Ticker

6/recent/ticker-posts

होली शायरी हिंदी में Holi Shayari Hindi होली पर कविता शायरी

होली मुबारक शायरी, होली दोस्ती शायरी, गुलाल पर शायरी,

बधाई है बधाई भाई, होली आई रे गीत
बधाई है बधाई भाई, देखो होली आई रे,
शुरू प्यार की लड़ाई, भाई होली आई रे!
नाचो, गाओ, खुशी मनाओ, हाथ मिलाओ,
नील गगन पे, गुलाल की, बदरी छाई रे!
बधाई है बधाई भाई…
पिचकारी से रंग बरसे, हो गई धरती लाल,
रंग खेलने से जो भागे, हो गया बुरा हाल।
भूल से भी होली दिन, जाना मत ससुराल,
नया महंगा लहंगा, नई नई चोली आई रे!
बधाई है बधाई भाई…
होली के दिन घर अगर, आ जाए मेहमान,
भंग पिलाकर उसको, खिलाना है पकवान।
लगता आज धरती पर, पधारे चुके भगवान,
सज धजकर राधा रानी की, डोली आई रे!
बधाई है बधाई भाई…
होली की शुभकामनाएं और बधाइयां मेरी,
आप सभी मित्र और साथी, करें स्वीकार।
पिचकारी से कई रंगों की हो रही बौछार,
आसमान में उड़ा अबीर, बरस रहा प्यार।
महक रही है हवा, मौसम मस्त गुलजार,
थाली में सजकर, भांग की गोली आई रे!
बधाई है बधाई भाई…
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर, मधुबनी (बिहार)


होली पर कविता शायरी : पापा होली आ रही है, ला दो एक पिचकारी

Hindi rhymes for kids | Holi Poem in hindi | Kids poem hindi

होली शायरी हिंदी में : पापा होली आ रही, ला दो एक पिचकारी

पापा होली आ रही, ला दो एक पिचकारी,
मम्मी होली आ रही है, ला दो पिचकारी!
दोस्तों के साथ, होली खेलेंगे, खूब पढ़ेंगे,
इस बार सबसे सुंदर, होली होगी हमारी।
पापा होली आ रही…
पिचकारी ला दो, और ला दो रंग गुलाल,
हवा में गुलाल उड़ेगा और मचेगा धमाल।
पिचकारी से रंग बरसेंगे, नीले और पीले,
गुलाबी रंग पड़ेगा, हर रंग के ऊपर भारी।
पापा होली आ रही…
तस्वीर में रंग भरने से बनती है तकदीर,
दोस्तों पर रंग डाल, बनेगी एक तस्वीर।
हुडदंग नहीं मचाएंगे, मर्यादा नहीं तोड़ेंगे,
अनुशासन की बातें, निभाएंगे हम सारी।
पापा होली आ रही…
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
नासिक (महाराष्ट्र) जयनगर (मधुबनी) बिहार


मालपुआ खाओ होली मनाओ-होली गीत | होली मुबारक शायरी

मालपुआ खाओ होली मनाओ
होली गीत
मालपुआ खाओ और होली मनाओ रे,
आओ आओ, सब मेरे पास आओ रे!
बाजा बजाओ यारों, और नाचो गाओ,
पिचकारी से, गुलाबी रंग बरसाओ रे!
मालपुआ खाओ…
बड़ा मस्ताना लगता, दिन होली का,
नफरत मिटाओ, पास चले आओ रे!
सारे मिलकर, गिले शिकवे भुलाओ,
दिल खोलकर सारे, प्यार बढ़ाओ रे!
मालपुआ खाओ…
खुशियों का खजाना लेकर, होली आई,
चटकीले रंगों से यह जीवन सजाओ रे!
हम भारतवासी एक हैं, और एक रहेंगे,
सारी दुनिया को, समझाओ, बताओ रे!
मालपुआ खाओ…
बड़ा मजेदार होता है होली का मालपुआ,
खाओ खिलाओ, सबको गले लगाओ रे!
नाचो, गाओ, खुशी मनाओ मेरे दोस्तों,
नील गगन के तले, महफिल सजाओ रे!
मालपुआ खाओ…
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार


होली गीत : कान्हा खेले होरी

फागुन का मस्त महीना, बरसे रंग गुलाल,
क्या पटना, जयपुर, दिल्ली, क्या भोपाल?
सब खेले होरी, सब भंग पीकर ठोके ताल,
जो मथुरा, गोकुल का, वृंदावन में वो हाल।
कान्हा खेले होरी, हो राधा खेले होरी,
राधा खेले होरी, हो कान्हा खेले होरी।
एक के हाथ थामे, दूजे की प्रेम डोरी,
देख देख के झूमे, चकोर और चकीरी।
कान्हा खेले होरी…
बड़ा रंग रसिया लागे रे कृष्ण कन्हैया,
जबरन राधे के रंग डारे ये वंशी बजैया।
बोली राधाजी, मैं तो मर गई मोरी मैया,
खुद को न पहिचाने प्यारी राधाजी गोरी।
कान्हा खेले होरी…
कन्हैया करे बलजोरी गोरी राधा रानी से,
राधा रानी भी कन्हैया से करे बलजोरी।
श्याम करे चोरी और ऊपर से सीनाजोरी,
प्यारी राधा भी करे, चुपके चुपके चोरी।
कान्हा खेले होरी…
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
नासिक (महाराष्ट्र) जयनगर (मधुबनी) बिहार


गीत : होली की याद आने लगी है

बसंत के मस्त मौसम ने, मन सबका ऐसा बहकाया,
दीवाने दिल को, होली की याद आने लगी है।
लम्बा इंतजार, दिल को बेकरार करता है अब,
प्यारी पिचकारी, आंखों से नींद चुराने लगी है।
बसंत के मस्त मौसम ने…………..

रंगों की बरखा होगी, होठों पर होली के गीत,
गालों पे गुलाल लगाऊंगा, मिले जो मनमीत।
दीवानों की टोलियां होंगी, खूब मजा आएगा,
कैसे मिलूंगा मैं, चिंता अभी से सताने लगी है।
बसंत के मस्त मौसम ने………….

शहर में हूं मैं, बुलाने लगी हैं गांव की गलियां,
एक ओर फूल, दूसरी तरफ घूंघट में कलियां।
पागल पवन बसंती अभी से मन बेचैन कर रही,
नए नए सपने नयनों को, रात दिखाने लगी है।
बसंत के मस्त मौसम ने………….

बड़े स्वादिष्ट व्यंजन बनेंगे, ऊपर से मालपुआ,
प्यारी राधा अभी से रंग अपना जमाने लगी है।
वृंदावन से वंशी बजैया कन्हैया भी आनेवाले हैं,
गांव की गोरियों के ऊपर, बहार छाने लगी है।
बसंत के मस्त मौसम ने, ………..
सूबेदार कृष्णदेव प्रसाद सिंह,
जयनगर (मधुबनी) बिहार/
नासिक (महाराष्ट्र)


होलिकादहन होली का श्रीगणेश : होली पर कविता

होलिकादहन
होलिकादहन होली का श्रीगणेश,
होली खेलने कल आएँगे महेश।
इन्तजार केवल चली जाय रजनी,
उषा लेकर एक आ जाएँ दिनेश।।
होलिकादहन तो है धर्म की जीत,
धर्म होता है संस्कृति का ही मीत।
अधर्म रहता है सदा आग बबूला,
संस्कृति होता जीवन का रीत।।
हिरणकश्यपु था देवो के दुश्मन,
बेटे प्रह्लाद को वही सीखाता था।
देता प्रह्लाद को बहुत यातनाएँ,
धर्म संस्कृति कभी न भाता था।।
माता और गुरु मिले थे धार्मिक,
जिससे प्रह्लाद विष्णु भक्त बना।
देख प्रवृत्ति बाप बना बेटे की अरि
प्राण लेने हेतु बेटे का ही ठना।।
होलिका थीं प्रह्लाद की ही फुआ,
वरदानित उनका एक चादर था।
चादर ओढ़ बैठी भतीजे जवाने,
किंतु अधर्म का फटा बादर था।।
हुआ परिणाम उल्टा ही इसका,
हुआ अधर्मी होलिका का नाश।
बच निकला फिर भक्त प्रह्लाद,
पुनः उदित हुआ धर्म की आश।।
अधर्म पर है यह धर्म की विजय,
धर्म सदा से ही जीतता आया है।
परेशान हुआ अवश्य यह धर्म है,
किंतु धर्म कभी मात नहीं खाया है।।
खुशी में दूसरे रोज रंग गुलाल उड़े,
तबसे हम आ रहे इसको मनाते।
पहले दिन हैं हम होलिका जलाते,
अगले दिन होली हम हैं मनाते।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना।
अरुण दिव्यांश 9504503560


होली आई रे आई होली आई : होली पर कविता

होली
होली आई रे आई होली आई।
विरंगी रंग गुलाल भर झोली आई।। 
 नव ऋतु का संदेश है यह देता।
सर्दी से जुदा ग्रीष्म का चहेता।।
घर घर रंग अबीर संग बाजे बधाई।
होली आई रे आई होली आई।।
होली त्योहार है सनातनी नववर्ष।
रंग गुलाल मसाले स्वागत में सहर्ष।।
सनातनी नववर्ष लाती नव अंगड़ाई।
होली आई रे आई होली आई।।
मंजर हैं आते फल हैं लद जाते।
नववर्ष का सुंदर छँटा दिखलाते।।
भेद भ्रम भूल मिलते भाई भाई।
होली आई रे आई होली आई।।
नववर्ष में नववस्त्र खरीद लाते।
पूए पकवान मिठाई खाते खिलाते।।
बुजुर्गों को नमन करते सिर नाई।
होली आई रे आई होली आई।।
बच्चे भी संस्कार हैं सीख जाते।
चरण वंदन कर खुशी से अघाते।।
होली ने सदा ही बंधुत्व है बढ़ाई।
होली आई रे आई होली आई।।

होली है प्रेम मिलन की यह होली।
प्रेम सभ्य शिष्ट सद्भाव की भरी झोली।।
सरस फाग रस सब मन भाई।
होली आई रे आई होली आई।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना।
अरुण दिव्यांश 9504503560


होली आई होली आई : होली की शायरी

होली आई होली आई,
साथ में ले रंगोली आई।
बच्चे बूढ़े युवा स्त्री पुरुष,
सबके मन खुशियाँ बरसाई।।
नववर्ष का प्रथम दिवस,
प्रथम माह चैत्र कहलाता।
प्रथम माह का प्रथम् दिवस,
भारतीयता को है हर्षाता।।
हिन्द देश का है यह होली,
होली है हिन्दू का त्यौहार।
जाति धर्म बैर को भूलकर,
सबके साथ उत्तम व्यवहार।।
बसंतपंचमी से फाग गरजता,
फागुन में फागुन रस चहके।
लाल पीला हरा रंग गुलाबी,
पिचकारी भर बच्चे बहके।।
एक माह पहले रंग बरसाता,
नववर्ष का यह होली त्यौहार।
होली आता खूब हल्ला करते,
उत्कर्ष का लिए बड़ा आकार।।
होता है बड़ा आकार इसका,
नहीं होता इसमें कोई विकार।
प्रेम मिलन होता सबका सबसे,
 सबका सर्वत्र होता है सत्कार।।
प्यार से गाल पर गुलाल लगा,
या पैर पर रख करते हैं प्रणाम।
रंग के रंगों में रंग वे रंग दिखाते,
रंग रंगीले जन जन दिखते शाम।।
पूआ पाक मिठाई खाते खिलाते,
पीकर भाँग खूब जमाते फाग।
वीर रस शृंगार रस खूब बहाते,
फाग बारहमासा का सुंदर राग।।
प्रेम सद्भाव को है यह जगाता,
विश्वबंधुत्व का है मार्ग दिखाता।
एक ही मालिक के हमसब वंदे,
हर मानव है मालिक को भाता।।
किसी को लगा गुलाल गुलाबी,
किसी को लगा है हरा गुलाल।
कोई देखने में हैं पीले दीखते,
किसी के मन नहीं कोई मलाल।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना।
अरुण दिव्यांश 9504503560


होली की शुभकामनाएं शायरी

होली आई होली आई
खुशियां लेकर ढ़ेरों लाई।
कोरोना की फिर से बारी आई।
विपता छा कोहराम है मचाई।।
होली खेलेंगे हम अबकी कैसे?
छूआ-छूत की राह दिखलाई।
होली आई होली आई---
तरह तरह के पकवान बने,
घर घर में रोनक है छाई।
रंगों से खेलो तुम मिल कर,
हंसी खुशी से गले मिल भाई।।
आज मजे से रंग लगाना,
अबीर गुलाल से धूम मचाई।
भाई चारे से रहना है हरदम,
गले मिल कर तुम दो बिदाई।।
होली आई होली आई -----
भांती भांती के लोग यहाँ है,
हिन्दू, मुस्लिम, सींख,इसाई
बड़े बुजुर्गो का रखना मान भाई।
शीश नवालेना मनमे आस लगाई।।
होली आई होली आई-----
रंग बिरंगे रंग फूल खिले हैं अमवा की मोजर आई।
कोयलिया बोले मिठी बोली, कूह कूह कूकियाई।।
होली आई होली आई रंग बिरंगी पोशाकें लाई।
बहुव्यंजन बने हैं- भंग के खाओ थोड़ी मिठाई।।
होली आई होली आई---
स्वरचित एवम् मौलिक रचना
पुष्पा निर्मल, पश्चिम चंपारण बेतिया बिहार


होली पर कविता : गीत फाग का आओ हम गायें

फाग गीत
गीत फाग का आओ हम गायें।
गोप गोपियों संग बरसाने में रम जायें।।
गीत फाग का आओ हम गायें--

परिक्रमा अतिकठिन है गोवर्धन की-
बरसाने हो कर पहले हम आयें।
मल मल कर कबीर गुलाल लगायें।।
गीत फाग का आओ हम गायें--

गीत फाग का आओ हम गायें।
प्रेम सुधा रस हरओर बरसायें।।
गीत फाग का आओ हम गायें--

भेद भाव आपस का सारा मिटायें।
कान्हा न से प्रीत लगा राधा भाव में जायें।।
गीत फाग का आओ हम गायें--

गीत फाग का आओ हम गायें--
गीत फाग का आओ हम गायें--
डॉ. कवि कुमार निर्मल
बेतिया, पश्चिम चंपारण, बिहार


होलिका दहन किया, परसों होली खेलो

होलिका दहन किया, परसों होली खेलो।
भक्त प्रहलाद की सब जय जय जय बोलो।।

हिरण्यकस्यप अचंभित, लाचार बेचारा।
धर्म भी कहीं अधर्म से युगों में कभी हारा।।

दानव दंभी को नरसिंह ने अंतत: तारा,
माना हमने यह एक पौराणिक कथा है।
हर पल यह बध अन्दर बाहर चलता है।
मन में बैठा राम, रावण को अवसान करता है।।

रावण अष्टपाश-सट् ऋपुओ पर हुआ हावी।
पाप-पुण्य का खेल सबकी आती है बारी।।

महापातकी के पाप को मरना हीं होता है।
धर्मनिष्ठ का बाल नहीं बाँका कभी होता है।।

पँच तत्वों में सतरंगी गुण धुला रहता है।
उपर से हीं नहीं कुछ दिख सकता है।।

रंगोली-अल्पना, होली में रंगों से पुतना।
प्रकृति की ताल से है ताल मिलाना।।

पिया के घर जा, रंग में पूरा रंग है जाना।
उत्तम सात्विक आहार जम कर है खाना।।

दुस्मन को दोस्त बना गले लगाना।
हर पल होली के रंगों में रंग जाना।।

भक्ती भाव में मिल-जुल कर बह जाना।
ध्रिणा-द्वेश-क्रोध की अगन से मुक्त हो जाना।।

धर्म ध्वजा चहुदिशी है हमको फहराना।
सात रंग हैं प्रभु के, उनके रंग में रंग जाना।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल


होली प्रेम मिलन की बेला : होली पर कविता और शायरी हिंदी में

विषय- होली
रंग बिरंगी रंगों का मेला
होली प्रेम मिलन की बेला
बसंत उत्सव के आते ही
होली का इंतजार है रहता
मन में नव तरंगे उठती..
ब्रजमंडल याद है आता
गोप गोपियां भर भर पिचकारी
खेले कान्हा संग होरी..
ब्रज में आज भी होती लठमार होली
कान्हा के मंदिर में फूलों की होली
फागुन का यह त्यौहार अलबेला..
रंग लगाते बड़ों को चरण स्पर्श करते..
मीठी मीठी गुझिया खाते..
दही बड़े का लुफ्त उठाते..
नए नए पकवान घरों में बनते..
होली प्रेम मिलन की..
राधा संग कान्हा खेले होरी..
भर भर पिचकारी मारे सखियां..
गोप गोपियां राधा रानी..
होली का गीत फगुआ गाते..
प्रेम मिलन की प्यारी होली..
प्रीत के रंग में रंगी होली..
मन के सारे भेद मिटा दे..
ऐसी सुंदर प्यारी होली..!!
आरती तिवारी सनत
दिल्ली


यादगार होली : होली पर कविता

हो जाती हूं रोमांचित,
पढ़ यादों के पन्नों को
नयनें हो जाते आह्लदित।
सपनों में देख हसीन लम्हों को
दिन थे वो मस्ताने,
हम थे रंगों के दीवाने।
अनूठी थी सखियों की हमजोली,
सारे जहां से प्यारी होती होली।
हंसी फव्वारे उड़ते आकाश में
रहने न देते हताश में
भाभियां संग फगुआ गाते हम,
प्रेमक बूटी पिला नचाते हम।
जोगी जी सररर मदमस्त धुन पर,
बलखाती कमर पायल रूनझुन कर।
भरि पिचकारी रंगू सबका बदन,
उड़ा गुलाल चहुंओर पाऊं प्रेम रतन।
काश,वो दिन आ जाए फिर
छलके अंतर्मन से प्रेमक नीर।
रीतु प्रज्ञा
दरभंगा, बिहार
स्वरचित एवं अप्रकाशित


होली में बरसे है रंग गुलाल : होली पर शायरी और कविताएं हिंदी में

होली में
होली में बरसे है रंग गुलाल।
होली में।

सब मिलके आओ मचाएं धमाल।
होली में।।

कोई हाथ ले रंग की झोरी,
कोई भरी रंग से पिचकारी,
कर दीजै सबको, रंगों से लाल।
होली में।।

आओ बनाकर चलें सब टोली,
सबको खिलादो भंग की गोली,
सब मिलके बजाएं,ढोल करताल।
होली में।।

चाहे जवां हो या कोई बूढ़ा,
भाई भतीजा या मामा दादा,
प्रेम रंग से करदें, सबको लाल।
होली में।।

आओ भुलाएं सारे ग़मों को,
फिर से मिलाएं टूटे दिलों को,
रह जाए न दिल में,कोई मलाल।
होली में।।

यह दुनिया तो है आनी जानी,
बह जाए एक दिन जैसे पानी,
'अवधेश'करो नहीं कोई सवाल।
होली में।।
अवधेश विश्वकर्मा "नमन"


होली आने वाली है : होली शायरी इन हिंदी Holi Shayari in Hindi

होली आने वाली है
गुलाब, गुल्हड़ और पलाश फूल
मेरी सखियों भर-भर लाओ
होली आने वाली है सखियों मिल
फूलों से रंगों को बनाओ।।

रंग इन रंगों से अपने कान्हा को
अपने रंग में रंग जाएंगे।
खेल खूब अपने कान्हा संग होली
खूब हम मुस्काएंगे।।

कान्हा के इर्दगिर्द बैठ हम सखियां
कान्हा से बतियाएंगे
साथ ही कान्हा कि मधुर बांसुरी की
धुन सुन आनंद पाएंगे।।

होली में भर-भर कान्हा को रंग लगा
हम सखियां मिल सताएंगे।।
खूब छेड़ा इस कान्हा ने हर वक्त हमें
हम मिल सखियां होली पर रंगेंगी अब तुम्हें।।

वीना आडवानी तन्वी
नागपुर, महाराष्ट्र


रंग बिरंगी होली आई : होली शायरी इन हिंदी Holi Shayari in Hindi

विधा कविता
शीर्षक रंग बिरंगी होली आई
रंग बिरंगी देखो होली आई,
सबके चेहरे पे खुशियां छाई।
चाहूं ओर हरियाली है लाई,
सबने मिलकर खुब धूम मचाई।
एक दुजे संग सब खेले होली,
इन रंगों की तो बात है निराली।
रंग बिरंगी देखो होली आई,
सबके चेहरे पे खुशियां छाई।
स्वरचित मौलिक
कुमारी गुड़िया गौतम (जलगांव) महाराष्ट्र


होली का त्यौहार दस्तक देने वाला है

होली का त्यौहार दस्तक देने वाला है,
तुम कहां हो मेरे दिलबर
आओ पास कुछ शरारत करते होलिका दहन पर
धड़कनों की न आवाज सुनेंगे
न दिल का हाल बताएंगे
हरे नीले कलर से नया चेहरा बनायेगे
ख्वाबों में देखी होली
आज रूबरू खेलते है
भुला कर गीले-शिकवे
होली की मिठाई खिलाते है
सुनो आज राधा- कृष्ण सी
धूम मचा लेते है
हम नहीं करते आज
होली इमेज की है
फ्रेंड ऑनलाइन मिलते
होली एडिटिंग से खेलते।
प्रतिभा जैन
टीकमगढ़ मध्य प्रदेश


शिकायत
न अल्फाज़ पन्नों पर उतारते
कैसे काटी राते
न अश्क बहाए लिखते
गुस्ताखियां दिल की
आज नही करते
हवा में उड़ा कर
गुलाल छत से ही
होली आरंभ करते।
प्रतिभा जैन
टीकमगढ़ मध्य प्रदेश


होली हमारी भी खेलते

आज होली हम भी खेल लेते,
राधा जैसी दोस्त होती तो,
बिन कहे दिल का हाल तो जानती,
थोड़ा ही सही रूठने का बहाना तो करती,
मनाने को हम चाँद से मुखडे पर
हरि-लाल ग़ुलाल लगा देते
थोड़ा ही सही दिल तो जलाती
हम कन्हैया बन गोपियाँ ले आते,
नज़रों से गुस्सा तो करती वो
हम मनाने को बर्तन थो आते।
प्रतिभा जैन
टीकमगढ़ मध्यप्रदेश

होली

अब होली की खुशी नहीं होती
गुलाल अब शरारत से नहीं लगती
मन को समझा लेते हैं पुरानी बातों से
बचपन वाले दोस्त अब मिलते नहीं है
कहीं पानी से नहाते थे
कभी रंग से मूंछ बनाते थे
अब कहां है वो जमाना यारों
ये सब बचपन में हुआ करता था
अब जमाना स्टेटस का है
बचपन सेल्फी का है
बचपन सेल्फी का है


होली का त्योहार अब मनाती नहीं हूं : होली पर ग़ज़ल

ग़ज़ल
भूली तो नहीं हुँ......

भूली तो नहीं हुँ बस.....
याद नहीं करती अब......
जी तो रही हुँ लेकिन.....
पहले कि तरह नहीं......
होली का त्योहार अब मनाती नहीं हूं.....
होली खेलना भूल गई हूं....
मुस्कुराना भूल गई हूं.....
तेरे जाने के बाद....
शिकायते तो है इस दिल को.....
पर बक बक करना भूल गई हूं.....
अरमान तो बहुत है इस दिल को.....
अब मोहब्बत करना भूल गई हूं....
प्रतिभा जैन
टीकमगढ़ मध्यप्रदेश


होली शायरी हिंदी में : हुआ करती थी ऐसी भी होली

आज मेरे शहर को ये क्या हो गया है
वो मीठा से रिश्ता कहाँ खो गया है
कभी हुआ करती थी ऐसी भी होली
निकलती थी मस्तों मलंगों की टोली
उड़ा करता गुलाल अबीर मेघ बनकर
बनती थी मोती रंग की बूंदें बरसकर
थिरकता बुढापा था बनकर जवानी
जवानी देख हो जाती थीं पानी पानी
खफ़ा जाने क्यूँ अब ख़ुदा हो गया है
आज मेरे शहर को ये क्या हो गया है
वो रातों को छुपकर लकड़ी चुराना
होलिका खुद बनाकर झंडी सजाना
फिर टोली बनाकर मांगना सबसे चंदा
बिना किसी लागत के था अच्छा धंधा
प्रह्लाद के पीछे खूब होती थी लड़ाई
तब समझाते थे आकर पिताजी भाई
चना चिरौंजी का फिर परशाद खाना
लगता जैसे मिल गया कोई खजाना
बड़े क्या हुए जैसे सबकुछ खो गया है
आज मेरे शहर को ये क्या हो गया है
डॉ अनिल कुमार बाजपेयी
जबलपुर


हैप्पी होलिका दहन | होलिका दहन पर शायरी

शीर्षक : होली
असत्य पे सत्य की,
जय हुई ईश्वर तथ्य की,
अन्याय पे न्याय की,
विजय हुई सुरकाय की,
अधर्म पे धर्म की,
निर्भय हुई भक्ति मर्म की!
ईश्वर ने प्रह्लाद की रक्षा की,
होलिका को जलाके शिक्षा दी,
हिरण्य की साजिशें विफल की,
भक्ति का मार्ग और प्रबल की!
नरसिंह का रूप धारण कर,
हिरण्य का वध तारण कर,
असत्य,अन्याय व अधर्म का,
जग में चिर निवारण कर,
उसका घमंड चूर चूर किया,
प्रकाश सच का प्रचुर दिया,
ईश्वर सत्य सर्व शक्तिमान है,
बुरी बला तो ये अभिमान है!
तबसे मनती आ रही है होली,
सुनो भाई,सखे मेरे हमजोली,
पर्वों में सबसे अनोखी होली,
रंगों में रंगी मस्तों की टोली!
देती है ये सबको बड़ा संदेश,
भुलाके सब भेदभाव क्लेश,
रंगों सा घुल-मिल जाओ सबमें,
समभाव का प्रकाश फैलाओ सबमें,
खुशियों का अद्भुत पर्व है होली,
सबको भाए ये पर्व रंग- रंगोली!
ज्योति भाष्कर "ज्योतिर्गमय"
पतरघट,सहरसा(बिहार)
प्रमाणित करता हूँ कि उपरोक्त रचना मेरी है!


होलिका दहन की शुभकामनाएं | होलिका दहन संदेश
होलिका...

सदियों से तुम जल रही हो
क्यूँ प्रह्लाद को छल रही हो
भेष बदलकर आ जाती हो
भोले मन पर छा जाती हो
झूठ बोलकर ललचाती हो
नकली प्रेम दिखलाती हो
प्रह्लाद मासूम सा दीवाना है
छल प्रपंच से अनजाना है
तुमपर वो विश्वास है करता
बार बार तुमसे ही छलता
पर ये शायद भूल गयी तुम
अहंकार में फूल गईं तुम
सत्य सदा उसके ही साथ है
उसके ऊपर प्रभु का हाथ है
चाहे कितने रूप धरो तुम
चाहे कितने स्वांग रचो तुम
एक दिन तुमको जलना है
एक दिन सूरज निकलना है
डॉ अनिल कुमार बाजपेयी
जबलपुर


होली शायरी

है रंगों का त्योहार होली
है खुशियों का बौछार होली,
बसंत का शुभ पर्व है ये
हिन्दुओं के लिए है प्यार होली।
मन के मैलों को धोकर के
होली में गले हम मिलते हैं,
प्रेम, उमंग और भाईचारा का
पुष्प हृदय में खिलते हैं,
खीर, पुआ और दहीबड़े
के साथ बातों में भी मिश्री घोली।
याद करते सब श्री हरि को
जिसने प्रहलाद बचाया था,
असत्य पर सत्य की विजय
स्वर्णिम पाठ भी पढ़ाया था,
खुशियाँ मनाते झूम रहीं हैं
होली वालों की टोली
फसलों पे ये त्योहार मने
खीर - पूरी और पूए बने,
रंगों से गाँव - ज्वार सजा
और ग़ुलाल में हैं लोग सने,
होली मुबारक सबको भैया
चहुंओर गूँजे हैं ये बोली।
है रंगों का त्योहार होली
है खुशियों का बौछार होली।
स्वरचित लेखिका - जूही कुमारी मिश्रा


जश्न ए होली शायरी हिंदी में Jashan e Holi Shayari

जश्न ए होली
जश्न ए होली का है, धूम धाम से मनाइए ...
गीत प्यार मोहब्बत के आज मिल कर गाइए...
एकता का त्यौहार होली प्यार से मनाइए...
प्यार का त्यौहार होली आज झूम जाइए ...
व्हिस्की वाइन और शराब को हाथ मत लगाइए...
प्यार का गुलाल उड़ा मदहोश सब हो जाइए...
रंग भंग के नशे में चूर सब हो जाइए ...
जश्न ए होली का है, धूम धाम से मनाइए...
अध्यक्ष महोदय आप जरा गुलाल तो मंगवाइए...
ठंडी ठंडी भंग की लस्सी भी घुटवाईये...
होली के रंग में आज सब झूम जाइए...
प्रेम का गुलाल आज सबको आप लगाइए ...
भेद भाव मिटाइए सब को गले लगाइए ...
राग द्वेष अहम को आज जला डालिए ...
जश्न ए होली का है, धूम धाम से मनाइए ...
पुआ, पकवान, लड्डू, और गुजिया मिलकर आज खाइए...
दही वड़ा, चाट पकोड़ी खाइए खिलाइए...
शान ए हिंद त्यौहार होली धूम धाम से मनाइए...
आज न कोई मंत्री न संतरी आज न कोई ऊंच नीच ...
आज न कोई सिख ईसाई न कोई हिंदू मुसलमान ...
रंगे हुए सब एक रंग में कितना प्यारा हिंदुस्तान ...
होली के हुड़दंग को प्यार से मनाइए ...
जश्न ए होली का है, धूम धाम से मनाइए ...
होली प्यार का त्यौहार, हिंदुस्तान का त्यौहार....
देवर भाभी का त्यौहार, जीजा साली का त्यौहार ...
बच्चों की रंग पिचकारी का त्यौहार ...
बुजुर्गों के अपने सम्मान का त्यौहार...
अधर्म की हार धर्म की जीत का त्यौहार...
पतझड़ में यारों बहार का त्यौहार...
जश्न होली का है, धूम धाम से मनाइए ...
भेद भाव मिटाइए सबको गले लगाइए ..
निर्दोष जैन लक्ष्य


होली गीत : मिला लो दिल से दिल के तार, आया रंगो का त्यौहार

होली गीत
बोल- मिला लो दिल से दिल के तार

धरती दुल्हन सी सजी है, आया है रंगो का त्यौहार
छोड़ो सारे गिले-शिकवे, मिला लो दिल से दिल के तार

अपना पराया छोड़ो बातें, हम तो सारे एक हैं
साझा अपना पानी- मिट्टी, इरादे अपने नेक हैं
शक संशय दूर सारे, इस गुलशन के सब परिदें
झूठ कपट कोई नहीं, उस ईश्वर के सारे बन्दे

अब नहीं कोई झगड़ा अपना, वतन हमारा है गुलज़ार
छोड़ो सारे गिले-शिकवे, मिला लो दिल से दिल के तार

फूट न डाले कोई हममें, सदियों कीमत चुकाई है
गुलामी की बेड़ी हमने, मुश्किल से तुड़ाई है
फाँसी के फँदे चूमे हैं, भारत के दीवानो ने
काल कोठरी में गुजारे, भारत के मस्तानो ने

धर्म जाति की बातें छोड़ो, नफरत की तोड़ो दीवार
छोड़ो सारे गिले-शिकवे, मिला लो दिल से दिल के तार

सबका हक़ है बराबर, सबकी अपनी जिम्मेदारी
देश अपना सबको प्यारा, सबकी हो हिस्सेदारी
मानव बनकर जीना हमको, हिंसा से रहना दूर
सबको हमें इज्जत देनी, चाहे कोई हो मजबूर

इस नाव के हम हैं नाविक, नदियाँ करनी हमको पार
छोड़ो सारे गिले-शिकवे, मिला लो दिल से दिल के तार

भारत माता सबकी अपनी, माता का करें सम्मान
हम सबको हिफाज़त करनी, तिरंगे का बढ़ाएं मान
छोटा बड़ा कौन यहाँ पर, हिंदुस्तानी है पहचान
गद्दारों से सजग रहना है, आजाद रहेगा हिंदुस्तान

किसान जवान बहादुर अपने, मेहनत के हैं ये सवार
छोड़ो सारे गिले-शिकवे, मिला लो दिल से दिल के तार

मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे से, निकले अब अमन की बात
गिरजाघर की घंटी बोले, हिन्दुस्तान अपनी सौगात
सारे उत्सव अपने ही हैं, सारे अपने तीज- त्यौहार
भाषा बोली सारी अपनी, सबसे अपना सद्व्यहार

सविंधान है सबसे ऊपर, सबके इसमें हैं अधिकार
छोड़ो सारे गिले-शिकवे, मिला लो दिल से दिल के तार
श्याम मठपाल, उदयपुर


होली की शुभकामनाएं

रंग प्रीत के भर लाया हूँ,
हर आँगन में बसाया हूँ,
उल्लास होली का-मित्रों,
हर घर को तीर्थ बनाया हूँ।
रंगभरी, रसभरी, रहबरी हर चेहरे पर नयी रौनक, नया निखार, समृद्धि का संसार, खुशियाँ अपार, यह अभिलाषा पिचकारी में भर लाया हूँ बयार में फैलाया हूँ।
होली की शुभकामनाएं।।
विनोद कुमार जैन वाग्वर


होली पर शायरी हिंदी में

नेह का रंग चढे खूब तन-मन पर,
कभी नीर न बहे अँखियन से,
खुशियों के प्याले पी झुमे,
फागुन के फाग बरसे हर दिल से,
गलियन गलियन मौज मनाने,
प्रेम प्यार के रंग बरसाने,
आनन्द की भर दो तुम झोली,
अबके फिर आई है होली,
खुशियाँ ही गुलजार करेगी,
हर घर में वह राज करेंगी,
स्वर्ग सा होगा घर आँगन,
"वाग्वर" प्रीत का दामे थामन
अबके होली रास रचाले
गज भर, मन भर, तन भर
खुशियों की तु भंग चढाले
अबके होली ....
विनोद कुमार जैन वाग्वर


Happy Holi होली पर शायरी

मैं तो देखो खेली होली, नैन तोहे निहारे।
मेरे तो कान्हा जी प्यारे,द्वार बैठी तिहारे।।
आओ मेरी तू आशा हो,प्रेम भावों जगाओ।
सारे वादे जो खाए थे, आज बोलो निभाओ।।
तेरे ही ख्वाबो में डोलूँ,सिर्फ तोहे निहारूँ।
तेरे से तो जीना मेरा, पूर्ण इच्छा पुकारूँ।।
रंगों रंगों में तू ऐसे, प्रीत में आज पाई।
सारे त्योहारों में तू है, धर्म का धार लाई।।
सारे भावों में मैं डूबी, कर्म को मैं पढ़ाती।
तेरे को मैं ऐसे चाहूँ, प्रेम के गीत गाती।।
सोचा था मैंने भी देखो, व्यंजना को बनाती।
सारे प्यारे भावों को ले, पूर्णता से मिलाती।।
व्यंजना आनंद "मिथ्या "


होली पर कविताएं

होली
होली ऐसी खेलो तुम सब,
पिचकारी में खुशियाँ घोलो।
यह रंग हृदय पर ऐसे चढ़ता,
हृय का दरवाजा तुम खोलो।।
सारे बैर भूल कर आना,
मन का मन से मिलन कराना।
कटुता रहें न तेरे मन में,
मन के रिपु को मार भगाना।।

मेरे भीतर भाव भरा है,
मन होली में डूबे ऐसे।
मिथ्या प्रेम भाव में जाए,
सपनों में कान्हा हो जैसे।
मन के सप्त रंग से खेलूँ,
मेरे हृद में सूरत प्यारी।
तेरी सूरत ऐसी भायी,
मैं तो सब कुछ तुम पर हारी।।


होली देखो ऐसी होती

मन से मन का मिलन कराती।
सबको अच्छी लगती यह तो,
दुश्मन से भी गले मिलाती।।
मिट जाते सब राग द्वेष ही,
पल में प्रीत कराती होली।
मन अंहकार तुम खा जाओ,
मीठी करना अपनी बोली।।
व्यंजना आनंद "मिथ्या "


होली की ढ़ेरों शुभकामनाएँ और बधाई

मिथ्या के गीति-काव्य

होली के मेरे भाव

खेल हृदय से आज जगत में होली।
सुंदर हो जाए इस तन की खोली।।
बरसाने में राधा कृष्ण संग खेले,
शिव मणिकर्णिका घाट पर थे आए।
एक प्रेम के दीप जलाकर जग को,
खेल भष्म से शिव वैराग्य सिखाए।।
चलो चले हम एक बनाते टोली।
खेल हृदय से आज जगत में होली।।
रंग सभी देखो होते झूठे है,
मिथ्या रंग सही बस ईश रंग का।
जैसे माया को हम सभी त्यागते,
घिरता वैराग हृदय पर उमंग का।
सोच समझ कर यहाँ बनाओ टोली।
खेल हृदय से आज जगत में होली।।
रंग बिरंगे सुखद भाव हो हृद में,
सारे बैर मिटा कर तुम सब आना।
हो न कलुषता तनिक हृदय में तेरे,
गान सदा मन भाव रंग का गाना।।
सदा निकालो मुँख से मीठी बोली।
खेल हृदय से आज जगत में
होली।।
व्यंजना आनंद "मिथ्या "

होली की मुबारका

छाया चौतरफा नशा,
उड़ता देखो रंग।
प्रीत रंग में डूबते,
मन में रखे उमंग।।


होली पर दोहा होली के दोहे दोहों में फाग

मेरे द्वारा रचित होली के दोहों में रंग – बिरंगी खुशियों के रंग छलके हैं . रंगों से जनमानस और प्रकृति रंगमय हो गयी निगोड़े फागुन के लिए मैं कह रही हूँ –

दोहों में फाग
धरती - अंबर हो गए, देखो ! लालमलाल।
मदहोशी के रंग ने, कैसा किया कमाल।।
1

खिली फाग में आज है, लाल - गुलाबी भोर।
नेह गुलाल लगा गया, नजर छिपा चितचोर।।
2

होली रंगों से सजी, भर पिचकारी धार।
हर्षल रंगों में घुला, जनमानस का प्यार।।
3

होली खेले बरज में, श्याम बिहारी लाल।
राधा प्यारी संग में, ले के हाथ गुलाल।।4

प्रभु ने रंगों से लिखा, राधा रानी को पत्र।
फागुन कान्हामय हुआ, यत्र तत्र सर्वत्र।।
5

लगन लिखाने आ गया, फाग माह दिल द्वार।।6
लिए मुद्रिका हाथ में, रीति - रस्म तैयार।
डॉमंजु गुप्ता
साहित्यकार, एंकर, योग प्रशिक्षिका, कवयित्री
वाशी, नवी मुंबई
Read More और पढ़ें:

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ