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भोजपुरी हास्य व्यंग कविता और शायरी Bhojpuri Hasya Vyang Kavita

भोजपुरी फनी शायरी | फैशन पर भोजपुरी कविता

भोजपुरी कविता : जब से फैशन बाजार में आईल

फैशन
जब से फैशन बाजार में आईल।
अपने आप हर चीज महंगाईल।।
गईल साथ में सबके मजबूती।
कीमती जेवर चाहे होखै जूती।।
ऊपर से भरल चमक खूबे।
देखके बढ़ल सबके मंसूबे।।
चमक देख सब कोई लोभाईल।
बाजार से फैशन घरे आईल।।
फैशन में आज सब पगलाईल।
टी वी छोड़ आज मोबाइल।।
आज दीवाना लड़िका सियान।
फैशन में आज सबके पयान।।
सियान पगलाईल मोबाइल में,
लडिका देखे खूब टी वी।
बूढ़वा पगलाईल खीस में,
त भीतर उनकर बीबी।।
अब भईल मोबाइल के जमाना।
अपने बन गईल सबके नाना।।
पत्नी से बढ़के मोबाइले संगी।
मोबाइल जरूरी चाहे हो तंगी।।
घर में चाहे खाना ना होखे,
मोबाइल चाहीं सबके जरूर।
चाहे बड़ अफसर होखस,
चाहे होखस छोट मजदूर।।
उहो मोबाइल सस्ता ना चाहीं,
सबसे चाहीं बढिया महंगा।
जईसे औरत के कीमती साडी,
चाहे लईकी के कीमती लहंगा।।
आज त मोबाइल के युग में,
हर लोग भईल बा दीवाना।
चाहे घरे बईठल होखस,
चाहे बाहर होखस रवाना।।
मोबाइल में हर लोग भईल,
आज बहुत बाड़न पागल।
सुनते गीत मोबाइल के,
लेके बाहर चले भागल।।
लेकिन एकर खूबी बाटे,
सेवा देने इहो पूरी पूरी।
बढ़ल प्यार अब आपसी,
घटल प्यार के बहुत दूरी।।
पल भर में पहुँचावेला,
आपन सब ई संदेश।
चाहे देश में बात होखे,
चाहे बात होखे विदेश।।
बाकी एके बाटे सबके आज,
हो गईल बा मजबूरी।
पत्नी टी वी बाईक मोबाइल,
जीवन में चारो बा जरूरी।।
कईल नईखे चाहत कोई,
शारीरिक कवनो भी काम।
सुबह लोग टहलत लउकस,
या घर पर करत व्यायाम।।
सुबह के चाय त सबके चाहीं,
साथ में बिस्कुट ब्रेड या टोस।
देह में तनिक शक्ति नईखे,
फूर्ती जइसे छोट खरगोश।।
खाना सबके चिकने चाहीं,
कपड़ा महंगा फिल्मी स्टाईल।
अब सोचों रउआ अपना मन में,
ई फैशन कहाँसे कईसे आईल।।
मौलिक आ
अप्रकाशित रचना।
अरुण दिव्यांश
छपरा सारण, बिहार।
अरुण दिव्यांश
9504503560

हम त बानी फुटबॉल, लाते खाए के आदत बा: भोजपुरी हास्य व्यंग्य कविता

फुटबॉल
हम त बानी फुटबॉल,
लाते खाए के आदत बा।
लाते खात खात फुटब फाटब,
लाते खाके हमार शहादत बा।।
लाते खाए खातिर जनम ह,
लाते खाएल हमार करम ह।
का कहीं हम आपन मुसीबत,
ठंढियो बुझाला कि गरम ह।।
जेकरा जईसे मन करे,
वोईसहीं उ लतियावेला।
लतियावहूँ खातिर छिना झपटी,
केहू कोई से ना बतियावेला।।
लात खा के लोंघरत रहीं,
प्रकृति से इहे इजाजत बा।
हम त बानी फुटबॉल,
लाते खाए के आदत बा।।
दूसरा अंग से टच भईल,
हमरा दुनिया में अपराध बा।
गैर से बचा के पैर से खेलल,
खेल के असली इहे साध बा।।
लेकिन मोका पाके कबहूँ लोग,
अपना कपारो पर चढ़ावेला।
इहे ह फुटबॉल के खेला,
तब बहुते मजा आवेला।।
मारत ठेलत ले जाए एने ओने,
कईसन हमार ई नियामत बा।
हम त बानी फुटबॉल,
लाते खाएके आदत बा।।
हमार बेइज्जती देखे खातिर,
लाखों लोग दउर के आवेला।
केहू से ना सहानुभूति मिले,
उल्टे खुशिए लोग मनावेला।।
आज तक कोई दुःख ना बुझल,
कवनो मीडियाकर्मी पत्रकार।
दिनभर लतिया के बेइज्जतिए होला,
हमर दोष का बा बतावे सरकार।।
लाते खाएल महारत बा,
बेइज्जतिए हमार इमारत बा।
हम त बानी फुटबॉल,
लाते खाएके आदत बा।।
फुटबॉल के खेल में त,
कोई के जीत कोई के हार होला।
हमर जन्मे से ई दुर्भाग देखीं,
दुनो दल के हमरे पर वार होला।।
कोई के कप कोई के मिले शील्ड,
हमरा पर त लात के बरसात होला।
प्यार खातिर तरसे हमरो मनवाँ,
तबहूँ केहू से ना तनिको बात होला।।
ई त हमरा खातिर अनसहत बा,
ना कि ई अनाहत बा।
हम त बानी फुटबॉल,
लाते खाएके आदत बा।।
ई रचना स्वरचित
मौलिक आ अप्रकाशित बा।
अरुण दिव्यांश
छपरा सारण, बिहार

जा ए बरिखा, तोहरा मुँह में करिखा, भोजपुरी कविता हास्य व्यंग्य

जा ए बरिखा
जा ए बरिखा,
तोहरा मुँह में करिखा,
जा ए बरिखा।
जबसे बितल जेठ के आधा दिन।
गड़बड़ भईले सगरो के सीन।।
फसल त फँसल,
पानी से भर गईल चँवर।
लड़िका बच्चा कहाँ बईठिहें,
तनिको नईखे कहीं दवर।।
भगवानो के गजब लीला बाटे,
ना ह ई कवनो तरीका।
जा ए बरिखा,
तोहरा मुँह में करिखा।
कतना करिं हम इनकर गीला।
जब अईसने बाटे इनको लीला।।
बईठहूँ के तनिको नईखे जगह।
बरिखे बाटे बड़का एकर वजह।।
कहवाँ बनी खाएके,
कहवाँ सुती लड़िका।
तोहरा मुँह में करिखा।।
बरिखे में नाचे चकवा चकई।
कइसे बोआई अब धान मकई।।
खर्चा से किसान के ढोंढी ढीला।
बरिखा से खेत सब भईले गीला।।
बहुत पहिले भईल रहे,
अबकी सरिखा।
जा ए बरिखा,
तोहरा मुँह में करिखा।।
ग्रीष्म ऋतु के अंत ह,
महीना ई जेठ।
अबहीएँ ई बन गईल,
बरसात के मेठ।।
जेठे में त हो गईल,
बरिखा अईसन।
आषाढ़ सावन भादो के,
बरिखा होई कईसन।।
पानी में झपट्टा मारे,
दऊर के अबोध लड़िका।
जा ए बरिखा,
तोहरा मुँह में करिखा।
मुश्किल भईल बा सबके,
आवे जाएके बाहर।
देखला पर लागे जईसे,
नदी ताल नाहर।।
अबहीएँ से छोड़त नईखे
बरसात के ई पीछा।
जा ए बरिखा,
तोहरा मुँह में करिखा।।
अरुण दिव्यांश
छपरा, सारण
बिहार

कईसन बाटे आज के डेट : भोजपुरी हास्य व्यंग्य कविता | टीचर पर हास्य कविता

हास्य व्यंग्य
भोजपुरी रचना
हो गईल अतना लेट
कईसन बाटे आज के डेट।
हो गईल आज अतना लेट।।
खईबो ना कईलीं भर पेट।
डरे कि बंद हो जाई गेट।।
हाजिरीओ से ना होई भेंट,
बात से उड़ाईं विमान जेट।
टीशनो पर किनके खा लीं,
त पईसो नईखे हमरा चेट।।
कतहीं लउके चाट के पलेट,
कतहीं लउके बनत आमलेट।
देखके मन त ललचत रहे,
बाकि महंगा रहे सबके रेट।।
बाकि सबसे बड़का बाटे दुःख।
कसके लाग गईल बाटे भूख।।
कईसे होई एकर निवारण।
घरहीं जाके अब होई पारण।।
मौलिक स्वरचित
और अप्रकाशित।
अरुण दिव्यांश
छपरा सारण
बिहार।

राशन शासन प्रशासन सरकार और पत्रकार पर हास्य व्यंग भोजपुरी कविता

भोजपुरी कविता
हाय रे राशन
हाय रे राशन।
सबके देवे आसन।।
चाहे होखे शासन,
चाहे होखे प्रशासन।
चाहे होखे कुशासन,
चाहे होखे सुशासन।।
सबके देवे आसन।
हाय रे राशन।।
चाहे होखे सरकार,
चाहे होखे पत्रकार।
चाहे मिले सत्कार,
चाहे मिले दुत्कार।।
सबके देवे आसन।
हाय रे राशन।।
ना रहित कोई के पेट,
ना होईत कोई से भेंट।
ना रहित कोई के जल्दी,
ना होईत कबहूँ लेट।।
पेटे खातिर मिलेला आसन।
बाकी सबके मिले आसन।।
हाय रे राशन।
सबके देवे आसन।।
अरुण दिव्यांश
छपरा सारण
बिहार।

शिक्षा सरकार और आरक्षण पर शायरी भोजपुरी हास्य व्यंग

ऐतना डिग्री बटोरी के बेटवा तूं का करब्य
आरक्षण के आगे खाली बर्बाद हो जईब्य।।
सवर्ण गरीब के बेटवा हो कतौ ना ठिकाना,
संविधान के आगे बेटवा ई आंसू ना बहाना,
खेतीकर मेहनत से रात सकून के नीद आई
आरक्षण के आगे 90% डीग्री न काम आई?

पढ़ाई लिखाई के खर्चा तूं वापस न पउब्य,
आरक्षण के आगे खाली तूं बर्बाद हो जईब्य।।

बाबूजी के कर्जा ई अबहि चढ़ा बा कपारे
80% लाके बेटवा मोर 40%वाले से हारे
वोटबैंक के आगे सारे तेज दिमागी बेचारे
सरस्वती के गलाघोंटे माँ हम है तेरे सहारे

हिंद में बोटबैंक के हथियार से जीति न पउब्य
आरक्षण के आगे खाली तूं बर्बाद हो जईब्य।।

जबसे पढब्य ताता थाई तबसे जोतब्य पांच हराई
अनपढ़ गधा के आगे बेटवा ई सरकार तोहे हराई
शिक्षा संस्कार संस्कृत के हिंद में नाही बा कीमत
कास्टसर्टिफिकेट होवे चाहि हुनर के नाहि जरुरत

आरक्षण के बेड़ी में बेटवा बांधा तूं ही जईब्य
आरक्षण के आगे खाली तूं बर्बाद हो जईब्य।।

सवर्ण के हाथ काटि शिक्षित के बनईहिहें फटीचर
आरक्षण से अनपढ़ बनिहें डॉक्टर और इंजीनयर
सवर्ण भी तो है गरीब पर मानें कौन यहां आडीटर
पढ़ लिखकर क्या करोगे कहते आए क्लासटीचर

श्रीकांत का है चैलेंज आरक्षण कोटे से ही हराई पउब्य
आरक्षण से हारिजाब पर कवनौ क्षेत्र में गिराई न पउब्य।।
श्रीकांत दुबे बरजी
गोपीगंज भदोही 9830177533

गांव के दुर्दशा– भोजपुरी हास्य व्यंग कविताएं

बड़ा अचम्भा होता देख देख गांव ज्वार के बात
तनिको थाह लागत नयीखे केकर कतना बा औकात
लमहर लमहर दुआर घेरवा के लगवा लिहस लोग छोटे छोटे गेट,
आ अब बुझाता कि ऊ दिन दूर नयीखे जब दुअरा पर सबसे पहिले होई बेल्टवाला कुकूर से भेट
सांझ सबेरे दुनू टाईम शौचालय खातिर जात रहे लोग खेत बधार
आ अब घरही के बगल शौचालय बन गयील दिखा के कार्ड आधार
आलूचप ,घुघूनी भुलाईल जाता लोग, बस खीचतारें खूब समोसा,
केतना जना त इहो चाहतारेंं गांवों में खूब बिकाए लागे इडली डोसा
भोज भात में लोटा गिलास घरही में छूट जाता करतारे पियो फेंको गिलास के यूज
आ का जाने यही प्लास्टिक में सेवन करतेे जल्दी दिमाग के बत्तीया हो जाता फ्यूज
शादी विआह में त दही खाली काम आवतारे लिलरा पर करेके टीका के
आ बुफेट सिस्टम के खाना कईसहूँ रहे शिकायत नयीखे कर सकत केहू ओकर स्वाद चाहे फीका के
खूँटातोड़, मेहनत के काम सब छूट गयील छूट गयील खेलल चीका आ कबड्डी
सोंचता लोग कि मुर्गा के टांगवा चाभला से मजबूत हो जाई हड्डी
अब त लगभग हर गऊँवे में बड़ा बड़ा लीला होता बड़ा बढल जाता साईकिल के चक्का जयीसन ढक
बड़ा मन मसोस करके कहाता इ बतिया,
फेर भी बहुत जने कहीहन की छोड़ऽ भाई खूँटातोड़ जी त खाली अईसहीं करेलन बकबक
कवि:आर बी सिंह ,खूँटातोड़
व्यंग्यकार /गीतकार
सं-क्र98920 44593

का हाल बा यू पी बिहार के Bhojpuri Hasya Vyang Kavita

का सब खतम हो गयील लगन।
बूढवा लगन त आषाढ तक चलत रहे, दही छिलत रहे लोग होके खूब मगन।।
दही छिलत रहे लोग होके खूब मगन, बाकिर अब त चैत बैशाखो के लगन में नयीखे मिलत दही।
उजरका प्लेट में खुद से काऊंटर पर खाना परोस के खयीब त खा ल, लोगन के उहे बुझाता सही।।
खूँटातोड़, का जमाना अयीसन आ गयील, प्लेट के आगे पत्तल आ बुनियाँ भयील लापाता।
खुलल खुलल जवन दालमोट आ चिनियावा केरा नाश्ता में मिलत रहे, ओकरो को अब तोपतोपवा डिब्बा में ढकाता।।
एकही दिन चार चार गो नेवता पर जाता, नेवतहरी चारो जगहा खातारन दू दू गाल पूरी।
दू बजे रात ले आर्केस्टा देखके तीन बजे रात घरे आ जाता लोग,दरी पर के नाच देखे से बना लेलन सब बरतिहा दूरी।।
अपना जेब से तेल पेट्रोल खर्चा करके ,जात बा लोग कवनो कवनो बरात में बन के बराती।
का जाने यही से बिना डाक्टर देखवले कवनो कवनो ओह बरात के दुल्हा दुल्हिन के लईको नयीखे होत,जवना में गावल नयीखे जात संझा पराती।।
कवि :खूँटातोड़
व्यंग्यकार
छपरा /बिहार

जिनगी यूँही बेहाल हो गइल– भोजपुरी हास्य व्यंग कविता

जिनगी यूँही बेहाल हो गइल
बेमौसम बरसात हो गइल
फसल सब बर्बाद हो गइल
किसान बदहाल हो गइल
बेमौसम बरसात हो गइल
हे भगवान
ई कहिया के बदला ह तनी
चैन से जिए द काहे कि ई
जिनगी यूँही बेहाल हो गइल
बेमौसम बरसात हो गइल
पूरा विश्व कोरोना हो गइल
गउआ नगरिया एके हो गइल
चारों औऱ नरक हो गइल
जिनगी यूँही बेहाल हो गइल
बेमौसम बरसात हो गइल
बेमौसम बरसात हो गइल
अजय सिंह अजनवी
छपरा

कतना बदल गइल जमाना– भोजपुरी हास्य व्यंग कविता और शायरी

आजकल के लइकवा के देखीं
कतना बदल गइल जमाना
आपन माई बाबू के पूछत नइखन
सास स्वसुर के भइल बाड़े दीवाना
आपन भाई बहिनी के पूछत नइखन
साला साली के पीछे पीछे बाड़े दीवाना
कतना बदल गइल बा जमाना
गाँव नगर सब छूट गइल शहर के जमाना
आपन माई बाबू घरें रहस बीबी के दीवाना
बियाह के बाद कबों हाल चाल ना पूछलन
अब अजनवी कहस ससुराल के बा जमाना
अजय सिंह अजनवी

साठ बरिस के जिनगी में : भोजपुरी हास्य व्यंग कविता और शायरी

साठ बरिस के जिनगी में
बहुतें कुछ बदलल देखनी
भाई भाई में फरका होत
माई बाबू के रोज बिलखत
जमीन जायदाद के बटल
घर समाज के छोड़त आउर
गाँव छोड़ सहरिया में बसत
आउर अतने ना देखनी

फैशन में नँगा पन देखनी
रोज रोज चोरी डकैती
सरेआम छेड़खानी होत
हत्या बलात्कार सब देखनी
पर ना देखनी त सिर्फ
आपस में प्यार मुहब्बत

का बिधाता इहें बदलाव ह
ई बदलाव ना हो सकेला
सभका के पढत देखी त
मनवा भीतरें से खुश होखें
घर परिवार समाज बदलल
पर ई का ई लिखल पढ़ल का
जे आपस के प्यार मुहब्बत
के सभ खत्म कर दिहलस

ना चाही हमरा ई बदलाव
अनपढ़ जाहिल ही ठीक बा
आपन बेगाना के पहचान बा
अब का जमाना तो बदल गइल
अजय सिंह अजनवी

गिरगिटो फेल बा– भोजपुरी हास्य व्यंग कविता और शायरी

बिना रंगे लोग बदले अब का बोली
गिरगिट छटपटाले अब का बोली!
मुँहवा पऽ हंसी हंसी खुबे बड़ईया
पिछही चाम खाले अब का बोली!
घूमी - घूमी खोजी बिनते चलस
बिध्न खुबे डाले अब का बोली!
भीतरा बईठ के ईज्जत लुटत चली
साचो नीमने कहाले अब का बोली!
सफाई देत देत हरिचंद बन फिरे
बा लोग आले आले अब का बोली!
केतनो ई छिप के रहस आचरवा मे
देख दुरे से चिन्हाले अब का बोली!
देख मुँही बांग से सबके बोरस
इहे अलगे गिनाले अब का बोली!
बात करहि मे नजर नीचहि रहे
फेकते दूर जाले अब का बोली!
टपकी मे सचाई ना छुपे देस साधु
हटावस काले काले अब का बोली!
S.K. साधू

घोघा शंख के हँसेला देखऽ, हँसे हंस के काग : भोजपुरी हास्य व्यंग कविता और शायरी

वाह जी वाह

घोघा शंख के हँसेला देखऽ, हँसे हंस के काग।
नकभेभन चकमक के हँसस, अइसन बनल समाज।।

कउआ हंस से कहलें सुनऽ, हम तोहसे गुणवान।
केहु उचारे कागा, नहीं करे तोहर बखान।।

दब के रहऽ, कहल मानऽ, हाजिरी रोज बजाव।
गोर देह के जन तू आपना, हम पे आकड़ जमावऽ।।

हँसले हंस ठठा के कहलें, उत्तम कुल तोहार।
उत्तम भोजन करेल, बड़ूवे रूप रंग मजेदार।।

तोहरा आगे मोल ना हमरो, हंस हार के कहलें।
भीतर-भीतर क्रोध से भइया, खुद के जारत रहलें।।

दूसर बात सुनाईं, सुनऽ घोंघा शंख के खिसा।
घोंघा शंख से कहलें, तूहूँ बीस-बीस हम बीसा।।

सकल-सूरत बा तोहरे जइसन, लेकिन गुण बा ढेर।
मानऽ हार गुजर बा तबहीं, करऽ तनिक ना देर।।

अंग-अंग में गुण बा हमरो, सब कुछ कामे आवे।
खाली पूजा पाठ में तोहके, दोसर लोग बजावे।।

तू गुणहीन गोर चमड़ी पर, खाली करऽ गुमान
हमरा रुतबा से तू हूँ, बड़ऽ अबले अंजान।।

सुलहा मने दब के रहऽ, हुकुम रोज बजावऽ।
अपना रूप गुण के इहावांँ रुतबा मत दरशावऽ।।

शंख मने मुस्का के कहलें, तू हउव खानदानी।
तोहरा रुतबा के आगा हम, कइसे करब मनमानी।।

बतकुचन सब छोड़ के भगलें, मनलें आपन हार।
भीतर खीसे जरत रहलें, चललें देहिया झार।।

तिसर कथा सुनाईं भइया, बा सबसे मजेदार।
नकभेभन चकमक दुलहा के, इज्जत देस उतार।।

तू गरीब भिखमंगा बाड़ऽ हम रानी खानदानी।
केतनों करऽ उपाय चलब हम, आपन सीना तानी।।

चकमक इज्जत खातिर भइया आपन देह छोड़ावस ।
बस अपना के हीन देखा के, उनके बड़ बतावस।।

मुंह बा बसिया भात के जइसन देह सड़ल जस आलू।
गोड़ के रोआँ अइसे करिया, जइसे हो बन भालू।।

सगुन तू नइहर के खाते, भले मोर अपसगुन।
जिनगी के कुंडली में हमसे, मिलल ना एको गुण।।

हम तोहरा से बात करब का, तू लङ्हा खानदानी।
तोहरा कुल के रति-गति के, कइसे राज बखानी।।

हाथ छोड़ा के चकमक रोवत, बस माथा के ठोके।
पुरखन के गलती के कइसे, ले चली हम ढोके।।

जान बचाके भगलें चकमक, छोड़लें सुख के आस।
एकरा साथे चैन मिली ना, हो गईल विश्वास।।

इहे सगरो चलाता हमरो टूटत भड़ूवे आस।
कौवा हँसस हंस के घोंघा करस शंख उपहास।।

नकभेभन ना रूप निहारस, फन पे रौब जमावेली।
संस्कार बिन जियस जिनगी, सज्जन के धमकावेली।।

इ सब देख के सुनऽ बिजेन्दर, काँपत देह हमार।
पोर-पोर में भरल गुण भी, लागेला बेकार।।

कबले शंख डेरइहें, कबले घोंघा राज चलइहें।
नकभेभन रानी बन कबले, दोसर के भरमइहें।।

अइसे बात बढ़ी तऽ सुन लऽ, होई ना कल्याण
जाहवाँ अइसे होई उहावाँ, हो जाई वीरान।।

बिजेन्द्र कुमार तिवारी
बिजेंदर बाबू
गैरतपुर, मांझी
सारण, बिहार
मोबाइल नंबर:- 7250299200
भोजपुरी हास्य व्यंग कविता

अगिला जनम मोहे चमचा कीजै— भोजपुरी हास्य व्यंग्य

अगिला जनम मोहे चमचा कीजै
चम्मच काम के चीजु बा।
चम्मच डायनिंग टेबुल प रहेला।
चम्मच बड़ होला, छोट होला।
चम्मच से खाइल जाला।
चम्मच के अंगरेजी में स्पून कहल जाला।
चम्मच के एगो अउर नाम बा-चमचा
चमचा - फूलहा होला-ई भारी होला, ई कइक पीढ़ी तक काम आवेला।
चमचा-स्टील के होला, ई हलुक होला- दू-चार साल प बदला ला।
चमचा अब प्लास्टीक के बनत बा-आने कि यूज एन्ड थ्रो-काम लीं आ फेंकी।
बाकिर एगो बात सभ चमचा में काॅमन बा-सभ एके काम में आवेला- प्लेट से मुँह तक।
चमचा अकेले ना होला- चम्मच सेट में होला। चमचा सजावल जाला, चमचा देखावल जाला, चमचा बनावल जाला, चमचा पोसल जाला। पोसल जाला के अर्थ कुक्कुर से नइखे। सभ चमचा कुक्कुर ना होलनि, बाकि पोंछ हिलावल, बफादारी देखावल, भोंकल ई सभ गुण चमचा में पावल जा सकेला।चमचा-मलाई काटेला, चमचा दही काटेला, चमचा दूध में चीनी मिलावेला। खइला के बाद चमचा जूठ कटोरी में परल रहेला।
चमचा के एगो प्रधान काम होला-चमचई। चमचई के चर्चा चलल त एगो बात इयाद परल। दूगो चमचा के ब्लड ग्रुप आ डी एन ए कबहूं ना मिल सके, बाकि चमचई करे के तौर तरीका कमबेशी एके जससन होला। हँ, त चमचई के बारे में बात होत रहल ह। चमचा संज्ञा ह, चमचई विशेषन। ई चमचा के गुण बतावेला कि चमचा कवना दर्जा के बा, जइसे कि भारी, हलुक, छोट, बड़, ऑर्डिनरी कि ब्रांडेड। अइसे एगो सलाह बा कि चमचा किनत खानी, बहुत ध्यान राखे के चाहीं ना त कबो-कबो धोखा हो सकेला। चमचा के फेरा में बेलचा मति ले लेबि।
अमरेन्द्र
आरा भोजपुर बिहार

हास्य व्यंग्य शायरी | भोजपुरी हास्य कविता

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