बसंत ऋतु कविता हिंदी Poem On Spring Season In Hindi Basant Panchami
कविता : बसंत
बसतं ऋतु है आई, खुशियां मन में छाई
फूल खिलने लगे हैं, अब मुस्कुराइए
आम बौर आने लगे, पंछी सब गाने लगे
भौंरे अब डोल रहे, मन को सजाइये
कोयल गीत गाने लगी,शीत ऋतु जाने लगी
धरती सजने लगी, गीत कोई गाइये
हवा मंद चल रही, प्रीत अब पल रही
कोपलें फूटने लगी, सब को बुलाइये
सुगंध चारों ओर है, नूतन अब भोर है
सरसों फूलने लगी, नज़र तो डालिये
महुवा भी खिल उठा, वन जैसे जल उठा
फसलें पकने लगी, ठहर तो जाइये
सात रंग बिखरे हैं,नर नार सँवरें हैं
बने होरी के रसिया, खुद को बचाइए
गगन लगे है प्यारा, सूरज लगे है न्यारा
बसंत पंचमी आई, माता को मनाइये
श्याम मठपाल, उदयपुर
बसंत पंचमी पर कविता : बसंत पंचमी का त्यौहार
बसंत पंचमी का त्यौहार
( मुक्तछंद काव्य रचना )
बसंत ऋतू जब होता है शुरू,
उसी दिन बसंत पंचमी का त्यौहार होता है।
आसमां दिखता है नीला नीला और,
सरसों की भीनी-भीनी खुशबू दिशाओं में फैल जाती है।
चिड़िया चहकती है पेड़ों पेड़ों पर,
हरियाली में सजी धरती दुल्हन सी दिखती है।
हवाओं के संग खिलती वो कलियां प्यारी,
नृत्य अपना जैसे हमें दिखलाती है।
रंग-बिरंगे फूल बागों में खिलते,
और तितलियां प्यारी उसपर मंडराती है।
अपनी ही धुन में गुनगुनाते भंवरे,
जैसे कोई प्रीत धुन अपनी सुनाते हैं।
गांव-गांव में बसंत पंचमी का त्यौहार,
और गोरिया सब सज धजकर निकलती है।
हाथों में सजी मेंहदी सुंदर प्यारी सी,
और पांवों में पायल छम-छम खनकती है।
मीठी-मीठी निकलती धूप सबके मन मन में,
आशाओं की नई उमंग भर देती है।
मानों लेकर खुशियां वो अनगिनत,
बसंत पंचमी नई बहार लेकर आती है।
चांद तारों से सजा वो सारा अंबर,
और ठंडी-ठंडी बहती हवाएं मनकों भाती है।
ऋतूओ में सबसे प्यारा ये मौसम सुहाना,
कभी न खत्म हो यही अभिलाषा सबकी होती है।
प्रा.गायकवाड विलास
मिलिंद क.महा.लातूर
9730661640
vilasdgaik668@gmail.com
महाराष्ट्र
वसंत ऋतु पर कविता हिंदी में : बसंत आगमन
बसंत ऋतु
हर ओर बसंत आगमन
का स्वागत हो रहा
साहित्यकार भी जज़्बात
लिख ऋतु में खो रहा।।
शीत लहर का असर अब
तो कम हो रहा।।
खेत नई कपोलों संग उस
पर भौंरा मंडरा तो कभी सो रहा।।
पीली साड़ी ओढ़े जैसे सरसों
देख नजारा मन मोह रहा।।
बसंत आगमन पर देखो सरस्वती
वंदन गा मन पुलकित हो रहा।।
देखो बसंत में प्रेम अंगड़ाई ले
चारों ओर छटा प्रेम कि बिखेर रहा।।
पावन ऋतु प्रकृति, धरा को हसीन
श्रृंगार रस संग भिगो रहा।।
वीना आडवानी तन्वी
नागपुर, महाराष्ट्र
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बसंत ऋतु पर कविता : जबसे आये हैं ऋतुराज बसंत
कविता
तन-मन मेरा गुलाबी हुआ
जबसे आये हैं ऋतुराज बसंत,
तन-मन मेरा गुलाबी हुआ,
दिल-दिमाग में चढ़ने लगी फगुनाहट,
मेरा नैन थोड़ा शराबी हुआ।
चहुँ ओर हरियाली नजर आने लगे,
सरसो फूल मन को भाने लगे,
ज्यों-ज्यों बहने लगी बसंत ब्यार,
मेरा दिल थोड़ा नबाबी हुआ।
ज्यों-ज्यों उड़ने लगे अबीर-गुलाल,
होने लगे गोरी के चुनर लाल-लाल,
नाचने लगा जब गोरी का मन मयूर,
कवि"अकेला"थोड़ा हाजिर जबाबी हुआ।
तन-मन मेरे जब लड़खड़ाने लगे,
मादकता समझ में आने लगे,
जब गोरी ने दी मेरे हाथों में गुलाब,
देख मेरा मन थोड़ा गुलाबी हुआ।
अरविन्द अकेला
बसंत आ गया कविता-Aaya Basant Poem Hindi
बसंत पंचमी कविता-Basant Panchami Poem Hindi
बसंत पंचमी
आया बसंत, आया बसंत
बदली बदली है बयार
धूप हो गयी खुशगवार
सर्दी का देखो हुआ अंत
आया बसंत, आया बसंत ।1।
बदली बदली है बयार
धूप हो गयी खुशगवार
सर्दी का देखो हुआ अंत
आया बसंत, आया बसंत ।1।
आमों में स्वर्णिम मंजरियां आई
मनमोहक मन को हैं भाई
पीपल के पीत पात का अंत
आया बसंत, आया बसंत ।2।
मनमोहक मन को हैं भाई
पीपल के पीत पात का अंत
आया बसंत, आया बसंत ।2।
नाचते-गाते सुन्दर मोर
बाग में करती कोयल शोर
मधुरता न हो कभी अंत
आया बसंत, आया बसंत ।3।
Basant Panchami Par Kavita
मधुमास में मधु रस की बहार
होली के गीतों का मल्हार
यादों में आ रहे कंत
आया बसंत, आया बसंत ।4।
होली के गीतों का मल्हार
यादों में आ रहे कंत
आया बसंत, आया बसंत ।4।
देख के सुन्दरता चहुँ ओर
वियोगी होता है मन मोर
मदन ने किया व्यथित हे!कंत
आओ हे कंत, आया बसंत ।।
अभय प्रताप सिंह
सीतापुर, उत्तर प्रदेश
वसंत ऋतु के दोहे
Aaya Basant Poem in Hindi
बसंत
दिशा दिशा में,नव उमंग।
देखो आ गया बसंत।।
बहती भीनी भीनी सुगंध,
जैसे मन में छायी तरंग।
खिल उठा धरा का आंगन,
दृश्य है हर ओर मन भावन।
हर किसलय का सौम्य अंग,
महकता है परिमल दिग्दिगंत।।
देखो आ गया बसंत।
नये पल्लव, हैं नयी लताएं,
वन उपवन की देखो छटाएं।
नव सृजन भी नव परिवर्तन,
कूक रही है कोयल वन वन।
यौवन भरता उमंग हर अंग,
विहंसते पुष्प भरे मकरंद।
देखो.देखो खिले रसवंत।।
देखो आ गया बसंत।
मधुपों का होता है गुंजन,
अनूठी प्रीति जागी है मन।
भाव नये भर रही तरुणाई,
जैसे दिगंत में छाई हो अरुणाई।
नवयौवन भरी धरा इतराई,
कल्पनाएं जागती हैं अनंत।
देखो आ गया बसंत।
दिशा दिशा में नव उमंग।।
स्मृति चौधरी (विज्ञान शिक्षिका)
सहारनपुर, उत्तर प्रदेश
फाउंडर-शैक्षिक आगाज़,
एविड मोटिवेशन
कस्टोडियन-लिटिल हैल्प,
रेडियो मेरी आवाज 2.0
देखो आ गया बसंत।।
बहती भीनी भीनी सुगंध,
जैसे मन में छायी तरंग।
खिल उठा धरा का आंगन,
दृश्य है हर ओर मन भावन।
हर किसलय का सौम्य अंग,
महकता है परिमल दिग्दिगंत।।
देखो आ गया बसंत।
नये पल्लव, हैं नयी लताएं,
वन उपवन की देखो छटाएं।
नव सृजन भी नव परिवर्तन,
कूक रही है कोयल वन वन।
यौवन भरता उमंग हर अंग,
विहंसते पुष्प भरे मकरंद।
देखो.देखो खिले रसवंत।।
देखो आ गया बसंत।
मधुपों का होता है गुंजन,
अनूठी प्रीति जागी है मन।
भाव नये भर रही तरुणाई,
जैसे दिगंत में छाई हो अरुणाई।
नवयौवन भरी धरा इतराई,
कल्पनाएं जागती हैं अनंत।
देखो आ गया बसंत।
दिशा दिशा में नव उमंग।।
स्मृति चौधरी (विज्ञान शिक्षिका)
सहारनपुर, उत्तर प्रदेश
फाउंडर-शैक्षिक आगाज़,
एविड मोटिवेशन
कस्टोडियन-लिटिल हैल्प,
रेडियो मेरी आवाज 2.0
बसंत गीत : बसंत ऋतु पर कविता Basant Ritu Par Kavita
बसंत गीत
मेरे प्यारे ऋतुराज की अभिनन्दन करे चमन।
हो गया है गाँव गाँव जबसे बसंत का आगमन।
रूखे सुखे डाल-डाल, नये कोपले आने लगे।
वन उपवन उन्मादित, जैसे यौवना छाने लगे।
रंग बिरंगी तितलियाँ, झुंड में गुनगुनाने लगे।
भँवरा फूल-फूल से, मकरंद मधु लाने लगे।
खिलखिलाकर झूमते, ये खेत खलिहान है।
आ गया हूँ मैं, ये बसंत का आह्वान है।
बाग-बगियों के पेड़ो संग नाचते-गाते पवन।
हो गया है गाँव-गाँव जबसे बसंत का आगमन।
सिमर के डाल-डाल, फुलो की कतार है।
कोयल की राग से, बाग गुलजार है।।
सरसों के फूल जैसे, पीले-पीले श्रृंगार है।
पुष्प से सुसज्जित, ऋतुराज का त्योहार है।
सतरंगी फूलों से जैसे सज चुके, हर द्वार है।
यह अलौकिक आलिंगन, अद्भुत बसंत बहार है।
कुदरत के दिव्य झलक को है बारम्बार नमन।
हो गया गाँव-गाँव जबसे बसंत का आगमन।
फूल-फलवति हो पेड़, नाचते गाते है शान से।
हर्षित होता तन-मन देख, प्रित के विधान से।
ऋतुपति के अलौकिक, प्रेममयी रूझान से।
है घायल करते रितुप्रिया को, अचूक संधान से।
पीड़ित जो प्यासी पलकें उलझे विरह की छण-छण से
उनकी पीड़ा हर लेते है, वो अपने दिव्य आलिंगन से।
खिल उठे मेरे पोर-पोर आतुर है जैसे अंतर्मन।
हो गया है गाँव-गाँव जबसे बसंत का आगमन।
जोश में खिले है फूल, गेंदे और गुलाब की।
पुरे होने के आये वक्त, इनके भी ख्वाब की।
आखिर विरह कब तक सहेंगे, महताब की।
आतुरता है इनको भी, बसंत के खिताब की।
तड़प रहे थे जो भी मन, विरह के त्राण से।
आज वो प्रफुल्लित है, बसंत के विहान से।
फैले हुए है आज जैसे चहुँओर ही अमन।
हो गया है गाँव-गाँव जबसे बसंत का आगमन।
पूनम यादव
वैशाली बिहार से
Pin code- 844122
Email id -poonam7544@gmail.com
वसंत ऋतु कविता हिंदी
हिन्दी कविता-बसंत आने लगा
बागो मे फूल कलियों बाहर अत्यंत आने लगा।
मस्त मदन लिए अंगड़ाई देखो बसंत आने लगा।
शरद ऋतु शने शने बिगत अब होने लगी।
धूप की नरमी अब गर्मी मे बदल जाने लगी।
गरम लिहाफ छोड़ मौसम सुखांत आने लगा।
मस्त मदन लिए अंगड़ाई देखो बसंत आने लगा।
फूलो भवरों की गूंज अब गुंजने को है।
बहारों पराग पवन संग अब महकने को है।
चिड़ियों चह चह दिग दिगंत गाने लगा।
मस्त मदन लिए अंगड़ाई देखो बसंत आने लगा।
पिया तू कहा पपीहा बिरह राग गाएगा।
सजनी को याद सजन बहुत अब आयेगा।
खुमार मदहोसी जीव जंत छाने लगा।
मस्त मदन लिए अंगड़ाई देखो बसंत आने लगा।
टोली जवानो की राग फाग अब गाएँगे सब।
झाल मजीरा माँदर झूम अब बजाएँगे सब।
ऋतुराज स्वागत पुस्प पंथ बिछाने लगा।
मस्त मदन लिए अंगड़ाई देखो बसंत आने लगा।
प्रीतम की प्यारी भर नयनो मे मद सारी।
मीठे कोयल की कुक उठे मन हुक नर नारी।
हिय प्रिय मधुर मिलन गीत कंठ गाने लगा।
मस्त मदन लिए अंगड़ाई देखो बसंत आने लगा।
झर झर निर्झर झरते झरने पवन।
बयार पुरवा बढ़ाए तन बदन अगन।
गंध केसर महक योवन आनंद सुहाने लगा।
मस्त मदन लिए अंगड़ाई देखो बसंत आने लगा।
श्याम कुँवर भारती राजभर
कवि, लेखक,गीतकार,समाजसेवी
मस्त मदन लिए अंगड़ाई देखो बसंत आने लगा।
शरद ऋतु शने शने बिगत अब होने लगी।
धूप की नरमी अब गर्मी मे बदल जाने लगी।
गरम लिहाफ छोड़ मौसम सुखांत आने लगा।
मस्त मदन लिए अंगड़ाई देखो बसंत आने लगा।
फूलो भवरों की गूंज अब गुंजने को है।
बहारों पराग पवन संग अब महकने को है।
चिड़ियों चह चह दिग दिगंत गाने लगा।
मस्त मदन लिए अंगड़ाई देखो बसंत आने लगा।
पिया तू कहा पपीहा बिरह राग गाएगा।
सजनी को याद सजन बहुत अब आयेगा।
खुमार मदहोसी जीव जंत छाने लगा।
मस्त मदन लिए अंगड़ाई देखो बसंत आने लगा।
टोली जवानो की राग फाग अब गाएँगे सब।
झाल मजीरा माँदर झूम अब बजाएँगे सब।
ऋतुराज स्वागत पुस्प पंथ बिछाने लगा।
मस्त मदन लिए अंगड़ाई देखो बसंत आने लगा।
प्रीतम की प्यारी भर नयनो मे मद सारी।
मीठे कोयल की कुक उठे मन हुक नर नारी।
हिय प्रिय मधुर मिलन गीत कंठ गाने लगा।
मस्त मदन लिए अंगड़ाई देखो बसंत आने लगा।
झर झर निर्झर झरते झरने पवन।
बयार पुरवा बढ़ाए तन बदन अगन।
गंध केसर महक योवन आनंद सुहाने लगा।
मस्त मदन लिए अंगड़ाई देखो बसंत आने लगा।
श्याम कुँवर भारती राजभर
कवि, लेखक,गीतकार,समाजसेवी
बसंत आ गया
महकता चहकता लिए मधुर मादकता बसंत आ गया।
निखरता थिरकता लिए संग नाज़कता बसंत आ गया।
बहे पवन मस्त मलंग भर मन मे उमंग बहके अंग अंग।
फूल कलियां मुस्कुराए बाग भवरे गुनगुनाए सब हुए दंग दंग।
गोरी पिया मिलन आतूरता लिए नैनो चपलता बसंत आ गया।
हुआ बाग गुलजार आया मौसम सदा बहार चले हवा मतवाली।
करे सजनी खूब श्रृंगार निहारे पिया खड़ी द्वार बड़ी नैनो वाली।
सजन दर्शन व मिलन को सजनी आतुरता बसंत आ गया।
प्रीतम प्रीत हुई पराई ले बदन अब अंगड़ाई पिया तेरी याद आई।
पराग फूलो रस महकाई मस्ती भवरो में है खूब छाई।
गाए कोयल मतवाली आमो डाली धर अधीरता बसंत आ गया।
पिया की प्यारी मुख अपना निहारी केस फूल चम्पा सवारी।
आओ पिया सुधी लो हमारी राह निहारी तेरी अब मैं हारी।
काबू नहीं दिल रहता प्रेमी पवन बहता संग आ गया बसंत।
श्याम कुंवर भारती।
बोकारो झारखण्ड।
मुक्तक - बसंती बयार
बहे बसंती बयार कर गोरी सोलह श्रृंगार चली।
सुन्दर सजीली छैल छबीली लगे कचनार कली।
पगलाया अलसाया मौसम पपिहा पिया पुकारे।
गदराया गेंहू फली बाग फूल कली रसधार चली।
श्याम कुंवर भारती
बसंत ऋतु एक कविता
चारो तरफ हरियाली है छाई
पेड़ों की डालों पर फूटे कोपल
रंग बिरंगे फूल खिल रहे-
मनमोहक तरह तरह के फल
पंछी डालों पर उड़ मंडराते
कोयल बोले मिठी प्यारी बोल
मोर मोरनी करते कलरव
देख सभी हर्षित होते-
हरियाली का न लगा कोई मोल
धरती ओढ़े हरी चुन्ड़
देख सभों का मन में छाई प्रीत
मिठी धून पर मोहन बंसी बजावे
बावरी हो राधा पुकारे आ जा मेरे मीत
अब तो जमुना तट आजा रे!
पिहू पिहू करे मोरिया मोरनी रे सुन
कोयल कूक रही अमवा की डाली पर
हरियाली और कृष्ण का है नाता सुन
पुष्पा निर्मल
बेतिया, बिहार
पेड़ों की डालों पर फूटे कोपल
रंग बिरंगे फूल खिल रहे-
मनमोहक तरह तरह के फल
पंछी डालों पर उड़ मंडराते
कोयल बोले मिठी प्यारी बोल
मोर मोरनी करते कलरव
देख सभी हर्षित होते-
हरियाली का न लगा कोई मोल
धरती ओढ़े हरी चुन्ड़
देख सभों का मन में छाई प्रीत
मिठी धून पर मोहन बंसी बजावे
बावरी हो राधा पुकारे आ जा मेरे मीत
अब तो जमुना तट आजा रे!
पिहू पिहू करे मोरिया मोरनी रे सुन
कोयल कूक रही अमवा की डाली पर
हरियाली और कृष्ण का है नाता सुन
पुष्पा निर्मल
बेतिया, बिहार
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