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माना कि इंतज़ार के लम्हें हैं दुश्वार : इंतज़ार के लम्हें शायरी Intezar Ke Lamhe Shayari Hindi

माना कि इंतज़ार के लम्हें हैं दुश्वार : इंतज़ार के लम्हें शायरी Intezar Ke Lamhe Shayari Hindi

इंतज़ार के लम्हें
माना कि इंतज़ार के लम्हें हैं दुश्वार,
इनको खुर्दबीन से नहीं निहारा करते हैं।
हौसला ओ' दम है गर-चे- पास तो,
कारवां के साथ हम सदा चला करते हैं।।

ख़्वाबों से ख्वाहिश पूरी नहीं हुई है कभी,
साहिल की ओर किश्ती को धुमा बहते हैं।
नज़र मुक़ाम पर सदा रखना कड़ी,
फरिस्ते खासमखास बन आमीन कहते हैं।।

आफताब चाँद का इंतजार कर,
ढल हर शाम- नये ख़्वाब सजाता है।
चाँदनी लुटा चाँद प्यासे चकोर को,
तिश्नगि जगा बेहिसाब तरसाता है।।

बादल छुपा के आगोश में चाँदनी,
तअन्नुस पुरज़ोर लुटता-लुटाता है।
गुलशन तरोताज़ा है तुझसे-
पतझड़ का नाम नागवार सताता है।।

काली घटायें हैं बेताब बरसने को,
तिश्नगी का अब नाम नहीं सुहाता है।
पुरज़ोर उछाल है समन्दर में,
साहिल से पुकारता अहबाब है।।

इंतजार की कीमत ले पूरी बसूल,
मंजर खड़ा सामने- आस-पास है।
"चलते-चलते" क़ायनात भी,
भरपूर इल्म हमें सिखलाती है।।

मन की आवाज़ से इल्म सारा सीख,
खुदा का घर वहीं सजाया जाता है।
घड़ी की टिक्-टिक् से फर्ज सीख,
इंतजार के लम्हें हिसाब करना बताता है।।
डॉ. कवि कुमार निर्मल
बेतिया (पश्चिम चंपारण), बिहार

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