समझ नहीं सका मर्द को कोई जहान में,
नहीं समझ सके उसे कोई देवी,भगवान,
सबने बता दिया मर्द को पत्थर दिल यहाँ,
नहीं बता सका कोई इसे संजीदा इंसान।
नहीं समझ सके उसे कोई देवी,भगवान,
सबने बता दिया मर्द को पत्थर दिल यहाँ,
नहीं बता सका कोई इसे संजीदा इंसान।
स्त्री पुरुष समानता शायरी - हृदय स्पर्श करने वाली कविता
कविता
मर्द को सदा समझा जाता बेदर्द
समझ नहीं सका मर्द को कोई जहान में,
नहीं समझ सके उसे कोई देवी,भगवान,
सबने बता दिया मर्द को पत्थर दिल यहाँ,
नहीं बता सका कोई इसे संजीदा इंसान।
मर्द को सदा समझा जाता बेदर्द
समझ नहीं सका मर्द को कोई जहान में,
नहीं समझ सके उसे कोई देवी,भगवान,
सबने बता दिया मर्द को पत्थर दिल यहाँ,
नहीं बता सका कोई इसे संजीदा इंसान।
कोई इसे कहता है जोरू का गुलाम,
कोई आवारा लोफर कह करता बदनाम,
गिर रही दिनों-दिन मर्दों की इज्जत,
जा रही है अब इसकी वो पुरानी शान।
देवता भी करते नारियों की खुशामद,
करते रहते उनकी झूठी बड़ाई,बखान,
देवता भी कसीदे गढ़ने लगे देवियों के,
बनाने लगे उन्हें सबसे ऊँचा,महान।
देवता भी कसीदे गढ़ने लगे देवियों के,
बनाने लगे उन्हें सबसे ऊँचा,महान।
Dard Bhari Hindi Shayari
मर्द को सदा समझा जाता बेदर्द,मिलता नहीं कभी उन्हें उचित सम्मान,
पिसती इसकी जिंदगी हर सुबह शाम,
फिर भी नहीं मिलता इन्हें कभी मान।
आओ हमसब समझें मर्द के दर्द को,
दें सदा इन्हें उचित आदर,स्थान,
ये भी मान,सम्मान,प्यार के भूखे हैं,
मिलजूल कर करें इनका कल्याण।
अरविन्द अकेला
कविता /पति की व्यथा
बोलो और तुम्हें क्या दूँ
दे दी अपनी सारी खुशियाँ,
खुद को मैं लुटाकर तुम्हें,
बोलो और तुम्हें क्या दूँ ,
सब कुछ गवाँकर तुम्हें।
फिर भी रहती शिकायत तुम्हें,
मैं तुम्हें प्यार करता नहीं,
दे दी अपनी संतान तुमको,
अपनी शक्ति खोकर तुम्हें।
तेरे लिये जोरू का गुलाम कहलाया,
अपने मन से कभी जी नहीं पाया,
दे दी अपनी सारी धन दौलत,
अपनी चाहतों का गला घोंटकर तुम्हें।
अरविन्द अकेला
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