निगाहों से कत्ल शायरी|कातिल निगाहें शायरी
खूबसूरती की तारीफ शायरी
ग़ज़ल
सिवाय तेरे कोई लाजवाब थोड़ी है।
हसीन तुझ सा कोई माहताब थोड़ी है।
सिवाय तेरे कोई लाजवाब थोड़ी है।
हसीन तुझ सा कोई माहताब थोड़ी है।
शराब शायरी
यूँ ही तो छोड़ दिया हमने मयकदे जाना।
तिरी निगाह से बेहतर शराब थोड़ी है।
तिरी निगाह से बेहतर शराब थोड़ी है।
हमारे हाथ में हैं ख़ार तो शिकायत क्यों।
तुम्हारे हाथ में खिलता गुलाब थोड़ी है।
भला ये कैसे मिटायेगा तीरगी जग की।
चराग़े दिल है, कोई आफ़ताब थोड़ी है।
बुरा न मानो चले जायेंगे अभी उठ कर।
नशा है हम को मगर बे हिसाब थोड़ी है।
अभी क्यों आयेंगे मिलने ये रहनुमा लोगो।
अभी वतन में कहीं इन्तख़ाब थोड़ी है।
हैं चर्चे उस की नज़ाकत के चार सू लेकिन।
हमारे जैसा वो बिगड़ा नवाब थोड़ी है।
ख़ुशामदों में तुम्हारी ही बस रहे हर दम।
फ़राज़" इतना भी ख़ाना ख़राब थोड़ी है।
सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़ पीपलसाना मुरादाबाद यू.पी.
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