पटाखे जलाने से क्या खुशी मिलती है? इसे जलाने से हमें क्या फायदा है?
"ये कैसी दिवाली...?"
कितना सुखद दिवाली का पर्व आया है! सबके घरों में दिये जल रहे हैं। लोग पटाखे जलाकर खुशियाँ मना रहे हैं, लेकिन मैं सोचती हूँ कि पटाखे जलाने से क्या खुशी मिलती है? इसे जलाने से हमें क्या फायदा है? सिर्फ एक मनोरंजन होता है और साथ में प्रदूषण फैलता है। कभी-कभी पटाखे जलाते-जलाते हाथ भी जल जाते हैं। इसके धमाके से घर की दीवार भी हिल जाती है और दरार पड़ जाती है। कभी-कभी तो इसकी आवाज़ से हमारे कान भी सुन्न हो जाते हैं। पटाखे खरीदने में पैसे भी बर्बाद होते हैं। क्यों न इसे किसी अच्छे कार्य में लगाएँ। हम अपने आसपास कई लोगों को देखते हैं, जिनके पास पहनने के लिए अच्छे कपड़े नहीं है। खाने के लिए दो वक्त की रोटी नहीं है। दिवाली मनाने के लिए दिये नहीं हैं। क्यों न हम इनके साथ दिवाली मनाएँ! उन्हें भी खुशी मिलेगी और हमें भी। ज्यादा न सही पर थोड़ी खुशी तो दे ही सकते हैं।
दिवाली में सबके घर सजे-धजे और रोशनी से जगमगाते रहते हैं।
दिवाली में सबके घर सजे-धजे और रोशनी से जगमगाते रहते हैं। सभी अपने घरों में लक्ष्मी जी की पूजा करते हैं। तरह-तरह की मिठाइयों का भोग लगाते हैं, किंतु यदि कोई निर्धन घर पर आ जाए, तो उसे दुत्कार देते हैं। उनके साथ विनम्रता पूर्वक व्यवहार भी नहीं करते।
ये कैसी दिवाली है? जिसमें लोग दिखावा करते हैं। ऊँची-ऊँची मकान से झालर झूल रहे हैं। फूलों से पूरे घर को सजाये हुए हैं, लेकिन मन को सजाना तो भूल गए। किसी के घर सोने के दिये जल रहे हैं, तो किसी के घर में मिट्टी के दिये जलाना नसीब नहीं। ये कैसी दिवाली है? जो सिर्फ दिखावे का है, जहाँ एक दूसरे के प्रति दया, प्रेम व सहानुभूति की भावना नहीं है। लोग स्वार्थी बन पड़े हैं, जो सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं।
ये कैसी दिवाली है? जिसमें चारों तरफ पटाखों की आवाजें गुँजती हैं
ये कैसी दिवाली है? जिसमें चारों तरफ से पटाखों की आवाज ऐसे गुँजती है, जैसे युद्ध हो रहे हों। दो सेनाएँ आपस में लड़ने भिड़े हों। दिवाली के बाद अगले दिन हम बुरी खबर भी सुनते हैं। किसी के हाथ जल गए, किसी का घर जल गया, किसी के कपड़े जल गए, तो किसी का दुकान, कोई धमाके से बुरी तरह घायल हो गया, तो किसी की फसल जल गई। आखिर ये सब घटनाएँ हुई कैसे? असावधानी, उतावलेपन व ईर्ष्या के कारण ही तो ऐसा होता है! कोई जानबूझकर ये काम कर जाते हैं, तो किसी के साथ अनजाने में हो जाता है। यदि सावधानी रखें और अपने साथ-साथ दूसरों के हित के बारे में भी सोचें तो ऐसी घटनाएँ होंगी नहीं और यहीं असली दिवाली होगी।
सिर्फ अपने घर को रौशन न कीजिए बल्कि अपने साथ-साथ दूसरों के जीवन को भी रौशन कीजिए।
आप सभी को दिवाली की शुभकामनाएँ!!!
-द्रौपदी साहू
छुरी कला, कोरबा, छत्तीसगढ़
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