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बाल गंगाधर तिलक पर निबंध Essay On Bal Gangadhar Tilak In Hindi

बाल गंगाधर तिलक पर निबंध Essay On Bal Gangadhar Tilak In Hindi

बाल गंगाधर तिलक का जन्म Bal Gangadhar Tilak Jayanti

हमारे प्रिय देश भारत के स्वतंत्रता सेनानियों में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का नाम बड़े आदर और सम्मानपूर्वक लिया जाता है। बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र राज्य के रत्नागिरी में हुआ। और बाल गंगाधर तिलक का निधन 1 अगस्त 1920 को हुआ। बाल गंगाधर तिलक ने महात्मा गांधी से भी पहले स्वतंत्रता संग्राम प्रारंभ कर दिया था। भारत को ब्रिटिश राज से स्वतंत्रता दिलाने में बाल गंगाधर तिलक ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बाल गंगाधर तिलक ने ही हमें पूर्ण स्वराज का नारा दिया। आज 166वीं बाल गंगाधर तिलक जयंती 2022 के अवसर पर प्रस्तुत है बाल गंगाधर तिलक पर विशेष निबंध जिसको पढ़ कर आप भी आसानी से बाल गंगाधर तिलक पर निबंध लिखने में निपुणता प्राप्त कर सकते हैं।

बाल गंगाधर तिलक पर निबंध - जीवन परिचय

भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धाओं में लोकमान्य बल गंगाधर तिलक का नाम उनके सर्वोच्च साहस, समर्पण, कर्मठता, बलिदान, निस्वार्थता और स्वतंत्रता आंदोलन के सबसे बड़े महानायक के रूप में सामने आता है। बाल गंगाधर तिलक ने अपनी स्कूली शिक्षा और स्नातक करने के उपरांत अपना पूरा जीवन सामाजिक और राष्ट्रीय सेवा एवं राजनीतिक समस्याओं के समाधान में लगा दिया। वह अंग्रेजों द्वारा प्रारंभ की गई शिक्षा प्रणाली में बहुत सुधार की आवश्यकता महसूस करते थे तथा उन्होंने महाराष्ट्र राज्य में शिक्षा के क्षेत्र में प्रसार के लिए एक विशेष समाज की शुरुआत की। लेकिन भारतीय स्वतंत्रता के लिए उनका बेचैन मन एक क्षेत्र तक सीमित नहीं रह सका। उन्होंने शीघ्र ही पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखा और एक मराठी अखबार 'केसरी' जारी किया। उन्होंने भारतीय समाज में सुधार के लिए बहुत उत्साहपूर्वक लेख लिखा।

सामाजिक भेद भाव और छुआछूत पर बालगंगाधर तिलक के विचार

सामाजिक भेद भाव और छुआछूत की गन्दी समस्या पर उन्होंने लिखा कि मैं भगवान को भी नहीं पहचान पाऊँगा अगर उन्होंने कहा कि छुआछूत उनके द्वारा बनाया गया कोई नियम है। सामाजिक सुधारों की आवश्यकता की वकालत करते हुए उन्होंने लोगों का ध्यान राजनीतिक समस्या - ब्रिटिश शासन से भारत की स्वतंत्रता की ओर दिलाया। उन्होंने अपने अखबार केसरी में लेख लिखना प्रारम्भ किया जिसमें प्रत्येक भारतीय व्यक्ति के स्वतंत्र होने के जन्मसिद्ध अधिकार पर जोर दिया गया। यह उन दिनों प्रचारित किया जाने वाला एक क्रांतिकारी सिद्धांत बन गया था। इसने उन्हें अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध संघर्ष में ला दिया और उन्हें 1897 में राजद्रोह के आरोप में दोषी ठहराया दिया गया। लेकिन उनका दृढ़ संकल्प और विश्वास उनके लिए एक आशीर्वाद के रूप में सामने आया तत्पश्चात लोकमान्य तिलक एक प्रांतीय नेता से भारत के राष्ट्रीय नेता बन गए।

लोकमान्य तिलक और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस Indian National Congress

सन् 1889 में जवाहरलाल नेहरू का जन्म के साल लोकमान्य तिलक ने सर विलियम वेडरबर्न ( Sir William Wedderburn ) की अध्यक्षता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ( Indian National Congress ) के बॉम्बे सत्र में भाग लिया। बाल गंगाधर तिलक की आयु उस समय 33 वर्ष की थी। दो और युवा कांग्रेसी नेता जो उनके समकालीन बनने वाले थे वे भी प्रथम बार कांग्रेस के मंच पर दिखाई दे रहे थे। एक– लाला लाजपत राय जी जो उस समय 34 वर्ष की आयु प्राप्त कर चुके थे और दुसरे गोपाल कृष्ण गोखले जो 33 वर्ष के थे। सन् 1885 में कांग्रेस में नरम पंथियों का बोलबाला था। ये लोग न्याय और निष्पक्षता की ब्रिटिश भावना में विश्वास रखते थे तथा आंदोलन के संवैधानिक और वैध तरीकों को बरतने में गहरा विश्वास करते थे। लेकिन बाद में लॉर्ड कर्जन (Lord Karjan ) के द्वारा बंगाल विभाजन के निर्णय के साथ यह बदल गया। भारत के युवा उग्रवादी राजनीति एवं सीधी कार्रवाई की ओर उन्मुख होने लगे। बिपिन चंद्र पाल एवं लाला लाजपत राय के साथ बाल गंगाधर तिलक ने अंग्रेजों के विरुद्ध मोहभंग के अवसर को जब्त कर लिया और नरम पंथियों की "राजनीतिक भिक्षावृत्ति" की घोर निंदा की। श्री अरबिंदो घोष ( Aravindo Ghosh ) के साथ बाल-पाल-लाल की तिकड़ी "चरमपंथी" के रूप में लोकप्रिय हो गई लेकिन वे सभी स्वयं को "राष्ट्रवादी" कहना पसंद करते थे।
कहना पसंद करते थे।

द डिस्कवरी ऑफ इंडिया The Discovery Of India

द डिस्कवरी ऑफ इंडिया नामक पुस्तक में ( The Discovery Of India : Jawaharlal Nehru ) पंडित नेहरू ने स्मरण करते हुए लिखते हैं, "राष्ट्रीय कांग्रेस के आगमन के साथ जिसकी स्थापना 1885 में हुई थी एक नवीन प्रकार का नेतृत्व सामने आया जिसमें छात्रों और युवाओं के रूप में अधिक उग्र एवं आक्रामक और उद्दंड और निम्न मध्यम वर्गों की बहुत बड़ी संख्या का भी प्रतिनिधित्व करता था। बंगाल विभाजन के विरोध में शक्तिशाली आंदोलन ने इस प्रकार के कई सक्षम तथा आक्रामक नेताओं को उस स्थान पर ला खड़ा कर दिया लेकिन नवी युग का सच्चा प्रतीक महाराष्ट्र के बाल गंगाधर तिलक ही थे। प्राचीन नेतृत्व का प्रतिनिधित्व एक मराठा एवं एक बहुत ही सक्षम तथा एक युवा गोपाल कृष्ण गोखले ने भी किया था। क्रांतिकारी नारे हवाओं में गूंज रहे थे। क्रोध की अधिकता थी और संघर्ष अपरिहार्य और आवश्यकता बन गई थी। इससे बचाव हेतु कांग्रेस के बड़े और वरीष्ठ नेता श्री दादाभाई नौरोजी जिनको सार्वभौमिक रूप से सम्मानित और देश के पिता के रूप में माना जाता था। को उनकी सेवानिवृत्ति से बाहर कर दिया गया था और 1907 में संघर्ष हुआ जिसका परिणाम स्पष्ट रूप से प्राचीन उदारवादी वर्ग की जीत हुई। निस्संदेह भारत में राजनीतिक विचारधारा वाले अधिकांशतः लोगों ने लोकमान्य बालगंगाधर तिलक तथा उनके समूह का समर्थन किया।

मुंबई में बाल गंगाधर तिलक पर गिरफ्तारी का वारंट जारी

24 जून 1903 को मुंबई में बाल गंगाधर तिलक पर गिरफ्तारी का वारंट जारी कर दिया गया था। राजद्रोह के आरोपी बाल गंगाधर तिलक पर यह ऐतिहासिक मुकदमा 13 जुलाई को प्रारंभ हुआ और उन्हें दोषी ठहराया गया तथा बर्मा के मांडले भेज दिया गया जहां पर उन्होंने अपने जीवन के अगले 11 साल बिताया। फैसला सुनाने पर बाल गंगाधर तिलक ने निडरता और बहादुरी से कहा कि: "मैं केवल इतना कहना चाहता हूँ कि जूरी के फैसले के बावजूद मैं इस बात पर कायम हूँ कि मैं निर्दोष हूँ। यह ऐसी उच्च शक्तियाँ हैं जो चीजों की नियति को नियंत्रित करती हैं तथा यह भविष्य की इच्छा हो सकती है कि जिसके कारण का मैं प्रतिनिधित्व करता हूँ वह मेरे मुक्त रहने की तुलना में मेरे दुख से अधिक समृद्ध हो। बर्मा के मांडले में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने शीघ्र ही ही स्वयं को लेखन और चिंतन की दिनचर्या में स्थापित कर लिया। कर्मयोगी ने स्वयं को अध्ययन में, नवीन तथ्यों को खोजने तथा सीखने में और गीता के सच्चे संदेश पर चिंतन-मनन करने में सदुपयोग कर लिया। इस निरंतर पठन, अध्ययन एवं चिंतन का सबसे फलदायी परिणाम गीता रहस्य था। 8 जून 1914 को तिलक को सूचित किया गया कि उनकी सज़ा समाप्त हो गई है उस समय वह 58 वर्ष के हो गए थे। उनका स्वास्थ्य क्षीण हो गया था परन्तु उनकी आत्मशक्ति में कोई कमी नहीं हुई थी। इसलिए वह भारत लौटने पर सर्वप्रथम अपनी राजनीतिक गतिविधियों को दोबारा प्रारंभ कर दिया।

बाल गंगाधर तिलक के जीवनी Bal Gangadhar Tilak Biography

बाल गंगाधर तिलक के जीवनी ( Bal Gangadhar Tilak Biography ) पुस्तक के लेखक श्री डीवी तम्हंकर ने अपनी शोध में लिखा है कि "वर्ष 1916 बाल गंगाधर तिलक के राजनैतिक जीवन का सबसे महत्वपूर्ण वर्ष था। इस वर्ष के प्रारंभिक भाग में होमरूल लीग ( Home Rule League ) की नींव रखी गई इसकी अपार सफलता ने तिलक के ६१वें जन्मदिन पर सार्वजनिक पर्स की प्रस्तुति और लखनऊ कांग्रेस के अंतिम राजद्रोह में उनकी कानूनी जीत देखी गई। यह महत्वपूर्ण राजनैतिक घटना न केवल देश के चरमोत्कर्ष का प्रतीक है अपितु तिलक का जीवनकाल की उन्नति का भी प्रतीक है तथा कांग्रेस के इतिहास का भी। तिलक पहले ही राजनीति में अकर्मण्यता के लिए ख्याति प्राप्त कर चुके थे। अब एक रचनात्मक और सुलह करने वाले राजनेता की भूमिका में दिखाई देने लगे थे। उग्र भाषणों तथा कठोर निंदनीय वचन के दिन समाप्त हो गए थे। समझौता एवं उत्तरदायित्व और सहयोग का एक नया चरण प्रारंभ चुका था। बाल गंगाधर तिलक को लखनऊ कांग्रेस में अपने सर्वश्रेष्ठ रूप में देखा जा सकता है जो भारतीय राजनीतिक विकास में एक निश्चित चरण के प्रतीक हैं। तिलक की प्रेरणा से ही स्वराज की संयुक्त मांग हर तरफ़ से उठने लगी। यह पहला अवसर था जब मुस्लिम और हिंदू नरमपंथी तथा उग्रपंथी, पारसी तथा दूसरे लोगों ने महत्वपूर्ण सुधारों की मांग के लिए ताल में ताल मिला कर बातें की। बाल गंगाधर तिलक हिंदू-मुस्लिम एकता और भाईचारे के मसीहा बनकर उभरे।

इंडियन होम रूल लीग का गठन - Formation of Indian Home Rule League

इंडियन होम रूल लीग का गठन बाल गंगाधर तिलक के राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक थी। उन्होंने भारत की आम जनता की राजनीतिक आकांक्षाओं को ठोस एवं मजबूत आकार देने के लिए पैंतीस वर्षों तक परिश्रम किया था। जो बड़े स्तर पर अपने स्वयं के प्रयासों, कष्टों और कठोर परिश्रम से प्राप्त किया था। और लोकमान्य तिलक इस कठोर श्रम ने अंततः बड़े मीठे फल दिये। देश अब खुलकर अपने मन की बात बोल सकता था और बिना किसी डर या झिझक के अपने जन्मसिद्ध अधिकार की मांग भी कर सकता था। जनता अपने अधिकारों के प्रति सजग और जागरूक हो चुकी थी। जनमत की आकांक्षाओं ने एक निश्चित और ठोस आकार ले लिया था। तथा उनको पहली बार महसूस हुआ कि एक विदेशी नौकरशाही को "संशोधित तो नहीं किया जा सकता है परन्तु इसे समाप्त तो किया ही जा सकता है। अब निश्चित रूप से यह समय आ गया था। बाल गंगाधर तिलक ने कहा: देश के मामलों पर नियंत्रण की मांग करना। परंतु यदि स्वराज की मांग को प्रभावी होना है तब इसे एक शक्तिशाली तथा संगठित निकाय के द्वारा किया जाना चाहिए। होमरूल लीग Home Rule League को वह निकाय होना था। जिसकी स्थापना 28 अप्रैल 1916 को पुणे में मुख्यालय Headquarter के साथ हुई थी। इसी प्रकार की होम रूल लीग का आरंभ एनी बेसेंट ( Annie Besant ) (जो अगले वर्ष आईएनसी की पहली महिला अध्यक्ष भी बनी) उन्होंने मद्रास में अपने मुख्यालय के समक्ष की थी। यह दोनों होमरूल लीग आपस में एक दूसरे के पूरक थे। होम रूल आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नवीन चरण की शुरुआत को चिह्नित कर दिया। इसने देश के सामने स्वशासन की एक ठोस योजना नींव रखी।
बाल गंगाधर तिलक पर निबंध Essay On Bal Gangadhar Tilak In Hindi
बाल गंगाधर तिलक चित्र

संसद में लोकमान्य बालगंगाधर तिलक के चित्र का अनावरण

जवाहरलाल नेहरू ने 28 जुलाई 1956 को संसद में लोकमान्य बालगंगाधर तिलक के चित्र का अनावरण करते हुए श्री तिलक को अपनी शानदार श्रद्धांजलि अर्पित की। श्री नेहरू ने कहा: तिलक के निकट संपर्क में आना मेरा बहुत बड़ा सौभाग्य था। जब वह अपने राजनैतिक करियर के शिखर पर थे तब मैं दूर देश में था। तब मैं एक छात्र था। परंतु वहां भी उनकी ध्वनि और उनकी कहानियां हम तक पहुंच जाती और हमारी कल्पना को झकझोर देती। हम शीघ्र ही उस प्रभाव में पले-बढ़े तथा इसके द्वारा ढाले गए। एक मायने में यह उस समय के युवाओं के लिए सच्चा भारत वही था जो बाल गंगाधर तिलक ने प्रस्तुत किया था। जैसा उन्होंने कहा था और जैसा उन्होंने लिखा था। और इन सबसे बढ़कर उन्होंने जैसा झेला था। यही वह विरासत थी जिसके साथ महात्मा गांधी को अपने विशाल आंदोलनों को प्रारंभ करना पड़ा। अगर लोकमान्य तिलक द्वारा भारतीय लोगों तथा भारत की कल्पना तथा भारत के युवाओं को ढाला नहीं गया होता तो अगला कदम उठाना इतना आसान नहीं होता। इस प्रकार इस महत्वपूर्ण ऐतिहासिक चित्रमाला में हम एक के बाद दूसरे महान व्यक्ति को भाग्य और इतिहास के ऐसे कार्य करते हुए देख सकते हैं जो भारतीय स्वतंत्रता की उपलब्धि का कारण बने हैं। हम यहां न केवल भारतीय क्रांति के जनक इस महान व्यक्ति के चित्र का अनावरण करने के लिए मिलते हैं। बल्कि उन्हें स्मरण करने तथा उनसे प्रेरित करने के लिए भी मिलते हैं। बाल गंगाधर तिलक अपनी पीढ़ी के उन महान नेताओं में सबसे बड़े थे जिन्होंने गांधीवादी युग के परीक्षणों तथा विजयों हेतु राष्ट्र को तैयार एवं परिपक्व किया। गांधीजी द्वारा असहयोग आंदोलन प्रारंभ करने के ठीक एक दिन पुर्व 1 अगस्त 1920 को तिलक का निधन हो गया। इस प्रकार एक युग के अंत और दूसरे युग का आरंभ हुआ। इस प्रकार से स्वतंत्र भारत का सपना साकार हुआ।
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