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मुहर्रम—नज़्म-ए-मुअर्रा जदीद नज्म-व-मुन्फरिद नज़्म विचित्र मोहर्रम कविता

नज़्म-ए-मुअर्रा/ जदीद नज्म-व-मुन्फरिद नज़्म/ विचित्र कविता
" मुहर्रम "

मुहर्रम या मोहर्रम में मातम क्यों मनाया जाता है? कर्बला या करबला का वाकया क्या है? जानिए इस कविता में

" मुहर्रम " का महीना है हमारे बेहद पसन्दीदा " दीन-ए-हक़ ", और इस्लामी-साल/ बरस का पहला महीना!
महकता है " इरम " में भी, " गुलाब-व-नस्रीन-व-नस्तरन " की तरह, " मुहम्मद/ मोहम्मद का " पसीना "!!
मुहर्रम के महीने में दिखाई देती है, " काले/ सियाह लिबास में/ मातमी पोशाक/ लिबास में " बेहद पाकीजा मुसल्मान-हसीना "!
ख़यालात- व-जज़्बात-ए-इस्लामी रखते थे दिलों में अपने,
अली-अकबर,अली-असग़र, अब्बास, औन-व-मोहम्मद, और ज़ैनब-व-सकीना ( वग़ैरा)!!
अस्ल वाक़िया ये है, कि
सन् छे सौ अस्सी ईस्वी को मौजूदा मुल्क " इराक़ " के " करबला/ कर्बला " के मैदान-व-रेगिस्तान " में " पैग़म्बर- ए -ख़ुदा-व-दीन-ए-हक़/ " इस्लाम " हज़रत-ए-मोहम्मद साहब " के नवासे यानी नाती " हज़रत-ए-इमाम हुसैन " समेत बहत्तर सच्चे और अच्छे मुसलमानों और बादशाह यजीद की फौज के बीच तारीखी जंग हुई थी!
अस्ल बात ये थी, कि" बादशाह यज़ीद ब-ज़ात-ए-ख़ुद/ अपने आप को " दीन-व-मज़हब-ए-इस्लाम " का " ख़लीफ़ा " एलान कर दिया था!
वो
वह " पूरे " अरब-व-अजम " में अपना रोब-व-दब्दबा क़ायम करना चाहता था!
वक्त के साथ-साथ, बादशाह यजीद के ज़ुल्म-जब्र-व-सितम " अरब-व-अजम" के अफ़राद हैरान-व-परेशान रहने लगे!!
" अजब ख़ुश-फ़ह़्मी -व-ग़लत़-फ़ह़्मी " और उन ही ग़ैर-पसंदीदा-व-नाज़ुक हालात में " हज़रत-ए-इमाम हुसैन अपने अहल-व-अयाल और दीगर साथियों के हमराह " मदीना " से " कूफ़ा " के लिए निकल पड़े!?
बर-वक़्त इस की ख़बर बादशाह यज़ीद को मिल गयी!
यज़ीद-ए-मल्ऊन ने अपने मरदूद और जालिम साथियों को भेज कर " इमाम हुसैन और उन के साथियों को रास्ते ही में रोक लिया!
दरया/ दरिया-ए-फ़िरात से पानी पीने की किसी भी हुसैनी मुसल्मान को इजाज़त नहीं थी!?
पूरी तरह से पाबन्दी लगा दी गयी थी!?
उस के बाद भी हजरत-ए-इमाम हुसैन और उन के सच्चे साथी, ज़ालिम-व-काफ़िर बादशाह यज़ीद के लशकर के आगे नहीं झुके!!
फिर जंग शुरू हो गयी!
हज़रत-ए-इमाम हुसैन समेत बहत्तर सच्चे और अच्छे मुसल्मानों ने, बादशाह यज़ीद की बड़ी फ़ौज का मुक़ाबला, बड़े अज़्म-व-हौसला के साथ किया!
हज़रत-ए-इमाम हुसैन समेत बहत्तर सच्चे और अच्छे मुसल्मानो ने दुश्वारियों और मुश्किलात की घड़ियों में भी " पैग़म्बर-ए-ख़ुदा, हजरत-ए-मुहम्मद मुस्तफा साहब के बताये विचारों को नहीं छोड़ा!
बहत्तर अदद मुसल्मान दीन-ए-हक़/ मजहब-ए-इस्लाम की हिफाजत में भूख, प्यास, दुख-दर्द, सब कुछ भूल गए!!
" करबला/ कर्बला " की जंग में उन हजरत-ए-इमाम हुसैन के सभी अपनों ने " शहादत-ए-अज़ीम " की तुर्फा-व-उम्दा मिसाल क़ायम की!
यज़ीद की फौज, हजरत-ए-इमाम हुसैन को जंग में मार नहीं सकी थी! ?
जब हजरत-ए-इमाम हुसैन " नमाज़ " पढ रहे थे, ठीक उसी वक़्त उन पर हमला किया गया!?
उन की " शहादत " हो गयी, यानी " हज़रत-ए-इमाम हुसैन " शहीद " हो गये! " करबला/ ककर्बला " की जंग के बाद से हर बरस " मुहर्रम " के महीने में तमाम मुसल्मान भाई-बहनें " मातम " करते हैं!!
अक्सर-व-बेश्तर हज़रात " रोज़े" रखते हैं!!
हज़रत ए-इमाम हुसैन का " क़त्ल", अस्ल में " मल्ऊन बादशाह यज़ीद का क़त्ल था, उसी की " मौत" हुई थी अस्ल में!
लोग " यज़ीद " की बादशाहत और " ख़लीफ़ियत-व-ख़लाफ़त " को भूल चुके हैं!
तमाम लोग यज़ीद और उस के साथियों पर लानत-मलामत भेजते हैं!!
हर साल! हर पल! हर घड़ी! हर -दम!
हम " हुसैन " को, उन के सच्चे और अच्छे मुसल्मान-साथियों को याद करते हैं!!
हम-सब " हुसैनी " हैं!
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डाक्टर सैयद मोहम्मद जावेद अशरफ़ कैस फैज अकबराबादी ,द्वारा डॉक्टर रामचन्द्र दास प्रेमी राजकुमार जानी दिलीपकुमार कपूर, डॉक्टर इनसान प्रेमनगरी हाऊस,डॉक्टर खदीजा नरसिंग होम, रांची हिल साईड,इमामबाड़ा रोड, राँची-834001,झारखंड, इन्डिया!

मुख्तसर मर्सिया-गजल जदीद -व-मुन्फरिद गजल

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क्यों ला के रखा है कोई "लाशा" मेरे आगे?!
है "दीनी-सिपाही" का जनाज़ा मेरे आगे!!
अफ़सोस है और दर्द-व-अलम है मेरे दिल में!!
है एक " ख़लीफ़ा " का " जनाज़ा " मेरे आगे!!
हमलोग पढेंगे ही, "जनाज़े की नमाज़ अब!!
है एक " मुसल्माँ " का " जनाज़ा " मेरे आगे!!
इक " मोमिन-ए-सादिक़ "हूँ मैं भी अस्र-ए-रवाँ का!!
"बाज़ीचा-ए-कुफ़्फ़ार " है दुन्या/ दुनिया मेरे आगे!!
है एक मुसल्मान, मुसल्मान का भाई!!
" जावेद "!, है मख़्सूस ये रिश्ता मेरे आगे!!
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नोट :- इस तवील और मुन्फरिद गजल के दीगर शेर-व-सुखन आइंदा फिर कभी पेश किए जायेंगे, इन्शा-अल्लाह!
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डाक्टर जावेद अशरफ़ कैस फैज अकबराबादी
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जदीद-व-मुन्फरिद इस्लामी ग़ज़ल

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तुम समझते क्यों हो ?," मातम" को " इबादत ",मोमिनो!
दिल में होना चाहिए " शौक़-ए-शहादत", मोमिनो!!
" मज़हब-ए-इस्लाम " की,जानो!," हक़ीक़त ",मोमिनो!
" दीन-ए-हक़ " की है ब-हर लम्हा, ज़रूरत,मोमिनो!!
" इश्क-ए-रब ", " इश्क-ए-हक़ीक़ी ",अस्ल शै/ शय है आज भी!
हर " जहाँ " में है " मुहब्बत " की ज़रूरत, मोमिनो!!
रहनुमाई कौन ? कर सकता है, " अहमद " के सिवा!
है," मुहम्मद-मुस्तफ़ा "ही की " क़यादत ",मोमिनो!!
अस्ल में " औलाद-ए-अहमद " थी, " रसूल-ए-पाक " सी!
सब को है," आल-ए-मुहम्मद " से " मुहब्बत ",मोमिनो!!
थीं, " शबीह-ए-मुस्तफ़ा " वो/ वे/ वह सूरतें " हसनैन " की / हैं " शबीह-ए-मुस्तफा, वो सूरतें, हसनैन की!
इस लिए भी है उन ही/ इन ही लोगों से " उल्फ़त ", मोमिनो!!
हम सभी भाई-बहन को याद आती है बहुत!
" अहमद-व-उस्मान-व-हातिम "की " सख़ावत ",मोमिनो!!
सैयद मुहम्मद जावेद अशरफ़ कैस  Moharram Shayari
सैयद मुहम्मद जावेद अशरफ़ कैस
हज़रत-ए-अल्लामा सैयद मुहम्मद जावेद अशरफ़ कैस फैज अकबराबादी,द्वारा डॉक्टर रामचन्द्र दास प्रेमी राजकुमार जानी दिलीपकुमार कपूर, डॉक्टर इनसान प्रेमनगरी हाऊस, डॉक्टर खदीजा नरसिंग होम, रांची हिल साईड,इमामबाड़ा रोड, राँची-834001,झारखंड, इन्डिया!

नयी और विचित्र कविता जदीद और उम्दा-व-तुर्फा गजल

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" लहू-लहू/ लहू-लुहान "मुहर्रम के मौके पर

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भेड़िया जब बन गया, इन्साँ / जालिम/नेता/ राजा के अन्दर का लहू!
पी गया वो/ वह कितने ही मासूम पैकर का लहू!!
उस हकीकत को नजर के सामने रक्खा करो!!
कर्बला में रंग लाया था " बहत्तर " का लहू!!
जह्र किस ने दे दिया था " आँ-हसन" को,मोमिनो!?!
खौलता है आज तक " अशरफ़ " सुखनवर का लहू!!!
इक शिकारी ने बहाया जब कबूतर का लहू!!?
जोश में आया बहुत!, अशरफ़/ रामा /किशना/ मोहन/ सुखनवर का लहू!!!
कुछ-न-कुछ कर के दिखायेगा, जहाँ में, दोस्तो!!
जोश में आएगा जब भी इक कलन्दर का लहू!!
सब " यजीदी" हैरत -व-हसरत से तब देखा किए!!
करबला/कर्बला में रंग लाया जब " बहत्तर " का लहू!!
हर कलन्दर की करामत पर निगाहें तुम रखो!!
होता है मोजिज़( معجزہ نما)नुमा हर इक कलन्दर का लहू!!
जोश में आया " मुकद्दर के सिकन्दर " का लहू!!
अब बहेगा सारे " हिट्लर और झुठ्लर " का लहू!!
जब भी दुन्या/ दुनिया में बहा उजले कबूतर का लहू!!
जोश में आया है, हर अच्छे सुखनवर का लहू!!
शेरनी ने पी लिया जब मेरी दुख्तर/ दोखतर का लहू!!
खुश हुई पी कर बहुत, " मासूम-पैकर" का लहू!?
देख लेना!, " इन्कलाब-ए-नव/ नौ ",
जहाँ में लाएगा!!
जोश में आएगा जब भी, बन्दा-पर्वर का लहू!!
" शाह( सरमद) "साहब की शहादत पर कहा करते हैं " राम/ कैस/ फैज "( वगैरा)!!!
अपनी रफ्अत पा गया,बे-शक!,कलन्दर का लहू!!
फिक्र-ए-शायर/ अशरफ़ पूछती है आज खुद ही आप/ राम/ कैस/ फैज से!!
जज्ब है " इस्लाम/ अश्आर में किस लाला-पैकर का लहू!?
मिल गया ताजा सुखन/ गजल को,
हजरत-ए-जावेद कैस/ फैज/ हजरत-ए-मजहर इमाम ( वगैरा)!!
" माहिर-ए-इल्म-ए-उरूज-व-फन, सुखनवर ( जावेद अशरफ़ कैस फैज अकबराबादी ) सुखनवर का लहू!!!
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नोट :- इस तवील, जदीद,मुन्फरिद, और बेहतरीन गजल के दीगर शेर-व-सुखन आइंदा फिर कभी पेश किए जायेंगे, इन्शा-अल्लाह!

Muslim Shayari In Hindi

डाक्टर जावेद अशरफ़ कैस फैज अकबराबादी ,द्वारा डॉक्टर रामचन्द्र दास प्रेमी राजकुमार जानी दिलीपकुमार कपूर, डॉक्टर इनसान प्रेमनगरी हाऊस, डॉक्टर खदीजा नरसिंग होम, रांची हिल साईड,इमामबाड़ा रोड, राँची-834001,झारखंड, इन्डिया

लहू-लुहान कर्बला शायरी | मोहर्रम का लहू शायरी

जदीद-व-मुन्फरिद मन्ज़ूम तख़्लीक़
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सारा शहर, सारा दहर का मन्ज़र
--------------------------------------------"लहू-लहू "/" लहू-लुहान "/ ख़ून-ए-अर्माँ/ ख़ून-ए-तमन्ना/ कत्ल-व-खूँ
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मोमिन उदास!?, " अह्ल-ए-मुहर्रम" लहू-लहू!?
होते रहे हैं, आज तलक, "हम" लहू-लहू!?
हैं, आशिक़ी में, "अन्जुम-व-कोकब" लहू-लहू!?
देखे गये हैं, आज तलक, "सब" लहू-लहू!?
"अहबाब-ए-शीआ"और दिगर "मस्लकी रफ़ीक़ "!
देखे गये हैं, आज भी, ये/ वे सब, लहू-लहू!?
" ऐ दोस्त!/ जावेद!, "कर्बला/ करबला का था मन्ज़र, लहू-लहू!?
उस वक़्त, थे "हुसैनी बहत्तर" लहू-लहू!?
देखे गये हैं, अब भी, "हुसैनी", लहू-लहू!?
हैं सारे शीआ और "यक़ीनी", लहू-लहू!?
" तक़्लीदकार-ए-दीन-ए-हक़ीक़ी ", लहू-लहू!?
थे, " कर्बला/ करबला" में सारे "हुसैनी ", लहू-लहू!?
वो/ वह"सरज़मीन-ए-कर्ब-व-बला" थी, बिला-शुबा/शुबह!
ऐ दोस्त!/ जावेद!, थे तमाम "हुसैनी", लहू-लहू!!
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नोट:- इस तवील और मुन्फरिद मन्ज़ूम तख़्लीक़ के दीगर शेर-व-सुखन आइंदा फिर कभी पेश किए जायेंगे, इन्शा-अल्लाह!
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डाक्टर जावेद अशरफ़ कैस फैज अकबराबादी, द्वारा डॉक्टर रामचन्द्र दास प्रेमी राजकुमार जानी दिलीपकुमार कपूर, डॉक्टर इनसान प्रेमनगरी हाऊस, डॉक्टर खदीजा नरसिंग होम, रांची हिल साईड, इमामबाड़ा रोड, राँची-834001, झारखण्ड, इन्डिया!

या रब था कब ? यज़ीद का लश्कर लहू-लहू? करबला पर शायरी


"लहू-लहू"(जदीद-व-मुन्फरिद ग़ज़ल)
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या रब!, था कब ?, " यज़ीद"का लश्कर, लहू-लहू!?
" कर्बल/ करबल" में थे "हुसैनी बहत्तर ", लहू-लहू!?
ऐ दोस्त!/ जावेद!, " कर्बला"का था मन्ज़र, लहू-लहू!
उस वक़्त थे, "हुसैनी बहत्तर" लहू-लहू!!
मलवून वो/ वह यज़ीद भी था शाद-काम, और!
" नेज़े"लहू-लहू थे, वो "नश्तर ", लहू-लहू!!
उस "कर्बला" में सारे "यज़ीदी" थे ख़ुश, अबस!?
" बर्छी/ बरछी "लहू-लहू थी, कि "ख़न्ज़र ", लहू-लहू!!
" रफ़्अत" ही पा गये थे "शहीदान-ए-कर्बला"!!
था "कर्बला" का सारा ही मन्ज़र, लहू-लहू!!
" तकलीफ़" में थे "हज़रत-ए-ईसा-मसीह" भी!!
"उम्मत" लहू-लहू थी, "पयम्बर", लहू-लहू!!
"इन्साँ" लहू-लहू हैं, "परिन्दे "लहू-लुहान "!!
है आज सारे शहर का मन्ज़र, लहू-लहू!!
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इस तवील और मुन्फरिद गजल के दीगर शेर-व-सुखन आइंदा फिर कभी पेश किए जायेंगे, इन्शा-अल्लाह!
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डाक्टर जावेद अशरफ़ कैस फैज अकबराबादी, द्वारा, डॉक्टर रामदास राजकुमार दिलीप कपूर, डॉक्टर इनसान प्रेमनगरी हाऊस, डॉक्टर खदीजा नरसिंग होम, रांची हिल साईड, इमामबाड़ा रोड, राँची-834001, झारखण्ड, इन्डिया!

लहू-लहू ताज़ा नयी ग़ज़ल | लहू-लुहान शायरी

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"चाहत" लहू-लहू है, "मुहब्बत" लहू-लहू!!
लगता है कि "बशर" की है "क़िस्मत" लहू-लहू!!
अपने किए हुए सभी "वादे"निबाहना!!
वरना, "सनम" की होगी "मुहब्बत" लहू-लहू!!
"वादे" निभा!, तमाम!, न कर बे-वफ़ाई तू!!
होगी, तेरे "पति" की "मुहब्बत" लहू-लहू!!
"दाग़-ए-मुफ़ारिक़त" के हैं ये ज़ख़्म भी हरे!!
ज़ौजा-ए-साबिक़ा की है "उल्फ़त"लहू-लहू!!
" आल-ए-नबी" से "इश्क" नहीं है, अमीरों को!?
होती रही है अब भी "अक़ीदत" लहू-लहू!?
दुनिया में हर तरह का बशर है, मेरे हुज़ूर!!
लगता है कि किसी की है "फितरत" लहू-लहू!!
" गोरख-धन्धों का नाथ है वो, रब है, क्या है वो!?
लगता है कि ख़ुदा की है क़ुदरत लहू-लहू!!
" साला" मेरा, "निकाह" की ख़ातिर है "बे-क़रार "!?
" साली" का भी है "इश्क-व-मुहब्बत" लहू-लहू!?
"जावेद क़ैस/ अशरफ़ हुसैनी "!, याद करो तुम भी "कर्बला "/ करबला!!
" धरती"लहू-लुहान थी, "उम्मत" लहू-लहू!!
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नोट:- इस तवील और मुन्फरिद गजल के दीगर शेर-व-सुखन आइंदा फिर कभी पेश किए जायेंगे, इन्शा-अल्लाह!
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डाक्टर जावेद अशरफ़ कैस फैज अकबराबादी, द्वारा, डॉक्टर रामदास प्रेमी राजकुमार जानी दिलीपकुमार कपूर, डॉक्टर इनसान प्रेमनगरी हाऊस, , रांची हिल साईड, इमामबाड़ा रोड, राँची-834001, झारखण्ड, इन्डिया

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