घर मुंशी अजायब लाल जी के, पैदा हुआ एक लाल।
छोटी उम्र में माता प्रभु को प्यारी, निर्दई निकला काल।
नाम सुनते ही मुंशी ……
बचपन का सामना अभावों से, रहा बड़ा कष्टमय बालपन,
प्रतिभा ने हार नहीं मानी उनकी, महकी बनकर चंदन।
पढ़ाई अपनी पूरी करके, उन्होंने अपना क्षेत्र चुना अध्यापन,
पदोन्नति से उप निरीक्षक बने, लगा बुरा गुलामी का बंधन।
नवाब राय के नाम से, क़लम उनकी लगाने लगी आग,
दिलो दिमाग को खल रहा था खूब, पराधीनता का बिछा जाल।
नाम सुनते ही मुंशी……
मार दी लात और छोड़ दी नौकरी, और बन गए एक पत्रकार,
रोक नहीं पाए खुद को, देश की आजादी पर ऐसा उमड़ा प्यार!
उनकी हर रचना आज भी जवान है, लगती है सदाबहार,
कविता, कहानी, उपन्यास सब सरस, रस का गजब भंडार।
गोदान, गबन, सेवा सदन, निर्मला आदि उपन्यास
कमाल के,
08 अक्टूबर 1936 को स्वर्गवास, आजादी का रह गया मलाल।
नाम सुनते ही मुंशी……
देखना हो अगर किसी को गांव की भाषा का इस्तेमाल,
इसके लिए मुंशी प्रेमचंद जी की हर रचना है बेमिसाल।
जन्म दिवस पर कोटि कोटि नमन, हे कलम के जादूगर,
आप जैसा साहित्यकार धरती पर पधारने में, लग जाते सालों साल।
नाम सुनते ही मुंशी……
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
नासिक (महाराष्ट्र)/
जयनगर (मधुबनी) बिहार
कलम का जादूगर मुंशी प्रेमचंद पर कविता Poem On Munshi Premchand In Hindi
मुंशी प्रेमचंद जी के जयंती पर विशेष
लमही बनारस में
31जुलाई 1880 को जन्में
अजायबराय आनंदी देवी सुत प्रेमचंद
धनपतराय नाम था उनका
लेखन का नाम नवाबराय।
हिंदी, उर्दू,फारसी के ज्ञाता
शिक्षक, चिंतक, विचारक, संपादक
कथाकार,, उपन्यासकार
बहुमुखी, संवेदनशील मुंशी प्रेमचंद
सामाजिक कुरीतियों से चिंतित
अंधविश्वासी परम्पराओं से बेचैन
लेखन को हथियार बना
परिवर्तन की राह पर चले,
समाज का निचला तबका हो
या समाज में फैली बुराइयाँ
पैनी निगाहों से देखा समझा
कलम चलाई तो जैसे
पात्र हो या समस्या
सब जीवंत सा होता,
जो भी पढ़ा उसे अपना ही
किस्सा लगा,
या अपने आसपास होता
महसूस करता,
उनका लेखन यथार्थ बोध कराता
समाज को आइना दिखाता,
शालीनता के साथ कचोटता
चिंतन को विवश करता
शब्दभावों से राह भी दिखाता।
अनेकों कहानियां, उपन्यास लिखे
सब में कुछ न कुछ समस्या
उजागर कर अपना स्वर दिया,
लेखन से जागरूकता का
जन जागरण किए।
'सोजे वतन' चर्चित हुई
मगर नबाब छिन गया,
गरीबों के हित चिंतक
महिलाओं के उद्धारक
मुंशी प्रेमचंद नया नाम
'पंच परमेश्वर' से आया।
गबन, गोदान, निर्मला
कर्मभूमि ,सेवासदन लिख
उपन्यास सम्राट हुए,
चर्चित कहानियों में
'सवा सेर गेहूँ' की
'गुप्त धन' सी तलाश में
'ठाकुर के कुएँ' के पास
'बड़े घर की बेटी'
'बूढ़ी काकी' और
'नमक का दरोगा' के सामने
'पूस की रात'
'ईदगाह' के मैदान में
ये 'शतरंज का खिलाड़ी'
'कफन' की चादर ओढ़
8 अक्टूबर 1939 को
दुनिया को अलविदा कह गया,
परंतु अपनी अमिट छाप
धरा पर छोड़ गया,
मुंशी प्रेमचंद नाम
सदा सदा के लिए
अमर कर गया।
श्रीराम शर्मा
मुन्शी प्रेमचंद जी के जयंती पर कविता
मुन्शी प्रेमचंद जी के जयंती पर मेरी रचना
प्रेमचंद एक ऐसा नाम
( मुक्तछंद काव्य रचना )
सुरज की तरह चमकते रहें,
प्रेमचंद था जिनका वो नाम।
कहलाये कलम के जादूगर और
रोशन हुआ वो लमही ग्राम।
अलौकिक प्रतिभा उनकी न्यारी,
साहित्य क्षेत्र में हुआ अविष्कार।
हर रचना उनकी रही बेमिसाल,
जैसे लहू में उनके था ज्ञान का भंडार।
उनके स्वतंत्र विचारधाराओं को,
अच्छा नहीं लगा वो गुलामी का बंधन।
त्यागकर वो अध्यापन का कार्य,
साहित्य क्षेत्र में बन गये वो चंदन।
समाज के हित में चलाकर कलम,
बुराईयों के खिलाफ लिखते रहे।
इसी तरह साहित्य के माध्यम से,
सच्चाई का दर्पण वो दिखाते रहे।
परिवर्तन ही लक्ष्य था उनका,
ज्ञान की मशाल बनकर वो जले।
सुरज की रोशनी जैसा तेज उनका,
अंधेरी राहों पर प्रकाश बनके वो चलें।
मुन्शी प्रेमचंद एक ऐॆसा नाम,
हिंदी साहित्य के लिए बने उपहार है।
ऐॆसा महान अलौकिक साहित्य सम्राट,
हिंदी साहित्य के लिए कोहिनूर है।
प्रा.गायकवाड विलास.
मिलिंद क.महा.लातूर.
महाराष्ट्र
31 जुलाई : मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर कविता
प्रेमचंद को नमन
जिनकी रचना इक गबन
और लिखे गोदान।
कालजयी इक निर्मला
काकी खालाजान।
काकी खालाजान
कहो पंच परमेश्वर।
बसते पंच जुबान
नित्य रे भगवन ईश्वर।
कफन कफन का बोल
सुनो मदिरालय मनकी।
हे नमन प्रेमचंद
लेखनी अद्भुत जिनकी।
धन्यवाद।
प्रभाकर सिंह
नवगछिया, भागलपुर
बिहार
जिनकी रचना इक गबन
और लिखे गोदान।
कालजयी इक निर्मला
काकी खालाजान।
काकी खालाजान
कहो पंच परमेश्वर।
बसते पंच जुबान
नित्य रे भगवन ईश्वर।
कफन कफन का बोल
सुनो मदिरालय मनकी।
हे नमन प्रेमचंद
लेखनी अद्भुत जिनकी।
धन्यवाद।
प्रभाकर सिंह
नवगछिया, भागलपुर
बिहार
दुनिया के तीन महान उपन्यासकारों (मुंशी प्रेमचंद, मैक्सिम गोर्की, शरतचंद्र) में से एक मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती पर समर्पित एक रचना
प्रेमचंद
आशाओं का ले दीप जो
तम को मिटाते थे;
बेफिक्र होकर अपने जो
गम को भुलाते थे!
जिनकी कुछेक बातें कयी
अधरों में बंद है,
उस शख्स का ही नाम
मुंशी प्रेमचंद है।
अन्याय की उठती हुई
लपटें बुझाते थे;
लिख ज्ञान की रचनाएँ
लोगों को जगाते थे!
जिसने सिखाया न्यायिक
बातें बुलंद है,
उस शख्स का ही नाम
मुंशी प्रेमचंद है।
कुछ कृतियों में मृदुमयी
मोती ही सजे हैं;
मातृप्रेम क्या है वो भी
तत्व भरे हैं !
जिसने कहा माँ में सुखद
अनुपम आनंद है,
उस शख्स का ही नाम
मुंशी प्रेमचंद है।
विधवा, कृषक, श्रमिकों के
दुख दर्द समझ लेते थे;
उद्देश्यपूर्ण कर उसे सुगम
शैली में लिख देते थे!
जिनकी सभी रचनाएँ
जन जन को पसंद है,
उस शख्स का ही नाम
मुंशी प्रेमचंद है।
जो जिंदगीभर आर्थिक
अभाव में रहा;
गिरते को उठाना उनके
स्वभाव में रहा!
जिनके सम्मान में कही
हर बातें चंद है,
उस शख्स का ही नाम
मुंशी प्रेमचंद है।
अनुरागी सुनील
मुंशीप्रेम चंद जी 31 जुलाई : मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर कविता
प्रेम मे आतुर
भाव विभोर हो
भावनाओं को
सदैव सजाऐ
ऐसे थे मुंशीप्रेम चंद
जिनकी कविताओं मे
डूब हम ज्ञान पाऐ।।
कविताओं के विरोद्धि जो
उन्हें नजरअंदाज कर
समाज हित मे जो सदैव
कलम थे चलाऐ।।
ऐसे थे मुंशीप्रेम चंद
जिनकी कविताओं मे
डूब हम ज्ञान पाऐ।।
रुढ़िवादी समाज मे जो
परिवर्तन की धार बहाऐ
ठान लिया जो संस्कारों
की बेड़ी मे रह वो निभाऐ।।
ऐसे थे मुंशीप्रेम चंद
जिनकी कविताओं मे
डूब हम ज्ञान पाऐ।।
वीना आडवानी"तन्वी"
नागपुर, महाराष्ट्र
प्रेमचंद हिन्दी साहित्य जगत का सितारा है!
प्रेमचंद
प्रेमचंद हिन्दी साहित्य जगत का सितारा है।
जिन के विषय में हरेक कहे यह हमारा है।।
समाज की कुरितीयों पे साहीत्यिक प्रहार।
अंग्रेज भी करते उनके विषयों का विचार।।
प्रेमचंद ने उर्दु को भी परवान चढाई।
धनपत राय नाम से खूब पाई बड़ाई।।
कई उपन्यास और कहानी उनके नाम।
सच में बड़ा ही अनमोल रहा उनका काम।।
जमीनदार सास बेटीयों की पढाई।
साहित्य से सरकार पर किल अपनी गड़ाई।।
सोते समाज को जगाने का काम किया।
इसिलिए जमाने ने प्रेमचंद का नाम किया।।
आज उनकी जयंती धूमधाम से मनाते हैं।
उनके प्रशंसा की गीत सभी मिलकर गाते हैं।।
देश कभी ना भूला पायेगा ऐसो को।
यह कार्य चाहने वालें ना के पैसों को।।
'शहज़ाद' प्रेमचंद अमर हिन्दी लिखान से।
कौन मिटा पाया उनके नाम को जहाँन से।।
कवि:-मजीदबेग मुगल 'शहज़ाद'
हिगणघाट जि,वर्धा,महाराष्ट्र
8329309229
मुंशी प्रेमचंद पर कविता Poem On Munshi Premchand
मुंशी प्रेमचंद
31 जुलाई 1880 वाराणसी में,
उत्तर प्रदेश का लमही था गांव।
माता आनंदी पिता अजायव राम,
बालक जन्मा धनपत था नाम।
14 वर्ष की अल्पायु में ही,
स्वर्ग सिधारे मां और बाप।
किशोरावस्था में कठिनता से
बहुत जूझ रहे थे आप।
मैट्रिक पूरी करते ही,
शिक्षक लग गए थे आप।
बी ए उतीर्ण करते ही,
शिक्षा इंस्पेक्टर हुए जनाब।
1907 में प्रकाशित हुई,
प्रथम कहानी अनमोल रत्न।
जमाना पत्रिका में लिखते थे,
नबाब राय उर्दू में मोहते मन।
1908 को जमाना पत्रिका में,
प्रकाशित प्रथम कहानी संग्रह।
सोजे वतन था नाम जिसका,
विफल हो गया था वह।
हमीरपुर के कलेक्टर को,
रास न आई थी यह बात।
1910 में जब्त किया और,
सोजे वतन को किया राख।
संपादक मुंशी दया नारायण निगम,
राय दे गए एक नेक।
प्रेमचंद के नाम से ही,
अब आगे लिखिएगा लेख।
मुंशी प्रेमचंद को शरद चंद्र ने,
कहां उपन्यासों का सम्राट।
फिर संवेदनशील लेखक वक्ता,
संपादन में थे बहु विद्वान।
ललिता कश्यप गांव सायर जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश
याथार्थ के प्रणेता मुंशी प्रेमचंद : उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद जयंती के उपलक्ष पर विशेष कविता
याथार्थ के प्रणेता मुंशी प्रेमचंद
भारत के ही नहीं
बनें विश्व के सम्मान।
सारी दुनियां गाती
प्रेमचंद्र के यश गान।
प्रगतिशील लेखन से
सोए भाग जगाए।
सोजे वतन कहानी से
क्रांति के दीप जलाए।
लमही गांव धन्य हो गया
मुंशी के नाम से।
छोड़ नौकरी आजादी हित
भारत के गुण गाए।
खींचा जग का
यथार्थवादी लेखन से ध्यान।
सारी दुनियां गाती
प्रेमचंद्र के यश गान।।
आनंदी देवी अजायब राय का
ऊंचा नाम किया।
परिवार पोषण हेतु
बन अध्यापक काम किया।
शरदचंद्र चट्टोपाध्याय ने
उपन्यासकार सम्राट कहा।
बढ़ते रहे लक्ष्य पर
पल भर न आराम किया
अमर हो गए सेवा दर्शन
निर्मला गवन गोदान।
सारी दुनियां गाती
प्रेमचंद्र के यश गान।।
पन्द्रह उपन्यास तीन सौ से
अधिक लिखी कहानी।
अंग्रेजी उर्दू फारसी
चीनी रूसी की बनी जुवानी।
कोई कहता धनपत राय
नबाब राय, मुंशी, प्रेमचंद।
माणिक करता नमन
तुम्हें हे जीवन दर्शन के ज्ञानी।
शत् शत् नमन तुम्हे है
साहित्य जगत के दीप मान।
सारी दुनियां गाती
प्रेमचंद के यश गान।।
मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।
भास्कर सिंह माणिक, कोंच
उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती
(31 जुलाई,1880लमही, काशी)
सत्य, निष्ठा और न्याय
मेरा गांव मेरा देश
सत्य, निष्ठा और न्याय के पथ पर,
मैं जीवन भर चलती जाऊं।
सादा जीवन हो उच्च विचार,
मैं महापुरुषों से ऐसी सीख लाऊं।
आदर्श यथार्थ भरी कहानियां ईदगाह, पंच परमेश्वर,
मैं अपने जीवन में अपनाऊं।
ना कोई बेटी निर्मला बने, ना कोई किसान होरी,
मैं दहेज ना लूं, कसम ऐसी खाऊं।
सब जन को दो वक्त की रोटी मिलें,
ना फिर कोई कथा कफन जैसी लिखी जाए,
मैं सब के सपनों को साकार करूं।
आत्मनिर्भर बनो! ईमान की जिंदगी! जियो!,
पाप की कमाई पानी में बहती जाए।
मेरा गांव मेरा देश भ्रष्टाचार से मुक्त हो,
मैं आचरण का पालन कर औरों को पाठ पढ़ाऊं।
शोषित नहीं, शिक्षित बनो!
विचारों से धनी बनो!, मैं जन में चेतना लाऊं।
(मौलिक रचना)
चेतना चितेरी, प्रयागराज
31/7/2021,6:10pm
कलम का सिपाही ऐसे नही प्रेमचंद कहलाते हैं
हिंदी के हस्ताक्षर बन जीवन सफल कर लेते हैं।
एक बार जन्म ले अपना जीवन अमर कर लेते हैं।
कलम का सिपाही ऐसे नही प्रेमचंद कहलाते हैं।
तलवार जितना तेज चले रण में उससे तेज कलम चलाते हैं।
पढो निर्मला, गोदान या क़र्बला दुखती रग की कथा बताते हैं।
थमते नही आँखों में अंशु जैसे अपनी ही कथा सुनाते हैं।
इतराता अपने भाग्य पर कागज जब उसको पढ़ा जाता है।
चली थी लेखनी प्रेमचंद का इसपर जब कोई बतलाता हैl
मुंशी प्रेमचंद के चरणों में और आपसभी को सर्पित
वरूण
कलम का जादूगर मुंशी प्रेमचंद पर कविता Poem On Munshi Premchand In Hindi
Read More और पढ़ें:
0 टिप्पणियाँ