Ticker

6/recent/ticker-posts

कुछ टूट रहा परिवारों में : दुखी परिवार शायरी | परिवार से परेशान शायरी | घर परिवार की शायरी

कुछ टूट रहा परिवारों में : संयुक्त परिवार शायरी | परिवार टूटने पर शायरी

"कुछ टूट रहा परिवारों में"
ज्यादा पाने की चाह में,
सफल से सफलतम,
की ओर बढ़ने की होड़ में,
सब कुछ मुझे ही चाहिए,
सब कुछ मैं ही कर लूंगा!
टैलेंटेड से मल्टी टैलेंटेड,
बनने की दौड़ में,
समय कम पडता जा रहा!
संस्कार देने वाले ही,
दौड़ में लग गए।
जुड़ने और जोड़ने वाले,
दोनों ही दौड़ रहे हैं।
तो समझने समझाने का
वक्त ही कहाँ है?
सुनने और सुनाने का,
वक्त ही कहाँ है?
नतीजा यह है कि,
कुछ टूट रहा परिवारों में।
एकता में एकमत है ही
नहीं विचारों में।
साथ रह रहें पर,
समझते नहीं एक दूजे को,
अपने अपने मोबाइल लैपटॉप में,
सब सिर्फ सर खपाए बैठे हैं।
तीन लोग छह कमरे,
फिर भी घर छोटा पड़ता है!
नाते रिश्तेदारों के लिए,
वक्त नहीं हमारे पास,
बच्चे तो पहचानते भी नहीं,
अपने संबंधियों को,
अपने दूर के रिश्तेदारों को,
घर में एडजस्ट कैसे करें?
क्यों करें, अपने इकलौते बच्चे को
सिखाया नहीं है हमने,
इसीलिए कुछ टूट रहा परिवारों में।
कुछ नहीं, बल्कि परिवार ही टूट रहें।
माता पिता की कद्र नहीं,
वृद्धाश्रम भरे पड़े हैं!
चंद नोटों के लिए,
सारे रिश्ते दांव पर लगे,
आठ कमरों के घरों में भी,
नहीं जगह है मां-बाप के लिए!
ना सोचा कभी दो कमरों में,
माता पिता ने कैसे,
पाला पाँच बच्चों को?
समझ नहीं पाते सभी तभी,
कुछ टूट रहा परिवारों में।
धन्यवाद
अंशु तिवारी पटना

पैसा बड़ा हो गया प्यार से : क्या दुनिया में पैसा ही सब कुछ है Shayari | पैसा और रिश्ते शायरी | पैसा या परिवार शायरी

आज पैसा बड़ा हो गया प्यार से
रिश्तो की कदर कहां
सब हो गया व्यापार है
ना इंसान ना ही इंसानियत
की कद्र रही
कौड़ियों के भाव यह
सभी बिक रहे बाजार में।
आज पैसा बड़ा हो गया प्यार से।
सोचते हैं हम सभी
खुशियां खरीद लेंगे पैसों से
पर रिश्ते ही ना रहे अगर
खुशियां मनाएंगे किसके साथ
यह ना सोचा हमने कभी।
आज के जमाने में चलन है बड़ा
मां-बाप कमाने की खातिर
बच्चों को छोड़ते झूला घर
या कामवालियों के सहारे
फिर बच्चे उसी पैसे से ऐश करते
मां-बाप को वृद्धाश्रम भेज देते,
तब उनके पास समय नहीं
आज उनके पास समय नहीं
तब उन्हें अपनी कमाई की फिक्र थी
आज इन्हें अपनी कमाई की फिक्र है।
क्योंकि पैसा बड़ा हो गया है प्यार से।
सेवा भावना ना रही
झूठों का संसार बढ़ रहा
दिखावे की दौड़ में
रिश्तो को ठोकर मार रहे।
जमाना था कभी
पैसे को हाथ का मैल कहते
की कदर थी वहां रिश्तो की।
पर आज पैसा ही
सब कुछ है।
रिश्ता इंसानियत सब
दफन हुआ
रिश्तो को कफन ओढा कर
बस मौज मस्ती ही जीवन है
आजकल कहां इंसानों की
पैसा बड़ा हो गया प्यार से।
धन्यवाद
अंशु तिवारी पटना

आज पैसा बड़ा हो गया प्यार से - झूठे रिश्ते शायरी

गीत
विषय - आज पैसा बड़ा हो गया प्यार से
रिश्ते सारे झूठे हो गए,
बचा नहीं है अब इंसान
देख नहीं सकते आँखों से,
भूल गए अपनी पहचान
आँखों में आंसू से भरे हैं,
मुकरे सब इकरार से
आशा धूमिल हो रही है,
पैसा बड़ा अब प्यार से

सब कुछ अपना दे डाला,
पाल-पोस कर बड़ा किया
जीवन अपना अर्पित करके,
पांवों पर अपने खड़ा किया
भूल गए सब उपकारों को,
मुख मोड़ा परिवार से
आशा धूमिल हो रही है,
पैसा बड़ा अब प्यार से

माता -पिता भार बने हैं,
उनको नहीं कुछ याद है
इनको कोई क्या समझाए,
बुजुर्ग सदा बुनियाद है
फर्ज अपना भूल गए हैं,
जीते सब तकरार से
आशा धूमिल हो रही है,
पैसा बड़ा अब प्यार से

चोरी डकैती लूट-पाट का,
गरम बहुत बाजार है
बेईमानी का जोर बहुत है,
खून सना अखबार है
स्वार्थ की अब दोस्ती है,
भरे सभी विकार से
आशा धूमिल हो रही है,
पैसा बड़ा हो गया प्यार से
श्याम मठपाल, उदयपुर

संस्कार में अंधकार : परिवार टूटने पर शायरी | माता पिता पर अत्याचार शायरी

संस्कार में अंधकार
एक हूँक सी उठी दिल में, फिर दिल में रह गयी।
बेटी तो वो बहुत प्यारी थी, फिर बहू ऐसी क्यों हुई।
आज भी वो अपने घर का बहुत ख़्याल रखती है,
छोटे-बड़ों की इज़्ज़त सब संभाल रखती है।
मेरी परवरिश में ही शायद कोई क़सूर हो गया,
ग़रूर जिस बेटा पे था, वही बिल्कुल दूर हो गया
शादी के पहले वो ममता का पाठ ग़ैरों को पढ़ाता।
वृद्धाश्रम के नाम पे ही सब पे भड़क जाता।
आज मेरी पोटली उठाकर वो मुझे यहाँ छोड़ गया,
जीते जी मुझे यहाँ, मौत के रिश्ते से जोड़ गया।
एक सवाल आज भी, मेरे दिल में घर कर गया,
मेरे ही घर से, क्यों मुझे बेघर कर गया।
बेटी को संस्कार देना, तो बहू का भी फ़र्ज़ बता दो,
सास-ससुर और माँ-बाप की दूरियाँ मिटा दो।
जो बेटा जीते जी माँ-बाप के हक़ पे फ़ैसला न कर पाया।
वो बेटा क्या ख़ाक अपनी ज़िंदगी में सफ़ल हो पाया।
संस्कार में भला क्यों अंधकार हुआ,
पूँजी मिली मिट्टी में, सब बेकार हुआ।
वक़्त का पहिया फिर से घूम कर आएगा,
वृद्घाश्रम पहुँचाने वाले, तुझे भी कल कोई पहुँचायेगा।
वृद्घाश्रम पहुँचाने वाले, तुझे भी कल कोई पहुँचायेगा।
नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़
Nilofar Farooqui Tauseef
FB, ig-writernilofar

रिश्तों में दरार शायरी | टूटे रिश्ते शायरी इन हिंदी

जीत को आदत बनाना
जीत हार में क्या
रखा है,
जीत के हारना
हार के जितना
यह जीवन की
अनबुझ पहेली है
बड़े बुजुर्ग समझाते हैं
रिश्तो को चलाना है
तो हार जाना बेहतर
दूसरों के लिए
हार कर भी देखा
रिश्तो को बचाने हेतु
जीतना छोड़ कर भी देखा
पर जब ठेंगा मिला
उन्हीं से तो
झुकना छोड़ा मैंने
जीत को आदत
बनाना सीखा मैंने
मुझे भी वह सब चाहिए
जिसे देने के लिए मैं हारी
पर जीत को आदत बनाया
फिर बदलाव देखा
परेशानियो
जीतने लगी
अपनी और दूसरों की
राहें आसान करने लगी
अपने खुद ब खुद
पास आने लगे
मत झुको तुम सिर्फ
वही यह समझाने लगे,
अब रिश्तो को
मैं भी जीतने लगी
बड़ी छोटी मुश्किल है
हारती है मुझसे
इस महामारी से
भी जीतेंगे हम
क्योंकि जीत को
आदत बना लिया है हमने।
धन्यवाद
अंशु तिवारी पटना

family-shayari-wishes-quotes-status-in-hindi-parivar-shayari-international-day-of-familiesपरिवार पर दोहे | घर परिवार की शायरी | दुखी परिवार शायरी

चरण छुए न मातु की, पिता न शीश नवाय।
सेवा भाव न किए कभी, मरे तो गंग पिलाय।।

माँ से सकल जहान में , पले पूत दो चार।
चार पांच मिल कर नहीं, दे पाते वह प्यार।।

लिये गोद औलाद को , जागे सारी रात।
हुआ बड़ा औलाद तो, करे न मीठी बात।।

जेवन को पुछे नहीं, किये दिखावा भोज।
जीते जी सुधी नहीं , लिए खबर न खोज।।

जीवन भर न प्रेम के, बोले मीठे बोल।
रे मूरख नादान तू, मन की आँखें खोल।।

बाल वृद्ध दोऊ एक हैं, करो सदा सम्मान।
यही धर्म और कर्म है, सदा राखिये ध्यान। ।

कहे उदय कविराय ये, हो पत्थर पाषाण।
करना था सो किए नहीं, बाद गरुड़ पुराण।।
उदय शंकर चौधरी नादान
कोलहंटा पटोरी दरभंगा बिहार
7738559421
Read More और पढ़ें:

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ