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सबकी ईद हो गयी : ईद के मौके पर अजीब ओ गरीब जदीद शायरी ग़ज़ल

Eid Par Ajeeb o Gareeb Jadeed Shayari Ghazal

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ईद के मौके पर विचित्र और विशेष ग़ज़ल जदीद-व-मुन्फरिद शेर-व-शायरी

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हुस्न वाले/ वाली की दीद हो गई!
इस तरह मेरी/ सबकी ईद हो गयी!!

मन की पीड़ा शदीद हो गई!
तब मुहब्बत मज़ीद हो गई!!

जब मुहब्बत शहीद हो गयी!
" इश्क़ वालो की ईद हो गयी!!

दोस्तो!, आशिक़ी की राह में!
एक लड़की शहीद हो गयी!!

" दश्ती-क़ानून " लागु हो गया!?
" लौंडिया " ज़र-ख़रीद हो गई!?

सब " हुसैनी " शहीद हो गए!!
यूँ/ तब/ क्या शिकस्ते-यज़ीद हो गई!?

"रब " की " वह्दानियत " की बात थी!
" ज़ात-ए-बरहक़ ","वहीद " हो गयी!!

बन गया "राजा/ नेता इक ग़लीज़ आदमी!?
सब की मिट्टी पलीद हो गयी!?

" दीद, बिस्मिल प्रेम-नाथ की "!
हो गयी, मेरी ईद हो गयी!!

जा मिले, हज़रत-ए- फ़िराक़ से!
" फ़ैज़ साहब " की ईद हो गयी!!

दिल / मन की जन्नत में,फ़न की ख़ुल्द में!
" मीर - व - ग़ालिब " की दीद हो गई!!

हो गयी जब असात्जा की दीद!
तब हमारी भी " ईद " हो गयी!!

इक हसीं/ सनम, रामदास से मिला!
" दास " की, समझो!, ईद हो गयी!!
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इस त़वील ग़ज़ल के दीगर शेर-व-सुखन आइंदा फिर कभी पेश किए जायेंगे, इन्शा-अल्लाह!
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रामदास प्रेमी इन्सान प्रेमनगरी,
डाक्टर जावेद अशरफ़ कैस फैज अकबराबादी बिल्डिंग, ख़दीजा नरसिंग, राँची हिल साईड, इमामबाड़ा रोड,राँची, झारखण्ड, इन्डिया!

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