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वीर कुंवर सिंह जीवनी Veer Kunwar Singh Biography In Hindi

वीर कुंवर सिंह जीवनी निबंध Essay Veer Kunwar Singh Biography In Hindi

वीर कुंवर सिंह
भारतीय आजादी के समरभूमि में वयोवृद्ध योद्धा वीर कुंवर सिंह जी का नाम याद आतें हीं सीना गर्व से फुल जाता है, तो गर्दन उनकी वीरता के आगे स्वतः हीं श्रद्धा भाव से झूक जाते हैं। भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का उन्हें पितामह कहूं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

वीर कुंवर सिंह का जन्म कब और कहां हुआ था?

बिहार के शाहाबाद भोजपुर जिले के जगदीश पुर में वीर कुंवर सिंह का जन्म उस समय के शासक भोज वंश में 13 नवंबर 1777 में हुआ था। वे शाहाबाद के बहुत बड़े जागीर के मालिक थे।

वीर कुंवर सिंह के माता-पिता का नाम क्या था?

वीर कुंवर सिंह के पिता का नाम साहबजादा सिंह और माता का नाम पंचरतन कुंवर था। वे भाइयों में सबसे बड़े थे। उनका छोटा भाई अमर सिंह दयालु सिंह राजपति सिंह उनके साथ राज काज में अपना हाथ बंटाते थे। राज परिवार में होने के कारण उन सभी भाइयों में युद्ध की कला शस्त्र शास्त्रों का ज्ञान विरासत में ही मिला था। उन भाईयों के पराक्रम के किस्से जन जन में विख्यात था। दुर दराज तक उनके बहादुरी उनकी न्यायप्रियता उनके शौर्य पराक्रम के चर्चे आम थे। और हो भी क्यों न, उनके हीं खानदान के बाबू उदवंत सिंह उमराव सिंह एवं गजराज सिंह नामी जागीरदार थे। कुंवर सिंह की लोकप्रियता उनका कार्य उनके जागीर में चार चांद लगा दिया। बंटाईदार उन्हें बहुत सम्मान किया करते थे। वे गरीब किसानों का दुख दर्द भली भांति समझते थे। उनकी अच्छी खासी पैठ अंग्रेजी हुकूमत में भी हो चूकी थी। कुछ अंग्रेजो के साथ उनका उठना बैठना भी था। पर वे अंग्रेजों को ज्यादा तवज्जो नहीं देते थे। 1857 में सर्वप्रथम महान क्रांतिकारी मंगल पांडे ने अंग्रेजी हुकूमत का बहिष्कार करना शुरु कर दिया । ये तीव्र आंदोलन था जिसने अंग्रेज़ो की चूल तक हिला कर रख दिया। सारे भारत में क्रांति का सिंहनाद हो चुका था। क्या बच्चे क्या जवान क्या बूढ़े यहां तक कि माताएं बहनों ने भी अपना सर्वस्व भारत की आज़ादी के लिए समर्पित कर दिया।


1857 में वीर कुंवर सिंह की भूमिका

1857 के महासमर में अस्सी साल के वयोवृद्ध महान स्वाभिमानी कुंवर सिंह भी भारतीय सिपाहियो का साथ लेकर उनका नेतृत्व करने लगे। 27 अप्रैल 1857 को उन्होंने भोजपुर दाना पुर के सिपाहियों एवं अपने विश्वास पात्र साथियों के बल पर आरा पर कब्जा करने के साथ-साथ जेल में बंद कैदियों को मुक्त कराया। आरा पर अब उनका आधिपत्य हो गया। इस जीत से उनका मनोबल सातवें आसमान पर पहुंच गया। साथ में कितने खजाने भी लूटे। उनकी वीरता के आगे अंग्रेजों को दिन में तारे नज़र आने लगे। कुंवर सिंह अंग्रेजों को दिग्भ्रमित करने के लिए सुरंग बनबा रखे थे जिससे वे आरा से जंगल के रास्ते जगदीश पुर आया जाया करते थे। जिसके कुछ निशान आज भी मौजूद हैं, साथ ही इतिहास में भी कहीं कहीं इसकी झलक देखने और पढ़ने को मिलता है। सहार इलाके में स्थित वो सुरंग स्थानीय लोगों की मान्यता के अनुसार ये वही सुरंग है जिसमें रण बांकुरे कुंवर सिंह अंग्रेजों को चकमा देने के लिए उसका उपयोग किया करते थे। इनके युद्ध कौशल से परेशान अंग्रेजी हुकूमत अपना फजीहत देख आरा पर हमला कर दिया। जिसमें बिहिया के जंगलों में कुंवर सिंह और गोरों में भयंकर युद्ध हुआ। कुंवर सिंह ने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए। स्वातंत्र्यवीर कुंवर सिंह अपने दस्ते के साथ जगदीशपुर की ओर अपना रुख किया, जिसमें अंग्रेजों ने बहुत भारी गोली बारी की। घायल सैनिकों को अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया। महल दुर्ग सभी को खंडहर में तब्दील कर दिया। इस लड़ाई में कुंवर को बहुत नुक्सान हुआ अनगिनत साथियों के जान चले जाने के बाद भी कुंवर सिंह हार नहीं माने। अंग्रेजों के विरुद्ध उनका जज्बा थोड़ा भी कम नहीं हुआ। वे आंदोलन को बढ़ावा देने रीवा की ओर निकल पड़े जहां उन्हें नाना साहब से मुलाकात हुआ। उनके युद्ध कौशल के चर्चे आजादी दीवानों में देश भर में शूमार हो गया।

वीर कुंवर सिंह की मृत्यु कब हुई

वे उसके बाद लखनऊ के इंक्लाबियों से मिले, जहां जाने बाद कूंवर सिंह रामगढ़ के सिपाहियों के साथ आजमगढ़ बनारस बलिया गाजीपुर आदि जगहों पर अपने विजयश्री के डंके बजाए। इसी बीच अंग्रेजों ने लखनऊ पर हमला कर लखनऊ आजमगढ़ पर पुनःअपना कब्जा जमा लिया। कुंवर सिंह बिहार अपने गृहनगर जगदीश पुर आ रहे थे। उसी समय जब वे गंगा पार कर रहे तो घात अंग्रेज की गोली उनके बांह में आ लगी। शरीर में जहर न फैले इसलिए उन्होंने तलवार से अपनी कलाई काट कर गंगा में प्रवाहित कर दिया और एक हीं हाथ से अंग्रेजों को पराजित कर अपने रणबांकुरों के साथ जंगलों की ओर चले गए। 23 अप्रैल 1858 को वो जगदीश पुर आ गए, 26 अप्रैल 1858 भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महावीर का अदम्य वीरता के साथ 1857 के महान क्रांतिकारी बाबू कुंवर सिंह जी का स्वर्गारोहण हो गया। कुंवर सिंह भले ही मातृभूमि की बलिबेदी में भारत माता को परतंत्रता की बेरी से मुक्त करने में अपने आपको न्योछावर कर दिया, पर क्रांति की चिंगारी सारे भारत वासी को चैन से सोने न दिया।

वीर कुंवर सिंह जीवनी Veer Kunwar Singh Biography In Hindi

ऐसे थे हमारे बाबू वीर कुंवर सिंह। ये राष्ट्र अपने इस वीर पुत्र को सदैव देवताओं की तरह याद कर पूजन वंदन करता रहेगा। आशा करता हूं कि राज्य सरकार उनके उस सुरंग का जो की एक राष्ट्रीय धरोहर है उसका राजनीति से उपर उठकर दुनिया के सामने एक पर्यटन के रुप में एक शहीद की पावन धाम को विकसित और सुस्सजित करेगा।

उदय शंकर चौधरी नादान
कोलहंटा पटोरी दरभंगा बिहार
9934775009
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