आपकी जब - जब कमी मेह़सूस की।
हम ने आँखों में नमी मेह़सूस की।
हम ने आँखों में नमी मेह़सूस की।
किसी की कमी शायरी, तेरी कमी शायरी, दूरी का एहसास शायरी
ग़ज़ल
आपकी जब - जब कमी मेह़सूस की।
हम ने आँखों में नमी मेह़सूस की।
आपकी जब - जब कमी मेह़सूस की।
हम ने आँखों में नमी मेह़सूस की।
हिज्र में हमने तुम्हारे ऐ सनम।
इक घड़ी भी इक सदी मेह़सूस की।
आप जब आए अ़यादत को मिरी।
क़ल्बे मुज़तर ने ख़ुशी मेह़सूस की।
जिस घड़ी हमने पुकारा आप को।
ग़म में भी आसूदगी मेह़सूस की।
प्यार में कमी शायरी, तुम्हारी कमी शायरी, कुछ कमी सी है शायरी
आपको जिस दम भी देखा बेनक़ाब।तीरगी में रोशनी मेह़सूस की।
आ गए नज़दीक तेरे साक़िया।
हमने जब भी तिश्नगी मेह़सूस की।
जब कहा उसने ख़ुदा ह़ाफ़िज़ फ़राज़।
साँस भी हमने थमी मेह़सूस की।
सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़ मुरादाबाद
तुम्हारी कमी शायरी 2 line - Tumhari Kami Shayari
उनके रुख़ पर जब हँसी मेह़सूस कीआईने ने ख़ैरगी मेह़सूस की
आपकी जब - जब कमी मेह़सूस
हम ने आँखों में नमी मेह़सूस की
हिज्र में हमने तुम्हारे ऐ सनम
इक घड़ी भी इक सदी मेह़सूस की
आप जब आए अ़यादत को मिरी
क़ल्बे मुज़तर ने ख़ुशी मेह़सूस की
जिस घड़ी हमने पुकारा आपको
ग़म में भी आसूदगी मेह़सूस की
आपको जिस दम भी देखा बेनक़ाब
तीरगी में रोशनी मेह़सूस की
आ गए नज़दीक तेरे साक़िया
हमने जब भी तिश्नगी मेह़सूस की
जब कहा उसने ख़ुदा ह़ाफ़िज़ फ़राज
साँस भी हमने थमी मेह़सूस की
सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़ मुरादाबाद
आपकी कमी और शामे ग़म शायरी - Tanhai Shayari
ग़ज़लशामे ग़म जगमगा दे ज़रा सोणिए।
अपना जलवा दिखा दे ज़रा सोणिए।
अपना जलवा दिखा दे ज़रा सोणिए।
ह़सरत -ए- दीद पागल न कर दे कहीं।
रुख़ से पर्दा हटा दे ज़रा सोणिए।
भूल जाएँ सदा के लिए मयकदा।
जाम ऐसा पिला दे ज़रा सोणिए।
एक मुद्दत से वीरानियाँ हैं यहाँ।
बज़्मे दिल को सजा दे ज़रा सोणिए।
तीरगी जिससे मिट जाए घर की मिरे।
दीप ऐसा जला दे ज़रा सोणिए।
बन चुका है जहन्नुम तिरे हिज्र में।
घर को जन्नत बना दे ज़रा सोणिए।
भूल पाए न जिसको के क़ल्ब ए फ़राज़।
रंग ऐसा जमा दे ज़रा सोणिए।
सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़ मुरादाबाद
सोणिए शब्द सही यह है जब की कई जगह सोड़ी ऐसा लिखा है।
शामे ग़म तन्हाई शायरी - गम में मुस्कुराना शायरी
ग़ज़लशामे ग़म जगमगा दे ज़रा सोड़िए
अपना जलवा दिखा दे ज़रा सोड़िए
ह़सरत -ए- दीद पागल न कर दे कहीं
रुख़ से पर्दा हटा दे ज़रा सोड़िए
भूल जाएँ सदा के लिए मयकदा
जाम ऐसा पिला दे ज़रा सोड़िए
एक मुद्दत से वीरानियाँ हैं यहाँ
बज़्मे दिल को सजा दे ज़रा सोड़िए
तीरगी जिससे मिट जाए घर की मिरे
दीप ऐसा जला दे ज़रा सोड़िए
बन चुका है जहन्नुम तिरे हिज्र में
घर को जन्नत बना दे ज़रा सोड़िए
भूल पाए न जिसको के क़ल्ब ए फ़राज
रंग ऐसा जमा दे ज़रा सोड़िए
सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़ मुरादाबाद
अच्छे नहीं ये झगड़े सनम बार बार के - आपकी कमी शायरी हिंदी में लिखी हुई
ग़ज़ल
शक दूर कर लें आओ सभी ख़लफ़शार के।
अच्छे नहीं ये झगड़े सनम बार - बार के।
ओ जाने वाले इतना बता दे हमें ज़रा।
कैसे कटेंगे दिन ये तिरे इन्तिज़ार के।
अशआ़र जब से हमने सुने उनके बाख़ुदा।
शैदाई हम भी हो गए ह़ज़रत ख़ुमार के।
बढ़ते ही जा रहे हैं तसादुम जहान में।
कुछ फ़ैसले ह़ुज़ूर लो अब आर पार के।
जब आपने ही फेर ली हम से नज़र तो अब।
शिकवे सुने तो कौन सुने दिल फ़िगार के।
बारिश कहीं है और कहीं धूप छाँव है।
क्या ख़ूब हैं करिशमे ये परवरदिगार के।
अलमुख़्तसर हमारा तअ़र्रुफ़ है यह फ़राज़।
बुझते हुए चराग़ हैं उजड़े मज़ार के।
सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़ मुरादाबाद उत्तर प्रदेश
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