मुंशी प्रेमचंद जी की पुण्यतिथि पर कविता
मुंशी प्रेमचंद जी की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में एक रचना उनके चरणों में समर्पित :
Munshi Premchand Ki Punyatithi Par Kavita
प्रेम का ज्योति जगाने,
चंद्र की चाॅंदनी दिखाने,
और बढ़ाने आए ज्ञान।
समता विषमता दूर करने,
सामाजिकता का न्याय करने,
बनकर आए जो दूत महान।।
चलती रही जिनकी लेखनी निरंतर,
जातियता का दूर करने हेतु अंतर,
साहित्यकार उपन्यासकार विद्वान।
जीवन गॅंवाया लेखनी में जो पूरा,
दूर करने हेतु विसंगति रूपी सुरा,
दूर करने हेतु सामाजिक व्यवधान।।
थे भारत के वे तो एक सच्चे लाल,
गरीब लाचार का देख बदतर हाल,
ठेस पहुॅंचा जिनसे उनके अरमान।
किसी को सोने का बिस्तर नहीं घर में,
पैसे कमाने का जिन्हें ताकत नहीं कर में,
कोई महल में बेखबर सोए आलिशान।।
शीतल चांदनी तुम बरसाने वाले,
ज्ञान का मार्ग तुम दिखाने वाले,
दुनिया से शीघ्र तुम किए पयान।
तुम बिन आज दुखी ये अमन है,
तुमको हमारा कोटिशः नमन है,
पुनः आओ धरा पर प्रेमचंद भगवान।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार।
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