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हरतालिका तीज व्रत कथा पूजा विधि तीज व्रत का महत्व पूजा के नियम Hartalika Teej

तीज व्रत को क्यों कहते हैं हरतालिका? हरतालिका तीज कब है? शुभ मुहूर्त और पूजा के नियम क्या क्या हैं?

हरतालिका दो शब्दों से मिलकर बनता है हरत और आलिका। हरत का अर्थ है हरण होना और आलिका सखियों को संबोधित करता है। प्राचीन मान्यता है कि इसी दिन को माता पार्वती की सखियां उनका हरण कर के उन्हें जंगल में ले गई थीं। जहां पर माता पार्वती जी ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। साथ ही हरतालिका तीज के पीछे यह भी मान्यता है कि वन में स्थित गुफा में जब माता भगवान शिव शंकर की कठोर आराधना करने में लगी थीं तो उन्होंने रेत (Sand) के शिवलिंग को स्थापित की थी। यह शिवलिंग माता पार्वती द्वारा हस्त नक्षत्र में भाद्रपद शुक्ल तृतीया तिथि को स्थापित किया था तृतीया को हिंदी में तीज भी कहा जाता है, इसी कारण से इस दिन को हरियाली तीज के रूप में मनाया जाता है।

Haritalika Teej


हरतालिका तीज व्रत का महत्व क्या है जानिए!

हरतालिका तीज व्रत ( Hartalika Teej 2024 ) भगवान शिव शंकर जी और माता पार्वती जी के पुनर्मिलन के अवसर पर मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार जब माता पार्वती जी ने भगवान शंकर को अपने पति के रूप में प्राप्त करने हेतु कठोर तपस्या करने में लगी हुई थी। इस समय भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन हस्त नक्षत्र में माता पार्वती ने बालू से शिवलिंग का निर्माण किया एवं शंकर की आराधना में मग्न होकर रात भर जागरण किया। माता पार्वती के कठोर तपस्या को देखकर भगवान शिवशंकर ने उन्हें अपनी पत्नी (अर्धांगिनी) के रूप में स्वीकार किया। माना जाता है कि हरतालिका तीज व्रत को रखने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है और कुंवारी कन्याओं को मनचाहा वर मिलता है। अतः इस व्रत को सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए कुंवारी कन्याएं भी रख सकती हैं। इस व्रत पर सुहागिन स्त्रियां नए वस्त्र पहनकर, मेंहदी लगाकर, सोलह श्रृंगार कर भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करती हैं।

हरतालिका तीज कब है? शुभ मुहूर्त और पूजा के नियम क्या क्या हैं?

हरतालिका तीज ( Hartalika Teej 2024 ) प्रतिवर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। हरतालिका तीज को तीजा के नाम से भी विख्यात है। इसी दिन भगवान शिवशंकर एवं माता पार्वती की पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है। इस वर्ष हरतालिका तीज 6 सितंबर 2024 दिन शुक्रवार को मनाई जाएगी। इस दिन सुहागिन महिलाएं निर्जल और निराहार (संपूर्ण उपवास) रहकर अपने पति की लंबी आयु के लिए भगवान शिव शंकर और माता पार्वती जी से प्रार्थना करती हैं एवं व्रत रखती हैं।

हरतालिका तीज का शुभ मुहूर्त Hartalika Teej Shubh Muhurt Kab Hai
हरतालिका तीज व्रत की पूजा सुबह और शाम दोनों समय की जा सकती है। 6 सितंबर 2024 यानी हरतालिका तीज के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त प्रात: काल 06:02 मिनट से लेकर सुबह 08:33 बजे तक है। वहीं शाम में पूजा का शुभ मुहूर्त 6 सितंबर 2024 को 06 बजकर 36 मिनट से लेकर 06 बजकर 59 मिनट तक है।


हरतालिका तीज व्रत कथा पूजा विधि तीज व्रत का महत्व पूजा के नियम Hartalika Teej

हरतालिका तीज व्रत पूजन सामग्री

सुहाग का पिटारा तैयार करने के लिए सिंदूर, चूड़ी, बिंदी, मेहंदी, काजल। इसके अलावा तुलसी, केला का पत्ता, आंक का फूल, मंजरी, शमी पत्र, जनेऊ, वस्त्र, फूल, अबीर, वस्त्र, फल, कुमकुम, चंदन, घी-तेल, दीपक, नारियल, माता की चुनरी, लकड़ी का पाटा, पीला कपड़ा, सुहाग पिटारा और तुलसी आदि।

दान करने के लिए सामग्री

हरतालिका तीज व्रत में सुहाग का सामान चढ़ाया जाता है। जिसमें बिछिया, पायल, कुमकुम, मेहंदी, सिंदूर, चूड़ी, माहौर, कलश, घी-तेल, दीपक, कंघी, कुमकुम और अबीर आदि शामिल है।

हरतालिका तीज पूजन विधि:

हरतालिका तीज की पूजा प्रात:काल करना शुभ एवं मंगलमय माना जाता है। यदि किसी विशेष कारण से यह संभव न हो तो सूर्यास्त के बाद प्रदोषकाल में पूजा करना हितकारी होता है। इसी दिन भगवान शिवशंकर एवं माता पार्वती और भगवान गणेश की बालू रेत (Sand) या काली मिट्टी की प्रतिमा बनाकर पूजा अर्चना जाती है। पूजा के स्थान को अच्छी तरह से पवित्र करने के उपरांत फूलों से सजाएं और एक चौकी रखें। इस पर केले के पत्ते बिछाएं और भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित कीजिए। इसके उपरांत भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश का षोडशोपचार विधि से पूजन करें! इसके उपरांत माता पार्वती को सुहाग की सारी वस्तुएं चढ़ाएं और भगवान शिव को धोती और अंगोछा चढ़ाएं। बाद में ये सभी चीजें किसी ब्राह्मण को श्रद्धापूर्वक दान दें। पूजा के बाद तीज की कथा सुनें और रात्रि जागरण करें। अगले दिन सुबह सुबह आरती के बाद माता पार्वती को सिंदूर चढ़ाएं और हलवे का भोग लगाकर व्रत खोलें।

हरतालिका तीज व्रत नियम

व्रत रखने वाली महिलाओं को हरतालिका तीज व्रत कथा जरूर सुननी चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार हरतालिका तीज व्रत शुरू करने के बाद जीवन भर इस व्रत को नियमित रूप से रखना चाहिए। इस व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती को रेशमी वस्त्र अर्पित करना शुभ माना जाता है। हरतालिका तीज व्रत की पूजा प्रदोष काल यानी सूर्यास्त के बाद सबसे शुभ मानी जाती है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से सुहागिन महिलाओं को अखंड सौभाग्य के साथ सुख-शांति की प्राप्ति होती है।

हरतालिका तीज व्रत कथा

प्राचीन काल में भगवान शिवशंकर ने पार्वती जी को उनके पूर्व जन्म की याद दिलाने के विचार से इस व्रत की कथा कही थी।

श्री भोलेशंकर बोले— हे गौरी! पर्वतराज हिमालय पर स्थित गंगा के तट पर तुमने अपनी बाल्यावस्था में बारह वर्षों तक अधोमुखी होकर घोर तपस्या किया था। इतनी अवधि तुमने अन्न न खाकर पेड़ों के सूखे पत्ते चबा कर समय व्यतीत किए। माघ की विक्राल शीतलता में तुमने निरंतर जल में प्रवेश करके तपस्या किया। वैशाख की जला देने वाली गर्मी में तुमने पंचाग्नि से शरीर को तपाया। श्रावण की मूसलधार वर्षा में खुले आसमान के नीचे बिना अन्न-जल ग्रहण किए समय व्यतीत किया। तुम्हारे पिता तुम्हारी कठोर साधना एवं तपस्या को देखकर बड़े दुखी होते थे। उन्हें बड़ा क्लेश होता था। तब एक दिन तुम्हारी कठोर तपस्या तथा पिता के क्लेश को देखकर नारदजी तुम्हारे घर पधारे। तुम्हारे पिता ने हृदय से अतिथि सत्कार करके उनके आने का कारण पूछा।

नारदजी ने कहा— गिरिराज! मैं भगवान विष्णु के भेजने पर यहाँ उपस्थित हुआ हूँ। आपकी कन्या ने बड़ी कठोर तप साधना किया है। इससे प्रसन्न होकर वे आपकी सुपुत्री से विवाह करना चाहते हैं। इस संदर्भ में आपके विचार जानना चाहता हूँ।

नारदजी की बात सुनकर गिरिराज प्रसन्न हो उठे। उनके तो जैसे सारे क्लेश ही दूर हो गए। प्रसन्नचित होकर वे बोले— श्रीमान्‌! यदि स्वयं विष्णु मेरी कन्या का वरण करना चाहते हैं तो भला मुझे क्या आपत्ति हो सकती है। वे तो साक्षात ब्रह्म हैं। हे महर्षि! यह तो हर पिता की इच्छा होती है कि उसकी पुत्री सुख-सम्पदा से युक्त पति के घर की लक्ष्मी बने। पिता की सार्थकता इसी में है कि पति के घर जाकर उसकी पुत्री पिता के घर से अधिक सुखी रहे।

तुम्हारे पिता की स्वीकृति पाकर नारदजी विष्णु के पास गए और उनसे तुम्हारे ब्याह के निश्चित होने का समाचार सुनाया। परंतु इस विवाह संबंध की बात जब तुम्हारे कान में पड़ी तो तुम्हारे दुख का ठिकाना न रहा।


तुम्हारी एक सखी ने तुम्हारी इस मानसिक दशा को समझ लिया और उसने तुमसे उस विक्षिप्तता का कारण जानना चाहा। तब तुमने बताया— मैंने सच्चे हृदय से भगवान शिवशंकर का वरण किया है, किंतु मेरे पिता ने मेरा विवाह विष्णुजी से निश्चित कर दिया। मैं विचित्र धर्म-संकट में हूँ। अब क्या करूँ? प्राण छोड़ देने के अतिरिक्त अब कोई भी उपाय शेष नहीं बचा है। तुम्हारी सखी बड़ी ही समझदार और सूझबूझ वाली थी।

उसने कहा— सखी! प्राण त्यागने का इसमें कारण ही क्या है? संकट के समय पर धैर्य से काम लेना चाहिए। नारी के जीवन की सार्थकता इसी में है कि पति-रूप में हृदय से जिसे एक बार स्वीकार कर लिया, जीवनपर्यंत उसी से निर्वाह करें। सच्ची आस्था और एकनिष्ठा के समक्ष तो ईश्वर को भी समर्पण करना पड़ता है। मैं तुम्हें घनघोर वन में ले चलती हूँ, जो साधना स्थली भी हो और जहाँ तुम्हारे पिता तुम्हें खोज भी न पाएं। वहाँ तुम साधना में लीन हो जाना। मुझे विश्वास है कि ईश्वर अवश्य ही तुम्हारी सहायता करेंगे।

तुमने ऐसा ही किया। तुम्हारे पिता तुम्हें घर पर न पाकर बड़े दुखी तथा चिंतित हुए। वे सोचने लगे कि तुम जाने कहाँ चली गई। मैं विष्णुजी से उसका विवाह करने का प्रण कर चुका हूँ। यदि भगवान विष्णु बारात लेकर आ गए और कन्या घर पर न हुई तो बड़ा अपमान होगा। मैं तो कहीं मुंह दिखाने के योग्य भी नहीं रहूँगा। यही सब सोचकर गिरिराज ने तुम्हारी खोज प्रारंभ करवा दी।

इधर तुम्हारी खोज होती रही और उधर तुम अपनी सखी के साथ नदी के तट पर एक गुफा में मेरी आराधना में लीन थीं। भाद्रपद शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र था। उस दिन तुमने रेत के शिवलिंग का निर्माण करके व्रत किया। रात भर मेरी स्तुति के गीत गाकर जागी। तुम्हारी इस कष्ट साध्य तपस्या के प्रभाव से मेरा आसन डोलने लगा। मेरी समाधि टूट गई। मैं तुरंत तुम्हारे समक्ष जा पहुंचा और तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न होकर तुमसे वर मांगने के लिए कहा।


तत्पश्चात अपनी तपस्या के फलस्वरूप मुझे अपने समक्ष पाकर तुमने कहा: मैं हृदय से आपको पति के रूप में वरण कर चुकी हूँ। यदि आप सचमुच मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर आप यहां पधारे हैं तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिए।

तत्पश्चात मैं 'तथास्तु' कह कर कैलाश पर्वत पर लौट आया। प्रातः होते ही तुमने पूजा की समस्त सामग्री को नदी में प्रवाहित करके अपनी सहेली सहित व्रत का पारणा किया। उसी समय अपने मित्र-बंधु व दरबारियों सहित गिरिराज तुम्हें खोजते-खोजते वहां आ पहुंचे और तुम्हारी इस कष्ट साध्य तपस्या का कारण तथा उद्देश्य पूछा। उस समय तुम्हारी दशा को देखकर गिरिराज अत्यधिक दुखी हुए और पीड़ा के कारण उनकी आंखों में आंसू उमड़ आए थे।


तुमने उनके आंसू पोंछते हुए विनम्र स्वर में कहा: पिताजी! मैंने अपने जीवन का अधिकांश समय कठोर तपस्या में बिताया है। मेरी इस तपस्या का उद्देश्य केवल यही था कि मैं महादेव को पति के रूप में पाना चाहती थी। आज मैं अपनी तपस्या की कसौटी पर खरी उतर चुकी हूँ। आप विष्णुजी से मेरा विवाह करने का निर्णय ले चुके थे, इसलिए मैं अपने आराध्य की खोज में घर छोड़कर चली आई। अब मैं आपके साथ इसी शपथ के साथ घर जाऊंगी कि आप मेरा विवाह विष्णुजी से न करके महादेवजी से करेंगे।

गिरिराज मान गए और तुम्हें घर ले गए। कुछ समय के पश्चात शास्त्रोक्त विधि-विधान पूर्वक उन्होंने हम दोनों को विवाह सूत्र में बांध दिया।

हे पार्वती! भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के फलस्वरूप मेरा तुमसे विवाह हो सका। इसका महत्व यह है कि मैं इस व्रत को करने वाली कुंवारियों को मनोवांछित फल देता हूँ। इसलिए सौभाग्य की इच्छा करने वाली प्रत्येक युवती को यह व्रत पूरी एकनिष्ठा तथा आस्था से करना चाहिए।

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