वीरान शहर शायरी, सन्नाटे पर शायरी वीरानी शायरी हिंदी
आज वीरान अपना घर देखा
हर तरफ खालीपन, कोई नज़र नहीं आया
मासूम से खड़े पेड़, अकेला पड़ा था साया
उजड़ गई थी बस्ती, नहीं कोई असर देखा
टूट रही थी दीवारें, वीरान अपना घर देखा
न पंछियों का शोर, न पशुओं की आवाज
न कोई बच्चा देखा, ना बुजुर्गों के साज
उजड़ी हुई पगडण्डी, दुखती नज़र देखा
बंजर से खेत देखे, वीरान अपना घर देखा
चिढ़ाते हुवे आँगन, घूरते हुवे सी डोली
न मंदिर की घंटी, नहीं घुमक्क्ड टोली
आँसू बहाती चौखट, नहीं कोई बसर देखा
डराती हुई थी हवा, वीरान अपना घर देखा
न कोई पनिहारिन, न कोई घसियारिन
न कोई बटोही, न कोई लुहारन
चीखते से कमरे, बस जहर देखा
सब छोड़ गए, वीरान अपना घर देखा
मकान के छत, सबको बुला रहे हैं
कर गए अनाथ, हमको सुना रहे हैं
पीढ़ियों को पाला, आज कहर देखा
अकेला खड़ा था, वीरान अपना घर देखा
श्याम मठपाल, उदयपुर
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घर की दीवारें भी
(मुक्तछंद काव्य रचना)
खुशहाली जब रूठकर चली गई कहीं दूर,
आज विरान अपना वो घर देखा ।
मुसीबतें जब हंस रही थी ज़ोर शोर से,
आज विरान अपना घर मैंने रोता देखा।
भले ही ईंटों से बनी है ये दीवारें,
मगर वो भी अपनापन हमसे निभाती है।
जब भी आती है खुशियां घर में हंसते हुए,
तब वो भी मानो जैसे निखर जाती है।
घर की दीवारें भी करती है बातें हमसे,
वो भी अपनेपन का रिश्ता निभाती है प्रेम से।
हर सुख-दुख में रहती है मिल जुलकर,
जैसे कोई सच्चा साथी अपना फर्ज निभाता है।
जब सजती है दीवारें रंगों से त्यौहारों में,
मानो जैसी नई नवेली दुल्हन जैसी दिखती है।
तब प्रसन्न लगता है माहौल किसी भी घर का,
घर सिर्फ घर नहीं,उसी में अपनों की यादें होती है।
खुशहाली जब रूठकर चली गई कहीं दूर,
आज विरान अपना वो घर देखा ।
उसी घर के ईंटों से हमने भी जिंदगी में यहां,
हर इक रिश्तों को हमने प्रेम के धागों से बांधकर रखना सीखा।
प्रा.गायकवाड विलास
मिलिंद महाविद्यालय लातूर
9730661640
महाराष्ट्र
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