बसंत ऋतु भोजपुरी कविता Poem On Spring Season In Bhojpuri Basant Panchami
बसंत ऋतु पर भोजपुरी कविता
बीतल ऋतु हेमंत, अली आइल फागन।
डारन पात बसंत, कली सहके बागन।।
लदरल पुहु कचनार, लता चंपा गदरल।
महकल दिसा दिगंत, बसंत सगर पसरल।
मड़राये अलि बाग, लगे सुन्दर कानन।
डारन पात बसंत, कली सहके बागन।।
हरियर पीयर लाल, फबे तन पर चुनरी।
सज सोरह सिंगार, धरा भइली सुनरी।
मजराइल तरु आम, फगे महुआ सागन।
डारन पात बसंत, कली सहके बागन।।
कोइल कुहुके बाग, पपीहा पिउकेला।
सुनिके फागुन राग, धनी मन बहकेला।
लेसे तन मन आग, नैन ढ़रके सावन।
डारन पात बसंत, कली सहके बागन।।
साजन जी परदेस, घरे असगर सजनी।
दिनभर जोहत बाट, हिया हहरे रजनी।
काटे महल अटार, लगे सूना आँगन।
डारन पात बसंत, कली सहके बागन।।
पाती नाहि सनेस, पठावेलनि साजन।
भर भीतर में रोष, प्रिया बनि जा नागन।
मौसम के नटखेल, लगेला अनसावन।
डारन पात बसंत, कली सहके बागन।।
अमरेन्द्र
आरा भोजपुर बिहार
अइले बागि में बसंत- बसंत ऋतु पर भोजपुरी गीत
चंपा जुही चमेली खिलल खिल गइल कचनार।
भृंगराज मदहोश भइल बा चूस चूस मधुसार।
जोगीरा सारा रा •••••।।
अइले बागि में बसंत-2
खिलि गइली जुही झरबेरिया।
लाली गुलनार खिली खिलली चमेलिया।
खिलली चमेलिया हो खिलली चमेलिया।
आहे लह लह लहके अनंत-
खिलि गइली••••••।।
काँचे कचनारी डारि खिलि गइली कलिया।
खिलि गइली कलिया हो खिलि गइली कलिया।
आहे गम गम गमके दिगंत-
खिली गइली••••••।।
बेली लदराई गइली झुकी गइली डलिया।
झुकी गइली डलिया हो झुकी गइली डलिया।
आहे पुहुरस चूसे रसवंत-
खिलि गइली••••••।।
अमुआ की डारि - डारि कुहुके कोइलिया।
कुहुके कोइलिया हो कुहुके कोइलिया।
कब अइहें घरे मोरा कंत-
खिली गइली••••••।।
अमरेन्द्र
आरा
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