अजनबी कविता | अनजान दोस्ती शायरी
ऐ अजनबी शायरी | अनजान प्यार शायरी
एक अजनबी हसीना
तभी एक अजनबी हसीना
जिसे देख उपवन मुस्काये
हूर दिखाना।दौर निराले
गुलशन हारा कलि मुरझाये।
तभी एक अजनबी हसीना
वहीं झट दिल में उतर आई।
दिले नादान बैचेन जरा
बात किसी को ना बतलाई।
तभी एक अजनबी हसीना
रात यूँ छत पे नजर आई।
शर्माये चाँद सजदे की है
चाँदनी आह बरबस पाई।
तभी एक अजनबी हसीना
कब लहरों से जा टकराई।
धैर्य भंग समुँदर के धीरे
अति हिचकोले नदियाँ खाई।
तभी एक अजनबी हसीना
प्रेम खिड़की पे नजर आई।
कहो दिल्लगी प्रतिफल लाया
अभी मुझे खुदकी बतलायी।
धन्यवाद।
प्रभाकर सिंह
नवगछिया, भागलपुर
बिहार
जिसे देख उपवन मुस्काये
हूर दिखाना।दौर निराले
गुलशन हारा कलि मुरझाये।
तभी एक अजनबी हसीना
वहीं झट दिल में उतर आई।
दिले नादान बैचेन जरा
बात किसी को ना बतलाई।
तभी एक अजनबी हसीना
रात यूँ छत पे नजर आई।
शर्माये चाँद सजदे की है
चाँदनी आह बरबस पाई।
तभी एक अजनबी हसीना
कब लहरों से जा टकराई।
धैर्य भंग समुँदर के धीरे
अति हिचकोले नदियाँ खाई।
तभी एक अजनबी हसीना
प्रेम खिड़की पे नजर आई।
कहो दिल्लगी प्रतिफल लाया
अभी मुझे खुदकी बतलायी।
धन्यवाद।
प्रभाकर सिंह
नवगछिया, भागलपुर
बिहार
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